हैदराबाद : मंगलवार (16 फरवरी) की शाम राज निवास में अलग माहौल था. पुडुचेरी की उप-राज्यपाल के आधिकारिक निवास में न तो स्टाफ को और न ही किरण बेदी को इस बात की उम्मीद थी, लेकिन राष्ट्रपति ने आदेश जारी किया गया था. पूर्व आईपीएस अधिकारी को हटाकर तमिलानाई सुंदरराजन को तेलंगाना के साथ ही पुडुचेरी का प्रभार भी देने के आदेश थे.
एक विधायक के इस्तीफे और अयोग्यता की बात आते ही नेतृत्व करने वाले सत्तारूढ़ दल के भीतर की खामियां सामने आ गईं. इससे सदन की संरचना बदल गई. अर्थात 14 विधायकों में कांग्रेस में 10, डीएमके 3 और 1 निर्दलीय विधायक सत्ता पार्टी का समर्थन करते हैं. वहीं, 7 सदस्यों वाला विपक्षी दल ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस के साथ एआईएडीएमके के 4 सदस्य और भाजपा के 3 विधायक हैं. राजनीतिक रूप से किरण बेदी के कार्यकाल में एकमात्र उपलब्धि सदन में तीन सदस्यों का नामांकन है. तीनों भाजपा से हैं. आखिरकार कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में नामांकन के खिलाफ अपनी याचिका डाली लेकिन लाभ नहीं मिला.
नारायणसामी के लिए वापसी मुश्किल
विपक्ष की संख्या लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बिना 3 से ऊपर है और वोटिंग शक्तियों के साथ-साथ विश्वास मत में भी यही संख्या हो सकती है. अगर फ्लोर टेस्ट के दौरान यथास्थिति बनी रही तो ऐसे में अध्यक्ष वीपी शिवकोलुंडू का मत निर्णायक हो जाएगा. दोनों खेमों ने मीडिया में यह दावा किया है कि उनके पास पर्याप्त संख्या है. हालांकि वास्तविक संख्या केवल हाउस के फ्लोर पर ही जानी जाएगी.
किरण बेदी फैक्टर कितना कारगर
केंद्र शासित प्रदेश में तैनात किए जाने के तुरंत बाद किरण बेदी ने नारायणसामी की नीतियों की मुखालफत की. मुफ्त चावल वितरण योजना में निर्वाचित सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को उठाते समय उनके बीच गलतफहमी शुरू हुई. कांग्रेस जो शुरू में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) सब्सिडी चाहती थी, ने अपनी गलती को भांप लिया और बेदी से इसके बदले मुफ्त चावल योजना पर हस्ताक्षर करने का आग्रह किया. केंद्र शासित प्रदेश में 176134 पात्र परिवार हैं. ये परिवार जो गरीबी रेखा से नीचे हैं (बीपीएल) के पास बैंक खाता पारिवारिक कार्ड से जुड़ा हुआ था. ज्यादातर परिवारों के बारे में यह कहा गया कि उन्होंने चावल के बजाय शराब पर पैसा खर्च किया गया.
जनता भी बेदी से रही नाराज
अनिवार्य हेलमेट और 1000 रुपये का जुर्माना भी जनता को अच्छा नहीं लगा. केंद्र शासित प्रदेश को बीजेपी का हितैषी बनाने के उद्देश्य के साथ आने के बाद बेदी की गलतफहमी कई मोर्चों पर जारी रही. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में स्व-निर्वाह की बेदी की नीति ने उन श्रमिकों को प्रभावित किया जिनकी आजीविका पूरी तरह से उन पर निर्भर थी. अतिरिक्त धन जारी करने के बजाय बेदी ने जोर देकर कहा कि इस तरह के उपक्रमों में कर्मचारियों के वेतन को पूरा करने के लिए बिक्री, व्यापार व व्यापार आय का उपयोग किया जाएगा. फिर वह चुनी हुई सरकार के दिन-प्रतिदिन के कामकाज में हस्तक्षेप करने के लिए ज्यादा जानी गईं.
भाजपा के लिए जीत के क्या मायने
पुडुचेरी के लोगों का दिल और दिमाग जीतना हमेशा भाजपा के एजेंडे में रहा है. इससे पहले 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार करते हुए उन्होंने कांग्रेस को गांधी परिवार के रूप में फिर से प्रतिस्थापित किया. इसके तुरंत बाद राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ने हिंदी पट्टी के तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में वापसी की. हालांकि अब केंद्र शासित प्रदेश में कांग्रेस ने उप-राज्यपाल के प्रति जनता के गुस्से को प्रभावी ढंग से भुनाया और विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी रखा है. उन्होंने पुडुचेरी के विकास के लिए किरण बेदी को हानिकारक बताने में सफलता पाई है. सच कहा जाए तो भाजपा की स्थानीय इकाई भी बेदी को हटाने की कामना कर रही थी. उन्होंने पार्टी हाईकमान के साथ कुछ समय के लिए अस्वीकृति व्यक्त की थी क्योंकि वे 'ब्रांड बेदी' के निर्माण में अधिक लगी थीं.
आगे का रास्ता क्या होगा
चूंकि चीजें भाजपा के पक्ष में नहीं थीं इसलिए बेदी की जगह तमिलिसई सुंदरराजन को उप-राज्यपाल बनाया गया. तमिलइसाई सुंदरराजन जिन्हें अतिरिक्त प्रभार दिया गया है, यह पद संभालने वाली पहली तमिल हैं. उन्होंने पुडुचेरी के लोगों को राहत देने के लिए 'पीपुल्स गवर्नर' का कार्ड भी दिया है. उन्होंने कहा कि मैं चुनी हुई सरकार की शक्तियों का उल्लंघन नहीं करूंगी या उनके अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करूंगी और संवैधानिक ढांचे के दायरे में काम करूंगी. यह देखा जाना शेष है कि अगर वे अपनी बात कैसे रखेंगी. कर्नाटक के प्रदेश उपाध्यक्ष निर्मल कुमार सुराणा, केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर को पुडुचेरी की देखभाल करने का जिम्मा सौंपा गया है.
आगामी चुनावों में क्या होगा
आगामी चुनावों में भाजपा के पास पर्याप्त उम्मीदवार होंगे. हालांकि कराईकल, माहे और यानम सहित पूरा क्षेत्र हमेशा कांग्रेस का गढ़ रहा है. जहां नारायणसामी के लिए पर्याप्त मात्रा में सत्ता विरोधी लहर है. वहीं यहां चुनाव एक पार्टी के बजाय व्यक्तिगत मुद्दे पर लड़े जाते हैं. पुडुचेरी के मतदाताओं की संख्या 10 लाख से ऊपर है, जो 30 विधानसभा क्षेत्रों में फैला हुआ है. विलनूर सीट पर 42329 मतदाता हैं जबकि ऑरलियपेट सीट में सबसे कम 24723 मतदाता हैं. पुडुचेरी का पूरे मतदाताओं का आकार पड़ोसी राज्य तमिलनाडु की लोकसभा सीट के बराबर है.
चुनाव पर भी पड़ेगा असर
यहां के फ्रांसीसी क्षेत्र में लगभग 5000 फ्रेंको पॉन्डियन हैं जिनके पास फ्रांसीसी चुनावों में भी मतदान का अधिकार है. दिल्ली और जम्मू और कश्मीर की हाल ही में बनी यूटी के विपरीत पुडुचेरी में निर्वाचित सरकार के पास पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि और प्रशासन की जिम्मेदारी होती है. यदि सरकार गिरती है तो यह एक पोल सर्वेक्षण की तरह होगा. कांग्रेस की सरकार गिराने के लिए अधिक विधायकों की आवश्यकता होगी.
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इससे आगामी चुनावों के लिए अंतिम उम्मीदवार का भी परिचय होगा. उनका करिश्मा और स्थानीय लोगों के साथ तालमेल बनाम प्रतिद्वंद्वी के बीच निर्णायक मुकाबला होगा.