नई दिल्ली : पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कोरोना काल में होने वाले चुनावों के मद्देनजर चुनाव आयोग की तैयारियों और उनके सामने आने वाली चुनौतियों को लेकर महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ईटीवी भारत के रीजनल न्यूज को-ऑर्डिनेटर सचिन शर्मा से खास बातचीत की.
ओपी रावत ने बताया कि कोविड-19 के मद्देनजर बिहार चुनाव से पहले ही चुनाव आयोग ने सभी दलों से विचार-विमर्श करके कोरोना काल में नामांकन प्रक्रिया, कैंपेनिंग और मतदान प्रक्रिया को लेकर निर्देश जारी कर दिए थे.
चुनाव आयोग ने कोरोना काल में हर मतदान केंद्र पर एक हजार से कम वोटर्स कर दिए थे, जिससे पोलिंग स्टेशन की संख्या भी बढ़ गई थी. बिहार चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने कोविड नियमों की सख्ती से पालन देखने को मिला था. इसी दौरान पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम, पुडुचेरी के आगामी चुनाव में भी वही प्रक्रिया अपनाई जाएगी, जो बिहार में अपनाई गई थी.
केंद्रीय चुनाव आयोग, राज्य चुनाव आयोग और राज्य के अधिकारियों के बीच सामंजस्य को लेकर ओपी रावत ने बताया कि भारत निर्वाचन आयोग संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत बना है. वहीं, राज्य निर्वाचन आयोग संशोधन के बाद बहुत बाद में बना है. दोनों के कार्यक्षेत्र बिल्कुल अलग है, और दोनों में किसी भी प्रकार का कोई ओवरलेप नहीं है.
भारत निर्वाचन आयोग की मशीनरी राज्यों में मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी होते हैं, जिनके अधीन पूरा अमला होता है, जिनकी राज्यों में चुनाव करवाने की जिम्मेदारी होती है. जिलों में जिला चुनाव अधिकारी होते हैं, जिसने अधीन एसडीएम आते हैं, पूरी मशीनरी शासकीय अधिकारियों की बनी होती है. अधिसूचना जारी होते ही सभी चुनाव करवाने में जुट जाते हैं.
चुनाव प्रक्रिया में गुणात्मक सुधार और प्रवासी मजदरों के वोट के सवाल पर ओपी रावत ने कहा कि प्रवासी मजदूरों और एनआरआई को लेकर चुनाव आयोग ने सरकार को ई-बैलेट का सुझाव भेजा है. जिसकी प्रक्रिया अभी अधिसूचित नहीं हुई है.
प्रत्याशियों द्वारा क्राइम रिकॉर्ड को अखबारों में प्रकाशित करने के सवाल पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि इस तरह के नियम का पहली बार बिहार चुनाव में क्रियान्वयन नहीं हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने बहुत पहले इस पर फैसला दिया था. कोर्ट ने राजनीति में अपराधीकरण को समाप्त करने के उद्देश्य से इसके क्रियान्वयन पर फैसला दिया था.
सेवा विस्तार के सवाल पर ओपी रावत ने कहा कि चुनाव आयोग में ऐसा माना जाता है कि ईवीएम के मामले देख रहे डिप्टी इलेक्शन कमिश्नर बहुत महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं. क्योंकि उन्हीं को अदालत में रिपोर्ट पेश करना पड़ता है. राजनीतिक पार्टियों का विश्वास अर्जित करने के लिए उन्हीं को सब कुछ बताना पड़ता है. ऐसे में चुनाव आयोग ऐसे व्यक्ति के सेवा विस्तार की अनुशंसा करता है और भारत सरकार इस अनुरोध को स्वीकार कर नोटिफिकेशन जारी कर देती है. हालांकि, चुनाव आयोग में जो अधिकारी आते हैं वो निश्चित समयावधि के लिए आते हैं. उनकी राजनीतिक निष्पक्षता को देखकर ही उनका चयन किया जाता है.
उत्तर प्रदेश कैडर के रिटायर्ड आईएएस अफसर और वर्तमान में केंद्रीय चुनाव आयोग के डिप्टी इलेक्शन कमिश्नर उमेश सिन्हा के सेवा विस्तार के सवाल पर ओपी रावत ने कहा कि ये मेरे समय में सीनियर डिप्टी इलेक्शन कमिश्नर थे. प्लानिंग और एडमिनिस्ट्रेशन के सभी काम देखते थे. इनके कार्य की निष्पक्षता पर किसी भी प्रकार का संदेह नहीं किया जा सकता है. कोविड ऐसी परिस्थितियां पैदा कर चुका था, जिसके बाद चुनाव प्रक्रिया में परिवर्तन के साथ रेगुलेशन लागू करना था, और ये भी देखना था कि चुनाव के कारण संक्रमण न फैले. इन सभी चिंताओं को ध्यान में रखकर ही चुनाव आयोग ने उन्हें एक साल का एक्सटेंशन दिया.
वहीं, पूर्व इलेक्शन कमिश्नर अशोक लवासा के 2020 में इस्तीफे के बाद एशियाई विकास बैंक (ADB) में वाइस प्रेसिडेंट बनाए जाने को लेकर ओपी रावत ने बताया कि एशियाई विकास बैंक का पद इतना महत्वपूर्ण है कि उसमें बिना आवेदन के किसी का चयन हो ही नहीं सकता है. आवेदन, इंटरव्यू, पर्सनैलिटी डिस्कशन और भागीदारी के बाद ही एशियाई विकास बैंक में चयन होता है.
चुनाव प्रकिया को लेकर ओपी रावत ने आश्वस्त किया कि पूरी चुनावी प्रक्रिया में ईवीएम, वीवीपैट और चुनाव नियमों का पालन कराने वाले अधिकारी पूरी निष्पक्षता के साथ चुनाव कराने की कोशिश करते हैं.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता अपने नंबर बढ़ाने के लिए बिना किसी प्रमाण के कई तरह के आरोप लगाते हैं. साथ ही चुनाव प्रकिया पर सवाल उठाते हैं. आरोपों पर चुनाव आयोग की जांच के बाद जब बता दिया जाता है कि आरोपों की कोई प्रमाणिकता नहीं है, जिसके बाद पार्टियां भी अंतिम परिणामों को स्वीकार कर लेती हैं.
कौन है ओपी रावत ?
ओपी रावत 1977 में आईएएस में शामिल हुए और दिसंबर 2013 में भारत सरकार के सचिव, भारी उद्योग मंत्रालय के रूप में सेवानिवृत्त हुए. अगस्त, 2015 को वे भारतीय चुनाव आयोग में आयुक्त के रूप में शामिल हुए और जनवरी 2018 में भारत के 22 वें मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में उन्होंने कार्यभार संभाला. वर्तमान में वे सर्वोच्च न्यायालय की कमेटी फॉर कंटेंट रेगुलेशन ऑफ गवर्नमेंट एडवरटाइजिंग (CCRGA) के अध्यक्ष हैं. लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए उन्हें 2008-09 में प्रधानमंत्री का पुरस्कार मिल चुका है.