नई दिल्ली : तीन कृषि कानूनों के विरोध और एमएसपी पर खरीद की गारंटी के मांग के साथ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन के 26 नवंबर को एक साल पूरे हो रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल सभी किसान संगठन इस मौके को व्यापक बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को आंदोलन से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं. इसमें अखिल भरतीय किसान सभा भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हैय
शुरुआत में आंदोलन केवल किसानों तक सीमित था, लेकिन समय के साथ इसमें मजदूर संगठन, जनजातीय संगठन और राजनीतिक दलों का समर्थन भी मिला. अब एक वर्ष पूरे होने पर संयुक्त किसान मोर्चा अन्य संगठनों के साथ मिल कर अपनी मांगों के लिए सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए एक बार फिर कमर कस चुका है.
ईटीवी भारत ने आंदोलन के एक वर्ष और इसके निष्कर्ष पर अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय महासचिव अतुल कुमार अंजान से बातचीत की. बता दें कि अतुल अंजान स्वामिनाथन आयोग का हिस्सा रहे हैं और एमएसपी के लिए C2+50% का फॉर्मूला तय करने में उनकी मुख्य भूमिका रही थी. सरकार भले ही दावा करती हो कि उसने स्वामिनाथन के C2+50% के अनुसार एमएसपी तय किए लेकिन किसान नेता इसे झूठ बताते हैं और उनका कहना है कि सरकार A2+FL के हिसाब से ही एमएसपी घोषित करती है और उस पर भी खरीद नहीं हो पाती.
अतुल अंजान ने विशेष बातचीत में कहा कि पिछले एक सदी में देश और दुनिया ने इस तरह का अनोखा आंदोलन नहीं देखा होगा, जहां गांधीवादी तरीके को अपनाते हुए किसान एक आस के साथ इतने लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं. इस दौरान उन्हें सरकारी हिंसा का भी सामना करना पड़ा है, लेकिन फिर भी उन्हें उम्मीद है कि सरकार उनकी बात सुनेगी और मांगें स्वीकार करेगी.
उन्होंने कहा कि आज विश्वविद्यालयों को अपने छात्रों को किसान आंदोलन पर शोध करने के लिए प्रेरित करना चाहिए.
आंदोलन में शामिल अतुल अंजान पर मोदी सरकार का पुतला दहन करने के लिए देशद्रोह का मुकदमा भी लगया जा चुका है. वह कहते हैं कि ऐसे समय में जब हम देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, तब देश की संसद में ऐसे तीन कानून पारित हो गए जिन्हें अध्यादेश के रास्ते लाया गया और जिन पर संसद में ठीक से चर्चा तक नहीं हुई. ये संसदीय मूल्यों की अवमानना थी.
कॉरपोरेट और पूंजीवाद से लड़ रहे किसान
एक वर्ष पूरा होने और उससे संबंधित तैयारियों पर अतुल अंजान कहते हैं कि आज समाज के हर वर्ग से आंदोलन को व्यापक समर्थन है और कोई भी इसका विरोध नहीं कर पाता है. क्योंकि लोगों को लगता है कि किसान अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं जो जायज है. उन्होंने कहा कि इस आंदोलन की सबसे बड़ी खूबी है कि अहिंसक होकर किसान कॉरपोरेट और पूंजीवाद के खिलाफ लड़ रहे हैं.
अतुल अंजान बातचीत के दौरान बार-बार यह दोहराते हैं कि उनका आंदोलन अहिंसक है और गांधीजी के मूल्यों पर आधारित है लेकिन एक तथ्य यह भी है कि समय समय पर आंदोलन में हिंसा और तोड़-फोड़ का भी प्रवेश हुआ है. प्रदर्शनकारियो ने न केवल सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुक्सान पहुंचाया, बल्की मोबाइल टॉवर और अन्य निजी सम्पत्तियों को भी क्षतिग्रस्त किया और हिंसा भी हुई.
इस पर जवाब देते हुए किसान नेता मानते हैं कि लंबे समय से चल रहे आंदोलन के दौरान इस तरह की कुछ घटनाएं हुईं, जिनसे बचा जा सकता था. उनका कहना है कि कुछ जगहों पर हिंसा हुई लेकिन सरकार की तरफ से जो हिंसा हुई उसमें लोगों की जानें भी गई हैं. वह हिंसा का समर्थन नहीं करते हैं और कहते हैं कि इस तरह की घटनाएं नहीं होनी चाहिए थी.
दिल्ली की सीमाओं पर धरना प्रदर्शन के कारण यातायात के दौरान लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि किसान अनिश्चितकाल के लिए सड़कों को अवरुद्ध नहीं कर सकते हैं.
धरना प्रदर्शन सबका अधिकार
इस पर अतुल अंजान कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रास्ते खुलने चाहिए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि लोकतंत्र में अपनी बात कहने का, धरना प्रदर्शन करने का सबको अधिकार है और सरकार इस अधिकार को देना नहीं चाहती. इस मुद्दे पर भी बात होनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि हम सरकार से बात करने के लिए तैयार हैं लेकिन हमारी मांगों में बुरा क्या है? तीन कृषि कानूनों के मामले में सरकार की तरफ से इतनी सख्ती क्यूं है? यह सरकार का कॉरपोरेट घरानों के लिए प्रेम है एक साबुन के पैकेट पर भी एमआरपी लिखा होता है और कंपनी उसी कीमत में बेचती है जबकि उसका लागत मूल्य कहीं कम होता है लेकिन किसानों को अपने उत्पाद का दाम तय करने का अधिकार नहीं है.
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अतुल अंजान ने स्पष्ट कहा कि यदि सरकार एमएसपी पर सरकारी खरीद की गारंटी देती है तो निश्चित रूप से किसानों और सरकार के बीच बातचीत शुरू हो सकती है और समाधान निकल सकता है.
हालांकि, यह संयुक्त किसान मोर्चा की पहले की मांग से अलग है. संयुक्त किसान मोर्चा की मांग रही है कि सबसे पहले तीन कृषि कानून रद्द किए जाएं तभी कोई बातचीत संभव है. लेकिन अब संभावनाएं जताई जा रही हैं कि यदि सरकार किसानों के अनुसार एमएसपी पर कानून बनाने की बात करती है तो किसान मोर्चा तीन कृषि कानूनों पर नर्म हो सकता है.