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राजस्थान में बना था आजाद भारत का पहला तिरंगा, दौसा के लिए गर्व की बात - Saluting Bravehearts

राजस्थान के दौसा जिले में आजाद भारत के पहले तिरंगे का कपड़ा (First tiranga cloth of Independent India) बनकर तैयार हुआ था. आलूदा के चौथमल बुनकर ने इस कपड़े को तैयार किया था. 1947 में दौसा से बने इस तिरंगे को लाल किले पर फहराया (First Tiranga of Independent India) गया था. देखिए ये रिपोर्ट...

country first tiranga was made in Dausa, first tiranga was made in Aluda
राजस्थान में बना था आजाद भारत का पहला तिरंगा.
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Published : Aug 9, 2022, 6:25 PM IST

दौसा. पूरा देश आजादी का जश्न मना (Independence Day 2022) रहा है. हर घर और दफ्तर पर तिरंगा (Har Ghar Tiranga) फहरा कर देशवासी खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. तिरंगा पूरे देश में फहराया जाता है, लेकिन दौसा के हर नागरिक को आजादी के साथ एक अलग ही अनूभुति होती है. 75 वर्ष पहले 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था, तब देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त 1947 को दिल्ली के लाल किले पर झंडा (First Tiranga of Independent India) फहराया था. दरअसल, लाल किले पर जो पहला तिरंगा फहराया (first tiranga was made in Aluda) गया था वो दौसा के आलूदा के बुनकरों ने अपने हाथों से बनाया था.

वर्ष 1947 में देश आजाद हुआ और पूरे देश में जश्न का माहौल था. आजादी के बाद लाल किले पर तिरंगा फहराया जाएगा, ये तो तय हो गया था, लेकिन तिरंगा कैसा होगा इस पर विचार होने लगा. इसी बीच खादी का तिरंगा फहराए जाने की बात होने लगी तो देशभर से खादी के तिरंगे आने लगे. चुनाव करना आसान नहीं था. अंत में दौसा के आलूदा गांव के बुनकर चौथमल, नांगल राम और भौंरी लाल महावर ने जो कपड़े का तिरंगे तैयार किया, उसका चयन हुआ और वही तिरंगा लाल किले की प्राचीर पर फहराया (first tiranga was made in Aluda) गया.

राजस्थान में बना था आजाद भारत का पहला तिरंगा.

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दरअसल, देश की आजादी से पहले ही दौसा जिले के अनेक बुनकर कपड़ा बनाने का काम करते थे. जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित आलूदा गांव में रहने वाले चौथमल बुनकर ने तिरंगे का कपड़ा तैयार (Chauthmal Bunkar made first tiranga) किया था. चौथमल बुनकर की ओर से तैयार किए गए तिरंगे की कपड़े को स्वतंत्रता सेनानी देशपांडे और टाट साहब द्वारा गोविंदगढ़ ले जाया गया और गोविंदगढ़ में ही इस कपड़े की रंगाई आदि कर तिरंगे का रूप दिया गया. उसके बाद दोनों इस झण्डे को दिल्ली ले गए, जहां देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर तिरंगे को फहराया.

हालांकि, यह बात भी सामने आती है कि 15 अगस्त 1947 को देश के अलग-अलग हिस्सों से चार तिरंगे बनकर आए थे, जिनमें से दौसा और गोविन्दगढ़ से दो और 2 अन्य स्थानों से बनकर आए थे. दौसा खादी समिति के मंत्री अनिल शर्मा का कहना है कि इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है कि दौसा के कपड़े से बना तिरंगा ही वह पहला ध्वज है जो फहराया गया (country first tiranga was made in Dausa) था. लेकिन देश की आजादी के बाद समय-समय पर चौथमल बुनकर को राष्ट्रीय स्तर पर याद किया गया, जिससे यह माना गया कि आलूदा के बुनकर चौथमल द्वारा तैयार किए गए कपड़े के ध्वज को ही लाल किले पर फहराया गया था.

पढ़ें- आजादी के सुपर हीरो: स्वतंत्रता आंदोलन में केसरी सिंह बारहठ का रहा अमूल्य योगदान

अनिल शर्मा ने बताया कि जब चौथमल बुनकर जीवित हुआ करते थे तो बताते थे कि उन्हें तिरंगे का कपड़ा तैयार करने में 2 महीने का समय (first tiranga was made in Aluda) लगा था. दौसा से तिरंगे का नाता जुड़ा होने के कारण ही 1967 में दौसा खादी समिति अस्तित्व में आई और इसके बाद दौसा के बुनकरों द्वारा तैयार किया जाने वाला तिरंगे के कपड़े को देश के कोने-कोने में पहुंचाने का काम किया गया. वर्तमान में भी दौसा के आलूदा, बनेठा, जसोदा और जिला मुख्यालय पर बड़ी संख्या में बुनकर कपड़ा तैयार करते हैं. इनके ओर से तैयार किए गए कपड़े को प्रोसेसिंग के लिए मुंबई भिजवाया जाता है और वहां यह तिरंगा बनता है. उसके बाद यह तिरंगा बाजार में आता है.

यहां बनता है तिरंगा और कपड़ा- मंत्री अनिल शर्मा का कहना है कि वर्तमान में ऐसा नहीं है कि केवल दौसा में ही तिरंगे का कपड़ा बनाया (first tiranga was made in Aluda) जाता हो. दौसा के अलावा बाराबंकी, हुगली मराठवाड़ा, ग्वालियर में भी तिरंगे का कपड़ा तैयार किया जाता है. इसके अलावा हुगली, मराठवाड़ा और मुंबई में तिरंगे की प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित है, जहां कपड़े को तिरंगे का रूप दिया जाता है.

पढ़ें- आजादी के सुपर हीरो: अजमेर में क्रांति की अलख जगा कर अंग्रजों की उड़ाई थी नींद...ऐसे थे क्रांतिकारी अर्जुन लाल सेठी

पानी सही होता तो दौसा में बनता तिरंगा- दौसा खादी समिति के मंत्री अनिल शर्मा ने कहा कि दौसा खादी समिति देश की बड़ी खादी समितियों में शामिल है. दौसा में कई बार तिरंगे की प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने की कार्य योजना तैयार की गई, लेकिन यहां का पानी फ्लोराइड युक्त होने के कारण प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित नहीं हो सकी. वैसे दौसा खादी वर्तमान में आधुनिक रूप ले रही है और यहां से तिरंगे के अलावा अन्य कपड़ा जो पहनने के काम आता है वह भी देश और विदेश तक पहुंचाया जाता है. दौसा खादी समिति में आधुनिक मशीनों के माध्यम से धागा और कपड़ा बनाया जाता है जो रोजगार का भी बड़ा केंद्र है. बड़ी संख्या में बुनकरों को यहां रोजगार मिलता है. पहले जब बुनकर हाथ से चरखा चलाते थे तो दिन भर में 100 की मजदूरी भी नहीं हो पाती थी, लेकिन अब इलेक्ट्रिक चरखों के आने से बुनकरों को पर्याप्त मजदूरी भी मिल जाती है.

चौथमल के परिवार को गर्व है- आजाद भारत के पहले तिरंगे का कपड़ा (First tiranga cloth of Independent India) तैयार करने वाले चौथमल बुनकर अब इस दुनिया में नहीं हैं. उनके परिवार के सदस्य भी आलूदा में नहीं रहते हैं. हालांकि, चौथमल बुनकर के छोटे भाइयों का परिवार अभी भी आलूदा में है और वे बुनकरों का ही काम करते हैं. आजाद भारत के पहले तिरंगे का कपड़ा बनाने वाले चौथमल बुनकर का नाता आलूदा गांव से होने के चलते उनके परिवार के लोग आज भी गौरवान्वित हैं. न केवल उनका परिवार बल्कि संपूर्ण दौसा जिला भी चौथमल बुनकर को याद करता है और तिरंगे का इतिहास दौसा से जुड़ा होने के कारण गौरवान्वित महसूस करता है.

पढ़ें- आजादी के सुपर हीरो: अंग्रेजों से संघर्ष में आदिवासियों की मशाल बने थे मोतीलाल तेजावत

अब घर-घर में फहराया जाएगा तिरंगा- पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव (75th Amrit Mahotsav) मना रहा है और इस 75वें अमृत महोत्सव को देखते हुए फ्लैग कोड में भी संशोधन किया है ताकि घर-घर में तिरंगा लगाया जा सके. लोगों में देश प्रेम की भावना पैदा हो और पूरा देश आजादी का 75वां महोत्सव हर्षाेल्लास के साथ मना सके. इस बार 13 अगस्त से 15 अगस्त तक घर-घर तिरंगा अभियान भी चलाया जा रहा है और इस अभियान को देखते हुए देश में जबरदस्त उत्साह भी देखने को मिल रहा है.

दौसा. पूरा देश आजादी का जश्न मना (Independence Day 2022) रहा है. हर घर और दफ्तर पर तिरंगा (Har Ghar Tiranga) फहरा कर देशवासी खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. तिरंगा पूरे देश में फहराया जाता है, लेकिन दौसा के हर नागरिक को आजादी के साथ एक अलग ही अनूभुति होती है. 75 वर्ष पहले 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था, तब देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त 1947 को दिल्ली के लाल किले पर झंडा (First Tiranga of Independent India) फहराया था. दरअसल, लाल किले पर जो पहला तिरंगा फहराया (first tiranga was made in Aluda) गया था वो दौसा के आलूदा के बुनकरों ने अपने हाथों से बनाया था.

वर्ष 1947 में देश आजाद हुआ और पूरे देश में जश्न का माहौल था. आजादी के बाद लाल किले पर तिरंगा फहराया जाएगा, ये तो तय हो गया था, लेकिन तिरंगा कैसा होगा इस पर विचार होने लगा. इसी बीच खादी का तिरंगा फहराए जाने की बात होने लगी तो देशभर से खादी के तिरंगे आने लगे. चुनाव करना आसान नहीं था. अंत में दौसा के आलूदा गांव के बुनकर चौथमल, नांगल राम और भौंरी लाल महावर ने जो कपड़े का तिरंगे तैयार किया, उसका चयन हुआ और वही तिरंगा लाल किले की प्राचीर पर फहराया (first tiranga was made in Aluda) गया.

राजस्थान में बना था आजाद भारत का पहला तिरंगा.

पढ़ें- आजादी के सुपर हीरो: खादी पहन आजादी की जंग में कूद पड़े थे व्यापारी बाल मुकुंद बिस्सा

दरअसल, देश की आजादी से पहले ही दौसा जिले के अनेक बुनकर कपड़ा बनाने का काम करते थे. जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित आलूदा गांव में रहने वाले चौथमल बुनकर ने तिरंगे का कपड़ा तैयार (Chauthmal Bunkar made first tiranga) किया था. चौथमल बुनकर की ओर से तैयार किए गए तिरंगे की कपड़े को स्वतंत्रता सेनानी देशपांडे और टाट साहब द्वारा गोविंदगढ़ ले जाया गया और गोविंदगढ़ में ही इस कपड़े की रंगाई आदि कर तिरंगे का रूप दिया गया. उसके बाद दोनों इस झण्डे को दिल्ली ले गए, जहां देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर तिरंगे को फहराया.

हालांकि, यह बात भी सामने आती है कि 15 अगस्त 1947 को देश के अलग-अलग हिस्सों से चार तिरंगे बनकर आए थे, जिनमें से दौसा और गोविन्दगढ़ से दो और 2 अन्य स्थानों से बनकर आए थे. दौसा खादी समिति के मंत्री अनिल शर्मा का कहना है कि इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है कि दौसा के कपड़े से बना तिरंगा ही वह पहला ध्वज है जो फहराया गया (country first tiranga was made in Dausa) था. लेकिन देश की आजादी के बाद समय-समय पर चौथमल बुनकर को राष्ट्रीय स्तर पर याद किया गया, जिससे यह माना गया कि आलूदा के बुनकर चौथमल द्वारा तैयार किए गए कपड़े के ध्वज को ही लाल किले पर फहराया गया था.

पढ़ें- आजादी के सुपर हीरो: स्वतंत्रता आंदोलन में केसरी सिंह बारहठ का रहा अमूल्य योगदान

अनिल शर्मा ने बताया कि जब चौथमल बुनकर जीवित हुआ करते थे तो बताते थे कि उन्हें तिरंगे का कपड़ा तैयार करने में 2 महीने का समय (first tiranga was made in Aluda) लगा था. दौसा से तिरंगे का नाता जुड़ा होने के कारण ही 1967 में दौसा खादी समिति अस्तित्व में आई और इसके बाद दौसा के बुनकरों द्वारा तैयार किया जाने वाला तिरंगे के कपड़े को देश के कोने-कोने में पहुंचाने का काम किया गया. वर्तमान में भी दौसा के आलूदा, बनेठा, जसोदा और जिला मुख्यालय पर बड़ी संख्या में बुनकर कपड़ा तैयार करते हैं. इनके ओर से तैयार किए गए कपड़े को प्रोसेसिंग के लिए मुंबई भिजवाया जाता है और वहां यह तिरंगा बनता है. उसके बाद यह तिरंगा बाजार में आता है.

यहां बनता है तिरंगा और कपड़ा- मंत्री अनिल शर्मा का कहना है कि वर्तमान में ऐसा नहीं है कि केवल दौसा में ही तिरंगे का कपड़ा बनाया (first tiranga was made in Aluda) जाता हो. दौसा के अलावा बाराबंकी, हुगली मराठवाड़ा, ग्वालियर में भी तिरंगे का कपड़ा तैयार किया जाता है. इसके अलावा हुगली, मराठवाड़ा और मुंबई में तिरंगे की प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित है, जहां कपड़े को तिरंगे का रूप दिया जाता है.

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पानी सही होता तो दौसा में बनता तिरंगा- दौसा खादी समिति के मंत्री अनिल शर्मा ने कहा कि दौसा खादी समिति देश की बड़ी खादी समितियों में शामिल है. दौसा में कई बार तिरंगे की प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने की कार्य योजना तैयार की गई, लेकिन यहां का पानी फ्लोराइड युक्त होने के कारण प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित नहीं हो सकी. वैसे दौसा खादी वर्तमान में आधुनिक रूप ले रही है और यहां से तिरंगे के अलावा अन्य कपड़ा जो पहनने के काम आता है वह भी देश और विदेश तक पहुंचाया जाता है. दौसा खादी समिति में आधुनिक मशीनों के माध्यम से धागा और कपड़ा बनाया जाता है जो रोजगार का भी बड़ा केंद्र है. बड़ी संख्या में बुनकरों को यहां रोजगार मिलता है. पहले जब बुनकर हाथ से चरखा चलाते थे तो दिन भर में 100 की मजदूरी भी नहीं हो पाती थी, लेकिन अब इलेक्ट्रिक चरखों के आने से बुनकरों को पर्याप्त मजदूरी भी मिल जाती है.

चौथमल के परिवार को गर्व है- आजाद भारत के पहले तिरंगे का कपड़ा (First tiranga cloth of Independent India) तैयार करने वाले चौथमल बुनकर अब इस दुनिया में नहीं हैं. उनके परिवार के सदस्य भी आलूदा में नहीं रहते हैं. हालांकि, चौथमल बुनकर के छोटे भाइयों का परिवार अभी भी आलूदा में है और वे बुनकरों का ही काम करते हैं. आजाद भारत के पहले तिरंगे का कपड़ा बनाने वाले चौथमल बुनकर का नाता आलूदा गांव से होने के चलते उनके परिवार के लोग आज भी गौरवान्वित हैं. न केवल उनका परिवार बल्कि संपूर्ण दौसा जिला भी चौथमल बुनकर को याद करता है और तिरंगे का इतिहास दौसा से जुड़ा होने के कारण गौरवान्वित महसूस करता है.

पढ़ें- आजादी के सुपर हीरो: अंग्रेजों से संघर्ष में आदिवासियों की मशाल बने थे मोतीलाल तेजावत

अब घर-घर में फहराया जाएगा तिरंगा- पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव (75th Amrit Mahotsav) मना रहा है और इस 75वें अमृत महोत्सव को देखते हुए फ्लैग कोड में भी संशोधन किया है ताकि घर-घर में तिरंगा लगाया जा सके. लोगों में देश प्रेम की भावना पैदा हो और पूरा देश आजादी का 75वां महोत्सव हर्षाेल्लास के साथ मना सके. इस बार 13 अगस्त से 15 अगस्त तक घर-घर तिरंगा अभियान भी चलाया जा रहा है और इस अभियान को देखते हुए देश में जबरदस्त उत्साह भी देखने को मिल रहा है.

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