नई दिल्ली: जम्मू में भारतीय वायुसेना केंद्र पर गत 27 जून को ड्रोन से हमला किया गया था. इसे सैन्य प्रतिष्ठान पर इस तरह से हमले की पहली घटना माना जा रहा है. ड्रोन पर विस्फोटक लगा सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाए जाने, सीमावर्ती इलाकों में अक्सर ड्रोन को उड़ते देखे जाने के मामलों में सुरक्षा एजेंसियों के सामने नई तरह की चुनौती सामने आई है. सैन्य प्रतिष्ठानों व सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा को लेकर ड्रोन से मिलती चुनौती कितनी गंभीर है और भारत इससे निपटने के लिए कितना तैयार है ? वरिष्ठ सामारिक विशेषज्ञ सी उदय भास्कर ने बदलते समय के साथ भारत के सामने आ रही चुनौतियों के संदर्भ में पांच सवालों के जवाब दिए हैं.
सवाल : जम्मू में वायु सेना केंद्र पर विस्फोटक युक्त ड्रोन से किये गए आतंकी हमले को सुरक्षा की दृष्टि से आप कैसे देखते हैं?
जवाब : ड्रोन से हमले की तकनीक दुनिया में कई साल से जगह-जगह इस्तेमाल हो रही है. भारत के किसी सुरक्षा प्रतिष्ठान पर इस तरह ड्रोन से हमले नए हो सकते हैं, लेकिन ऐसी साजिशों में ड्रोन का इस्तेमाल नया नहीं है. पंजाब में हथियारों की आपूर्ति के लिए ड्रोन का इस्तेमाल इसका उदाहरण है. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाके में पहले भी इनके जरिए हथियारों की आपूर्ति की कोशिश की जा चुकी है. हमारे सुरक्षा योजनाकार इन स्थितियों से अवगत हैं, लेकिन निश्चित तौर पर ड्रोन हमले से निपटने के लिए सशक्त नीति एवं प्रौद्योगिकी उपाए किए जाने की जरूरत है.
सवाल : विशेषज्ञों ने इस हमले को पाक प्रायोजित आतंकवादियों द्वारा प्रौद्योगिकी आधारित नया हथकंडा बताया है, आपकी इस पर क्या राय है ?
जवाब : जम्मू ड्रोन हमले की घटना की जांच की जा रही है हालांकि अभी तक यह बात सामने आई है कि ये बहुत परिष्कृत उपकरण नहीं हैं जिनका उपयोग किया जा रहा है. ये व्यावसायिक रूप से उपलब्ध ड्रोन हैं और उनमें कुछ मात्रा में विस्फोटक लोड करते हैं और एक लक्ष्य तक पहुंचा कर धमाका कर सकते हैं. ये काम वैश्विक स्थिति निर्धारण प्रणाली (जीपीएस) जैसी तकनीक से किया जा सकता है. ड्रोन निर्धारित स्थान या लक्ष्य पर बम गिरा सकता है. हालांकि आने वाले समय में इसके व्यापक इस्तेमाल से इंकार नहीं किया जा सकता. अभी तक ड्रोन का इस्तेमाल हथियार, गोला-बारूद और मादक द्रव्यों की तस्करी के लिए होता रहा है, लेकिन एक वायु सैनिक केंद्र पर ड्रोन से हमला किया जाना यह साफ दिखा रहा है कि प्रौद्योगिकी का उपयोग कर ड्रोन का किस प्रकार आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए उपयोग किया जा सकता है और इसको लेकर कारगर रणनीति बनाने की भी जरूरत है.
सवाल : क्या भारत ऐसे ड्रोन को पकड़ने और इस प्रकार के हमलों से निपटने के लिए तैयार है?
जवाब : बाजार में जो ड्रोन उपलब्ध हैं, उनका रडार सिग्नल कम (लो) होता है. आमतौर पर गोलीबारी के जरिए ही इन्हें नष्ट या पीछे हटने पर मजबूर किया जाता है, जैसा कि हमने पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर में देखा है. लेकिन वायु सेना केंद्र पर ड्रोन से हमला किये जाने से स्पष्ट है कि आतंकियों के पास ड्रोन के सटीक इस्तेमाल क्षमताएं बढ़ गई हैं. ऐसे में इसका मुकाबला करने के लिये नई प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की जरूरत है. अतीत में हमने इलेक्ट्रॉनिक प्रतिरोधक पहल (ईसीएम) और इलेक्ट्रॉनिक प्रति प्रतिरोधक पहल (ईसीसीएम) का उपयोग किया था.
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सवाल : क्या प्रौद्योगिकी का उपयोग कर घुसपैठिए ड्रोन की पहचान करके उन्हें पूरी तरह से रोका जा सकता है ?
जवाब : ड्रोन को रोकने के लिये प्रौद्योगिकी उपाए निश्चित तौर पर जरूरी हैं, आप इसका उपयोग करके घुसपैठ करने वाले 100 ड्रोन में से 90-95 ड्रोन को रोक सकते हैं, लेकिन अपने क्षेत्र में प्रवेश करने से इन्हें शत प्रतिशत नहीं रोका जा सकता है.
सवाल : ऐसे ड्रोन हमले को रोकने के लिये क्या कदम उठाये जाने चाहिए और किस प्रकार के नीतिगत पहल की जरूरत है ?
जवाब : इसके लिये जरूरी है कि अन्य उपायों के साथ जिस तरह से हथियारों की खरीद के लिए लाइसेंस और बेहद मजबूत दस्तावेजों की जरूरत होती है, उसी तरह की व्यवस्था ड्रोन की खरीद-बिक्री के लिए भी हो. ताकि, हमारे पास ये रिकॉर्ड में हो कि किसने, किसको और कैसा ड्रोन बेचा या खरीदा है. हमें अपनी सैन्य राडार प्रणाली का उन्नयन करना होगा और उन्हें ऐसा बनाना होगा कि वे निगरानी कर छोटे ड्रोन को पकड़ सकें.
(पीटीआई-भाषा)