हैदराबाद: भले ही सूबे की सियासी रेस में बहुजन समाज पार्टी (BSP) बहुत पीछे दिख रही हो. लेकिन तूफान आने से पहले शांति का मंजर भी इससे अलग नहीं होता. पिछले विधानसभा और आम चुनाव की बात करें तो सूबे में बसपा को जोर का झटका लगा था. सीटों के साथ ही प्राप्त वोटों की संख्या में भी भारी (huge drop in the number of votes received) गिरावट आई थी. वहीं, इस बदले परिदृश्य में अब बसपा ने अपनी सियासी 'चक्रव्यूह' के बल पर मैदान फतह की रणनीति बनाई है.
पार्टी सुप्रीमो मायावती ने आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) की तैयारियां शुरू कर दी हैं. वहीं, बसपा प्रमुख ने सूबे की सियासत में महिलाओं की अहमियत पर अधिक बल दिया है. इतना ही पार्टी की मुखिया मायावती 'मिशन चक्रव्यूह' पर काम कर रही हैं. मिशन चक्रव्यूह के जरिए जाति से ऊपर उठकर उन लोगों को बसपा में लाने की कोशिश हो रही है, जो 'इंटेलेक्चुएल' बिरादरी से आते हैं.
यूपी चुनाव के लिए मायावती की नई रणनीति (Mayawati new strategy for UP elections) के तहत इंटेलेक्चुएल लोगों को अब पार्टी में जोड़ने की योजना बनाई गई है. पार्टी सूत्रों की मानें तो मायावती सूबे की सत्ता में आने के लिए हाथ, पांव मार रही हैं. इतना ही अबकी बसपा प्रमुख मायावती इस बार कई एक्सपेरिमेंट करती दिख रही हैं.
हमेशा से ही दलितों की सियासत करने वाली मायावती इस बार दूसरे समुदायों पर भी अपना दांव जमा रही हैं. वे सभी को साथ लेकर चलने की बात कर रही हैं. अब इसी दिशा में चुनाव से ठीक पहले बसपा एक और बड़ा कदम उठाने जा रही है.
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बताया गया कि बसपा उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए अपना मिशन चक्रव्यूह शुरू करने जा रही है. मिशन चक्रव्यूह के जरिए जाति से ऊपर उठकर उन लोगों को बसपा में लाने का प्रयास रहेगा जो 'इंटेलेक्चुएल' हैं, जो समाज को बदलने का माद्दा रखते हैं. अब इस मिशन में क्या ब्राह्मण, क्या बनिया और क्या दलित, सभी को साथ लेकर चलने की बात कही जा रही है.
बसपा के प्रवक्ता फैजान खान (BSP spokesperson Faizan Khan) के मुताबिक बसपा हमेशा से सभी जातियों को साथ लेकर चलती रही है. ऐसे में मिशन चक्रव्यूह के जरिए भी सभी जातियों को एकजुट करने का प्रयास है. यहां तक कहा जा रहा है कि इन इंटेलेक्चुएल लोगों को सरकार में जगह दी जाएगी, उन्हें अहम पद मिलेंगे. अब इस नए दांव के जरिए मायावती समाज के उस शिक्षित वर्ग को भी टारगेट करना चाहती हैं जो बसपा का कोर वोट बैंक नहीं थे.
पार्टी में बढ़ी इंटेलेक्चुअल्स की मांग
इससे पहले पूरे उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण सम्मेलन कर बसपा ने सियासी समीकरण को अपने पक्ष में करने की कोशिश की थी. वहीं, अब एक कदम आगे बढ़कर हर जाति के एक विशेष समुदाय पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. पार्टी के प्रवक्ता फैजान खान बताते हैं कि बसपा हर धर्म के लोगों को अपनी पार्टी में शामिल करना चाहती है. फिर चाहे वो हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो या हो ईसाई.
खैर, इन सब के बीच अब दलित मतदाता मायावती से किनारा करने लगे हैं और इसे पिछले चुनाव परिणाम को देख समझा जा सकता है. शायद यही कारण है कि अब मायावती दलित सियासत से अलग पहचान और पार्टी की वजूद को बचाने के लिए ब्राह्मणों व अन्य को अधिक महत्व दे रही हैं.
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इतना ही नहीं जो मायावती कभी 'तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार' के नारे दिया करती थीं, वो आज अपने नारे में तब्दीली कर ब्राह्मण फर्स्ट की सियासत करने लगी है. तभी तो उन्होंने नारा दिया, ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी चलता जाएगा. पिछले लंबे समय से यूपी की सत्ता से बाहर रही मायावती फिर उसी अंदाज में चुनावी मैदान में तो तैयारी हैं, लेकिन उनके हार्ड कोर समर्थक माने जाने वाले जाटव और गैर जाटव दलितों ने अब उनसे किनारा करना शुरू कर दिया है. ऐसे में अब वो ब्राह्मण वोटरों को लुभाकर विजय का प्लान बना रहीं हैं.