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रक्षा प्रतिष्ठानों में हड़ताल को रोकने के लाए गए कानून पर केंद्र को नोटिस

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Published : Sep 16, 2021, 9:16 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को एशेंशियल डिफेंस सर्विसेज एक्ट के तहत हड़ताल पर रोक लगाने पर जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया है. दरअसल केंद्र सरकार के इन कानून के खिलाफ याचिका दायर की गई थी.

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नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने रक्षा प्रतिष्ठानों में हड़ताल को रोकने के लिए केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कानून एशेंशियल डिफेंस सर्विसेज एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने 16 नवंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या आप ये कहना चाहते हैं कि हड़ताल करना आपका मौलिक अधिकार है. चीफ जस्टिस ने कहा कि कोई भी ऐसा फैसला पढ़कर सुनाइए, जिसमें मजदूरों को हड़ताल पर जाने का अधिकार हो और उसे नियोक्ता के काम को रोकने का अधिकार हो. चीफ जस्टिस ने पूछा कि मान लीजिए कि युद्ध चल रहा हो और आप जरूरी रक्षा सेवाओं में हड़ताल पर चले जाएं तब क्या होगा. उन्होंने कहा कि संसद ने इस कानून को बनाते समय अपने बुद्धि का प्रयोग किया होगा. इसका मतलब है कि ये कानून देश के लोगों की इच्छा को प्रतिबिंबित करता है. अगर देश के लोग चाहते हैं कि आप हड़ताल पर नहीं जाएं तो आपको हड़ताल पर नहीं जाना चाहिए.


याचिका ऑल इंडिया डिफेंस इंफ्लाइज फेडरेशन ने दायर किया है. याचिकाकर्ता की ओर से वकील संजय पारिख ने कहा कि एशेंशियल डिफेंस सर्विसेज एक्ट की धारा 1, 2(1), 2(1)(बी), 3, 4, 5, 6, 7, 8, 11, 12, 13, 15, 16, 17 असंवैधानिक है. याचिका में कहा गया है कि ये प्रावधान संविधान की धारा 14, 19, 21 और 311 के अलावा उन अंतर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन है जिन पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं.

याचिका में कहा गया है कि औद्योगिक विवाद अधिनियम में संशोधन कर एशेंशियल डिफेंस सर्विसेज को लोक महत्व की सेवाओं में शामिल किया गया है. याचिका में कहा गया है कि एशेंशियल डिफेंस सर्विसेज एक्ट के तहत किसी भी प्रतिष्ठान को एशेंशियल डिफेंस सर्विसेज घोषित कर दिया जाएगा, ताकि किसी भी हड़ताल को रोका जा सके. हड़ताल शब्द का व्यापक अर्थ है, जिसमें धरने पर बैठना, टोकन स्ट्राइक और मास कैजुअल लीव लेना शामिल होता है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट के एके राय केस का हवाला दिया, जिसमें औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत हड़ताल शब्द को परिभाषित किया गया है.

पढ़ेंः किसी भी स्रोत से ज्ञान को आने दें : न्यायालय

नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने रक्षा प्रतिष्ठानों में हड़ताल को रोकने के लिए केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कानून एशेंशियल डिफेंस सर्विसेज एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने 16 नवंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या आप ये कहना चाहते हैं कि हड़ताल करना आपका मौलिक अधिकार है. चीफ जस्टिस ने कहा कि कोई भी ऐसा फैसला पढ़कर सुनाइए, जिसमें मजदूरों को हड़ताल पर जाने का अधिकार हो और उसे नियोक्ता के काम को रोकने का अधिकार हो. चीफ जस्टिस ने पूछा कि मान लीजिए कि युद्ध चल रहा हो और आप जरूरी रक्षा सेवाओं में हड़ताल पर चले जाएं तब क्या होगा. उन्होंने कहा कि संसद ने इस कानून को बनाते समय अपने बुद्धि का प्रयोग किया होगा. इसका मतलब है कि ये कानून देश के लोगों की इच्छा को प्रतिबिंबित करता है. अगर देश के लोग चाहते हैं कि आप हड़ताल पर नहीं जाएं तो आपको हड़ताल पर नहीं जाना चाहिए.


याचिका ऑल इंडिया डिफेंस इंफ्लाइज फेडरेशन ने दायर किया है. याचिकाकर्ता की ओर से वकील संजय पारिख ने कहा कि एशेंशियल डिफेंस सर्विसेज एक्ट की धारा 1, 2(1), 2(1)(बी), 3, 4, 5, 6, 7, 8, 11, 12, 13, 15, 16, 17 असंवैधानिक है. याचिका में कहा गया है कि ये प्रावधान संविधान की धारा 14, 19, 21 और 311 के अलावा उन अंतर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन है जिन पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं.

याचिका में कहा गया है कि औद्योगिक विवाद अधिनियम में संशोधन कर एशेंशियल डिफेंस सर्विसेज को लोक महत्व की सेवाओं में शामिल किया गया है. याचिका में कहा गया है कि एशेंशियल डिफेंस सर्विसेज एक्ट के तहत किसी भी प्रतिष्ठान को एशेंशियल डिफेंस सर्विसेज घोषित कर दिया जाएगा, ताकि किसी भी हड़ताल को रोका जा सके. हड़ताल शब्द का व्यापक अर्थ है, जिसमें धरने पर बैठना, टोकन स्ट्राइक और मास कैजुअल लीव लेना शामिल होता है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट के एके राय केस का हवाला दिया, जिसमें औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत हड़ताल शब्द को परिभाषित किया गया है.

पढ़ेंः किसी भी स्रोत से ज्ञान को आने दें : न्यायालय

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