गया : कहते हैं कि भक्ति को किसी तर्क से समझा नहीं जा सकता. ये कथन जिले के जीबी रोड स्थित गौड़ीय मठ में चरितार्थ हो रही है. कोरोना काल में इन दिनों गर्मी के तेवर जारी हैं. गर्मी पांच सालों के रिकाॅर्ड को तोड़ चुकी है. ऐसे में लोग परेशान हैं और गर्मी से बचने के लिए घरों में ही रह रहे हैं. लेकिन गर्मी से सिर्फ आम लोग ही नहीं, बल्कि भगवान भी परेशान हैं. ऐसे में गौड़िय मठ में भगवान को गर्मी से राहत देने के लिए भक्तों ने एसी लगवाया है.
मूर्तियों पर लगाया गया है चंदन का लेप
दरअसल, जिले में पड़ रही गर्मी ने बीते कई सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. गर्मी के इस प्रकोप से आम से लेकर खास सभी प्रभावित हैं. वहीं, इस भीषण गर्मी का असर जिले के गौड़ीय मठ में राधे-कृष्ण की प्रतिमा पर भी देखा जा रहा है. मंदिर में भगवान को भक्ति भाव और बृज परंपरा के अनुसार गर्मी से बचाने के लिए एसी लगवाया गया है. साथ ही भगवान की मूर्तियों पर चंदन का लेप लगाया जा रहा है.
गया में हर साल गर्मी के मौसम में गौड़ीय मठ में भगवान के दरबार मे एसी लगाया जाता है. साथ ही उन्हें गर्मी नहीं लगे, इसके लिए प्रतिमा पर चंदन का लेप लगाया जाता है.
ईटीवी भारत ने इस बारे में गौड़ीय मठ के पुजारी उत्तम श्लोक दास से बात की. उन्होंने बताया कि यह परंपरा नई नहीं है. मंदिर के स्थापना काल से यह परंपरा है. भगवान सेवा खोजते हैं और हम भक्ति भाव से उनकी सेवा करते हैं.
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गौड़ीय मठ के पुजारी उत्तम श्लोक के मुताबिक, इस प्रचंड गर्मी में भगवान को राहत मिले, इसके लिए चंदन का लेप दोपहर में लगाया जाता है. दिन और पूरी रात दरबार में एसी चलता रहता है. भगवान को खास सूती के वस्त्र पहनाए गए हैं और गर्मी से बचाव के लिए मौसमी फल, लस्सी का भोग लगाया जाता है.
उन्होंने बताया कि चंदन ओडिशा के पुरी धाम से लाया जाता है, चंदन को हम लोग खुद पीसकर उससे लेप बनाते हैं. इस लेप को अक्षय तृतीया से लगाने की शुरुआत कर दी जाती है. चंदन के लेप में खुशबू का प्रयोग किया जाता है. अक्षय तृतीया से पूरी अवधि तक चंदन का लेप लगाने में आठ किलो चंदन की लकड़ी खर्च होती है.
भक्त के कष्टों से भगवान भी गुजरते हैं
आप उक्त बातों से असहमत हो सकते हैं या कई लोग इसे बकवास या अतार्किक कहेंगे. लेकिन जैसा कि हमने पहले बताया कि भक्ति को किसी तर्क से समझा नहीं जा सकता है. इसे समझने के लिए तो भगवान के प्रति समर्पण और प्रेम का भाव चाहिए. बृज परंपरा में इसी समर्पण और प्रेम के कारण माना जाता है कि जो कष्ट या भाव भक्त महसूस करते हैं उसी से उसके भगवान भी गुजरते हैं.