नई दिल्ली: अफगानिस्तान में तालिबान के काबिज होने के बाद से बड़ी संख्या में अफगान नागरिकों समेत अन्य देशों के लोगों की जान जा चुकी है. इस बीच तालिबान का नेतृत्व करने वाले एक सदस्य शेर मोहम्मद स्टेनकजई (Sher Mohammed Stanekzai) ने भारत के लिए संकेत देते हुए कहा है कि भारत इस उपमहाद्वीप के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और वे अफगानिस्तान के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को जारी रखना चाहते हैं.
इस मुद्दे पर 'ईटीवी भारत' से बात करते हुए भारत के पूर्व राजदूत जितेंद्र त्रिपाठी ने कहा, 'तालिबान भारत के साथ संबंध बनाए रखने के लिए इसलिए ऐसा संकेत दे रहा है क्योंकि वह जानता है कि भारत कार्ड (India card) का उपयोग कर सकता है. वह भारत से मान्यता प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है, क्योंकि वह जानता है कि इस क्षेत्र में अगर भारत मान्यता देता है तो यह तालिबान के लिए सकारात्मक होगा.' उन्होंने कहा कि अगर तालिबान भारत को ऐसा संकेत दे रहा है तो ये भारत के लिए भी फायदेमंद है क्योंकि अगर तालिबान से यह आश्वासन मिलता है कि भारतीय निवेश या अफगानिस्तान में रहने वाले भारतीय नागरिकों को कोई नुकसान नहीं होगा तो तालिबान से संपर्क करने में भारतीय पक्ष को कोई नुकसान नहीं होगा.
तालिबान नेता का यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिकी सैनिकों ने अफगानिस्तान में लंबे समय तक युद्ध लड़ने के बाद वहां का जमीन छोड़ दी है और वतन वापस लौट गए हैं. भारत ने भी अफगानिस्तान से अपने सभी राजनयिक कर्मचारियों को निकाल लिया है. भारत ने अभी तक स्टैनकजई के प्रस्ताव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन तालिबान के संदेश को बेहद गंभीरता से लिया है, लेकिन फैसला लेने में भारत जल्दबाजी नहीं करेगा.
हालांकि, देश को इस कगार पर धकेलने वाले कट्टरपंथियों की इस वापसी के साथ सवाल है कि भारत को तालिबान से कैसे निपटना चाहिए. त्रिपाठी ने कहा कि हालांकि भारत ने अफगानिस्तान पर 'वेट एंड वॉच पॉलिसी' बनाए रखी है, लेकिन यह 2018 से तालिबान के साथ अप्रत्यक्ष संपर्क में है और इस साल की शुरुआत में कुछ हद तक सीधे संपर्क में है.
भारत के विदेश मंत्री की ईरान सहित विभिन्न देशों की यात्रा, दोहा में तालिबान से मिलने के लिए 'एक शांत यात्रा' (a quiet visit) या अफगानिस्तान संकट पर चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र की यात्रा की ओर इशारा करते हुए त्रिपाठी ने कहा कि भारत तालिबान के संपर्क में है लेकिन सरकार ये जाहिर नहीं कर रही है. प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कितनी बातचीत हुई है इसे जाहिर भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ये उसका नीतिगत विशेषाधिकार है.
'पांच बयानों में चार भारत के पक्ष में हैं'
पूर्व भारतीय राजनयिक ने कहा कि यह तालिबान का एक अच्छा इशारा है और यह पांचवीं बार है जब तालिबान ने भारत के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने की बात कही है. इसलिए, पिछले कुछ दिनों में तालिबान के विभिन्न प्रवक्ताओं द्वारा दिए गए पांच बयानों में से चार भारत के पक्ष में हैं.
भारत के पास तीन विकल्प
पूर्व राजदूत जितेंद्र त्रिपाठी ने कहा, भारत को तालिबान को पहचानना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत के पास तीन विकल्प हैं- पहला इंतजार करना और देखना और कुछ नहीं करना और बाकी दुनिया द्वारा इसे पहचानने की प्रतीक्षा करना. दूसरा प्रतीक्षा करना और देखना लेकिन साथ ही तालिबान के संपर्क में रहना और तीसरा, तालिबान सरकार को मान्यता देना, चाहे उसमें कोई भी दोष क्यों न हो.
त्रिपाठी ने समझाया कि, 'यदि भारत तालिबान को मान्यता नहीं देता है, तो उसका काफी निवेश वहां है और लोग भी हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अफगानिस्तान में जो सद्भावना हासिल की है, वह भी खत्म हो जाएगी और इसका फायदा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को होगा.
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उन्होंने जोर देकर कहा, 'कूटनीति में कहा जाता है कि बातचीत के लिए एक दरवाजा खुला रखना चाहिए. भारत को चाहिए कि वह तालिबान से उलझाए रहे. अगर जल्द ही भारत तालिबान को मान्यता नहीं देगा तो अमेरिकी सैनिकों के हटने के बाद चीन और पाकिस्तान अफगानिस्तान के साथ नजर आएंगे और भारत पीछे रह जाएगा.'
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गौरतलब है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान से निकासी की समयसीमा 31 अगस्त निर्धारित की थी और इसके कुछ घंटे पहले ही उसने अफगानिस्तान में अपना युद्ध समाप्त करने की घोषणा की. इससे पहले अमेरिकी सेना ने सोमवार सुबह काबुल हवाई अड्डे पर रॉकेट दागे थे. रविवार को अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपना दूसरा ड्रोन हमला करते हुए फिर से ISIS-K को निशाना बनाया था. अब यह देखा जाना बाकी है कि अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद तालिबान क्या करेगा.
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