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कश्मीर में एक नई सुबह की उम्मीद...

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Published : Dec 26, 2020, 6:49 AM IST

जम्मू-कश्मीर में इस तरह किसी भी व्यवधान के बिना जिला विकास परिषद (डीडीसी) का चुनाव परिणाम आना नई उम्मीद की गुंजाइश दे रहा है. जम्मू-कश्मीर का दर्जा घटाकर केंद्र शासित प्रदेश किए जाने के बाद से पहली बार हो रहे डीडीसी चुनाव इसीलिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहे. डीडीसी चुनाव के नतीजे बीते मंगलवार को सामने आये, जिसमें गुपकार गठबंधन ने कश्मीर घाटी और भाजपा ने जम्मू क्षेत्र में अपना दबदबा बनाया है.

kashmir
जिला विकास परिषद

हैदराबाद : पिछले तीन दशक या उससे भी अधिक समय से हर चुनाव के दौरान जम्मू और कश्मीर में अलगाववादी तत्व चुनावों के बहिष्कार का आह्वान करके इसका निर्णय ले रहे हैं. इस दौरान हर चुनाव में बाधा डालने के लिए आतंकवादियों की ओर से हिंसा का इस्तेमाल करना भी एक सामान्य रणनीति रही है. चुनावों में धांधली के आरोप असामान्य नहीं हैं. ऐसा होने के बावजूद संघर्ष से विदीर्ण जम्मू-कश्मीर में इस तरह किसी भी व्यवधान के बिना जिला विकास परिषद (डीडीसी) का चुनाव परिणाम आना नई उम्मीद की गुंजाइश दे रहा है. जम्मू-कश्मीर का दर्जा घटाकर केंद्र शासित प्रदेश किए जाने के बाद से पहली बार हो रहे डीडीसी चुनाव इसीलिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे.

लद्दाख को इससे अलग कर दिया गया और एक अलग केंद्र शासित प्रदेश के रूप में गठित किया गया. केंद्र शासित प्रदेश के हर जिले को 14 क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में बांटा गया था और प्रदेश के 20 जिलों के सभी 280 निर्वाचन क्षेत्रो में चुनाव का आयोजन हुआ. दो को छोड़कर सभी क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के चुनाव परिणाम की घोषणा कर दी गई. ये चुनाव परिणाम कश्मीर के लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित कर रहे हैं.

घाटी क्षेत्र में मतदान प्रतिशत में बढ़ोत्तरी
कश्मीर घाटी क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत बढ़कर 34 प्रतिशत हो गया है, जो पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान 15 प्रतिशत दर्ज किया गया था. जम्मू क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत कश्मीर क्षेत्र में जो मतदान का प्रतिशत था उसका दोगुना था. जम्मू क्षेत्र में मतदान प्रतिशत अधिक होना भाजपा की उम्मीद की मूल वजह थी. भाजपा को कुल मिलाकर 75 सीटें मिलीं. इनमें जम्मू में 72 और कश्मीर में तीन सीट है. बीजेपी डीडीसी चुनावों में अकेली पार्टी के रूप में इतनी अधिक सीटें जीतने वाली सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. इन सीटों के साथ 20 जिला विकास परिषदों में से छह पर कब्जा जमाया.

पढ़ें : बदल रहा कश्मीर, DDC में जीतने वाली फरवा को राजनीति से ज्यादा विकास की चिंता

प्रगतिशील राजनीतिक प्रक्रिया को मिली गति
गुपकार गठबंधन में शामिल नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और पीपुल्स गठबंधन ने 112 सीटें जीतीं और यह गठबंधन कम से कम 12 जिलों में डीडीसी की कमान संभालने वाला है. अलग से चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस 26 क्षेत्रों चुनाव जीती, जबकि निर्दलीय उम्मीदवारों को 50 क्षेत्रों में जीत मिली. चुनावों के शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो जाने को देखते हुए सभी राजनीतिक दलों को अब एक प्रगतिशील राजनीतिक प्रक्रिया को गति देने के लिए शांति के युग में प्रवेश करने का दृढ़ संकल्प लेना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2017 में लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के भाषण में स्पष्ट कर दिया था कि कश्मीर समस्या का समाधान न तो गाली से और न गोलियों से होगा. उन्होंने कहा था कि सभी कश्मीरियों को गले लगाकर इसका समाधान किया जाएगा.

राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू
अलग-अलग माने जाने वाले पीडीपी और भाजपा जम्मू और कश्मीर में गठबंधन की सरकार बनाने के लिए एक साथ आए. इसका तथाकथित मकसद कभी धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले राज्य को एक नई दिशा देना था. हालांकि, वर्ष 2018 में यह गठबंधन टूट गया, राज्य की असहाय स्थिति को देखते हुए राष्ट्रपति शासन लागू रहा. जब केंद्र ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आदर्श के नाम पर इस क्षेत्र की क्षेत्रीय अखंडता, विशेष दर्जा, राज्य के दर्जे में संशोधन लाया तब कश्मीर मनोवैज्ञानिक रूप से घायल था.

पढ़ें : पूर्वोत्तर पर भाजपा की नजरें, मणिपुर और असम का दो दिवसीय दौरा करेंगे शाह

तर्क के साथ चुनाव लड़ने का फैसला
नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और द पीपुल्स अलायंस ने अपने वैचारिक मतभेदों को दरकिनार करते हुए जम्मू एवं कश्मीर में फिर से विशेष राज्य का दर्जा बहाल करने की अपनी समान आकांक्षा पूरी करने के मकसद से गठबंधन बनाएं. गठबंधन ने इस तर्क के साथ चुनाव लड़ने का फैसला लिया कि चुनाव का बहिष्कार करने से बीजेपी की जीत के लिए एकतरफा मार्ग प्रशस्त होगा. चूंकि डीडीसी एक त्रि-स्तरीय पंचायत प्रणाली का हिस्सा है, जिसे जम्मू और कश्मीर में पेश किया गया है.

पढ़ें : ममता के पलटवार पर भाजपा का जवाब, 'कट मनी' के लिए नहीं देंगे रुपये

जमीन हड़पने वाले चीन के साथ बातचीत
भाजपा ने कहा है कि यह क्षेत्र के विकास में योगदान देगा. डीडीसी को सीधे उसी तरह धन मुहैया कराया जाएगा, जिस तरीके से पंचायतों को धन मुहैया कराया जाता है. जो भी हो भाजपा ने विपक्ष के उम्मीदवारों के हर कदम पर रुकावट पैदा की. पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने आह्वान किया कि भाजपा उनका मुकाबला सीधे राजनीतिक तरीके से करे न कि एनआईए, सीबीआई और ईडी के माध्यम से. महबूबा ने पाकिस्तान से बातचीत करने का आह्वान करके अपने तर्क को एक विचित्र रंग दे दिया. उन्होंने कहा कि दोनों देशों (भारत-पाकिस्तान) के बीच बातचीत होनी चाहिए. यदि हमारी जमीन हड़पने वाले चीन के साथ हम बातचीत कर सकते हैं तो पाकिस्तान के साथ क्यों नहीं?

जम्मू और कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल
सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी याद रखने लायक है, जिसमें कहा गया है कि भारत के संविधान से बाहर जम्मू और कश्मीर की संप्रभुता का कोई वजूद नहीं है. राज्य का अपना संविधान भारत के संविधान के अधीन है. यह महत्वपूर्ण है कि यह चेतना सभी कश्मीरी क्षेत्रीय राजनीतिकों दलों में बनी रहे. जम्मू और कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल होना और विधानसभा चुनाव का मार्ग प्रशस्त होना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.

हैदराबाद : पिछले तीन दशक या उससे भी अधिक समय से हर चुनाव के दौरान जम्मू और कश्मीर में अलगाववादी तत्व चुनावों के बहिष्कार का आह्वान करके इसका निर्णय ले रहे हैं. इस दौरान हर चुनाव में बाधा डालने के लिए आतंकवादियों की ओर से हिंसा का इस्तेमाल करना भी एक सामान्य रणनीति रही है. चुनावों में धांधली के आरोप असामान्य नहीं हैं. ऐसा होने के बावजूद संघर्ष से विदीर्ण जम्मू-कश्मीर में इस तरह किसी भी व्यवधान के बिना जिला विकास परिषद (डीडीसी) का चुनाव परिणाम आना नई उम्मीद की गुंजाइश दे रहा है. जम्मू-कश्मीर का दर्जा घटाकर केंद्र शासित प्रदेश किए जाने के बाद से पहली बार हो रहे डीडीसी चुनाव इसीलिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे.

लद्दाख को इससे अलग कर दिया गया और एक अलग केंद्र शासित प्रदेश के रूप में गठित किया गया. केंद्र शासित प्रदेश के हर जिले को 14 क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में बांटा गया था और प्रदेश के 20 जिलों के सभी 280 निर्वाचन क्षेत्रो में चुनाव का आयोजन हुआ. दो को छोड़कर सभी क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के चुनाव परिणाम की घोषणा कर दी गई. ये चुनाव परिणाम कश्मीर के लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित कर रहे हैं.

घाटी क्षेत्र में मतदान प्रतिशत में बढ़ोत्तरी
कश्मीर घाटी क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत बढ़कर 34 प्रतिशत हो गया है, जो पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान 15 प्रतिशत दर्ज किया गया था. जम्मू क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत कश्मीर क्षेत्र में जो मतदान का प्रतिशत था उसका दोगुना था. जम्मू क्षेत्र में मतदान प्रतिशत अधिक होना भाजपा की उम्मीद की मूल वजह थी. भाजपा को कुल मिलाकर 75 सीटें मिलीं. इनमें जम्मू में 72 और कश्मीर में तीन सीट है. बीजेपी डीडीसी चुनावों में अकेली पार्टी के रूप में इतनी अधिक सीटें जीतने वाली सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. इन सीटों के साथ 20 जिला विकास परिषदों में से छह पर कब्जा जमाया.

पढ़ें : बदल रहा कश्मीर, DDC में जीतने वाली फरवा को राजनीति से ज्यादा विकास की चिंता

प्रगतिशील राजनीतिक प्रक्रिया को मिली गति
गुपकार गठबंधन में शामिल नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और पीपुल्स गठबंधन ने 112 सीटें जीतीं और यह गठबंधन कम से कम 12 जिलों में डीडीसी की कमान संभालने वाला है. अलग से चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस 26 क्षेत्रों चुनाव जीती, जबकि निर्दलीय उम्मीदवारों को 50 क्षेत्रों में जीत मिली. चुनावों के शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो जाने को देखते हुए सभी राजनीतिक दलों को अब एक प्रगतिशील राजनीतिक प्रक्रिया को गति देने के लिए शांति के युग में प्रवेश करने का दृढ़ संकल्प लेना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2017 में लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के भाषण में स्पष्ट कर दिया था कि कश्मीर समस्या का समाधान न तो गाली से और न गोलियों से होगा. उन्होंने कहा था कि सभी कश्मीरियों को गले लगाकर इसका समाधान किया जाएगा.

राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू
अलग-अलग माने जाने वाले पीडीपी और भाजपा जम्मू और कश्मीर में गठबंधन की सरकार बनाने के लिए एक साथ आए. इसका तथाकथित मकसद कभी धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले राज्य को एक नई दिशा देना था. हालांकि, वर्ष 2018 में यह गठबंधन टूट गया, राज्य की असहाय स्थिति को देखते हुए राष्ट्रपति शासन लागू रहा. जब केंद्र ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आदर्श के नाम पर इस क्षेत्र की क्षेत्रीय अखंडता, विशेष दर्जा, राज्य के दर्जे में संशोधन लाया तब कश्मीर मनोवैज्ञानिक रूप से घायल था.

पढ़ें : पूर्वोत्तर पर भाजपा की नजरें, मणिपुर और असम का दो दिवसीय दौरा करेंगे शाह

तर्क के साथ चुनाव लड़ने का फैसला
नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और द पीपुल्स अलायंस ने अपने वैचारिक मतभेदों को दरकिनार करते हुए जम्मू एवं कश्मीर में फिर से विशेष राज्य का दर्जा बहाल करने की अपनी समान आकांक्षा पूरी करने के मकसद से गठबंधन बनाएं. गठबंधन ने इस तर्क के साथ चुनाव लड़ने का फैसला लिया कि चुनाव का बहिष्कार करने से बीजेपी की जीत के लिए एकतरफा मार्ग प्रशस्त होगा. चूंकि डीडीसी एक त्रि-स्तरीय पंचायत प्रणाली का हिस्सा है, जिसे जम्मू और कश्मीर में पेश किया गया है.

पढ़ें : ममता के पलटवार पर भाजपा का जवाब, 'कट मनी' के लिए नहीं देंगे रुपये

जमीन हड़पने वाले चीन के साथ बातचीत
भाजपा ने कहा है कि यह क्षेत्र के विकास में योगदान देगा. डीडीसी को सीधे उसी तरह धन मुहैया कराया जाएगा, जिस तरीके से पंचायतों को धन मुहैया कराया जाता है. जो भी हो भाजपा ने विपक्ष के उम्मीदवारों के हर कदम पर रुकावट पैदा की. पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने आह्वान किया कि भाजपा उनका मुकाबला सीधे राजनीतिक तरीके से करे न कि एनआईए, सीबीआई और ईडी के माध्यम से. महबूबा ने पाकिस्तान से बातचीत करने का आह्वान करके अपने तर्क को एक विचित्र रंग दे दिया. उन्होंने कहा कि दोनों देशों (भारत-पाकिस्तान) के बीच बातचीत होनी चाहिए. यदि हमारी जमीन हड़पने वाले चीन के साथ हम बातचीत कर सकते हैं तो पाकिस्तान के साथ क्यों नहीं?

जम्मू और कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल
सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी याद रखने लायक है, जिसमें कहा गया है कि भारत के संविधान से बाहर जम्मू और कश्मीर की संप्रभुता का कोई वजूद नहीं है. राज्य का अपना संविधान भारत के संविधान के अधीन है. यह महत्वपूर्ण है कि यह चेतना सभी कश्मीरी क्षेत्रीय राजनीतिकों दलों में बनी रहे. जम्मू और कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल होना और विधानसभा चुनाव का मार्ग प्रशस्त होना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.

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