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बांध परियोजना से एशिया में धौंस जमाने की ताक में चीन

पूर्वी तिब्बत में यारलुंग त्संगपो और ब्रह्मपुत्र नदी के पार बांध बनाकर चीन ने एक ही तीर से कई निशाने लगाने की तैयारी में है. हालांकि इसके लिए उसे भारत और बांग्लादेश की तकनीकी चुनौतियों का सामना करना होगा. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

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Published : Dec 14, 2020, 5:27 PM IST

कॉन्सेप्ट इमेज
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नई दिल्ली : चीन अपने पड़ोसी देशों और उनके क्षेत्रों पर अवैध कब्जा करने और अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए नई-नई योजनाएं तैयार कर रहा है. इन्हीं में से एक है चीन की बांध परियोजना, जिसके माध्यम से ड्रैगन भारत समेत पूर्वी एशियाई देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में नियंत्रण में इजाफा करेगा. दरअसल, पूर्वी तिब्बत में यारलुंग त्संग्पो-ब्रह्मपुत्र नदी को जलविहीन करना चीन के लिए बाइबिल के होली ग्रैल (Biblical Holy Grail) से कम नहीं होगा. इस एक कदम से चीन अपनी कई समस्याओं को हल कर लेगा.

हालांकि यह कहने की जरूरत नहीं है कि चीन की यह इच्छा केवल भारत और बांग्लादेश द्वारा तकनीकी चुनौती को दूर करने के बाद ही संभव हो सकती है. वैसे यह तकनीकी रूप से काफी चुनौतीपूर्ण भी है. जंगमो में यारलुंग त्सांग्पो नदी के परिचालन पर एक 510 मेगावाट का बांध बनाने के बाद चीन ने तेजी से बहने वाली नदी पर कई बांध बनाने की योजना बनाई है, जो बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले अरुणाचल प्रदेश में सियांग, असम में ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश में पद्मा नदी के रूप में जानी जाती है.

इस वजह से सुर्खियों में चीन की बांध परियोजना
सबसे पहले तो यह एक ऐसे क्षेत्र में निर्माण और मानव गतिविधि को फैलाएगा जो आखिरी प्राचीन क्षेत्रों में से एक है. साथ ही यह क्षेत्र केवल आंशिक रूप से ही मैप किया गया है. यह क्षेत्र विशेष रूप से ग्रेट बेंड के आसपास है, जहां नदी भारत में प्रवेश करने से पहले 180 डिग्री पर एक मोड़ लेती है.

भूकंपीय अस्थिरता वाले क्षेत्र में निर्माण
इसके अलावा इन मेगा बांधों का निर्माण जबरदस्त भूकंपीय अस्थिरता वाले क्षेत्र में किया जाएगा. ऐसे में अगर बांध टूटता है तो भारत और बांग्लादेश जैसे निचले इलाके वाले देशों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा और यह अरुणाचल प्रदेश और असम के लिए विनाशकारी होगा. इस स्थिति में यहां सबसे अधिक नुकसान होने की उम्मीद है. साथ ही जब तक यहां कोई कंसलटिव मोड नहीं बन जाता है, तब तक जलविद्युत परियोजनाएं निचले स्तर के देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत अधिकारों का घोर उल्लंघन होगा.

इन सभी दुविधाओं और चुनौतियों के बावजूद चीन नदी के पार बांधों का एक नेटवर्क बनाने का अपना मन बना चुका है.

  • तिब्बत के दूरदराज के क्षेत्र जुडे़ंगे
    पहला कारण है कि यह तिब्बत के दूरदराज के क्षेत्रों को अहम क्षेत्रों से जोड़ेगा. इससे चीन पूर्वी तिब्बत में हान वंश के चीनी प्रवासियों के निर्जन क्षेत्रों को आबाद करने का नेतृत्व करेगा, जिससे पूरे भारत में सीमावर्ती क्षेत्रों में चीन के नियंत्रण में इजाफा होगा.
  • बिजली उत्पाधन में बढ़ोतरी
    दूसरा यह कि यारलुंग त्संग्पो पर बांध बनाने से चीन बेहद सस्ती बिजली पैदा कर सकता है. इससे चीन घरेलू खपत के अलावा नेपाल, म्यांमार और पूर्वी एशिया के देशों को बिजली बेचने में सक्षम हो जाएगा. राज्य के नियंत्रण वाले चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने हाल ही में कहा कि बांध उन जगहों पर बनाए जाएंगे जहां बिजली की अधिकतम मात्रा में उत्पन्न होगी.
  • भारत की ईस्ट पॉलिसी को होगा नुकसान
    इसके अलावा चीन इस बड़ी जल विद्युत परियोजना के निर्माण के साथ ऊर्जा निर्यात पर भी विचार कर रहा है और इसके लिए नेपाल में उच्च-वोल्टेज संचरण लाइनें बनाई जा रही हैं. जलविद्युत परियोजना शुरू होने के बाद यह चीन अपने पड़ोसी देशों के विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करेगा. रणनीतिक रूप से यह भारत की भव्य ग्रांड ईस्ट पॉलिसी को भी रोकेगा, जिसके जल्द ही लागू होने की उम्मीद है.
  • कार्बन उत्सर्जन में कटौती
    तीसरा यह कि चीन ने कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और नवीकरणीय गैर-जीवाश्म ईंधन के उपयोग को बढ़ाने के लिए एक महत्वाकांक्षी मिशन को शुरू किया है. चीन की योजना 2030 से पहले कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाने और 2060 से पहले कार्बन तटस्थता हासिल करने की है.
  • चीन की ताकत बढ़ेगी
    बांध बनाने का चौथा कारण यह है कि एक बार बांध निर्मित होने के बाद भारत के साथ हमेशा सौदेबाजी का नया विकल्प उपलब्ध रहेगा. इससे चीन की शक्ति में और इजाफा होगा और भारत के विरुद्ध यह चीन को हमेशा मजबूती प्रदान करेगा. इस परियोजना से असम और बांग्लादेश में पानी की उपलब्धता को बढ़ाना और नियंत्रित करना चीनी हाथों में चला जाएगा.

रविवार को चीन के केंद्रीय टेलीविजन (सीसीटीवी) के अनुसार चीन के शीर्ष जलवायु सलाहकार झी झेनहुआ ने कहा कि इसके माध्यम से चीन अंतरराष्ट्रीय समुदायों को यह संदेश देगा कि चीन में टाइम टेबल और कार्बन तटस्थता प्राप्त करने के लिए रोडमैप कैसे निर्धारित किया गया है.

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई को लेकर यह अमेरिका और पश्चिम के साथ चीन के लिए नए रास्ते खोलेगा, जो वर्तमान में इस मुद्दे को लेकर काफी जूझ रहा है. साथ ही इससे देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा में सुधार और वृद्धि होगी.

(ईसाई धर्म की मान्यता के मुताबिक होली ग्रैल एक जादुई प्याला है, जिसके इस्तेमाल से इंसान बेहद शक्तिशाली या अमर हो जाता है. चीन की बांध परियोजना भी उसके लिए होली ग्रैल की तरह है, जो उसे बेहद शक्तिशाली बनाएगा.)

नई दिल्ली : चीन अपने पड़ोसी देशों और उनके क्षेत्रों पर अवैध कब्जा करने और अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए नई-नई योजनाएं तैयार कर रहा है. इन्हीं में से एक है चीन की बांध परियोजना, जिसके माध्यम से ड्रैगन भारत समेत पूर्वी एशियाई देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में नियंत्रण में इजाफा करेगा. दरअसल, पूर्वी तिब्बत में यारलुंग त्संग्पो-ब्रह्मपुत्र नदी को जलविहीन करना चीन के लिए बाइबिल के होली ग्रैल (Biblical Holy Grail) से कम नहीं होगा. इस एक कदम से चीन अपनी कई समस्याओं को हल कर लेगा.

हालांकि यह कहने की जरूरत नहीं है कि चीन की यह इच्छा केवल भारत और बांग्लादेश द्वारा तकनीकी चुनौती को दूर करने के बाद ही संभव हो सकती है. वैसे यह तकनीकी रूप से काफी चुनौतीपूर्ण भी है. जंगमो में यारलुंग त्सांग्पो नदी के परिचालन पर एक 510 मेगावाट का बांध बनाने के बाद चीन ने तेजी से बहने वाली नदी पर कई बांध बनाने की योजना बनाई है, जो बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले अरुणाचल प्रदेश में सियांग, असम में ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश में पद्मा नदी के रूप में जानी जाती है.

इस वजह से सुर्खियों में चीन की बांध परियोजना
सबसे पहले तो यह एक ऐसे क्षेत्र में निर्माण और मानव गतिविधि को फैलाएगा जो आखिरी प्राचीन क्षेत्रों में से एक है. साथ ही यह क्षेत्र केवल आंशिक रूप से ही मैप किया गया है. यह क्षेत्र विशेष रूप से ग्रेट बेंड के आसपास है, जहां नदी भारत में प्रवेश करने से पहले 180 डिग्री पर एक मोड़ लेती है.

भूकंपीय अस्थिरता वाले क्षेत्र में निर्माण
इसके अलावा इन मेगा बांधों का निर्माण जबरदस्त भूकंपीय अस्थिरता वाले क्षेत्र में किया जाएगा. ऐसे में अगर बांध टूटता है तो भारत और बांग्लादेश जैसे निचले इलाके वाले देशों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा और यह अरुणाचल प्रदेश और असम के लिए विनाशकारी होगा. इस स्थिति में यहां सबसे अधिक नुकसान होने की उम्मीद है. साथ ही जब तक यहां कोई कंसलटिव मोड नहीं बन जाता है, तब तक जलविद्युत परियोजनाएं निचले स्तर के देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत अधिकारों का घोर उल्लंघन होगा.

इन सभी दुविधाओं और चुनौतियों के बावजूद चीन नदी के पार बांधों का एक नेटवर्क बनाने का अपना मन बना चुका है.

  • तिब्बत के दूरदराज के क्षेत्र जुडे़ंगे
    पहला कारण है कि यह तिब्बत के दूरदराज के क्षेत्रों को अहम क्षेत्रों से जोड़ेगा. इससे चीन पूर्वी तिब्बत में हान वंश के चीनी प्रवासियों के निर्जन क्षेत्रों को आबाद करने का नेतृत्व करेगा, जिससे पूरे भारत में सीमावर्ती क्षेत्रों में चीन के नियंत्रण में इजाफा होगा.
  • बिजली उत्पाधन में बढ़ोतरी
    दूसरा यह कि यारलुंग त्संग्पो पर बांध बनाने से चीन बेहद सस्ती बिजली पैदा कर सकता है. इससे चीन घरेलू खपत के अलावा नेपाल, म्यांमार और पूर्वी एशिया के देशों को बिजली बेचने में सक्षम हो जाएगा. राज्य के नियंत्रण वाले चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने हाल ही में कहा कि बांध उन जगहों पर बनाए जाएंगे जहां बिजली की अधिकतम मात्रा में उत्पन्न होगी.
  • भारत की ईस्ट पॉलिसी को होगा नुकसान
    इसके अलावा चीन इस बड़ी जल विद्युत परियोजना के निर्माण के साथ ऊर्जा निर्यात पर भी विचार कर रहा है और इसके लिए नेपाल में उच्च-वोल्टेज संचरण लाइनें बनाई जा रही हैं. जलविद्युत परियोजना शुरू होने के बाद यह चीन अपने पड़ोसी देशों के विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करेगा. रणनीतिक रूप से यह भारत की भव्य ग्रांड ईस्ट पॉलिसी को भी रोकेगा, जिसके जल्द ही लागू होने की उम्मीद है.
  • कार्बन उत्सर्जन में कटौती
    तीसरा यह कि चीन ने कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और नवीकरणीय गैर-जीवाश्म ईंधन के उपयोग को बढ़ाने के लिए एक महत्वाकांक्षी मिशन को शुरू किया है. चीन की योजना 2030 से पहले कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाने और 2060 से पहले कार्बन तटस्थता हासिल करने की है.
  • चीन की ताकत बढ़ेगी
    बांध बनाने का चौथा कारण यह है कि एक बार बांध निर्मित होने के बाद भारत के साथ हमेशा सौदेबाजी का नया विकल्प उपलब्ध रहेगा. इससे चीन की शक्ति में और इजाफा होगा और भारत के विरुद्ध यह चीन को हमेशा मजबूती प्रदान करेगा. इस परियोजना से असम और बांग्लादेश में पानी की उपलब्धता को बढ़ाना और नियंत्रित करना चीनी हाथों में चला जाएगा.

रविवार को चीन के केंद्रीय टेलीविजन (सीसीटीवी) के अनुसार चीन के शीर्ष जलवायु सलाहकार झी झेनहुआ ने कहा कि इसके माध्यम से चीन अंतरराष्ट्रीय समुदायों को यह संदेश देगा कि चीन में टाइम टेबल और कार्बन तटस्थता प्राप्त करने के लिए रोडमैप कैसे निर्धारित किया गया है.

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई को लेकर यह अमेरिका और पश्चिम के साथ चीन के लिए नए रास्ते खोलेगा, जो वर्तमान में इस मुद्दे को लेकर काफी जूझ रहा है. साथ ही इससे देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा में सुधार और वृद्धि होगी.

(ईसाई धर्म की मान्यता के मुताबिक होली ग्रैल एक जादुई प्याला है, जिसके इस्तेमाल से इंसान बेहद शक्तिशाली या अमर हो जाता है. चीन की बांध परियोजना भी उसके लिए होली ग्रैल की तरह है, जो उसे बेहद शक्तिशाली बनाएगा.)

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