हैदराबाद : फ्रांस की एजेंसी द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के बाद राफेल सौदे को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है. इसमें कहा गया है कि डसॉल्ट द्वारा एक बिचौलिए को 1.1 मिलियन यूरो का भुगतान किया गया.
फ्रांसीसी पत्रिका में यह कहा गया है कि 'फ्रेंच एंटी-करप्शन एजेंसी-एएफए' द्वारा की गई जांच से पता चला है कि 2016 में राफेल सौदे के लिए डसॉल्ट ने एक बिचौलिया डिफिस सॉल्यूशंस को 1.1 मिलियन यूरो का भुगतान किया.
इस राशि को डसॉल्ट द्वारा ग्राहकों को उपहार के रूप में व्यय दिखाया गया है. बिचौलिए पर भारत में एक और रक्षा सौदे में मनी लॉन्ड्रिंग मामले का आरोप हैं. 2019 में प्रवर्तन निदेशालय ने उसे वीवीआईपी हेलीकॉप्टर घोटाले में गिरफ्तार किया था.
राफेल सौदे की तस्वीर और जांच के बाद ही साफ हो पाएगी. आइये कुछ अन्य बड़े रक्षा घोटालों पर नजर डालते हैं.
बोफोर्स
स्वीडिश हथियार निर्माता बोफोर्स और भारत सरकार के बीच 1986 में $1.4 बिलियन का सौदा हुआ था. ऐसे आरोप हैं कि स्वीडिश कंपनी ने कांग्रेस नेताओं और नौकरशाहों को लगभग $9 मिलियन रिश्वत दी थी.
टाटा ट्रक
चेक ट्रक निर्माता कई वर्षों से भारतीय सेना को ट्रकों की आपूर्ति कर रहा था. तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह (अब विदेश राज्य मंत्री) ने आरोप लगाया था कि 2010 में, बिचौलियों ने टाटा ट्रकों के एक नए बैच की खरीद के लिए रिश्वत के रूप में 14 करोड़ रुपये की पेशकश की थी.
ट्रकों के पार्ट को खरीदने के लिए 750 करोड़ रुपये रिश्वत के रूप में देने का आरोप भी था. कई विशेषज्ञों का मानना था कि सेना यूरोपीय मूल्य से लगभग दोगुने मूल्य पर टाटा के ट्रक खरीद रही थी. 2014 में, सीबीआई ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए मामले को बंद कर दिया.
अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर
2010 में भारत सरकार ने अगस्ता वेस्टलैंड के साथ 12 AW101 हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए 3,600 करोड़ रुपये में सौदा किया था. हेलीकॉप्टर VVIP के लिए थे. 2012 में भारत को तीन हेलीकॉप्टर मिले. इतालवी पुलिस द्वारा अगस्ता वेस्टलैंड के तत्कालीन सीईओ ब्रूनो स्पैग्नोलिनी की गिरफ्तारी के बाद इस सौदे को रद्द कर दिया गया था.
अगस्ता वेस्टलैंड पर भारतीय वायुसेना के साथ सौदा करने के लिए रिश्वत देने के आरोप थे. जनवरी 2014 में इस सौदे को खत्म कर दिया गया. सीबीआई ने दावा किया है कि रद्द किए गए सौदे के कारण भारत को 2,666 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. भारत में बिचौलियों के खिलाफ जांच चल रही है.
सुदीप्त घोष मामला
2009 में आयुध निर्माणी बोर्ड के पूर्व महानिदेशक सुदीप्त घोष को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. घोष ने कथित तौर पर दो भारतीय और चार विदेशी कंपनियों से रिश्वत ली थी, जिन्हें रक्षा मंत्री एके एंटनी ने ब्लैकलिस्ट कर दिया था.
स्कॉर्पीन पनडुब्बी
2005 में, भारत ने स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों के निर्माण के लिए फ्रांसीसी रक्षा कंपनी थेल्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. यह सौदा $3 बिलियन का था. आरोप लगाया गया था कि सौदा करने के लिए रिश्वत के तौर पर $175 मिलियन का भुगतान किया गया था. अरबपति हथियार डीलर अभिषेक वर्मा उर्फ 'लॉर्ड ऑफ वार' विवाद के केंद्र में था. 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले को खारिज कर दिया था.
बराक मिसाइल
2001 में तहलका पत्रिका ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया और रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार को उजागर किया; इजराइली कंपनियों के साथ बराक मिसाइल सौदा उनमें से एक था. 2000 में भारत ने $200 मिलियन के करीब सात बराक मिसाइल सिस्टम खरीदने का सौदा किया था.
रक्षा अनुसंधान विकास संगठन ने सौदे पर आपत्ति जताई थी. मामले में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस का नाम भी सामने आया था. सीबीआई ने 2006 में जांच शुरू की लेकिन सबूतों के अभाव में 2013 में इसे बंद कर दिया था.
ताबूत घोटाला
1999 के कारगिल युद्ध के दौरान ताबूत खरीदे गए थे. सीबीआई ने एक अमेरिकी ठेकेदार और सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था. तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस पर भी मामले में शामिल होने का आरोप लगा था.
HDW पनडुब्बी
भारत में बोफोर्स घोटाला होने के ठीक बाद, एक और रक्षा घोटाला सामने आया. यह $300 मिलियन का HDW पनडुब्बी सौदा था. 1987 में सीबीआई ने मामला दर्ज किया था, जिसमें एक पूर्व रक्षा सचिव, कई नौकरशाहों और HDW के एजेंटों को नामजद किया गया था. इनपर सौदा करने के लिए 7 प्रतिशत कमीशन का आरोप लगा था.
चेक पिस्तौल
1986 में भारत ने 55,000 C0Z95 पिस्तौल खरीदने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. यह मौजूदा 0.38 कैलिबर रिवॉल्वर की जगह लेती. एक पिस्तौल की कीमत रु3,438 थी. हालांकि, सौदे में अनियमितता के आरोप लगने के बाद सीबीआई ने मामले की जांच शुरू की. सौदा रद्द कर दिया गया और आंतरिक सुरक्षा मंत्री अरुण नेहरू पर साजिश का आरोप लगा, लेकिन, मामला अब बंद हो गया है.
जीप
स्वतंत्र भारत का यह पहला सबसे बड़ा भ्रष्टाचार का मामला था. 1948 में ब्रिटेन के भारत के उच्चायुक्त वीके कृष्ण मेनन ने जीप की आपूर्ति के लिए एक ब्रिटिश फर्म के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए थए. यह सौदा 80 लाख रुपये में हुआ था. 1500 जीपों का ऑर्डर दिया गया था, जिसमें से बस 155 की डिलेवरी हुई थी. 1955 में सरकार ने इस सौदे को रद्द कर दिया था.