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Joshimath Crisis: पर्यावरणविद् अनिल जोशी बोले- तेजी से विकास पहाड़ों के लिए साबित हो रहा खतरनाक - पहाड़ों में बेतरतीब विकास

ऐतिहासिक नगर जोशीमठ दरार और भू-धंसाव की चपेट में है. जिससे जोशीमठ के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. कमोबेश यही हालात सूबे के अन्य जगहों के भी हैं. यानी पहाड़ों की नाजुक पारिस्थितिकी प्रणाली में बेतरतीब विकास कभी भी बड़े खतरे को पैदा कर सकते हैं. जिस पर विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् समय-समय पर आगाह करते रहते हैं, लेकिन उनकी बातों को हमेशा नजरअंदाज कर दिया जाता है. जिसका खामियाजा किसी आपदा के रूप में देखने को मिलता है. इन्हीं हालातों को लेकर ईटीवी भारत ने जाने माने पर्यावरणविद् अनिल जोशी से खास बातचीत की.

Joshimath Crisis
ईटीवी भारत पर पर्यावरणविद् अनिल जोशी
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Published : Feb 13, 2023, 10:02 PM IST

ईटीवी भारत पर पर्यावरणविद् अनिल जोशी.

देहरादूनः उत्तराखंड के जोशीमठ में दरार से उपजे हालात से सभी वाकिफ हैं. सिर्फ जोशीमठ में ही नहीं बल्कि नैनीताल, टिहरी, रुद्रप्रयाग समेत अन्य जिलों में दरारें दिखाई दे रही है. तमाम एजेंसियां इस बात का अध्ययन कर रही हैं कि आखिर इन दरारों की वजह क्या है? कब तक ये सिलसिला जारी रहने वाला है. इस बीच इन हालातों को पद्मश्री और पद्मभूषण पर्यावरणविद् अनिल प्रकाश जोशी ने सरकारी लापरवाही का नतीजा करार दिया है.

पर्यावरणविद् प्रकाश जोशी बताते हैं कि सबसे बड़ी समस्या इन दरारों की अगर कुछ है तो वो हमारा सिस्टम है. क्योंकि, सरकार ने आज तक यह अध्ययन नहीं किया है कि हमारे पहाड़ कितना दबाव सहन कर सकते हैं? आज तक रूरल नीति नहीं बन पाई है, लेकिन जब शहरों में मकान आदि बनाए जाते हैं तो इसका खूब ध्यान रखा जाता है. जैसे इमारतें किस डिजाइन में बनेगी और कितनी बड़ी बनानी है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों का माहौल क्या है और कितने लोगों का दबाव पहाड़ सहन कर सकते हैं. इस पर आज तक किसी ने काम नहीं किया है.

पहाड़ों में इमारतें खड़ी करना खतरनाक, आने वाले समय में जोशीमठ जैसे हो सकते हैं अन्य जगहों के हालातः उनका कहना है कि जो हालात जोशीमठ के हैं, वो कोई नई बात नहीं है. आने वाले समय में यह हालात कुमाऊं और गढ़वाल के कई इलाकों में पैदा हो सकते हैं. ऐसे में इन पहाड़ों का बारीकी से अध्ययन सरकारों को कराना चाहिए. इस बात को सुनिश्चित करें कि जिन जगहों पर अभी हालात ठीक हैं, वहां पर आगे चलकर अंधाधुंध इमारतें न बनें.

शहर में तब्दील हो रहे गांव, अध्य्यन करना मुनासिब नहीं समझा जाताः अनिल जोशी कहते हैं कि पहले उत्तराखंड के तमाम पहाड़ी इलाकों में गांव तो हुआ करते थे. शहर का तो कोई नामोनिशान नहीं था, लेकिन समय के साथ गांव कब शहरों में तब्दील हो गए. इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया. हर किसी ने विकास और विकास के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारतों को बनाना ही उचित समझा, लेकिन किसी ने भी गांव से शहर में तब्दील होते इन जगहों का अध्ययन नहीं किया. यह भी नहीं जाना कि इसके परिणाम क्या होंगे? इसका एक परिणाम जोशीमठ के रूप में सबके सामने है. जो एक छोटा सा गांव हुआ करता था, अब यह शहर में तब्दील हो गया है.
ये भी पढेंः Joshimath Crisis: आफत में जान! लकड़ी के सहारे रुकेगी भारी-भरकम चट्टान? टेंपरेरी अरेंजमेंट पर आई सफाई

उत्तराखंड में भू-कटाव क्यों होता है ज्यादाः दूसरे राज्यों में इस तरह की घटना सामने क्यों नहीं आती, इस सवाल पर अनिल जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड के पास वाटर बॉडी काफी ज्यादा है. हर नगर से एक न एक नदी निकल रही है. जहां पर इतना बड़ा जल स्रोत होगा, वहां पर इस तरह का कटाव भी ज्यादा होगा. उनका कहना है कि अभी तो सिर्फ भू-कटाव हो रहा है. जिस तरह की इमारतें पहाड़ों में बनी है. अगर कोई बड़ा भूकंप आ जाए तो हालात क्या होंगे? इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विकास ढांचागत हो और सभी बातों का अध्ययन उसमें होना चाहिए.

विकास कार्यों में जल्दबाजी बिल्कुल ठीक नहींः हाइड्रो प्रोजेक्ट से क्या ऐसे हालात बन रहे हैं, इस पर जोशी कहते हैं कि आपके डेवलपमेंट प्रोसेस पर सवाल हो सकते हैं, लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में भी पहाड़ हैं. सभी जगहों पर इस तरह के प्रोजेक्ट चल रहे हैं. सभी जगह पर विकास भी हो रहा है, लेकिन हमारे यहां काम होने या शुरू होने पर इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता कि यह काम कितने समय में पूरा होगा. हमारे यहां अंधाधुंध और जल्दबाजी में सब कुछ काम किए जाते हैं. जो सड़क पहाड़ों में वहां के मुताबिक, एक साल में बननी चाहिए, लेकिन उसे 4 महीने के भीतर बनाने की कोशिश की जाती है. उसका असर इस रूप में दिखाई देता है.

जोशीमठ में विरोध पर क्या बोले अनिल जोशीः जोशीमठ में अनिल जोशी का विरोध हुआ था. इतना ही नहीं लोगों ने सरकार का पक्ष लेने का आरोप लगाया था. जिस पर उनका कहना वो भी उत्तराखंड के निवासी हैं. उनका अधिकार है कि वो अपनी बात रख सकें. हर बात में विरोध करना ही किसी बात का समाधान नहीं है. जो लोग उनका विरोध कर रहे हैं, वो करते रहें, लेकिन वो वही बात कह रहे हैं, जो एक उत्तराखंड का निवासी कहना चाहता है.

टिहरी का हुआ था अध्ययन, अब आस-पास के गावों में मंडराया खतराः टिहरी पर बात करते हुए अनिल जोशी बताते हैं कि जब टिहरी बांध बन रहा था, तब सभी बातों को ध्यान में रखा गया था. यही बात अध्ययन में सामने आई थी कि टिहरी के आसपास के इलाके गांव और बांध को कभी भी कोई खतरा नहीं हो सकता, लेकिन प्रकृति अब अपना रूप बदल रही है. इस बदलाव का नतीजा है कि अब टिहरी के आस-पास के गांव में भी इस तरह के हालात बन रहे हैं. इस बात से मुंह मोड़ा नहीं जा सकता है.
ये भी पढेंः Joshimath Crisis: वो पांच कारण जिनकी वजह से धंस रहा जोशीमठ, NIT ने स्टडी रिपोर्ट में किया जिक्र

ईटीवी भारत पर पर्यावरणविद् अनिल जोशी.

देहरादूनः उत्तराखंड के जोशीमठ में दरार से उपजे हालात से सभी वाकिफ हैं. सिर्फ जोशीमठ में ही नहीं बल्कि नैनीताल, टिहरी, रुद्रप्रयाग समेत अन्य जिलों में दरारें दिखाई दे रही है. तमाम एजेंसियां इस बात का अध्ययन कर रही हैं कि आखिर इन दरारों की वजह क्या है? कब तक ये सिलसिला जारी रहने वाला है. इस बीच इन हालातों को पद्मश्री और पद्मभूषण पर्यावरणविद् अनिल प्रकाश जोशी ने सरकारी लापरवाही का नतीजा करार दिया है.

पर्यावरणविद् प्रकाश जोशी बताते हैं कि सबसे बड़ी समस्या इन दरारों की अगर कुछ है तो वो हमारा सिस्टम है. क्योंकि, सरकार ने आज तक यह अध्ययन नहीं किया है कि हमारे पहाड़ कितना दबाव सहन कर सकते हैं? आज तक रूरल नीति नहीं बन पाई है, लेकिन जब शहरों में मकान आदि बनाए जाते हैं तो इसका खूब ध्यान रखा जाता है. जैसे इमारतें किस डिजाइन में बनेगी और कितनी बड़ी बनानी है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों का माहौल क्या है और कितने लोगों का दबाव पहाड़ सहन कर सकते हैं. इस पर आज तक किसी ने काम नहीं किया है.

पहाड़ों में इमारतें खड़ी करना खतरनाक, आने वाले समय में जोशीमठ जैसे हो सकते हैं अन्य जगहों के हालातः उनका कहना है कि जो हालात जोशीमठ के हैं, वो कोई नई बात नहीं है. आने वाले समय में यह हालात कुमाऊं और गढ़वाल के कई इलाकों में पैदा हो सकते हैं. ऐसे में इन पहाड़ों का बारीकी से अध्ययन सरकारों को कराना चाहिए. इस बात को सुनिश्चित करें कि जिन जगहों पर अभी हालात ठीक हैं, वहां पर आगे चलकर अंधाधुंध इमारतें न बनें.

शहर में तब्दील हो रहे गांव, अध्य्यन करना मुनासिब नहीं समझा जाताः अनिल जोशी कहते हैं कि पहले उत्तराखंड के तमाम पहाड़ी इलाकों में गांव तो हुआ करते थे. शहर का तो कोई नामोनिशान नहीं था, लेकिन समय के साथ गांव कब शहरों में तब्दील हो गए. इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया. हर किसी ने विकास और विकास के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारतों को बनाना ही उचित समझा, लेकिन किसी ने भी गांव से शहर में तब्दील होते इन जगहों का अध्ययन नहीं किया. यह भी नहीं जाना कि इसके परिणाम क्या होंगे? इसका एक परिणाम जोशीमठ के रूप में सबके सामने है. जो एक छोटा सा गांव हुआ करता था, अब यह शहर में तब्दील हो गया है.
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उत्तराखंड में भू-कटाव क्यों होता है ज्यादाः दूसरे राज्यों में इस तरह की घटना सामने क्यों नहीं आती, इस सवाल पर अनिल जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड के पास वाटर बॉडी काफी ज्यादा है. हर नगर से एक न एक नदी निकल रही है. जहां पर इतना बड़ा जल स्रोत होगा, वहां पर इस तरह का कटाव भी ज्यादा होगा. उनका कहना है कि अभी तो सिर्फ भू-कटाव हो रहा है. जिस तरह की इमारतें पहाड़ों में बनी है. अगर कोई बड़ा भूकंप आ जाए तो हालात क्या होंगे? इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विकास ढांचागत हो और सभी बातों का अध्ययन उसमें होना चाहिए.

विकास कार्यों में जल्दबाजी बिल्कुल ठीक नहींः हाइड्रो प्रोजेक्ट से क्या ऐसे हालात बन रहे हैं, इस पर जोशी कहते हैं कि आपके डेवलपमेंट प्रोसेस पर सवाल हो सकते हैं, लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में भी पहाड़ हैं. सभी जगहों पर इस तरह के प्रोजेक्ट चल रहे हैं. सभी जगह पर विकास भी हो रहा है, लेकिन हमारे यहां काम होने या शुरू होने पर इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता कि यह काम कितने समय में पूरा होगा. हमारे यहां अंधाधुंध और जल्दबाजी में सब कुछ काम किए जाते हैं. जो सड़क पहाड़ों में वहां के मुताबिक, एक साल में बननी चाहिए, लेकिन उसे 4 महीने के भीतर बनाने की कोशिश की जाती है. उसका असर इस रूप में दिखाई देता है.

जोशीमठ में विरोध पर क्या बोले अनिल जोशीः जोशीमठ में अनिल जोशी का विरोध हुआ था. इतना ही नहीं लोगों ने सरकार का पक्ष लेने का आरोप लगाया था. जिस पर उनका कहना वो भी उत्तराखंड के निवासी हैं. उनका अधिकार है कि वो अपनी बात रख सकें. हर बात में विरोध करना ही किसी बात का समाधान नहीं है. जो लोग उनका विरोध कर रहे हैं, वो करते रहें, लेकिन वो वही बात कह रहे हैं, जो एक उत्तराखंड का निवासी कहना चाहता है.

टिहरी का हुआ था अध्ययन, अब आस-पास के गावों में मंडराया खतराः टिहरी पर बात करते हुए अनिल जोशी बताते हैं कि जब टिहरी बांध बन रहा था, तब सभी बातों को ध्यान में रखा गया था. यही बात अध्ययन में सामने आई थी कि टिहरी के आसपास के इलाके गांव और बांध को कभी भी कोई खतरा नहीं हो सकता, लेकिन प्रकृति अब अपना रूप बदल रही है. इस बदलाव का नतीजा है कि अब टिहरी के आस-पास के गांव में भी इस तरह के हालात बन रहे हैं. इस बात से मुंह मोड़ा नहीं जा सकता है.
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