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ब्लैक फंगस से मरीज को बचाने के लिए मजबूरन निकालनी पड़ रही आंख : नेत्र विशेषज्ञ - Corona Virus

ईटीवी भारत से बात करते हुए नेत्र सर्जन डॉ. प्रियता सेठ, डॉ. सौरिन गांधी और डॉ. दिशांत शाह ने म्यूकोरमाइकोसिस पर गहन जानकारी दी और मरीजों के हालात बयां किए. इनका कहना है कि ब्लैक फंगस को मरीज के मस्तिष्क तक पहुंचने से रोकने के लिए वे दिन-रात उनका इलाज कर रहे हैं.

नेत्र सर्जन
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Published : May 23, 2021, 11:01 PM IST

सूरत : ब्लैक फंगस (म्यूकोरमाइकोसिस) के मामले आए दिन बढ़ते जा रहे हैं. निजी और सरकारी अस्पतालों में इन मरीजों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ रही है. ब्लैक फंगस के कारण मरीजों की गंभीर हो रही हालत में डॉक्टरों को उनकी आंखें तक निकालनी पड़ रही हैं. इस घातक बीमारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए ईटीवी भारत ने सूरत के तीन नेत्र विशेषज्ञों से बात की.

नेत्र सर्जन डॉ. प्रियता सेठ, डॉ. सौरिन गांधी और डॉ. दिशांत शाह ने म्यूकोरमाइकोसिस पर गहन जानकारी देते हुए मरीजों के हालात बयां किए. इनका कहना है कि ब्लैक फंगस को मरीज के मस्तिष्क तक पहुंचने से रोकने के लिए वे दिन-रात उनका इलाज कर रहे हैं. बता दें कि सूरत में ये केवल तीन डॉक्टर हैं, जो इस तरह की सर्जरी कर रहे हैं.

ब्लैक फंगस पर नेत्र विशेषज्ञों की राय

ये भी पढ़ें : ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के लिए जल्द ही तकनीक हस्तांतरित करेगा इसरो

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सौरिन गांधी ने बताया, उन्हें अब तक 25 से ज्यादा मरीजों की आंखें निकालने के लिए मजबूर होना पड़ा है. उन्होंने कहा, 'हम कोशिश करते हैं कि मरीज की आंख न निकाले. हम लोगों से कहना चाहते हैं कि वे खुद से कोई दवा न लें. किसी विशेषज्ञ से कोरोना का इलाज कराएं, ताकि ऐसी स्थिति पैदा न हो.'

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रियता सेठ ने बताया, मरीज की जान बचाने के लिए उन्हें अब तक 34 मरीजों की आंखें निकालनी पड़ीं. उन्होंने बताया कि मस्तिष्क से फंगस को बाहर निकालने की उम्मीद में मरीज अंतिम चरण में उनके पास आते हैं. ऐसे में मरीजों और उनके रिश्तेदारों को यह बताना हमारे लिए बहुत दर्दनाक होता है कि फंगस को रोकने के लिए उन्हें मरीज की आंखें निकालनी पडे़गी.

उन्होंने आगे कहा कि इस बीमारी की दवा सर्जरी से कहीं ज्यादा महंगी है. हम इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि दवाओं का किडनी या शरीर के अन्य अंगों पर कोई दुष्प्रभाव न हो. उन्होंने बताया कि ब्लैक फंगस होने की आखिरी स्टेज में चेहरे की त्वचा काली पड़ जाती है या फंगस आंख के अंदर पहुंच जाता है. इसलिए मरीजों की जान बचाने के लिए हमें मजबूरन सर्जरी करनी पड़ती है.

ये भी पढे़ं : मॉडर्ना ने पंजाब को वैक्सीन भेजने से किया इनकार, कहा- सिर्फ भारत सरकार से डील होगी

वहीं, नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. दिशांत शाही ने बताया, कोरोना के बाद ठीक हुए मरीज कमजोरी दूर करने के लिए मिठाई खाने लगते हैं. इस कारण इन लोगों में ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ रहा है. उन्होंने आगे कहा कि कोरोना से रिकवर हुए गैर-डायबिटीज मरीजों में भी इसका खतरा बढ़ रहा है. ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों के इलाज करने पर उन्होंने कहा कि इन मरीजों की हालत इतनी गंभीर हो जाती है कि इनकी जान बचाने के लिए हमारे पास इनकी आंख निकालने के सिवाए कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है.

सूरत : ब्लैक फंगस (म्यूकोरमाइकोसिस) के मामले आए दिन बढ़ते जा रहे हैं. निजी और सरकारी अस्पतालों में इन मरीजों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ रही है. ब्लैक फंगस के कारण मरीजों की गंभीर हो रही हालत में डॉक्टरों को उनकी आंखें तक निकालनी पड़ रही हैं. इस घातक बीमारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए ईटीवी भारत ने सूरत के तीन नेत्र विशेषज्ञों से बात की.

नेत्र सर्जन डॉ. प्रियता सेठ, डॉ. सौरिन गांधी और डॉ. दिशांत शाह ने म्यूकोरमाइकोसिस पर गहन जानकारी देते हुए मरीजों के हालात बयां किए. इनका कहना है कि ब्लैक फंगस को मरीज के मस्तिष्क तक पहुंचने से रोकने के लिए वे दिन-रात उनका इलाज कर रहे हैं. बता दें कि सूरत में ये केवल तीन डॉक्टर हैं, जो इस तरह की सर्जरी कर रहे हैं.

ब्लैक फंगस पर नेत्र विशेषज्ञों की राय

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नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सौरिन गांधी ने बताया, उन्हें अब तक 25 से ज्यादा मरीजों की आंखें निकालने के लिए मजबूर होना पड़ा है. उन्होंने कहा, 'हम कोशिश करते हैं कि मरीज की आंख न निकाले. हम लोगों से कहना चाहते हैं कि वे खुद से कोई दवा न लें. किसी विशेषज्ञ से कोरोना का इलाज कराएं, ताकि ऐसी स्थिति पैदा न हो.'

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रियता सेठ ने बताया, मरीज की जान बचाने के लिए उन्हें अब तक 34 मरीजों की आंखें निकालनी पड़ीं. उन्होंने बताया कि मस्तिष्क से फंगस को बाहर निकालने की उम्मीद में मरीज अंतिम चरण में उनके पास आते हैं. ऐसे में मरीजों और उनके रिश्तेदारों को यह बताना हमारे लिए बहुत दर्दनाक होता है कि फंगस को रोकने के लिए उन्हें मरीज की आंखें निकालनी पडे़गी.

उन्होंने आगे कहा कि इस बीमारी की दवा सर्जरी से कहीं ज्यादा महंगी है. हम इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि दवाओं का किडनी या शरीर के अन्य अंगों पर कोई दुष्प्रभाव न हो. उन्होंने बताया कि ब्लैक फंगस होने की आखिरी स्टेज में चेहरे की त्वचा काली पड़ जाती है या फंगस आंख के अंदर पहुंच जाता है. इसलिए मरीजों की जान बचाने के लिए हमें मजबूरन सर्जरी करनी पड़ती है.

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वहीं, नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. दिशांत शाही ने बताया, कोरोना के बाद ठीक हुए मरीज कमजोरी दूर करने के लिए मिठाई खाने लगते हैं. इस कारण इन लोगों में ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ रहा है. उन्होंने आगे कहा कि कोरोना से रिकवर हुए गैर-डायबिटीज मरीजों में भी इसका खतरा बढ़ रहा है. ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों के इलाज करने पर उन्होंने कहा कि इन मरीजों की हालत इतनी गंभीर हो जाती है कि इनकी जान बचाने के लिए हमारे पास इनकी आंख निकालने के सिवाए कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है.

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