हैदराबाद: महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपी फादर स्टेन स्वामी के निधन के बाद देश में सियासत गर्मा गई है. बॉम्बे हाईकोर्ट में उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई होनी थी लेकिन उनके वकील ने कोर्ट को उनके निधन की ख़बर दी. वकील ने जेल के अधिकारियों पर स्टेन स्वामी की हालत को अनदेखा करने का आरोप लगाया और जेल के अधिकारियों के साथ एनआईए के खिलाफ भी न्यायिक जांच की मांग की है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार (UN Human Rights) ने भी फादर स्टेन स्वामी के निधन पर दुख जताते हुए ट्वीट किया कि हम 84 साल के मानवाधिकार के रक्षक फादर स्टेन स्वामी के हिरासत में निधन पर दुखी और परेशान हैं. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार ने ट्वीट में सवाल उठाया कि कोविड-19 को देखते हुए कई देशों ने जेल में बंद कैदियों को रिहा किया लेकिन फादर स्टेन के साथ ऐसा नहीं हुआ.
सोमवार को फादर स्टेन स्वामी के निधन के बाद सियासतदानों और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लोगों ने सवाल उठाना शुरू कर दिया है. 84 साल के फादर स्टेन स्वामी की पहचान एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में थी और वो भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में न्यायिक हिरासत में थे. स्वामी बीते कुछ दिनों से मुंबई के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे, दो दिन पहले ही उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था. जहां सोमवार को उन्होंने आखिरी सांस ली.
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स्टेन के वकील का आरोप
स्टेन के निधन को लेकर उनके वकील मिहिर देसाई ने जेल अधिकारियों पर लापरवाही का आरोप लगाया है. साथी ही उनकी जमानत विरोध करने वाली एनआईए को भी सवालों के कटघरे में खड़ा किया है. मिहिर देसाई के मुताबिक स्टेन की गिरफ्तारी के बाद से एनआईए ने उनसे पूछताछ के लिए एक दिन की कस्टडी भी नहीं मांगी जबकि स्टेन के खिलाफ बीते साल 9 अक्टूबर को ही चार्जशीट दायर कर दी गई थी.
जो बताता है कि मामले में जांच पूरी हो गई थी और स्टेन को अब जमानत का हक था. इन सबसे अलग जेल में 84 साल के स्टेन की तबीयत बिगड़ने पर भी एनआईए ने उनकी जमानत का विरोध किया. मिहिर देसाई ने कहा कि इस पूरे मामले में अधिकारियों की जांच होनी चाहिए.
स्टेन के निधन पर नेताओं के ट्वीट
स्टेन स्वामी के निधन के बाद सोशल मीडिया पर भी मान एक मुहिम सी छिड़ गई. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि 'वे न्याय और मानवता के हकदार थे'.
प्रियंका गांधी ने भी फादर स्टेन के श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया कि 'कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक व्यक्ति जिसने जीवन भर गरीबों-आदिवासियों की सेवा की और मानव अधिकारों की आवाज बना, उन्हें मृत्यु की घड़ी में भी न्याय एवं मानव अधिकारों से वंचित रखा गया'
माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने फादर स्टेन स्वामी के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए लिखा कि 'बगैर किसी आरोप के UAPA लगाकर अक्टूबर 2020 से हिरासत में अमानवीय व्यवहार किया, हिरासत में इस हत्या की जवाबदेही जरूर तय की जानी चाहिए.'
पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने फादर स्टेन की मौत को हत्या बताते हुए ट्वीट किया कि 'हम जानते हैं कि कौन जिम्मेदार है' इसी तरह कई नेताओं, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी ट्वीट कर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है.
आदिवासियों के लिए किया संघर्ष
तमिलनाडु में जन्मे स्टेन स्वामी ने आदिवासियों और पिछड़ों की आवाज को बुलंद किया है. समाजशास्त्र में एमए करने के बाद स्वामी पहले कर्नाटक और फिर झारखंड आ गए. शुरुआती दौर में स्टेन स्वामी ने पादरी का काम किया इसलिए उन्हें फादर स्टेन स्वामी कहा जाने लगा लेकिन धर्म से ज्यादा वो कर्म में विश्वास करते थे. ईश्वर की सेवाा करने की बजाय उन्होंने आदिवासियों और पिछड़ों की आवाज बनना चुना.
साल 1991 के बाद से झारखंड आने के बाद से वे आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करते रहे. नक्सली का तमगा लगने के बाद जेलों में बंद लगभग 3000 महिला और पुरुषों की रिहाई के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी और इसके लिए वो हाई कोर्ट गए. वो झारखंड के मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता थे. स्टेन स्वामी को सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं. झारखंड में चल रहे जल, जंगल, जमीन, विस्थापन जैसे आंदोलन को उन्होंने बौद्धिक समर्थन दिया.
वे कई सालों से राज्य के आदिवासी और अन्य वंचित समूहों के लिए काम करते रहे. उन्होंने विशेष रूप से विस्थापन, संसाधनों की कंपनियों के ओर से लूट, विचाराधीन कैदियों के साथ-साथ कानून पर काम किया. बतौर मानवाधिकार कार्यकर्ता उन्होंने झारखंड में विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन की स्थापनी की. उनका संगठन आदिवासी और दलितों के अधिकारों की आवाज़ बना, स्टेन ने रांची के नामकुम क्षेत्र में आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल और टेक्निकल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट भी खोला.
झारखंड में भी दर्ज था मामला
जुलाई 2018 में झारखंड की खूंटी पुलिस ने पत्थलगड़ी आंदोलन मामले में सामाजिक कार्यकर्ता और विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के संस्थापक सदस्य फादर स्टेन स्वामी, कांग्रेस के पूर्व विधायक थियोडोर किड़ो समेत 20 अन्य लोगों पर राजद्रोह का केस दर्ज किया था. उन पर पुलिस ने देशद्रोह, सोशल मीडिया के माध्यम से पत्थलगड़ी को बढ़ावा देने, सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने और सरकारी योजनाओं का विरोध करने का आरोप लगाया था.
स्टेन स्वामी के खिलाफ खूंटी थाना में 26 जुलाई 2018 को आईटी एक्ट के तहत इन सभी मामलों पर केस दर्ज किया गया था. खूंटी एसपी ने 25 जनवरी 2019 को इस कांड में आरोपी फादर स्टेट स्वामी सहित कई लोगों की गिरफ्तारी का आदेश दिया था. इसके बाद खूंटी पुलिस ने 21 अक्टूबर 2019 को स्टेन स्वामी के घर की कुर्की जब्ती की थी. हालांकि 2019 में राज्य में नई सरकार आते ही राजद्रोह का मुकदमा वापस ले लिया गया.
भीमा कोरेगांव हिंसा केस में हुई थी गिरफ्तारी
महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी 2018 को दलित समुदाय का एक कार्यक्रम हुआ. कहते हैं कि साल 1818 में अंग्रेजों की महार रेजिमेंट और पेशवा की सेना के बीच युद्ध में दलित बहुत अंग्रेजों की महार रेजिमेंट की जीत हुई थी और उस जीत के 200 साल होने के मौके पर ये कार्यक्रम रखा गया था. कार्यक्रम के दौरान हिंसा भड़क उठी थी, इस दौरान पथराव, तोड़फोड़ और गाड़ियों में आगजनी भी हुई थी. हिंसा के दौरान एक व्यक्ति की मौत हुई और पुलिस को हालात पर काबू पाने के लिए आंसू गैस और लाठी चार्ज भी करना पड़ा.
जांच के दौरान हिंसा के तार सीपीआई(एम) के संगठन एल्गार परिषद से जुड़े. जांच में पता चला कि 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में एल्गार परिषद ने एक कार्यक्रम आयोजित किया. कार्यक्रम के दौरान कथित भड़काऊ भाषण दिए गए जो हिंसा की वजह बने. फादर स्टेन स्वामी भी एल्गार परिषद से जुड़े थे और उनपर कथित तौर पर भड़ाने का आरोप लगा था. 8 अक्टूबर 2020 को एनआईए ने उन्हें रांची स्थित उनके घर से गिरफ्तार कर लिया.
उनके खिलाफ UAPA (Unlawful Activities (Prevention) Act) यानि गैर-कानूनी गतिविधयां (रोकथाम) अधिनियम के तहत भी केस दर्ज किया गया था. इस मामले में एल्गार परिषद से जुड़े कुल 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, स्टेन के वकील ने कहा कि स्टेन देश के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति हैं जिन पर आतंकवाद का आरोप लगाया गया है.
मुंबई की तलोजा जेल में रहने के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ने लगी थी. स्टेन स्वामी की तरफ से एनआईए कोर्ट में जमानत की अर्जी दी गई, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था. इसके बाद 26 अप्रैल को स्वामी ने बॉम्मबे हाईकोर्ट में मेडिकल बेल की याचिका लगाई थी. मेडिकल रिपोर्ट पेश होने के बाद उन्हें पहले सरकारी अस्पताल में और हाईकोर्ट के आदेश पर प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजीटिव आई थी. वो कोरोना से भी उबर गए थे लेकिन 4 जुलाई की सुबह कार्डिएक अरेस्ट के बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था. अस्पताल के मुताबिक 5 जुलाई दोपहर करीब डेढ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली.
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