हैदराबाद : जीएसटी काउंसिल (Goods and Service Tax Council) की 45वीं बैठक में फूड डिलीवरी एग्रीगेटर्स जैसे स्विगी और जोमैटो को टैक्स के दायरे में लाने का फैसला किया. एक जनवरी, 2022 से फूड डिलवरी करने वाली कंपनियों को हर डिलिवरी पर 5 प्रतिशत जीएसटी का भुगतान करना होगा. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) के अनुसार, 5 फीसद का यह टैक्स डिलीवरी के बिंदु पर यानी कंज्यूमर से वसूला जाएगा. काउंसिल के इस फैसले के बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि अब ऑनलाइन फूड ऑर्डर करना महंगा हो जाएगा. मगर ऐसा नहीं है.
टैक्स बढ़ा नहीं है, कलेक्शन पॉइंट बदल गए हैं : ऑनलाइन फूड ऑर्डर करने पर आप उतना ही पेमेंट करेंगे, जितना अभी करते हैं. क्योंकि इस खबर के आने के बाद यह भ्रम पैदा हो गया है कि अभी ऑनलाइन या ऐप से खाना घर तक मंगवाने में कंज्यूमर को 5 फीसद जीएसटी नहीं देना होता है. उपभोक्ता आज भी 5 पर्सेंट जीएसटी अपने सभी ऑर्डर पर दे रहे हैं. हमारे टैक्स का 2.5 प्रतिशत CGST और 2.5 प्रतिशत SGST में जाता है. अभी हम यह टैक्स रेस्टोरेंट को दे रहे हैं, जबकि 1 जनवरी 2022 से फर्क इतना ही होगा कि यह टैक्स फूड डिलीवरी एग्रीगेटर्स स्विगी और जोमैटो के खाते में जाएगा. फिर इन कंपनियों की जिम्मेदारी होगी कि वह यह पैसा सरकार तक पहुंचाए.
स्विगी और जोमैटो पर बढ़ेगा वर्क लोड : भारत सरकार के रेवेन्यू सेक्रेटरी तरुण बजाज ने भी कहा कि ऑनलाइन फूड ऑर्डर करने वालों पर कोई नया टैक्स नहीं लगा है. बस टैक्स वसूलने के सिस्टम को रेस्टोरेंट से ट्रांसफर कर फूड डिलीवरी एग्रीगेटर्स पर किया गया है. उन्होंने स्पष्ट किया है कि उपभोक्ता से जीएसटी वसूलने के बाद भी कई रेस्टोरेंट अथॉरिटी को टैक्स नहीं दे रहे थे, इसलिए कलेक्शन पॉइंट को बदला गया है. इससे पब्लिक के बिल पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. इस टैक्स से स्विगी और जोमैटो पर बोझ जरूर बढ़ेगा. टैक्स नहीं देने से सरकार को 2019-20 और 2020-21 में दो हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.
बता दें कि गूगल और बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) के अनुसार भारत का ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग मार्केट मौजूदा चार अरब डॉलर से बढ़कर 2022 तक 7.5-8 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. इस दौरान बाजार की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धिदर (सीएजीआर) 25 से 30 फीसदी रहेगी. इसलिए सरकार इस क्षेत्र में हो रही टैक्स चोरी रोकने के लिए नए उपाय आजमा रही है.
फिर क्यों आता है ऐप से सस्ता बिल : स्विगी और जोमैटो के अलावा होम डिलिवरी करने वाली कंपनी उपभोक्ताओं को डिस्काउंट कूपन के जरिये बिल में छूट देती है. यह छूट हमें रेस्टोरेंट के स्तर पर नहीं मिलता है. आप गौर करें जब आप ऑर्डर करते हैं तो बिल ज्यादा होता है. फिर आप फाइनल पेमेंट से पहले कूपन कोड एंट्री करते हैं तो बिल की राशि कम हो जाता है. यानी जब आप ऐप पर भी फूड सिलेक्ट करते हैं, तब उसके ओरिजिनल रेट के साथ 5 प्रतिशत जीएसटी की रकम जुड़ जाती है. अक्सर ऐप या ऑनलाइन पर दिखने वाले फूड प्रोडक्ट के कॉस्ट में जीएसटी जुड़ा होता है. इसलिए ऑनलाइन ऑर्डर के मुकाबले रेस्टोरेंट में जाकर खाना अक्सर महंगा पड़ता है.
ऐप वाले ऑनलाइन क्या अपनी जेब से डिस्काउंट देते हैं : जोमैटो या स्विगी जैसे फूड डिलीवरी एग्रीगेटर्स के बिजनेस रेवेन्यू मॉडल को समझें. ऐसी कंपनियां मुख्य रूप से तीन प्राइमरी सोर्स से रेवेन्यू जेनरेट करती है. पहला एड सेल्स यानी विज्ञापन, दूसरा ऑनलाइन ऑर्डर पर सरचार्ज. तीसरा सोर्स हे परमानेंट मेंबरशिप. आप जब इन ऐप से ऑर्डर करने जाते हैं तो रेस्टोरेंट के अलावा कई अन्य विज्ञापन भी देखते हैं. इन विज्ञापनों के लिए एग्रीगेटर्स को पैसा मिलता है. फिर कई ऐसे प्रोडक्ट हैं, जिसके लिए उपभोक्ता भी सरचार्ज देते हैं. मेंबरशिप के लिए कंज्यूमर अलग से कंपनी को पेमेंट करता है. इन सारी कमाई को कंपनी डिस्काउंट ऑफर्स और अपने ब्रांड के विज्ञापन में भी खर्च करती है. इन खर्चों के कारण ही जोमैटो लॉस मेकिंग कंपनी ( Loss making company) में शामिल है.
इसलिए अगर ऑनलाइन फूड ऑर्डर करते हैं तो चिंता नहीं करें. आपकी जेब पर जीएसटी वसूलने में हुए बदलाव पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. शर्त यह है कि रेस्टोरेंट वाले यानी जहां से आप खाना ऑर्डर करते हैं, वह ही प्रोडक्ट का रेट महंगा न कर दे. मगर यह भी हो सकता है कि स्विगी और जोमैटो जैसी कंपनियां आपको अपने ऑफर में जीएसटी से ही राहत दे दे.