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अफगानिस्तान में नई सरकार बनाने में जुटा तालिबान: पूर्व राजदूत मुखोपाध्याय

अफगानिस्तान, सीरिया और म्यांमार में रहे भारत के पूर्व राजदूत ने कहा कि अच्छी स्थिति तब होगी जब अफगानिस्तान अपनी बातों को लेकर गंभीर रहे और एक समावेशी सरकार का गठन करे. उन्होंने कहा कि इस सरकार में विभिन्न राजनीतिक और जातीय समुदायों को भी शामिल किया जाना चाहिए और उन्हें वास्तविक शक्तियां भी प्रदान करनी होंगी.

पूर्व राजदूत मुखोपाध्याय से ईटीवी भारत की विशेष बातचीत
पूर्व राजदूत मुखोपाध्याय से ईटीवी भारत की विशेष बातचीत
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Published : Sep 3, 2021, 8:07 AM IST

नई दिल्ली: अफगानिस्तान में शुरुआत बहुत अच्छी नहीं है. मैं काबुल में उस समय उत्तरी गठबंधन में काबुल के पतन के एक सप्ताह बाद नवंबर 2001 में काबुल में भारतीय दूतावास को फिर से खोलना चाहता हूं, जिसे यूएस सीआई गुर्गों द्वारा समर्थित किया गया था. उस समय रमजान के दौरान काबुल में शांति थी. लोग बहुत खुश थे कि तालिबान को बेदखल कर दिया गया था और एक नई सरकार बनने जा रही थी, जो एक स्वतंत्र सरकार बनने जा रही थी. ये बातें अफगानिस्तान, सीरिया और म्यांमार में भारत के पूर्व राजदूत गौतम मुखोपाध्याय ने ईटीवी भारत से विशेष इंटरव्यू में कहीं.

बता दें, मुखोपाध्याय न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में सामाजिक विकास पर सलाहकार के रूप में भी काम कर चुके हैं और कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में एक विजिटिंग स्कॉलर भी रहे हैं. ईटीवी भारत से उन्होंने कहा कि अगर मैं अफगानिस्तान में वर्तमान हालातों की बात करुं तो अमेरिकी सैनिक हिंसक थे. उन्होंने कहा कि काबुल हवाई अड्डे पर दो बड़े पैमाने पर हमले हुए, जिसमें 170 अफगान और 13 अमेरिकी सैनिकों समेत 100 से अधिक लोग मारे गए. जो अच्छा नहीं है.

पूर्व राजदूत मुखोपाध्याय से ईटीवी भारत की विशेष बातचीत

मुखोपाध्याय ने आगे कहा कि ऐसा लगता है कि हम और भी अधिक गंभीर हिंसा की स्थिति में आ रहे हैं, जिसे हमने अब तक विभिन्न चरमपंथी कट्टरपंथी, आतंकवादी संगठनों के रूप में देखा है, जो तालिबान समूह का हिस्सा रहे हैं. इन्हें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई(ISI) का भी समर्थन प्राप्त है. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि वे सभी अफगानिस्तान को अपनी जीत के रंगमंच के रूप में देखते हैं और आगे के हमलों के लिए उत्साहित होते रहेंगे.

अफगानिस्तान, सीरिया और म्यांमार में रहे भारत के पूर्व राजदूत ने कहा कि अच्छी स्थिति तब होगी जब अफगानिस्तान अपनी बातों को लेकर गंभीर रहे और एक समावेशी सरकार का गठन करे. उन्होंने कहा कि इस सरकार में विभिन्न राजनीतिक और जातीय समुदायों को भी शामिल किया जाना चाहिए और उन्हें वास्तविक शक्तियां भी प्रदान करनी होंगी. तब हम शांति प्रकिया की आशा कर सकते हैं.

पूर्व राजदूत मुखोपाध्याय ने बताया कि हालांकि मैं इसके बारे में बहुत आशावादी नहीं हूं और मैं यह नहीं कहूंगा कि आगे और खराब स्थिति होगी. मुझे संदेह है कि क्या तालिबान शांति और स्थिरता प्रदान करने में सक्षम होगा क्योंकि ये ऐसी चीजें हैं जो अफगान सबसे ज्यादा चाहते हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में भय, अनिश्चितता का माहौल है. बता दें, 20 साल के बाद तालिबान अफगानिस्तान दोबारा लौटे हैं.

अफगानिस्तान में विशेष रूप से महिलाएं अपने भविष्य को लेकर काफी डरी हुई हैं. कई लोग चिंतित हैं कि तालिबान उनके काम और शिक्षा के अधिकार को छीन लेंगे. ये लोग कई विदेशी ताकतों का समर्थन करने के लिए उत्पीड़न और सजा से भी डरते हैं. ईटीवी भारत से पूर्व राजदूत ने कहा कि दो दशकों के बाद तालिबान की अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी हुई है. उन्होंने कहा कि दुनिया अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर फैली त्रासदी को देख रही है और इस बात की आशंका है कि आगे अभी सबसे बुरा होना बाकी है.

इस बीच, कुछ जगहों पर अपने प्रभुत्व को कायम रखने के लिए पंजशीर और तालिबानियों के बीच अभी भी जंग जारी है. वहीं, बुधवार को नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट ने कहा कि तालिबान के साथ उनकी वार्ता विफल होने के बाद से वे लड़ाई जारी रखेंगे. विद्रोही समूह ने विशेष रूप से पंजशीर घाटी के क्षेत्रों में इंटरनेट और आवश्यक आपूर्ति को भी बंद कर दिया है, जो अफगानिस्तान का एकमात्र क्षेत्र है, जहां तालिबान का नियंत्रण नहीं है.

इससे पहले प्रतिरोध बलों ने एक ट्वीट करते हुए लिखा कि पंजशीर प्रांत के चकरिनोव जिले में राष्ट्रीय प्रतिरोध बल ने घात लगाकर हमला किया. जिसमें तालिबान के 13 सदस्य मारे गए और उनका एक टैंक नष्ट हो गया. इसके अलावा पूर्व राजदूत मुखोपाध्याय ने कहा कि पंजशीर एक बहुत ही संरक्षित और बहुत ही कठिन घाटी है जिसे तालिबान तोड़ना चाहता है, लेकिन इसे तोड़ना इतना आसान नहीं है.

उन्होंने कहा कि पंजशीर बहुत ही भाग्यशाली लोग हैं, जो आज अफगानिस्तान में भाग्यशाली नेताओं जैसे उप राष्ट्रपति अब्दुल्ला सालेह और अहमद मसूद के बेटे अहमद मसूद के नेतृत्व में काम कर रहे हैं. पंजशीर केवल पंजशीर के लिए नहीं बल्कि एक स्वतंत्र और पूरे अफगानिस्तान के लिए विचार का प्रतिरोध है, जिसका प्रतिनिधित्व पहले इस्लामी गणराज्य द्वारा किया गया था, जिसमें खामियां थीं, लेकिन अधिकांश अफगानों ने इनको खामियों के साथ पसंद किया.

पंजशीर अफगान लोगों के कई राजनीतिक मानवाधिकारों का प्रतिनिधित्व करता है और यह केवल शुरुआत है. हम इसके बढ़ने की उम्मीद कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि सैन्य रूप से वे एक बुरी स्थिति में हैं क्योंकि 1996 से लेकर 2001 तक अहमद शाह मसूद ताजिकिस्तान के लिए एक रास्ता बनाए रखने में सक्षम थे.

नई दिल्ली: अफगानिस्तान में शुरुआत बहुत अच्छी नहीं है. मैं काबुल में उस समय उत्तरी गठबंधन में काबुल के पतन के एक सप्ताह बाद नवंबर 2001 में काबुल में भारतीय दूतावास को फिर से खोलना चाहता हूं, जिसे यूएस सीआई गुर्गों द्वारा समर्थित किया गया था. उस समय रमजान के दौरान काबुल में शांति थी. लोग बहुत खुश थे कि तालिबान को बेदखल कर दिया गया था और एक नई सरकार बनने जा रही थी, जो एक स्वतंत्र सरकार बनने जा रही थी. ये बातें अफगानिस्तान, सीरिया और म्यांमार में भारत के पूर्व राजदूत गौतम मुखोपाध्याय ने ईटीवी भारत से विशेष इंटरव्यू में कहीं.

बता दें, मुखोपाध्याय न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में सामाजिक विकास पर सलाहकार के रूप में भी काम कर चुके हैं और कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में एक विजिटिंग स्कॉलर भी रहे हैं. ईटीवी भारत से उन्होंने कहा कि अगर मैं अफगानिस्तान में वर्तमान हालातों की बात करुं तो अमेरिकी सैनिक हिंसक थे. उन्होंने कहा कि काबुल हवाई अड्डे पर दो बड़े पैमाने पर हमले हुए, जिसमें 170 अफगान और 13 अमेरिकी सैनिकों समेत 100 से अधिक लोग मारे गए. जो अच्छा नहीं है.

पूर्व राजदूत मुखोपाध्याय से ईटीवी भारत की विशेष बातचीत

मुखोपाध्याय ने आगे कहा कि ऐसा लगता है कि हम और भी अधिक गंभीर हिंसा की स्थिति में आ रहे हैं, जिसे हमने अब तक विभिन्न चरमपंथी कट्टरपंथी, आतंकवादी संगठनों के रूप में देखा है, जो तालिबान समूह का हिस्सा रहे हैं. इन्हें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई(ISI) का भी समर्थन प्राप्त है. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि वे सभी अफगानिस्तान को अपनी जीत के रंगमंच के रूप में देखते हैं और आगे के हमलों के लिए उत्साहित होते रहेंगे.

अफगानिस्तान, सीरिया और म्यांमार में रहे भारत के पूर्व राजदूत ने कहा कि अच्छी स्थिति तब होगी जब अफगानिस्तान अपनी बातों को लेकर गंभीर रहे और एक समावेशी सरकार का गठन करे. उन्होंने कहा कि इस सरकार में विभिन्न राजनीतिक और जातीय समुदायों को भी शामिल किया जाना चाहिए और उन्हें वास्तविक शक्तियां भी प्रदान करनी होंगी. तब हम शांति प्रकिया की आशा कर सकते हैं.

पूर्व राजदूत मुखोपाध्याय ने बताया कि हालांकि मैं इसके बारे में बहुत आशावादी नहीं हूं और मैं यह नहीं कहूंगा कि आगे और खराब स्थिति होगी. मुझे संदेह है कि क्या तालिबान शांति और स्थिरता प्रदान करने में सक्षम होगा क्योंकि ये ऐसी चीजें हैं जो अफगान सबसे ज्यादा चाहते हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में भय, अनिश्चितता का माहौल है. बता दें, 20 साल के बाद तालिबान अफगानिस्तान दोबारा लौटे हैं.

अफगानिस्तान में विशेष रूप से महिलाएं अपने भविष्य को लेकर काफी डरी हुई हैं. कई लोग चिंतित हैं कि तालिबान उनके काम और शिक्षा के अधिकार को छीन लेंगे. ये लोग कई विदेशी ताकतों का समर्थन करने के लिए उत्पीड़न और सजा से भी डरते हैं. ईटीवी भारत से पूर्व राजदूत ने कहा कि दो दशकों के बाद तालिबान की अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी हुई है. उन्होंने कहा कि दुनिया अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर फैली त्रासदी को देख रही है और इस बात की आशंका है कि आगे अभी सबसे बुरा होना बाकी है.

इस बीच, कुछ जगहों पर अपने प्रभुत्व को कायम रखने के लिए पंजशीर और तालिबानियों के बीच अभी भी जंग जारी है. वहीं, बुधवार को नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट ने कहा कि तालिबान के साथ उनकी वार्ता विफल होने के बाद से वे लड़ाई जारी रखेंगे. विद्रोही समूह ने विशेष रूप से पंजशीर घाटी के क्षेत्रों में इंटरनेट और आवश्यक आपूर्ति को भी बंद कर दिया है, जो अफगानिस्तान का एकमात्र क्षेत्र है, जहां तालिबान का नियंत्रण नहीं है.

इससे पहले प्रतिरोध बलों ने एक ट्वीट करते हुए लिखा कि पंजशीर प्रांत के चकरिनोव जिले में राष्ट्रीय प्रतिरोध बल ने घात लगाकर हमला किया. जिसमें तालिबान के 13 सदस्य मारे गए और उनका एक टैंक नष्ट हो गया. इसके अलावा पूर्व राजदूत मुखोपाध्याय ने कहा कि पंजशीर एक बहुत ही संरक्षित और बहुत ही कठिन घाटी है जिसे तालिबान तोड़ना चाहता है, लेकिन इसे तोड़ना इतना आसान नहीं है.

उन्होंने कहा कि पंजशीर बहुत ही भाग्यशाली लोग हैं, जो आज अफगानिस्तान में भाग्यशाली नेताओं जैसे उप राष्ट्रपति अब्दुल्ला सालेह और अहमद मसूद के बेटे अहमद मसूद के नेतृत्व में काम कर रहे हैं. पंजशीर केवल पंजशीर के लिए नहीं बल्कि एक स्वतंत्र और पूरे अफगानिस्तान के लिए विचार का प्रतिरोध है, जिसका प्रतिनिधित्व पहले इस्लामी गणराज्य द्वारा किया गया था, जिसमें खामियां थीं, लेकिन अधिकांश अफगानों ने इनको खामियों के साथ पसंद किया.

पंजशीर अफगान लोगों के कई राजनीतिक मानवाधिकारों का प्रतिनिधित्व करता है और यह केवल शुरुआत है. हम इसके बढ़ने की उम्मीद कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि सैन्य रूप से वे एक बुरी स्थिति में हैं क्योंकि 1996 से लेकर 2001 तक अहमद शाह मसूद ताजिकिस्तान के लिए एक रास्ता बनाए रखने में सक्षम थे.

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