नई दिल्ली : देशभर में जिस तरह से ड्रग्स की डिमांड बढ़ रही है, उसी तरीके से जांच एजेंसी की धरपकड़ में भी तेजी कर रही है, लेकिन आज उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती इंटरनेट पर डार्क वेब इस्तेमाल करने वाले ड्रग्स तस्कर हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि डार्क वेब का 62 फीसदी इस्तेमाल केवल ड्रग्स तस्करी के लिए ही किया जाता है. यहां पर बिना पहचान उजागर किए ड्रग्स के खरीदार और बेचने वाले मिलते हैं. इसलिए जांच एजेंसी के लिए इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है.
एनसीबी के जोनल डायरेक्टर केपीएस मल्होत्रा ने बताया कि ड्रग्स तस्करी के लिए विभिन्न एजेंसियां सख्ती बरत रही हैं. समुद्रों का रूट, बॉर्डर के रूट और हवाई रूट पर भी जांच एजेंसियों की पैनी निगाह रहती हैं. पिछले कुछ समय में ड्रग्स की बड़ी खेप जांच एजेंसियों ने पकड़ी हैं. ऐसे में ड्रग्स तस्करों को इंटरनेट पर डार्क वेब के जरिए तस्करी करना अच्छा लगने लगा है. वहीं, बड़े-छोटे ड्रग्स तस्कर डार्क वेब के जरिए ऑनलाइन काम कर रहे हैं. इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है. अभी जो तथ्य सामने आए हैं, उससे पता चलता है कि डार्क वेब पर 62 काम ड्रग्स तस्करी का हो रहा है.
केपीएस मल्होत्रा ने बताया कि डार्क वेब पर सभी तरह के ड्रग्स आपको एक ही जगह मिल जाते हैं. डार्क वेब पर कुछ तस्कर कोकीन बेच रहे हैं, तो कुछ हेरोइन. कुछ ऐसे भी वेंडर हैं, जो आपको सभी तरह का ड्रग्स मुहैया करवा सकते हैं. यहां पर वेंडर अपने आप को लिस्ट कराते हैं. डार्क नेट पर ऐसे भी वेंडर हैं, जो सभी तरह के ड्रग्स बेचते हैं.
ऐसा भी देखने में आया है कि कई बार छोटे वेंडर बड़े वेंडर से ड्रग्स लेते हैं. ड्रग्स के लिए क्रिप्टो करेंसी के जरिए पेमेंट होती है. यह पेमेंट कुछ समय तक डार्क वेब मालिक के एस्प्रो एकाउंट में रहती है. जैसे-जैसे वेंडर की विश्वसनीयता बढ़ती जाती है, यह रकम उसके पर जाने लगती है.
केपीएस मल्होत्रा ने बताया कि डार्क वेब के जरिए ड्रग्स तस्करी करने वालों को पकड़ना बेहद मुश्किल होता है. इसमें ड्रग्स खरीदने वाले को पकड़ने के कुछ चांस होते हैं, क्योंकि उसे ड्रग्स की डिलीवरी कुरियर से मिल रही है. लेकिन, बेचने वाले को पकड़ना लगभग नामुमकिन होता है. उनके पास कुरियर भेजवाने के बहुत माध्यम है, जिसकी वजह से उन तक पहुंचना मुश्किल होता है.
उन्होंने बताया कि जांच एजेंसी से बचने के लिए डार्क वेब पर सभी खरीदारी क्रिप्टो करेंसी से होती है. अगर वह रुपये या डॉलर में ट्रांजेक्शन करेंगे तो इससे उनकी पहचान सामने आ सकती है. इसलिए वहां केवल क्रिप्टो करेंसी का ही इस्तेमाल होता है.
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क्या होता है डार्क वेब
इंटरनेट पर डार्क नेट एक ऐसी काली दुनिया है, जहां हर कोई नहीं जा सकता. डार्क वेब एक तरह का काला बाजार है, जहां पर सभी गलत गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है. बेचने वाला हो या खरीदार, दोनों ही एक-दूसरे से अनजान होते हैं. यह गूगल या किसी अन्य सर्च इंजन के माध्यम से नहीं मिलता. कौन इसका इस्तेमाल कर रहा है, इसका पता नहीं चलता. सबसे महत्वपूर्ण बात करें तो इसमें सभी छिपे रहते हैं. यह किसी सर्वर पर नहीं होता. इसलिए उन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल है.