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तीसरी लहर के बीच पांच राज्यों में चुनाव, मगर 'कोरोना से मौत' नहीं बना मुद्दा - यूपी विधानसभा चुनाव 2022

पिछले साल कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मौतों की भयावह तस्वीरें सामने आई थीं. ऑक्सीजन के लिए जूझते लोगों की कहानियों से अखबार भरे पड़े थे. शहरों से गांवों की ओर लोग पैदल जा रहे थे. इस घटना के करीब 10 महीने बाद पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, अभी तक हुए चुनाव प्रचार में किसी भी राजनीतिक दल ने कोरोना से हुई मौतों पर चर्चा नहीं की है. जानिए चुनाव में क्यों नहीं हो रही है कोरोना से मौतों पर बात.

Elections in five states
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Published : Feb 14, 2022, 5:43 PM IST

नई दिल्ली : 14 फरवरी को जब तीन राज्यों में वोटिंग हो रही थी, उससे एक दिन पहले देश में कोरोना के 34 हजार 113 नए मामलों की पुष्टि हुई है. 13 फरवरी तक भारत में पॉजिटिविटी रेट 3.19 प्रतिशत पहुंच गई थी. सवाल यह है कि यह चुनाव कोरोना की दूसरी लहर के बाद और तीसरी लहर के बीच शुरू हुए थे. मगर इन विधानसभा चुनाव में कोरोना मुद्दा नहीं बना.

दूसरी लहर में मौतों को मुद्दा नहीं बना रहा है विपक्ष : भारत में कोरोना से अब तक करीब 5.09 लाख लोगों की मौत हो चुकी है. 2021 के अप्रैल-मई में देश में कोरोना की दूसरी लहर आई थी. तब लोग ऑक्सीजन के लिए भटक रहे थे. उस दौरान कई विपक्षी दलों ने दावा किया था कि कोरोना महामारी से देश में 30 लाख लोगों की मौत हुई थी. हालांकि बीजेपी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने साफ किया था आंकड़ों से संबंधी खबरें विपक्ष के दावे भ्रामक हैं और इनका कोई आधार नहीं है. भारत सरकार ने पिछले साल कहा था कि कोरोना की शुरुआती दो लहरों में 4 लाख 21 हजार मौतें हुई हैं. इसके अलावा लाखों लोगों को लॉकडाउन में पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा था.

Elections in five states
2021 में लॉकडाउन के दौरान मुंबई के रेलवे स्टेशन पर उमड़ी थी भीड़.

इसके बाद प्रयागराज समेत यूपी के कई जिलों में शवों के नदी के बहने की घटना भी सामने आई. तब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने बीजेपी सरकार को घेरा था. अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने रेत में दफन लाशों की तस्वीरें छापी थीं. 2021 में मौतों पर विपक्ष का रुख देखकर यह माना जा रहा था कि विधानसभा चुनाव में कोरोना और इससे होने वाली मौतों को गैर बीजेपी दल जरूर उछालेंगे और वोटिंग में यह बड़ा फैक्टर बनेगा. मगर अभी तक कोरोना को लेकर बीजपी खामोश है तो विपक्ष भी जाति संतुलन साधने में व्यस्त है.

Elections in five states
यूपी में उन्नाव और प्रयागराज में कई इलाकों पर शव रेत में दफन किए थे.

संसद के बजट सत्र में कांग्रेस ने कोरोना से मौत का मुद्दा नहीं उठाया, बल्कि इसके दूसरे पहलुओं पर बात की. उसने पलायन और बेरोजगारी को फोकस में रखा. स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी के कारण मौत का जिक्र किसी राजनीतिक दल ने नहीं किया. इसके विपरीत बीजेपी रिकॉर्ड वैक्सीनेशन के लिए अपना पीठ थपथपा रही है.

कोरोना से मौतों पर चुनाव में चर्चा क्यों नहीं?

  • पंजाब और उत्तरप्रदेश के चुनाव में किसान आंदोलन हावी हो गया. दिसंबर में खत्म हुए किसान आंदोलन से जुड़े संगठनों ने पंजाब की चुनाव राजनीति में शामिल होने का ऐलान कर दिया. पहले फेज में पश्चिमी हिस्से में वोटिंग हुई थी, इस कारण कांग्रेस, आरएलडी और समाजवादी पार्टी ने किसानों के मुद्दे को हवा दी. इसके जवाब में बीजेपी ने कैराना को मुद्दा बनाया. इस खेल में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुईं मौतों का जिक्र भी नहीं हुआ.
  • बीजेपी ने कोरोना के दौरान लॉकडाउन में शुरू की गई योजनाओं को अपनी उपलब्धियों का हिस्सा बनाया तो विपक्ष ने रणनीति के तौर पर इस मुद्दे से दूरी बनानी शुरू कर दी. मुफ्त वैक्सीनेशन के दावे ने भी मौतों के सवाल को दरकिनार कर दिया.
  • कोरोना के दौरान सबसे अधिक मौतें केरल, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात में हुई थी, इसलिए दूसरे चुनावी राज्यों पंजाब, मणिपुर और गोवा में कोरोना से मौत चुनावी मुद्दा नहीं बन सकी.
  • कोरोना से मौत सिर्फ बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश में नहीं, बल्कि कांग्रेस शासित राज्यों में हुई थी. अगर मौतों का सवाल चुनाव में गरमाता तो आरोप-प्रत्यारोप में उन राज्यों की आलोचना होने की गुंजाइश थी. इस मजबूरी में कांग्रेस ने कोरोना से किनारा कर लिया.
  • चुनाव आयोग के रैलियों और सभाओं पर प्रतिबंध के कारण नेता इस भावनात्मक मुद्दे को उछाल नहीं सके. डिजिटल प्रचार में थोड़ा-बहुत कोरोना पर बात हुई, जो जमीन पर आम आदमी तक नहीं पहुंच सकी.
  • किसी भी राज्य सरकार ने अभी तक यह नहीं माना है कि ऑक्सीजन से कमी से उनके राज्य में मौत हुई थी.
  • लॉकडाउन के दौरान पलायन करने वाले परिवारों ने तब उन राज्यों के शासन के प्रति नाराजगी दिखाई थी, जहां से वह काम-धंधा छोड़कर आए थे. चुनाव के दौर में ऐसे नाराज वोटर रोजी-रोटी के लिए फिर से दूसरे राज्यों में जा चुके हैं.

एक्सपर्ट मानते हैं कि भले ही राजनीतिक दल कोरोना से मौत को मुद्दा नहीं बनाए, मगर जिन परिवारों में मौतें हुई हैं, वह इस आधार पर फैसला जरूर करेंगे. इसका असर वोटिंग में दिखेगा, चुनाव प्रचार में नहीं.

बता दें कि कोरोना की तीसरी लहर के कारण चुनाव आयोग ने शुरुआत में रैलियों और जनसभाओं पर प्रतिबंध लगाए थे. फरवरी के पहले सप्ताह में चुनाव आयोग ने थोड़ी राहत दी. आयोग ने इनडोर मीटिंग के लिए 50 फीसद और बाहरी रैलियों के लिए 30 फीसदी क्षमता की अनुमति दी. हालांकि पदयात्रा, रोड शो और वाहन रैलियों पर रोक जारी रही. 20 व्यक्तियों के साथ डोर टु डोर कैंपेन की अनुमति दी है.

पढ़ें : जानिए, उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव में जीत बीजेपी के लिए जरूरी क्यों है

नई दिल्ली : 14 फरवरी को जब तीन राज्यों में वोटिंग हो रही थी, उससे एक दिन पहले देश में कोरोना के 34 हजार 113 नए मामलों की पुष्टि हुई है. 13 फरवरी तक भारत में पॉजिटिविटी रेट 3.19 प्रतिशत पहुंच गई थी. सवाल यह है कि यह चुनाव कोरोना की दूसरी लहर के बाद और तीसरी लहर के बीच शुरू हुए थे. मगर इन विधानसभा चुनाव में कोरोना मुद्दा नहीं बना.

दूसरी लहर में मौतों को मुद्दा नहीं बना रहा है विपक्ष : भारत में कोरोना से अब तक करीब 5.09 लाख लोगों की मौत हो चुकी है. 2021 के अप्रैल-मई में देश में कोरोना की दूसरी लहर आई थी. तब लोग ऑक्सीजन के लिए भटक रहे थे. उस दौरान कई विपक्षी दलों ने दावा किया था कि कोरोना महामारी से देश में 30 लाख लोगों की मौत हुई थी. हालांकि बीजेपी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने साफ किया था आंकड़ों से संबंधी खबरें विपक्ष के दावे भ्रामक हैं और इनका कोई आधार नहीं है. भारत सरकार ने पिछले साल कहा था कि कोरोना की शुरुआती दो लहरों में 4 लाख 21 हजार मौतें हुई हैं. इसके अलावा लाखों लोगों को लॉकडाउन में पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा था.

Elections in five states
2021 में लॉकडाउन के दौरान मुंबई के रेलवे स्टेशन पर उमड़ी थी भीड़.

इसके बाद प्रयागराज समेत यूपी के कई जिलों में शवों के नदी के बहने की घटना भी सामने आई. तब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने बीजेपी सरकार को घेरा था. अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने रेत में दफन लाशों की तस्वीरें छापी थीं. 2021 में मौतों पर विपक्ष का रुख देखकर यह माना जा रहा था कि विधानसभा चुनाव में कोरोना और इससे होने वाली मौतों को गैर बीजेपी दल जरूर उछालेंगे और वोटिंग में यह बड़ा फैक्टर बनेगा. मगर अभी तक कोरोना को लेकर बीजपी खामोश है तो विपक्ष भी जाति संतुलन साधने में व्यस्त है.

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यूपी में उन्नाव और प्रयागराज में कई इलाकों पर शव रेत में दफन किए थे.

संसद के बजट सत्र में कांग्रेस ने कोरोना से मौत का मुद्दा नहीं उठाया, बल्कि इसके दूसरे पहलुओं पर बात की. उसने पलायन और बेरोजगारी को फोकस में रखा. स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी के कारण मौत का जिक्र किसी राजनीतिक दल ने नहीं किया. इसके विपरीत बीजेपी रिकॉर्ड वैक्सीनेशन के लिए अपना पीठ थपथपा रही है.

कोरोना से मौतों पर चुनाव में चर्चा क्यों नहीं?

  • पंजाब और उत्तरप्रदेश के चुनाव में किसान आंदोलन हावी हो गया. दिसंबर में खत्म हुए किसान आंदोलन से जुड़े संगठनों ने पंजाब की चुनाव राजनीति में शामिल होने का ऐलान कर दिया. पहले फेज में पश्चिमी हिस्से में वोटिंग हुई थी, इस कारण कांग्रेस, आरएलडी और समाजवादी पार्टी ने किसानों के मुद्दे को हवा दी. इसके जवाब में बीजेपी ने कैराना को मुद्दा बनाया. इस खेल में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुईं मौतों का जिक्र भी नहीं हुआ.
  • बीजेपी ने कोरोना के दौरान लॉकडाउन में शुरू की गई योजनाओं को अपनी उपलब्धियों का हिस्सा बनाया तो विपक्ष ने रणनीति के तौर पर इस मुद्दे से दूरी बनानी शुरू कर दी. मुफ्त वैक्सीनेशन के दावे ने भी मौतों के सवाल को दरकिनार कर दिया.
  • कोरोना के दौरान सबसे अधिक मौतें केरल, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात में हुई थी, इसलिए दूसरे चुनावी राज्यों पंजाब, मणिपुर और गोवा में कोरोना से मौत चुनावी मुद्दा नहीं बन सकी.
  • कोरोना से मौत सिर्फ बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश में नहीं, बल्कि कांग्रेस शासित राज्यों में हुई थी. अगर मौतों का सवाल चुनाव में गरमाता तो आरोप-प्रत्यारोप में उन राज्यों की आलोचना होने की गुंजाइश थी. इस मजबूरी में कांग्रेस ने कोरोना से किनारा कर लिया.
  • चुनाव आयोग के रैलियों और सभाओं पर प्रतिबंध के कारण नेता इस भावनात्मक मुद्दे को उछाल नहीं सके. डिजिटल प्रचार में थोड़ा-बहुत कोरोना पर बात हुई, जो जमीन पर आम आदमी तक नहीं पहुंच सकी.
  • किसी भी राज्य सरकार ने अभी तक यह नहीं माना है कि ऑक्सीजन से कमी से उनके राज्य में मौत हुई थी.
  • लॉकडाउन के दौरान पलायन करने वाले परिवारों ने तब उन राज्यों के शासन के प्रति नाराजगी दिखाई थी, जहां से वह काम-धंधा छोड़कर आए थे. चुनाव के दौर में ऐसे नाराज वोटर रोजी-रोटी के लिए फिर से दूसरे राज्यों में जा चुके हैं.

एक्सपर्ट मानते हैं कि भले ही राजनीतिक दल कोरोना से मौत को मुद्दा नहीं बनाए, मगर जिन परिवारों में मौतें हुई हैं, वह इस आधार पर फैसला जरूर करेंगे. इसका असर वोटिंग में दिखेगा, चुनाव प्रचार में नहीं.

बता दें कि कोरोना की तीसरी लहर के कारण चुनाव आयोग ने शुरुआत में रैलियों और जनसभाओं पर प्रतिबंध लगाए थे. फरवरी के पहले सप्ताह में चुनाव आयोग ने थोड़ी राहत दी. आयोग ने इनडोर मीटिंग के लिए 50 फीसद और बाहरी रैलियों के लिए 30 फीसदी क्षमता की अनुमति दी. हालांकि पदयात्रा, रोड शो और वाहन रैलियों पर रोक जारी रही. 20 व्यक्तियों के साथ डोर टु डोर कैंपेन की अनुमति दी है.

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