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संसद-विधानसभाओं में अनुशासन व गरिमापूर्ण माहौल बनाए रखने की जरूरत : ओम बिरला

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसदीय कार्यवाही में रुकावट और हंगामे की निंदा करते हुए शुक्रवार को सांसदों और विधायिका के सदस्यों के व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में लोगों का सम्मान पाने के लिए अनुशासित और गरिमापूर्ण व्यवहार पर जोर दिया.

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Published : Sep 24, 2021, 8:30 PM IST

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बेंगलुरू : लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कर्नाटक विधानमंडल द्वारा आयोजित विषय लोकतंत्र : संसदीय मूल्यों की सुरक्षा पर अपने संबोधन में कहा कि संसद और देशभर की विधानसभाओं में अनुशासन, सम्मान और गरिमा बनाए रखने की जरूरत है.

कर्नाटक विधानमंडल में अपने संबोधन में बिरला ने कहा कि इस संबंध में वर्ष 1992, 1997 और 2001 में कई बैठकें हुई थीं. जहां वक्ताओं, प्रधानमंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, संसदीय मामलों के मंत्री और विपक्षी नेताओं ने प्रस्ताव पारित किए थे और अब उन्हें लागू करने का समय आ गया है.

बिरला ने विधानसभा और परिषद की संयुक्त बैठक में कहा कि विधायिकाओं और संसद के सदस्यों से अपने सार्वजनिक और निजी जीवन में गरिमापूर्ण तरीके से व्यवहार करने की अपेक्षा की जाती है ताकि लोग उनसे प्रेरणा ले सकें.

लोकसभा अध्यक्ष ने संसद, विधानसभाओं और परिषदों में हंगामे वाले दृश्यों को लोकतांत्रिक परंपरा के खिलाफ करार दिया और कहा कि इस तरह का व्यवहार लोगों के लिए गलत मिसाल है.

संसद का हालिया सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया था, जिसमें पेगासस और अन्य मुद्दों पर रोजाना शोर-शराबे का माहौल बना रहा और सत्र के दौरान बहुत कम समय कार्यवाही जारी रह सकी.

यह भी पढ़ें-पंजाब में 'सुपर सीएम' पर उठे सवाल, चन्नी की सरकार या सिद्धू हैं 'सरदार'

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत करना और संसदीय परंपराओं को स्थापित करना समय की मांग है क्योंकि लोग चाहते हैं कि उनकी शिकायतों पर चर्चा हो. हमें चर्चा करनी होगी कि हम लोकतंत्र को मजबूत करने में विधायिका की अधिक भागीदारी के लिए कैसे एक कार्ययोजना तैयार कर सकते हैं.

बेंगलुरू : लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कर्नाटक विधानमंडल द्वारा आयोजित विषय लोकतंत्र : संसदीय मूल्यों की सुरक्षा पर अपने संबोधन में कहा कि संसद और देशभर की विधानसभाओं में अनुशासन, सम्मान और गरिमा बनाए रखने की जरूरत है.

कर्नाटक विधानमंडल में अपने संबोधन में बिरला ने कहा कि इस संबंध में वर्ष 1992, 1997 और 2001 में कई बैठकें हुई थीं. जहां वक्ताओं, प्रधानमंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, संसदीय मामलों के मंत्री और विपक्षी नेताओं ने प्रस्ताव पारित किए थे और अब उन्हें लागू करने का समय आ गया है.

बिरला ने विधानसभा और परिषद की संयुक्त बैठक में कहा कि विधायिकाओं और संसद के सदस्यों से अपने सार्वजनिक और निजी जीवन में गरिमापूर्ण तरीके से व्यवहार करने की अपेक्षा की जाती है ताकि लोग उनसे प्रेरणा ले सकें.

लोकसभा अध्यक्ष ने संसद, विधानसभाओं और परिषदों में हंगामे वाले दृश्यों को लोकतांत्रिक परंपरा के खिलाफ करार दिया और कहा कि इस तरह का व्यवहार लोगों के लिए गलत मिसाल है.

संसद का हालिया सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया था, जिसमें पेगासस और अन्य मुद्दों पर रोजाना शोर-शराबे का माहौल बना रहा और सत्र के दौरान बहुत कम समय कार्यवाही जारी रह सकी.

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लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत करना और संसदीय परंपराओं को स्थापित करना समय की मांग है क्योंकि लोग चाहते हैं कि उनकी शिकायतों पर चर्चा हो. हमें चर्चा करनी होगी कि हम लोकतंत्र को मजबूत करने में विधायिका की अधिक भागीदारी के लिए कैसे एक कार्ययोजना तैयार कर सकते हैं.

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