नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है और आयोग को निर्देश दिया है कि वह प्रमुखता से अगस्त 2020 में प्रकाशित 'COVID 19 के दौरान आम चुनाव / उपचुनाव कराने के आयोग के दिशानिर्देश' को अपनी वेबसाइट, मोबाइल ऐप, चुनाव सामग्री और अन्य प्लेटफार्मों पर प्रकाशित करे.
न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया. याचिका में विधानसभा चुनाव के दौरान मास्क पहनने और अनिवार्य रूप से सामाजिक दूरी का पालन करने के लिए डिजिटल, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से जागरूकता पैदा करने के लिए आयोग को निर्देश देने की मांग भी की गई है.
इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान चेहरे को ढंकना 'सुरक्षा कवच' की तरह है और निजी वाहन में ड्राइविंग करते हुए अकेले होने के बावजूद मास्क पहनना अनिवार्य है, क्योंकि कोविड-19 के संदर्भ में वाहन 'सार्वजनिक स्थान' है.
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने निजी वाहन में अकेले ड्राइविंग करते हुए मास्क नहीं पहनने पर चालान काटने के दिल्ली सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से भी इनकार करते हुए कहा कि अगर किसी वाहन में केवल एक व्यक्ति बैठा है तो उसे भी सार्वजनिक स्थान माना जाएगा.
अदालत ने कहा, 'अनेक संभावनाएं हैं जिसमें कार में अकेले बैठे व्यक्ति का संपर्क बाहरी दुनिया से हो सकता है. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि व्यक्ति कार में अकेले जा रहा है, महज इसलिए कार सार्वजनिक स्थान नहीं होगी.'
न्यायमूर्ति सिंह ने अपने फैसले में कहा, 'इसलिए यदि किसी वाहन में केवल एक व्यक्ति है तो भी वह 'सार्वजनिक स्थल' होगा और इसलिए मास्क पहनना अनिवार्य होगा. इसलिए किसी वाहन में एक व्यक्ति हो या अनेक लोग बैठे हों, उसमें कोविड-19 महामारी के संदर्भ में मास्क या फेस कवर पहनना अनिवार्य होगा.'
याचिकाकर्ता-वकीलों ने दलील दी थी कि केवल सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनने की अनिवार्यता है और निजी वाहनों को सार्वजनिक स्थल नहीं कहा जा सकता.
अदालत ने कहा कि 'सार्वजनिक स्थान' की व्याख्या कोविड-19 महामारी के संदर्भ में करनी होगी.
अदालत ने कहा, 'कोविड-19 महामारी के संदर्भ में मास्क पहनना अनिवार्य है.'
अदालत ने कहा कि मास्क पहनना जरूरी है चाहे किसी व्यक्ति ने टीका लगवा रखा हो या नहीं.
न्यायमूर्ति सिंह ने वकीलों की उन चार याचिकाओं को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां की जिनमें अकेले निजी वाहन चलाते हुए मास्क न पहनने के लिए भी 'चालान' काटने को चुनौती दी गई थी.
उन्होंने कहा, 'मास्क पहनना कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए 'सुरक्षा कवच' की तरह है.' अदालत ने कहा कि मास्क व्यक्ति की रक्षा करता है और साथ ही उस व्यक्ति के संपर्क में आए लोगों की भी रक्षा करता है.
उसने कहा कि चेहरे पर मास्क पहनना 'ऐसा कदम है जिसने महामारी के दौरान लाखों लोगों की जान बचाई.'
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अदालत ने कहा, 'वकील होने के नाते याचिकाकर्ताओं को महामारी को फैलने से रोकने के लिए इन कदमों को लागू करने में मदद करनी चाहिए न कि इसकी वैधता पर सवाल उठाने चाहिए.'
उसने कहा कि वकीलों द्वारा इन कदमों का पालन करने से आम जनता भी ऐसा करने के लिए प्रेरित होगी.
वकीलों ने अपनी याचिकाओं में दलील दी थी कि जुर्माना लगाने का अधिकार जिलाधिकारियों को है और वे ये अधिकार दूसरों को नहीं दे सकते.
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न्यायमूर्ति सिंह ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि 'अधिकृत व्यक्ति' की परिभाषा समावेशी और विस्तारवादी प्रकृति की है. जिलाधिकारियों को अन्य अधिकारियों को चालान काटने के अधिकार देने की भी शक्तियां हैं.
सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील फरमान अली माग्रे ने अदालत को बताया कि उसने ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं किया है जिसमें लोगों को कार में अकेले बैठे रहने के दौरान भी मास्क पहनने के लिए कहा गया है.
मंत्रालय ने कहा कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है और दिल्ली सरकार को इस पर फैसला लेना है.
दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया था कि पिछले साल अप्रैल में एक आदेश के जरिए किसी आधिकारिक या निजी वाहन में ड्राइविंग करते वक्त मास्क पहनना अनिवार्य किया गया था और यह अब भी लागू है.
साथ ही उसने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने निजी वाहन को सार्वजनिक स्थान बताया था.