ETV Bharat / bharat

कोरोना संक्रमण के दौरान साइटोकाइन स्टॉर्म से जा सकती है मरीज की जान - मायोकार्डियल संक्रमण

देश में डेढ़ साल से कोरोना है. इस दौरान कई लोगों ने अपनों को खोया है. कई लोगों की नौकरी भी चली गई है. हर तरफ कोरोना ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है. न केवल कोरोना आया बल्कि कोरोना कई नई बीमारियों को भी आमंत्रित कर रहा है.

during
during
author img

By

Published : Jun 13, 2021, 12:11 AM IST

मुंबई : इन बीमारियों में मायोकार्डियल संक्रमण जैसी जानलेवा बीमारी के साथ-साथ साइटोकाइन स्टॉर्म भी शामिल हैं. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इस साइटोकाइन की वजह से कई लोगों की मौत हो चुकी है. प्रत्येक व्यक्ति की एक प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली होती है. यह प्राकृतिक तंत्र तब सक्रिय होता है जब कोरोना वायरस शरीर में प्रवेश करता है. इससे कई तरह के बायोकेमिकल बनते हैं. उन रसायनों को साइटोकिन्स कहा जाता है.

डॉ. अविनाश भोंडवे के अनुसार यह साइटोकाइन सिस्टम प्रतिरक्षा प्रणाली को और अधिक आरामदायक बनाता है. कभी-कभी कोरोना के मरीजों में साइटोकिन्स का स्तर नाटकीय रूप से बढ़ जाता है. कभी-कभी यह साइटोकाइन इतना बड़ा हो जाता है कि इसे साइटोकाइन स्टॉर्म कहा जाता है. ये तूफान अक्सर जीवन के लिए खतरा होते हैं. इससे शरीर पर कई तरह के प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं. परिणाम स्वरुप मृत्यु हो सकती है.

डॉ. अविनाश भोंडवे के अनुसार साइटोकिन्स के अच्छे और बुरे दोनों प्रभाव होते हैं. साइटोकाइन स्टॉर्म का मानव शरीर में मस्तिष्क, यकृत, हृदय और गुर्दे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. साइटोकाइन स्टॉर्म बुखार का कारण बनते हैं. कभी-कभी चला गया बुखार दोबारा आ जाता है.

इसके अलावा साइटोकिन स्टॉर्म अक्सर रोगियों में रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ा देते हैं. साइटोकाइन स्टॉर्म मरीज के ऑक्सीजन लेवल को कम कर देता है. इसलिए यह फेफड़ों को प्रभावित करता है और कोरोना के प्रकोप ने ऑक्सीजन का स्तर कम होने से मरीजों के जीवन पर भी असर डाला है.

यह भी पढ़ें-सरकार ने कोरोना की दवाओं, उपकरणों पर GST दरें घटाई

कोरोना के गंभीर लक्षण वाले मरीजों को खतरा है. लगभग 7 प्रतिशत रोगियों को जोखिम होता है. साथ ही 2 से 3 फीसदी मरीज जो कोरोनरी फ्री हो चुके हैं उन्हें इसका खतरा है. डॉ अविनाश भोंडवे ने कहा कि रक्त परीक्षण के बाद इस साइटोकिन तूफान का निदान और उपचार किया जा सकता है.

मुंबई : इन बीमारियों में मायोकार्डियल संक्रमण जैसी जानलेवा बीमारी के साथ-साथ साइटोकाइन स्टॉर्म भी शामिल हैं. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इस साइटोकाइन की वजह से कई लोगों की मौत हो चुकी है. प्रत्येक व्यक्ति की एक प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली होती है. यह प्राकृतिक तंत्र तब सक्रिय होता है जब कोरोना वायरस शरीर में प्रवेश करता है. इससे कई तरह के बायोकेमिकल बनते हैं. उन रसायनों को साइटोकिन्स कहा जाता है.

डॉ. अविनाश भोंडवे के अनुसार यह साइटोकाइन सिस्टम प्रतिरक्षा प्रणाली को और अधिक आरामदायक बनाता है. कभी-कभी कोरोना के मरीजों में साइटोकिन्स का स्तर नाटकीय रूप से बढ़ जाता है. कभी-कभी यह साइटोकाइन इतना बड़ा हो जाता है कि इसे साइटोकाइन स्टॉर्म कहा जाता है. ये तूफान अक्सर जीवन के लिए खतरा होते हैं. इससे शरीर पर कई तरह के प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं. परिणाम स्वरुप मृत्यु हो सकती है.

डॉ. अविनाश भोंडवे के अनुसार साइटोकिन्स के अच्छे और बुरे दोनों प्रभाव होते हैं. साइटोकाइन स्टॉर्म का मानव शरीर में मस्तिष्क, यकृत, हृदय और गुर्दे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. साइटोकाइन स्टॉर्म बुखार का कारण बनते हैं. कभी-कभी चला गया बुखार दोबारा आ जाता है.

इसके अलावा साइटोकिन स्टॉर्म अक्सर रोगियों में रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ा देते हैं. साइटोकाइन स्टॉर्म मरीज के ऑक्सीजन लेवल को कम कर देता है. इसलिए यह फेफड़ों को प्रभावित करता है और कोरोना के प्रकोप ने ऑक्सीजन का स्तर कम होने से मरीजों के जीवन पर भी असर डाला है.

यह भी पढ़ें-सरकार ने कोरोना की दवाओं, उपकरणों पर GST दरें घटाई

कोरोना के गंभीर लक्षण वाले मरीजों को खतरा है. लगभग 7 प्रतिशत रोगियों को जोखिम होता है. साथ ही 2 से 3 फीसदी मरीज जो कोरोनरी फ्री हो चुके हैं उन्हें इसका खतरा है. डॉ अविनाश भोंडवे ने कहा कि रक्त परीक्षण के बाद इस साइटोकिन तूफान का निदान और उपचार किया जा सकता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.