नई दिल्ली : 'भारत रत्न' पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की आज पहली पुण्यतिथि है. प्रणब मुखर्जी का निधन 31 अगस्त 2020 को दिल्ली के आर्मी अस्पताल में हुआ था. उनकी पहली पुण्यतिथि पर देश के तमाम बड़े नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. प्रणब दा को याद करते हुए सीएम ने लिखा-
वरिष्ठ राजनेता, भारतीय राजनीति में कर्मठता, शुचिता एवं समर्पण की प्रतिमूर्ति, 'भारत रत्न', पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी की प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि.
भारत के 13वें राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी को 26 जनवरी 2019 को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. वह कांग्रेस के संकटमोचक माने जाते थे.
भारत रत्न प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर, 1935 में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में हुआ था. उनकी गिनती देश के बड़े राजनीतिज्ञों में होती है. प्रणब मुखर्जी ने 2012 से 2017 तक भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया. राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने से पहले, मुखर्जी 2009 से 2012 तक केंद्रीय वित्त मंत्री थे. उन्हें कांग्रेस का शीर्ष संकटमोचक माना जाता था.
शिक्षा
प्रणब मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातक और स्नातकोत्तर के साथ-साथ कानून की डिग्री हासिल की थी.
प्रारंभिक जीवन
राजनीतिक सफर शुरू करने से पहले, प्रणब मुखर्जी कलकत्ता (अब कोलकाता) में डिप्टी अकाउंटेंट-जनरल (पोस्ट और टेलीग्राफ) के कार्यालय में अपर डिवीजन क्लर्क थे. 1963 में, वह विद्यानगर कॉलेज में राजनीति विज्ञान के लेक्चरर बने और 'देशर डाक' के साथ पत्रकार के रूप में भी काम किया.
प्रणब मुखर्जी के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य
- प्रणब दा के पिता, कामदा किंकर मुखर्जी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था तथा 1952 और 1964 के बीच भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में पश्चिम बंगाल विधान परिषद के सदस्य थे.
- प्रणब मुखर्जी ने 1969 में राजनीति में कदम रखा. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा के लिए चुने जाने में मदद की थी.
- इसके बाद वह इंदिरा गांधी के भरोसेमंद बन गए और 1973 में उनकी कैबिनेट में मंत्री के रूप में शामिल हुए.
- 1975-77 के विवादास्पद आपातकाल के दौरान, उन पर (कई अन्य कांग्रेस नेताओं की तरह) घोर मनमानी करने का आरोप लगा था.
- वह साल 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने. इससे पहले 1982 से 1984 तक कई मंत्रालयों का जिम्मा संभाला.
- प्रणब मुखर्जी 1980 से 1985 तक राज्यसभा में सदन के नेता भी रहे.
- मुखर्जी खुद को इंदिरा का उत्तराधिकारी मानते थे, लेकिन राजीव गांधी के कारण वह कामयाब नहीं हुए. जिसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बनाई, जिसका साल 1989 में राजीव गांधी की सहमति के बाद कांग्रेस में विलय हो गया.
- साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद, मुखर्जी का राजनीतिक करियर तब परवान चढ़ा, जब प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने उन्हें 1991 में योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया और 1995 में विदेश मंत्री बने.
- मुखर्जी 1998 में सोनिया गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी के प्रमुख वास्तुकार थे.
- सोनिया गांधी के राजनीति में शामिल होने के लिए सहमत होने के बाद, मुखर्जी उनके राजनीतिक गुरुओं में से एक थे और मुश्किल परिस्थितियों में सोनिया का मार्गदर्शन करते थे और उनकी सास इंदिरा गांधी का उदाहरण पेश करते थे.
- मुखर्जी को 2011 में 'भारत में सर्वश्रेष्ठ प्रशासक' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
- प्रणब मुखर्जी उन गिने-चुने भारतीय राजनेताओं में से हैं, जिन्होंने वित्त, रक्षा और विदेश तीन प्रमुख मंत्रालयों को संभाला है.
- वह उदारीकरण से पहले और उदारीकरण के बाद के काल में बजट पेश करने वाले एकमात्र वित्त मंत्री हैं.
- इंदिरा गांधी ने एक बार मुखर्जी को सुझाव दिया कि वह एक अंग्रेजी शिक्षक को नियुक्त करें और अपने उच्चारण को दुरुस्त करें. लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया, वह अपने बंगाली लहजे में अंग्रेजी बोलना पसंद करते थे.
- मुखर्जी एक समय अपने ट्रेडमार्क डनहिल पाइप से धूम्रपान के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने कई साल पहले धूम्रपान छोड़ दिया था और फिर दूसरों को धूम्रपान छोड़ने की सलाह देते थे.
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पहला चुनाव जीतने पर उनका बयान
साल 2004 में जब कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सत्ता में आया, तब मुखर्जी ने पहली बार लोकसभा सीट जीती और 2012 तक कई प्रमुख मंत्रालयों जैसे- रक्षा, विदेश मामले और वित्त का कार्यभार संभाला. इसके अलावा कई मंत्रियों के समूह के प्रमुख और लोकसभा में सदन के नेता रहे.
प्रबण मुखर्जी ने 2004 तक कभी भी लोकसभा चुनाव नहीं जीता था, इस कारण कांग्रेस के कुछ नेता उन्हें 'बिना जनाधार' वाला नेता भी कहते थे. जब वह पश्चिम बंगाल की जंगीपुर लोकसभा सीट से 2004 में चुनाव जीते, तो वह खुशी से रो पड़े थे. चुनाव जीतने के बाद उन्होंने कहा था, 'मेरे लिए यह सपना सच होने जैसा है, ऐसा सपना जो लंबे समय तक मेरे साथ रहा.'
राष्ट्रपति के रूप में जब 25 जुलाई, 2017 को उनका कार्यकाल समाप्त हुआ, तो मुखर्जी ने 'स्वास्थ्य जटिलताओं' के कारण दोबारा राष्ट्रपति चुनाव न लड़ने और राजनीति से संन्यास लेने का फैसला किया.