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हिरासत में मौत का मामला : SC ने हिमाचल के पूर्व IG को जमानत देने से किया इनकार

उच्चतम न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक जहूर हैदर जैदी की जमानत बहाल करने के इनकार कर दिया है. अदालत ने एक गवाह, जो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं, प्रभावित करने की कोशिश को संगीन आरोप बताया. उच्चतम न्यायालय की अवकाशकालीन पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी.

उच्चतम न्यायालय
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Published : Jun 15, 2021, 5:55 PM IST

Updated : Jun 15, 2021, 6:03 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने हिरासत में एक व्यक्ति की मौत के मामले में हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक (IG) जहूर हैदर जैदी (Zahoor Haider Zaidi) की जमानत बहाल करने से मंगलवार को इनकार कर दिया. अदालत ने कहा कि एक गवाह, जो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी है, को प्रभावित करने की कोशिश अत्यंत महत्वपूर्ण आरोप है.

आईपीएस अधिकारी को प्रभावित करने का आरोप

हिमाचल प्रदेश में शिमला जिले के कोठखाई में 2017 में एक स्कूल छात्रा से सामूहिक बलात्कार (gang rape) के आरोप में गिरफ्तार किए गए लोगों में से हिरासत में एक व्यक्ति की मौत के मामले में प्रमुख आरोपियों में से एक जैदी को शीर्ष अदालत ने छह अप्रैल 2019 को जमानत दे दी थी और बाद में मामले को शिमला से चंडीगढ़ स्थानांतरित कर दिया था.

चंडीगढ़ स्थित विशेष निचली अदालत ने जनवरी 2020 में जैदी की जमानत तब रद्द कर दी थी जब अभियोजन पक्ष की गवाह एवं आईपीएस अधिकारी सौम्या संबासिवन ने आरोप लगाया कि जैदी मुकदमे को प्रभावित करने के लिए उन पर दबाव बना रहे हैं.

बाद में, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय (High Court) ने जैदी की जमानत रद्द करने के निचली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था.

पढ़ें : गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने वाली अधिसूचना CAA से अलग, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र

पीठ ने माना, गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं जैदी

न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी (Justice Indira Banerjee) और न्यायमूर्ति एम आर शाह (Justice M.R. Shah) की अवकाशकालीन पीठ ने जैदी की जमानत को बहाल करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि आप सर्वोच्च आईपीएस अधिकारी (राज्य के) रहे हैं. आप दूसरे आईपीएस अधिकारी को कैसे धमका सकते हैं. यदि आप एक आईपीएस अधिकारी को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं तो आप अन्य गवाहों को भी प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं.

जैदी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता वी के गुप्ता ने कहा कि सभी अन्य आरोपी जमानत पर हैं, जबकि आईपीएस अधिकारी द्वारा दबाव बनाए जाने का आरोप लगाए जाने के बाद पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एक साल से अधिक समय से जेल में हैं.

उन्होंने कहा कि अभी मामले में कई गवाहों से जिरह की जानी है और इसके अतिरिक्त जैदी के खिलाफ मुख्य आरोप सबूत मिटाने का है, जिसमें अधिकतम सात साल कैद की सजा का प्रावधान है.

गवाह को प्रभावित करना अत्यंत महत्वपूर्ण चीज- पीठ

पीठ ने कहा कि आप इसे मामूली चीज मान सकते हैं, लेकिन जहां तक आपराधिक मुकदमों की बात है, तो किसी गवाह को प्रभावित करना एक अत्यंत महत्वपूर्ण चीज है. हम मामले का गुण-दोष नहीं देख रहे, बल्कि यह देख रहे हैं कि आपने निचली अदालत द्वारा लगाई गईं जमानत शर्तों का किस तरह पालन नहीं किया. जैदी के वकील ने इसके बाद शीर्ष अदालत से याचिका वापस ले ली.

यह भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट में ऑफ लाइन परीक्षा करवाने वाले बोर्डों के खिलाफ याचिका दायर

शीर्ष अदालत ने मामले को सात मई 2019 को शिमला से चंडीगढ़ स्थानांतरित करते हुए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के इस अभिवेदन को संज्ञान में लिया था कि यद्यपि आरोपत्र दायर कर दिया गया है, लेकिन मामले में मुकदमे में प्रगति नहीं दिखी है, इसलिए मामले को तेजी से निपटाने के लिए दूसरी अदालत में स्थानांतरित किया जाना चाहिए.

क्या था मामला ?

जैदी और सात अन्य को सूरज की मौत के मामले में गिरफ्तार किया गया था जो 18 जुलाई 2017 को कोठखाई थाने में मृत मिला था. कोठखाई में चार जुलाई 2017 को 16 वर्षीय एक लड़की लापता हो गई थी और दो दिन बाद छह जुलाई को उसका शव हलाइला वन से मिला था. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बलात्कार और हत्या की पुष्टि हुई थी, इस संबंध में मामला दर्ज कर लिया गया. राज्य में लोगों के आक्रोश के चलते वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जैदी के नेतृत्व में एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित की थी.

एसआईटी ने मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया था और आरोपी सूरज की हिरासत में मौत के बाद उच्च न्यायालय ने दोनों मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. सीबीआई ने हिरासत में मौत के मामले में जैदी, एक पुलिस उपायुक्त और अन्य पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया था.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने हिरासत में एक व्यक्ति की मौत के मामले में हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक (IG) जहूर हैदर जैदी (Zahoor Haider Zaidi) की जमानत बहाल करने से मंगलवार को इनकार कर दिया. अदालत ने कहा कि एक गवाह, जो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी है, को प्रभावित करने की कोशिश अत्यंत महत्वपूर्ण आरोप है.

आईपीएस अधिकारी को प्रभावित करने का आरोप

हिमाचल प्रदेश में शिमला जिले के कोठखाई में 2017 में एक स्कूल छात्रा से सामूहिक बलात्कार (gang rape) के आरोप में गिरफ्तार किए गए लोगों में से हिरासत में एक व्यक्ति की मौत के मामले में प्रमुख आरोपियों में से एक जैदी को शीर्ष अदालत ने छह अप्रैल 2019 को जमानत दे दी थी और बाद में मामले को शिमला से चंडीगढ़ स्थानांतरित कर दिया था.

चंडीगढ़ स्थित विशेष निचली अदालत ने जनवरी 2020 में जैदी की जमानत तब रद्द कर दी थी जब अभियोजन पक्ष की गवाह एवं आईपीएस अधिकारी सौम्या संबासिवन ने आरोप लगाया कि जैदी मुकदमे को प्रभावित करने के लिए उन पर दबाव बना रहे हैं.

बाद में, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय (High Court) ने जैदी की जमानत रद्द करने के निचली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था.

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पीठ ने माना, गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं जैदी

न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी (Justice Indira Banerjee) और न्यायमूर्ति एम आर शाह (Justice M.R. Shah) की अवकाशकालीन पीठ ने जैदी की जमानत को बहाल करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि आप सर्वोच्च आईपीएस अधिकारी (राज्य के) रहे हैं. आप दूसरे आईपीएस अधिकारी को कैसे धमका सकते हैं. यदि आप एक आईपीएस अधिकारी को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं तो आप अन्य गवाहों को भी प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं.

जैदी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता वी के गुप्ता ने कहा कि सभी अन्य आरोपी जमानत पर हैं, जबकि आईपीएस अधिकारी द्वारा दबाव बनाए जाने का आरोप लगाए जाने के बाद पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एक साल से अधिक समय से जेल में हैं.

उन्होंने कहा कि अभी मामले में कई गवाहों से जिरह की जानी है और इसके अतिरिक्त जैदी के खिलाफ मुख्य आरोप सबूत मिटाने का है, जिसमें अधिकतम सात साल कैद की सजा का प्रावधान है.

गवाह को प्रभावित करना अत्यंत महत्वपूर्ण चीज- पीठ

पीठ ने कहा कि आप इसे मामूली चीज मान सकते हैं, लेकिन जहां तक आपराधिक मुकदमों की बात है, तो किसी गवाह को प्रभावित करना एक अत्यंत महत्वपूर्ण चीज है. हम मामले का गुण-दोष नहीं देख रहे, बल्कि यह देख रहे हैं कि आपने निचली अदालत द्वारा लगाई गईं जमानत शर्तों का किस तरह पालन नहीं किया. जैदी के वकील ने इसके बाद शीर्ष अदालत से याचिका वापस ले ली.

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शीर्ष अदालत ने मामले को सात मई 2019 को शिमला से चंडीगढ़ स्थानांतरित करते हुए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के इस अभिवेदन को संज्ञान में लिया था कि यद्यपि आरोपत्र दायर कर दिया गया है, लेकिन मामले में मुकदमे में प्रगति नहीं दिखी है, इसलिए मामले को तेजी से निपटाने के लिए दूसरी अदालत में स्थानांतरित किया जाना चाहिए.

क्या था मामला ?

जैदी और सात अन्य को सूरज की मौत के मामले में गिरफ्तार किया गया था जो 18 जुलाई 2017 को कोठखाई थाने में मृत मिला था. कोठखाई में चार जुलाई 2017 को 16 वर्षीय एक लड़की लापता हो गई थी और दो दिन बाद छह जुलाई को उसका शव हलाइला वन से मिला था. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बलात्कार और हत्या की पुष्टि हुई थी, इस संबंध में मामला दर्ज कर लिया गया. राज्य में लोगों के आक्रोश के चलते वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जैदी के नेतृत्व में एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित की थी.

एसआईटी ने मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया था और आरोपी सूरज की हिरासत में मौत के बाद उच्च न्यायालय ने दोनों मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. सीबीआई ने हिरासत में मौत के मामले में जैदी, एक पुलिस उपायुक्त और अन्य पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया था.

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Jun 15, 2021, 6:03 PM IST
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