नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा तीनों कृषि कानूनों (three farm laws) को निरस्त करने के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक (SC committee report on 3 farm laws) हुई है. हालांकि, कमेटी के सदस्य अनिल घनवट द्वारा रिपोर्ट को सार्वजनिक किये जाने के बाद इस पर बहस और प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया है. इसी क्रम में जय किसान आंदोलन के संयोजक योगेंद्र यादव की प्रतिक्रिया (Yogendra Yadav reaction on SC Committee report) भी सामने आयी है.
किसान नेता योगेंद्र यादव ने इस पर तंज कसते हुए इसे गजब की रिपोर्ट बताया है. उन्होंने मंगलवार को वीडियो जारी किया है, जिसमें उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में तीनों निरस्त कानूनों को शानदार और पॉपुलर बताया गया है. यह रिपोर्ट किसानों की शिकायतों के आधार पर बनायी जानी थी. वे किसान जो सड़क पर आकर आंदोलन कर रहे थे, उनकी शिकायतें सुनकर अदालत को रिपोर्ट देने का निर्देश था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. तीनों कानूनों का विरोध करने वाले 450 में से एक भी संगठन से कमेटी के सदस्य नहीं मिले और न ही उनकी शिकायतें सुनी. यहां तक कि न आंदोलनरत एक किसान से मिले और न ही किसानों का सर्वे कराया. बल्कि, कमेटी उन 73 संगठनों से मिले, जिन्हें इन कानूनों से कोई परेशानी थी ही नहीं. उनसे बात कर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, सब बढ़िया है.
किसान नेता कहा कि कमेटी ने 19 हजार लोगों से डिजिटल फीडबैक लिया, जिनमें केवल पांच हजार किसान शामिल थे. उनकी बातों को सुनकर रिपोर्ट तैयार की गई है. सरकार इस रिपोर्ट के जरिये तीनों कृषि कानूनों को वापस लाने की साजिश रच रही है. वह माहौल बनाने की कोशिश कर रही है, जिससे ये तीनों कानून वापस लाया जा सके. इधर, तीनों कृषि कानूनों का विरोध कर रहे अन्य संगठनों ने भी सुप्रीम कोर्ट कमेटी की रिपोर्ट की आलोचना की है.
बता दें कि तीनों कृषि कानूनों की वापसी के बाद सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 12 जनवरी को तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाई थी. उसी कमेटी से जुड़े अनिल घनवट ने ये रिपोर्ट सार्वजनिक की है. कमेटी की रिपोर्ट में बताया गया है कि 73 किसान संगठनों में से 61 कृषि कानूनों के समर्थन में थे. हालांकि, इसमें दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर रहे किसान संगठन शामिल नहीं हैं. योगेन्द्र यादव का कहना है कि जब चार सौ से ज्यादा किसान संगठनों से कमेटी की कोई बातचीत ही नहीं हुई तो ये रिपोर्ट कैसे दावा कर रही है कि 3.3 करोड़ किसान इसके समर्थन में थे.