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पंजाब चुनाव में पीछे रह गए मुद्दे, जनता ने चेहरों को दिया वोट - पंजाब में वोटिंग

पंजाब विधानसभा की 117 सीटों के लिए मतदान हो चुका है. इस बार 68 फीसदी वोटरों ने वोट डाले और 1304 प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में बंद हो गया. उम्मीद से विपरीत इस विधानसभा चुनाव में किसानों का मुद्दा गायब रहा. शहरी वोटर के मुकाबले ग्रामीण इलाकों के मतदाता वोटिंग में आगे रहे. एक्सपर्ट मानते हैं कि इस बार पंजाब के मतदाताओं ने वादों पर नहीं बल्कि उम्मीदवारों के चेहरे के आधार पर वोट किया है.

poll analysis punjab
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Published : Feb 21, 2022, 5:02 PM IST

चंडीगढ़ : पंजाब विधानसभा चुनाव के वोटिंग 20 फरवरी को संपन्न हो गई और 117 सीटों के 1304 कैंडिडेट के भाग्य भी ईवीएम में कैद हो गई. इस बार 93 महिलाएं और 2 ट्रांसजेडर कैंडिडेट भी चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. 10 मार्च को जब ईवीएम खुलेगी तो पता चलेगा कि मतदाताओं ने किसे पंजाब की सत्ता सौंपने का फैसला किया है. मगर वोटिंग से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि इस चुनाव में भी मालवा इलाके से ही तय होगा कि इस बार पंजाब का 'सरदार' कौन होगा. इस इलाके में सबसे ज्यादा पोलिंग हुई.

पंजाब विधानसभा चुनाव में इस बार 68 फीसदी वोटिंग हुई. यह किस गठबंधन या दल के पक्ष में हुई, यह कयास लाना भी मुश्किल है. इस बार का चुनाव चतुष्कोणीय हो गया. कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल-बीएसपी गठबंधन के अलावा किसान आंदोलन से निकले कई दल चुनाव मैदान थे. बीजेपी ने पंजाब लोक कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल संयुक्त के साथ चुनाव लड़ रही है. संयुक्त समाज मोर्चा मुख्य तौर पर किसानों से जुड़े मुद्दों को लेकर चुनाव में उतरने का फैसला किया था. मगर पूरे कैंपेन के दौरान किसानों के मुद्दे गायब ही रहे. किसान आंदोलन के कारण यह उम्मीद जताई जा रही थी कि इस बार पंजाब चुनाव में किसानों का मुद्दा छाया रहेगा, मगर ऐसा नहीं हुआ. अब चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि चुनाव लड़ने वाले किसान संगठनों के उम्मीदवारों को कितने वोट मिले.

poll analysis punjab
युवा सीएम या अनुभवी मुख्यमंत्री, इसका फैसला भी 10 मार्च को होगा.

वोटिंग के ट्रेंड से बनती रहीं सरकारें

पंजाब में वोटिंग के ट्रेंड से सरकारों के आने-जाने से ट्रेंड से इस चुनाव का अनुमान लगाया जा सकता है. अभी तक के पंजाब के चुनावी इतिहास में जब मतदान का प्रतिशत कम हुआ, सरकार बदल गई. जब लोगों ने जमकर वोटिंग की तो सत्ता में बैठी पार्टी को एक और मौका मिला. 1972 के चुनाव में साल 1967 के मुकाबल कम वोटिंग हुई थी. इस कारण 1972 में सरकार बदल गई. 2012 में मतदान में बढ़ोतरी के कारण सरकार फिर से चुनी गई थी. इसमें अपवाद यह है कि 1972, 1977, 1997 और 2002 में पिछले चुनावों के मुकाबले वोटिंग कम हुई मगर सरकार बदल गई थी. लेकिन 1980, 1985, 1992 और 1997 में ट्रेंड बदल गया.

इस चुनाव में पंजाब के कई दलों के साथ उनके नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. तकरीबन सभी दलों ने अपने सीए कैंडिडेट घोषित कर रखे थे, इसलिए यह जानना दिलचस्प होगा कि जनमत ने कैसे नेतृत्व में भरोसा जताया है. मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, आप के सीएम कैंडिडेट भगवंत मान, पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल, कैप्टन अमरिंदर सिंह, राजिंदर कौर भट्टल, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा, किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल, सिमरनजीत सिंह मान जैसे नेताओं का भाग्य भी अभी ईवीएम में बंद है.

poll analysis punjab
सुखबीर सिंह बादल के लिए यह चुनाव अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. हारे तो पार्टी का भविष्य भी अधर में लटक जाएगा.

राजनीतिक हलकों में यह माना जा रहा है कि सबसे ज्यादा राजनीतिक दवाब सुखबीर सिंह बादल पर है, जो अपने पिता प्रकाश सिंह बादल से पार्टी की कमान ले रहे हैं. 2017 का चुनाव भी सुखबीर बादल के नेतृत्व में लड़ा गया था, तब उन्हें हार मिली थी. अगर वह लगातार चुनाव हारे तो पार्टी में खलबली मच सकती है और उनके नेता दूसरे दलों का रुख कर सकते हैं. यह चुनाव प्रकाश सिंह बादल का आखिरी इलेक्शन है, यानी उनके पास पारिवारिक सपोर्ट के लिए यह आखिरी मौका है. अगर अकाली दल चुनाव जीतकर सत्ता में नहीं आती है तो सुखबीर बादल को पार्टी को बचाए रखने में भी मुश्किल आएगी.

कांग्रेस ने पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रयोग किया है. उसने सुनील जाखड़ और नवजोत सिद्धू को दरकिनार कर दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी पर दांव खेला है. चन्नी की परफॉर्मेंस पर कांग्रेस में राहुल का भविष्य भी जुड़ गया है, क्योंकि पंजाब का नया नेतृत्व खुद राहुल गांधी ने तया किया था. सवाल यह है कि क्या कांग्रेस इस चुनाव में दलित पॉलिटिक्स के जरिये खुद को दोबारा स्थापित कर लेगी? आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान के चेहरे पर दांव लगाया है. साल 2017 के बाद इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को जोश हाई था. चुनाव नतीजे से यह पता चलेगा कि सीएम के लिए भगवंत मान का चुनाव आप का सही फैसला था. इसके अलावा कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनकी पार्टी का भविष्य भी इन विधानसभा चुनावों से तय होगा. कम वोट पाने वाली ऐसी पार्टियां अक्सर बड़े दलों में शामिल हो जाती हैं.

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चन्नी के साथ इस चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व के फैसले भी दांव पर लगे हैं. फाइल फोटो
यह भी दिलचस्प रहा कि बड़े कैंडिडेट ने जिस चुनाव क्षेत्र में नामांकन किया, मगर वोट किसी दूसरे क्षेत्र में डाले. यानी अपना वोट भी खुद को नहीं दे सके. सीएम चरणजीत सिंह चन्नी चमकौर साहिब और भदौड़ से प्रत्याशी हैं मगर उन्होंने मोहाली को खरार विधानसभा क्षेत्र में मतदान किया. इसी तरह भगवंत मान ने भी मोहाली में वोट डाले, जबकि वह खुद संगरूर से चुनाव लड़ रहे हैं. शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र लांबी में मतदान किया, वह खुद फाजिल्का के जलालाबाद से कैंडिडेट हैं. बीजेपी नेता दुर्गेश शर्मा कोटकापुरा से चुनाव लड़ रहे हैं मगर उन्होंने फरीदकोट में वोट डाले.

चुनाव के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों की 700 कंपनी लगाई गई थी. हर बूथ पर केंद्रीय बलों के साथ राज्य पुलिस के दो अधिकारी ही तैनात रहे. बताया जाता है कि इस बार पैरा मिलिट्री फोर्स ने चुनाव के दौरान दोस्ताना रवैया बनाए रखा. कही से भी सुरक्षा बलों के खिलाफ शिकायत नहीं मिली. इसके विपरीत वे बुजुर्गों और बीमारों की मदद करते नाजर आए. उन्होंने वोटरों को मास्क भी बांटे. आंकड़ों के अनुसार जिले के श्री मुक्तसर साहिब में 78.47 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया जो राज्य में सबसे अधिक रहा. मनसा जिले में 77.21 प्रतिशत मतदान हुआ. मनसा जिले में 2017 में 84.4 फीसदी, 2012 में 82.2 फीसदी, 2007 में 85.5 फीसदी और 2002 में 72.4 फीसदी वोटिंग हुई थी. मलेरकोटला 72.84 फीसदी के साथ तीसरे स्थान पर रहा.

फाजिल्का में 73.59 प्रतिशत, संगरूर में 73.82 और अमृतसर में 61.95 प्रतिशत वोटिंग हुई. मालवा क्षेत्र के 69 विधानसभा क्षेत्रों में कुल 65 प्रतिशत पोलिंग हुई. माझा विधानसभा क्षेत्र में गुरदासपुर में 69.25 फीसदी, पठानकोट में 67.72 फीसदी, तरनतारन में 60.47 फीसदी और अमृतसर में 61.95 फीसदी वोट पड़े. पिछले दो दशकों के दौरान पंजाब में वोटिंग पैटर्न पर नजर डालें तो पिछले तीन चुनावों की तुलना में इस बार मतदान कम हुआ है.
चुनाव आयोग के मुताबिक 2002 में 65 फीसदी, 2007 में 75.49 फीसदी, 2012 में 78.30 फीसदी और 2017 में 77.40 फीसदी मतदान हुआ था. शहरी इलाकों में गांवों के मुकाबले कम वोट पड़े. ग्रामीण इलाकों में करीब 80 फीसदी वोटिंग हुई. सीनियर जर्नलिस्ट गुरुपदेश भुल्लर के मुताबिक, इस बार पंजाब की जनता ने इलेक्शन मेनिफेस्टो पर भरोसा नहीं किया. उन्होंने अपने-अपने इलाके में कैंडिडेट के चेहरे के हिसाब से वोटिंग की है. पॉलिटिकल एक्सपर्ट जगतार सिंह के मुताबिक, यह चुनाव नए दौर के नेताओं को चुने जाने के लिए हुआ है. इस बार वोटरों ने बड़ी समझदारी से मतदान किया है.

पढ़ें : कैप्टन अमरिंदर की बातों पर पीएम मोदी के ठहाके, याद दिलाए 30 साल पुराने दिन

चंडीगढ़ : पंजाब विधानसभा चुनाव के वोटिंग 20 फरवरी को संपन्न हो गई और 117 सीटों के 1304 कैंडिडेट के भाग्य भी ईवीएम में कैद हो गई. इस बार 93 महिलाएं और 2 ट्रांसजेडर कैंडिडेट भी चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. 10 मार्च को जब ईवीएम खुलेगी तो पता चलेगा कि मतदाताओं ने किसे पंजाब की सत्ता सौंपने का फैसला किया है. मगर वोटिंग से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि इस चुनाव में भी मालवा इलाके से ही तय होगा कि इस बार पंजाब का 'सरदार' कौन होगा. इस इलाके में सबसे ज्यादा पोलिंग हुई.

पंजाब विधानसभा चुनाव में इस बार 68 फीसदी वोटिंग हुई. यह किस गठबंधन या दल के पक्ष में हुई, यह कयास लाना भी मुश्किल है. इस बार का चुनाव चतुष्कोणीय हो गया. कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल-बीएसपी गठबंधन के अलावा किसान आंदोलन से निकले कई दल चुनाव मैदान थे. बीजेपी ने पंजाब लोक कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल संयुक्त के साथ चुनाव लड़ रही है. संयुक्त समाज मोर्चा मुख्य तौर पर किसानों से जुड़े मुद्दों को लेकर चुनाव में उतरने का फैसला किया था. मगर पूरे कैंपेन के दौरान किसानों के मुद्दे गायब ही रहे. किसान आंदोलन के कारण यह उम्मीद जताई जा रही थी कि इस बार पंजाब चुनाव में किसानों का मुद्दा छाया रहेगा, मगर ऐसा नहीं हुआ. अब चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि चुनाव लड़ने वाले किसान संगठनों के उम्मीदवारों को कितने वोट मिले.

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युवा सीएम या अनुभवी मुख्यमंत्री, इसका फैसला भी 10 मार्च को होगा.

वोटिंग के ट्रेंड से बनती रहीं सरकारें

पंजाब में वोटिंग के ट्रेंड से सरकारों के आने-जाने से ट्रेंड से इस चुनाव का अनुमान लगाया जा सकता है. अभी तक के पंजाब के चुनावी इतिहास में जब मतदान का प्रतिशत कम हुआ, सरकार बदल गई. जब लोगों ने जमकर वोटिंग की तो सत्ता में बैठी पार्टी को एक और मौका मिला. 1972 के चुनाव में साल 1967 के मुकाबल कम वोटिंग हुई थी. इस कारण 1972 में सरकार बदल गई. 2012 में मतदान में बढ़ोतरी के कारण सरकार फिर से चुनी गई थी. इसमें अपवाद यह है कि 1972, 1977, 1997 और 2002 में पिछले चुनावों के मुकाबले वोटिंग कम हुई मगर सरकार बदल गई थी. लेकिन 1980, 1985, 1992 और 1997 में ट्रेंड बदल गया.

इस चुनाव में पंजाब के कई दलों के साथ उनके नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. तकरीबन सभी दलों ने अपने सीए कैंडिडेट घोषित कर रखे थे, इसलिए यह जानना दिलचस्प होगा कि जनमत ने कैसे नेतृत्व में भरोसा जताया है. मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, आप के सीएम कैंडिडेट भगवंत मान, पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल, कैप्टन अमरिंदर सिंह, राजिंदर कौर भट्टल, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा, किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल, सिमरनजीत सिंह मान जैसे नेताओं का भाग्य भी अभी ईवीएम में बंद है.

poll analysis punjab
सुखबीर सिंह बादल के लिए यह चुनाव अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. हारे तो पार्टी का भविष्य भी अधर में लटक जाएगा.

राजनीतिक हलकों में यह माना जा रहा है कि सबसे ज्यादा राजनीतिक दवाब सुखबीर सिंह बादल पर है, जो अपने पिता प्रकाश सिंह बादल से पार्टी की कमान ले रहे हैं. 2017 का चुनाव भी सुखबीर बादल के नेतृत्व में लड़ा गया था, तब उन्हें हार मिली थी. अगर वह लगातार चुनाव हारे तो पार्टी में खलबली मच सकती है और उनके नेता दूसरे दलों का रुख कर सकते हैं. यह चुनाव प्रकाश सिंह बादल का आखिरी इलेक्शन है, यानी उनके पास पारिवारिक सपोर्ट के लिए यह आखिरी मौका है. अगर अकाली दल चुनाव जीतकर सत्ता में नहीं आती है तो सुखबीर बादल को पार्टी को बचाए रखने में भी मुश्किल आएगी.

कांग्रेस ने पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रयोग किया है. उसने सुनील जाखड़ और नवजोत सिद्धू को दरकिनार कर दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी पर दांव खेला है. चन्नी की परफॉर्मेंस पर कांग्रेस में राहुल का भविष्य भी जुड़ गया है, क्योंकि पंजाब का नया नेतृत्व खुद राहुल गांधी ने तया किया था. सवाल यह है कि क्या कांग्रेस इस चुनाव में दलित पॉलिटिक्स के जरिये खुद को दोबारा स्थापित कर लेगी? आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान के चेहरे पर दांव लगाया है. साल 2017 के बाद इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को जोश हाई था. चुनाव नतीजे से यह पता चलेगा कि सीएम के लिए भगवंत मान का चुनाव आप का सही फैसला था. इसके अलावा कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनकी पार्टी का भविष्य भी इन विधानसभा चुनावों से तय होगा. कम वोट पाने वाली ऐसी पार्टियां अक्सर बड़े दलों में शामिल हो जाती हैं.

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चन्नी के साथ इस चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व के फैसले भी दांव पर लगे हैं. फाइल फोटो
यह भी दिलचस्प रहा कि बड़े कैंडिडेट ने जिस चुनाव क्षेत्र में नामांकन किया, मगर वोट किसी दूसरे क्षेत्र में डाले. यानी अपना वोट भी खुद को नहीं दे सके. सीएम चरणजीत सिंह चन्नी चमकौर साहिब और भदौड़ से प्रत्याशी हैं मगर उन्होंने मोहाली को खरार विधानसभा क्षेत्र में मतदान किया. इसी तरह भगवंत मान ने भी मोहाली में वोट डाले, जबकि वह खुद संगरूर से चुनाव लड़ रहे हैं. शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र लांबी में मतदान किया, वह खुद फाजिल्का के जलालाबाद से कैंडिडेट हैं. बीजेपी नेता दुर्गेश शर्मा कोटकापुरा से चुनाव लड़ रहे हैं मगर उन्होंने फरीदकोट में वोट डाले.

चुनाव के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों की 700 कंपनी लगाई गई थी. हर बूथ पर केंद्रीय बलों के साथ राज्य पुलिस के दो अधिकारी ही तैनात रहे. बताया जाता है कि इस बार पैरा मिलिट्री फोर्स ने चुनाव के दौरान दोस्ताना रवैया बनाए रखा. कही से भी सुरक्षा बलों के खिलाफ शिकायत नहीं मिली. इसके विपरीत वे बुजुर्गों और बीमारों की मदद करते नाजर आए. उन्होंने वोटरों को मास्क भी बांटे. आंकड़ों के अनुसार जिले के श्री मुक्तसर साहिब में 78.47 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया जो राज्य में सबसे अधिक रहा. मनसा जिले में 77.21 प्रतिशत मतदान हुआ. मनसा जिले में 2017 में 84.4 फीसदी, 2012 में 82.2 फीसदी, 2007 में 85.5 फीसदी और 2002 में 72.4 फीसदी वोटिंग हुई थी. मलेरकोटला 72.84 फीसदी के साथ तीसरे स्थान पर रहा.

फाजिल्का में 73.59 प्रतिशत, संगरूर में 73.82 और अमृतसर में 61.95 प्रतिशत वोटिंग हुई. मालवा क्षेत्र के 69 विधानसभा क्षेत्रों में कुल 65 प्रतिशत पोलिंग हुई. माझा विधानसभा क्षेत्र में गुरदासपुर में 69.25 फीसदी, पठानकोट में 67.72 फीसदी, तरनतारन में 60.47 फीसदी और अमृतसर में 61.95 फीसदी वोट पड़े. पिछले दो दशकों के दौरान पंजाब में वोटिंग पैटर्न पर नजर डालें तो पिछले तीन चुनावों की तुलना में इस बार मतदान कम हुआ है.
चुनाव आयोग के मुताबिक 2002 में 65 फीसदी, 2007 में 75.49 फीसदी, 2012 में 78.30 फीसदी और 2017 में 77.40 फीसदी मतदान हुआ था. शहरी इलाकों में गांवों के मुकाबले कम वोट पड़े. ग्रामीण इलाकों में करीब 80 फीसदी वोटिंग हुई. सीनियर जर्नलिस्ट गुरुपदेश भुल्लर के मुताबिक, इस बार पंजाब की जनता ने इलेक्शन मेनिफेस्टो पर भरोसा नहीं किया. उन्होंने अपने-अपने इलाके में कैंडिडेट के चेहरे के हिसाब से वोटिंग की है. पॉलिटिकल एक्सपर्ट जगतार सिंह के मुताबिक, यह चुनाव नए दौर के नेताओं को चुने जाने के लिए हुआ है. इस बार वोटरों ने बड़ी समझदारी से मतदान किया है.

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