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प्रभु राम की अयोध्या वापसी पर घर-घर मनी थी दिवाली, देखें साक्ष्य

14 वर्षों के वनवास के बाद भगवान राम की अयोध्या वापसी से जुड़ी एक दुर्लभ प्रतिमा प्रयागराज के इलाहाबाद संग्रहालय में सहेज कर रखी गयी है. हजारों वर्ष पुरानी इस प्रतिमा में लंका विजय के बाद भगवान राम की वापसी के दृश्य को उकेरा गया है.

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Published : Nov 18, 2020, 3:05 PM IST

Lord Ram statue in Prayagraj
प्रयागराज में भगवान राम की प्रतिमा

प्रयागराज : रावण का वध कर माता सीता को मुक्त कराने के बाद भगवान राम की अयोध्या वापसी से जुड़ी एक दुर्लभ प्रतिमा इलाहाबाद संग्रहालय में साक्ष्य के तौर पर सहेज कर रखी गई है. 1500 वर्ष पुरानी पांचवीं शताब्दी की इस प्रतिमा में भगवान राम के साथ लक्ष्मण, माता सीता, हनुमान और वानरों को दिखाया गया है.

गुप्तकालीन युग का बताया गया

धनुष बाण लिए प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण की इस प्रतिमा को कार्बन डेटिंग के आधार पर गुप्तकालीन युग का बताया गया है. भगवान राम की अभय मुद्रा होने की वजह से भी इस प्रतिमा को अयोध्या वापसी के मूर्तिशिल्प के तौर पर जाना जाता है. सीता का पता लगाने और लंका पर विजय प्राप्त करने में अहम भूमिका निभाने वाले राम भक्त हनुमान की प्रतिमा भी अभयमुद्रा में है. प्रतिमा में पौधे और फूलों के शिल्प भी दर्शाए गए हैं. इससे पता चलता है कि भगवान राम लंका को जीतने के बाद इसी वन शृंखला से होकर अयोध्या पहुंचे थे.

इलाहाबाद संग्रहालय में साक्ष्य के तौर पर सहेज कर रखी गई है दुर्लभ प्रतिमा.

भगवान राम की वापसी की पहली सूचना

इलाहाबाद संग्रहालय में रखी शृंगवेरपुर के पुरातात्विक स्थल से प्राप्त यह भगवान राम की इकलौती और दुर्लभ प्रतिमा है. इस प्रतिमा में लंका विजय के बाद भगवान राम की वापसी के दृश्य को उकेरा गया है. भगवान राम की वापसी की पहली सूचना जब नंदीग्राम में रह रहे भरत को दी गई थी, तब के प्रसंगों को तुलसीदास ने भी रामचरित मानस की चौपाई में लिपिबद्ध किया है. शत्रु को जीतने के बाद सीता और भाई लक्ष्मण के साथ भगवान राम की वापसी के सबसे दुर्लभ और खुशी के क्षणों के भावों को इस प्रतिमा में अभिव्यक्त किया गया है.

पढ़ें: श्रीकृष्ण जन्मभूमि मालिकाना हक मामले में आज होगी सुनवाई

भगवान राम की वापसी के मिलते हैं प्रमाण

संग्रहालय के निदेशक डॉ. सुनील गुप्ता के मुताबिक शृंगवेरपुर पुरातात्विक स्थल से प्राप्त इस प्रतिमा में भगवान राम की वापसी के प्रमाण मिलते हैं. भगवान राम की वापसी की जानकारी मिलने के बाद ही अयोध्या को फूलों, लताओं, रंगोलियों, अल्पनाओं और दीपमालिकाओं से सजाने के भी उल्लेख मिलते हैं. भगवान राम की वापसी के दृश्यों को मूर्तिशिल्प के जरिए स्मृतियों में सहेजने और यादगार बनाने की कोशिश की गई थी.

प्रयागराज : रावण का वध कर माता सीता को मुक्त कराने के बाद भगवान राम की अयोध्या वापसी से जुड़ी एक दुर्लभ प्रतिमा इलाहाबाद संग्रहालय में साक्ष्य के तौर पर सहेज कर रखी गई है. 1500 वर्ष पुरानी पांचवीं शताब्दी की इस प्रतिमा में भगवान राम के साथ लक्ष्मण, माता सीता, हनुमान और वानरों को दिखाया गया है.

गुप्तकालीन युग का बताया गया

धनुष बाण लिए प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण की इस प्रतिमा को कार्बन डेटिंग के आधार पर गुप्तकालीन युग का बताया गया है. भगवान राम की अभय मुद्रा होने की वजह से भी इस प्रतिमा को अयोध्या वापसी के मूर्तिशिल्प के तौर पर जाना जाता है. सीता का पता लगाने और लंका पर विजय प्राप्त करने में अहम भूमिका निभाने वाले राम भक्त हनुमान की प्रतिमा भी अभयमुद्रा में है. प्रतिमा में पौधे और फूलों के शिल्प भी दर्शाए गए हैं. इससे पता चलता है कि भगवान राम लंका को जीतने के बाद इसी वन शृंखला से होकर अयोध्या पहुंचे थे.

इलाहाबाद संग्रहालय में साक्ष्य के तौर पर सहेज कर रखी गई है दुर्लभ प्रतिमा.

भगवान राम की वापसी की पहली सूचना

इलाहाबाद संग्रहालय में रखी शृंगवेरपुर के पुरातात्विक स्थल से प्राप्त यह भगवान राम की इकलौती और दुर्लभ प्रतिमा है. इस प्रतिमा में लंका विजय के बाद भगवान राम की वापसी के दृश्य को उकेरा गया है. भगवान राम की वापसी की पहली सूचना जब नंदीग्राम में रह रहे भरत को दी गई थी, तब के प्रसंगों को तुलसीदास ने भी रामचरित मानस की चौपाई में लिपिबद्ध किया है. शत्रु को जीतने के बाद सीता और भाई लक्ष्मण के साथ भगवान राम की वापसी के सबसे दुर्लभ और खुशी के क्षणों के भावों को इस प्रतिमा में अभिव्यक्त किया गया है.

पढ़ें: श्रीकृष्ण जन्मभूमि मालिकाना हक मामले में आज होगी सुनवाई

भगवान राम की वापसी के मिलते हैं प्रमाण

संग्रहालय के निदेशक डॉ. सुनील गुप्ता के मुताबिक शृंगवेरपुर पुरातात्विक स्थल से प्राप्त इस प्रतिमा में भगवान राम की वापसी के प्रमाण मिलते हैं. भगवान राम की वापसी की जानकारी मिलने के बाद ही अयोध्या को फूलों, लताओं, रंगोलियों, अल्पनाओं और दीपमालिकाओं से सजाने के भी उल्लेख मिलते हैं. भगवान राम की वापसी के दृश्यों को मूर्तिशिल्प के जरिए स्मृतियों में सहेजने और यादगार बनाने की कोशिश की गई थी.

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