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सपा के इस दांव में फंसे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, हारे चुनाव

उत्तर प्रदेश के डीप्टी सीएम केवश प्रसाद मौर्य अपने बेबाक अंदाज और ओबीसी मतदाताओं के बीच अपनी पैठ को लेकर जाने जाते हैं. लेकिन हौरानी की बात यह है कि वो अपने ही गढ़ में सपा गठबंधन प्रत्याशी पल्लवी पटेल से पराजित हो गए. वहीं, इस बीच केशव प्रसाद मौर्य के समर्थक दोबारा काउंटिंग की मांग को लेकर प्रदर्शन भी किए.

Deputy CM Keshav Prasad Maurya lost the election
सपा के इस दांव में फंसे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, हारे चुनाव
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Published : Mar 10, 2022, 7:59 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के डीप्टी सीएम केवश प्रसाद मौर्य अपने बेबाक अंदाज और ओबीसी मतदाताओं के बीच अपनी पैठ को लेकर जाने जाते हैं. लेकिन हौरानी की बात यह है कि वो अपने ही गढ़ में सपा गठबंधन प्रत्याशी पल्लवी पटेल से पराजित हो गए. वहीं, अबकी चुनावी प्रचार के दौरान उनकी सक्रियता देखते बनी थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा वो एक मात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने सैकड़ों रैलियां व रोड शो कर पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में माहौल बनाने का काम किया. हालांकि, भाजपा के एक नेता ने कहा कि वो अपने अति व्यस्त कार्यक्रमों के कारण सही तरीके से अपने चुनावी क्षेत्र में प्रचार नहीं कर सके. लेकिन इस परिणाम का किसी को उम्मीद नहीं थी. वहीं, इस बीच केशव प्रसाद मौर्य के समर्थक दोबारा काउंटिंग की मांग को लेकर प्रदर्शन भी किए.

जानें पिछड़ने की वजहें

सिराथू में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ सपा ने अपने सहयोगी पार्टी अपना दल (के) की पल्लवी पटेल को टिकट देकर बड़ा दांव खेला था. वहीं, बसपा के मुंसब अली उस्मानी के आने से मुकाबला और रोचक हो गया था. सिराथू के सियासी समीकरण को देखते हुए कुर्मी वोट सपा के पक्ष में जाते दिखे, जिसका एकतरफा फायदा पल्लवी पटेल को मिला. कुल मिलाकर मामला बिगड़ गया और मौर्य के लिए रास्‍ता मुश्किल हो गया.

आपको बता दें कि यूपी में उपमुख्यमंत्री बनने से पहले वो प्रयागराज के फूलपुर संसदीय सीट से सांसद थे. वहीं, केशव प्रसाद मौर्य ने अपने सियासी यात्रा की शुरुआत इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा सीट से साल 2002 में की. उन्होंने स्थानीय माफिया अतीक अहमद के खिलाफ मैदान में ताक ठोका था और इस चुनाव में उन्हें महज सात हजार वोट मिले थे. इसके बाद 2007 में भी वो इसी सीट से चुनाव लड़े पर इस बार भी उन्हें सफलता नहीं मिली. हालांकि, 2012 के विधानसभा चुनाव में वो अपने गृह क्षेत्र सिराथू से पहली बार विधायक चुने गए.

दोबारा काउंटिंग की मांग

उस समय वह इलाहाबाद मंडल के चारों जिलों इलाहाबाद, प्रतापगढ़, कौशाम्बी और फतेहपुर से एकलौते भाजपा विधायक चुने गए थे तो 2013 इलाहाबाद के केपी कॉलेज में ईसाई धर्मप्रचारक के आगमन के विरोध का नेतृत्व करते हुए पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध हुए. फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उनको फूलपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया और वह 3 लाख से अधिक वोटों से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद धर्मराज सिंह पटेल को पराजित करके संसद पहुंचे थे.

ये भी पढ़ें- UP Assembly Results: जमकर वोट बरसे, बाबा हरसे व बोले- जनता ने दिया जीत का आशीर्वाद

इसके इतर अप्रैल 2016 में उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. उनके ही नेतृत्व में भाजपा ने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. चुनाव परिणाम आने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था, लेकिन उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया. केशव प्रसाद मौर्य भाजपा की प्रदेश इकाई के पिछड़े वर्ग के सबसे बड़े नेता के तौर पर जाने जाते हैं.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के डीप्टी सीएम केवश प्रसाद मौर्य अपने बेबाक अंदाज और ओबीसी मतदाताओं के बीच अपनी पैठ को लेकर जाने जाते हैं. लेकिन हौरानी की बात यह है कि वो अपने ही गढ़ में सपा गठबंधन प्रत्याशी पल्लवी पटेल से पराजित हो गए. वहीं, अबकी चुनावी प्रचार के दौरान उनकी सक्रियता देखते बनी थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा वो एक मात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने सैकड़ों रैलियां व रोड शो कर पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में माहौल बनाने का काम किया. हालांकि, भाजपा के एक नेता ने कहा कि वो अपने अति व्यस्त कार्यक्रमों के कारण सही तरीके से अपने चुनावी क्षेत्र में प्रचार नहीं कर सके. लेकिन इस परिणाम का किसी को उम्मीद नहीं थी. वहीं, इस बीच केशव प्रसाद मौर्य के समर्थक दोबारा काउंटिंग की मांग को लेकर प्रदर्शन भी किए.

जानें पिछड़ने की वजहें

सिराथू में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ सपा ने अपने सहयोगी पार्टी अपना दल (के) की पल्लवी पटेल को टिकट देकर बड़ा दांव खेला था. वहीं, बसपा के मुंसब अली उस्मानी के आने से मुकाबला और रोचक हो गया था. सिराथू के सियासी समीकरण को देखते हुए कुर्मी वोट सपा के पक्ष में जाते दिखे, जिसका एकतरफा फायदा पल्लवी पटेल को मिला. कुल मिलाकर मामला बिगड़ गया और मौर्य के लिए रास्‍ता मुश्किल हो गया.

आपको बता दें कि यूपी में उपमुख्यमंत्री बनने से पहले वो प्रयागराज के फूलपुर संसदीय सीट से सांसद थे. वहीं, केशव प्रसाद मौर्य ने अपने सियासी यात्रा की शुरुआत इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा सीट से साल 2002 में की. उन्होंने स्थानीय माफिया अतीक अहमद के खिलाफ मैदान में ताक ठोका था और इस चुनाव में उन्हें महज सात हजार वोट मिले थे. इसके बाद 2007 में भी वो इसी सीट से चुनाव लड़े पर इस बार भी उन्हें सफलता नहीं मिली. हालांकि, 2012 के विधानसभा चुनाव में वो अपने गृह क्षेत्र सिराथू से पहली बार विधायक चुने गए.

दोबारा काउंटिंग की मांग

उस समय वह इलाहाबाद मंडल के चारों जिलों इलाहाबाद, प्रतापगढ़, कौशाम्बी और फतेहपुर से एकलौते भाजपा विधायक चुने गए थे तो 2013 इलाहाबाद के केपी कॉलेज में ईसाई धर्मप्रचारक के आगमन के विरोध का नेतृत्व करते हुए पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध हुए. फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उनको फूलपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया और वह 3 लाख से अधिक वोटों से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद धर्मराज सिंह पटेल को पराजित करके संसद पहुंचे थे.

ये भी पढ़ें- UP Assembly Results: जमकर वोट बरसे, बाबा हरसे व बोले- जनता ने दिया जीत का आशीर्वाद

इसके इतर अप्रैल 2016 में उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. उनके ही नेतृत्व में भाजपा ने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. चुनाव परिणाम आने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था, लेकिन उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया. केशव प्रसाद मौर्य भाजपा की प्रदेश इकाई के पिछड़े वर्ग के सबसे बड़े नेता के तौर पर जाने जाते हैं.

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