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सावधान: कोरोना का 'डेल्टा प्लस' वेरिएंट है घातक, दवाओं के असर पर भी संशय

कोरोना वायरस अपना स्वरूप बार-बार बदल रहा है. जिसकी वजह से ये अधिक घातक साबित हो रहा है. विशेषज्ञों की माने तो भारत में कोहराम मचाने वाले डेल्टा वेरिएंट में भी बदलाव हुआ है और अब इसे डेल्टा प्लस कहा जा रहा है. जो मौजूदा वेरिएंट से अधिक घातक हो सकता है.

खतरे की घंटी
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Published : Jun 14, 2021, 3:11 PM IST

हैदराबाद: भारत में कोरोना संक्रमण (covid-19 infection) की दूसरी लहर का कहर धीरे-धीरे कम हो रहा है लेकिन वायरस का बदलता रूप यानि म्यूटेशन (mutation) पूरी दुनिया को डरा रहा है. वैज्ञानिकों ने साफ किया है कि कोरोना वायरस लगातार बदल रहा है जो इसको और भी घातक बना रहा है. वैज्ञानिकों ने माना है कि भारत में कोहराम मचा चुका कोरोना का डेल्टा वेरिएंट (delta) ने फिर से अपना रूप बदल लिया है. जिसे डेल्टा प्लस (delta plus) कहा जा रहा है.

डेल्टा प्लस को लेकर क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?

लखनऊ के केजीएमयू की माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. शीतल वर्मा (Microbiologist Dr Sheetal Verma) के मुताबिक, अभी तक हुए अध्ययन में डेल्टा वेरिएंट (B.1.617.2) को कोरोना वायरस का सबसे संक्रामक रूप बताया जा रहा था. वहीं अब डेल्टा वेरिएंट, डेल्टा प्लस में बदल गया है. इसलिये ज्यादा सतर्क और ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है.

भारत में डेल्टा प्लस के 6 मामले

डॉ. शीतल वर्मा भारत में अभी डेल्टा प्लस के करीब छह मामले सामने आए हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि पहले इस संक्रमण को रोकने पर ध्यान देना होगा. अगर लोगों ने लापरवाही बरती तो तीसरी लहर का कारण बन सकता है. दूसरी लहर में प्लाज्मा थेरेपी, रेमडेसिविर, स्टेरॉयड थेरेपी का भी खूब उपयोग हुआ. ऐसे में इन मरीजों को भी सतर्कता बरतनी होगी. स्थितियों की पड़ताल के लिए राज्यवार जीनोम सीक्वेंसिंग को बढ़ाने की जरूरत है.

महाराष्ट्र में 47 बार स्वरूप बदल चुका वायरस

महाराष्ट्र में किए अध्ययन में तीन महीने के दौरान वहां अलग-अलग जिलों के लोगों में नए-नए 47 वेरिएंट मिले है. वैज्ञानिकों को अंदेशा यह भी है कि प्लाज्मा, रेमडेसिविर और स्टेरॉयड युक्त दवाओं के जमकर हुए इस्तेमाल की वजह से म्यूटेशन को बढ़ावा मिला है. इसीलिए दूसरे राज्यों में भी सीक्वेंसिंग को बढ़ाने की जरूरत है. यह अध्ययन पुणे स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) और नई दिल्ली स्थित नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) द्वारा संयुक्त तौर पर किया गया.

इन राज्यों में सीक्वेंसिंग बढ़ाने का सुझाव

डॉ. शीतल वर्मा के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना सहित उन राज्यों में जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing) सीक्वेंसिंग बढ़ाने की अपील की है, जहां पिछले दिनों सबसे ज्यादा संक्रमण का असर देखने को मिला था. इन राज्यों में कई जिले ऐसे भी थे, जहां संक्रमण दर 40 फीसदी तक पहुंच गई थी. ऐसे में यहां सीक्वेंसिंग को बढ़ाने की आवश्यकता है.

क्या होता है जीनोम सीक्वेंसिंग ?

जीनोम सीक्वेंसिंग किसी वायरस के बारे में जानकारी इकट्ठा करने की प्रक्रिया है. इसके जरिये वैज्ञानिक ये पता लगाते हैं कि वायरस किस तरह का है, किस तरह दिखता है और उसमें बदलाव है या नहीं. आसान शब्दों में कहें तो जीनोम सीक्वेंसिंग किसी वायरस का बायोडाटा होता है. जिससे वायरस के रंग रूप और उसमें होने वाले बदलाव की जानकारी मिलती है. इसलिये जिन राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर ने सबसे ज्यादा कहर बरपाया है वहां पर वायरस के जीनोम सीक्वेंसिंग की सलाह विशेषज्ञों द्वारा दी जा रही है क्योंकि हो सकता है कि इन राज्यों में वायरस में बदलाव की वजह से ज्यादा मामले सामने आए हों. कुल मिलाकर जीनोम सीक्वेंसिंग की मदद से वायरस के नए स्ट्रेन या म्यूटेंट के बारे में पता चलता है.

पहले से घातक वेरिएंट पर दवाएं होंगी बेअसर !

वैज्ञानिकों का मानना है कि डेल्टा प्लस वेरिएंट कोरोना के मौजूदा वेरिएंट से ज्यादा घातक साबित हो सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कोरोना संक्रमित मरीजों को दी जा रही मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल को भी ये वेरिएंट मात दे सकता है. वैज्ञानिक पहले भी कह चुके हैं कि वायरस अपना रूप लगातार बदल रहा है जो कि हर बदलाव के साथ पहले से घातक हो जाता है.

क्या है मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ?

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवा पिछले साल तब चर्चा में आई थी जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ये दवा दी गई थी. इस दवा के बारे में कहा गया कि 70 फीसदी मामलों में इस दवा से घर पर ही इलाज संभव है, अस्पताल जाने की जरूरत नहीं है. दरअसल, मोनोक्नोल एंटीबॉडी दवा दो दवाओं का मिश्रण है. इसलिए इसे एंटीबॉडी कॉकटेल दवा भी कहा जाता है. इसे दो दवाओं कासिरिविमैब और इम्देवीमाब के डोज मिलाकर तैयार किया जाता है. ये दवा काफी महंगी होती है.

ब्रिटेन में डेल्टा वेरिएंट मचा रहा कोहराम

बीते कुछ दिनों से ब्रिटेन में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. जिसे देखते हुए सरकार ने 21 जून को खत्म होने वाले लॉकडाउन को चार हफ्तों के लिए और बढ़ा दिया है. ब्रिटेन में कोरोना के नए मामलों की वजह डेल्टा वेरिएंट ही बताई जा रही है. पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएमई) ने भी इस बात की पुष्टि की है. बी.1.617 वैरिएंट अब तक 54 देशों में मिल चुका है. इसी के एक अन्य म्यूटेशन को डेल्टा वेरिएंट नाम विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दिया है. महाराष्ट्र में वैज्ञानिकों ने 47 बार वायरस के म्यूटेशन देखे.

वैक्सीनेशन और सावधानी है जरूरी

दुनियाभर में इस वक्त कोरोना वैक्सीनेशन का दौर चल रहा है. विशेषज्ञ भी टीकाकरण को वायरस के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार बता चुके हैं. इसके अलावा कोरोना का कोई भी वेरिएंट हो, विशेषज्ञ कोविड-19 से जुड़ी सावधानियां बरतने पर जोर देते हैं. जैसे मास्क पहनने से लेकर बार-बार हाथ धोने और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना.

ये भी पढ़ें: जानें क्यों विश्व कराटे चैंपियन चाय बेचने को हुआ मजबूर

हैदराबाद: भारत में कोरोना संक्रमण (covid-19 infection) की दूसरी लहर का कहर धीरे-धीरे कम हो रहा है लेकिन वायरस का बदलता रूप यानि म्यूटेशन (mutation) पूरी दुनिया को डरा रहा है. वैज्ञानिकों ने साफ किया है कि कोरोना वायरस लगातार बदल रहा है जो इसको और भी घातक बना रहा है. वैज्ञानिकों ने माना है कि भारत में कोहराम मचा चुका कोरोना का डेल्टा वेरिएंट (delta) ने फिर से अपना रूप बदल लिया है. जिसे डेल्टा प्लस (delta plus) कहा जा रहा है.

डेल्टा प्लस को लेकर क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?

लखनऊ के केजीएमयू की माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. शीतल वर्मा (Microbiologist Dr Sheetal Verma) के मुताबिक, अभी तक हुए अध्ययन में डेल्टा वेरिएंट (B.1.617.2) को कोरोना वायरस का सबसे संक्रामक रूप बताया जा रहा था. वहीं अब डेल्टा वेरिएंट, डेल्टा प्लस में बदल गया है. इसलिये ज्यादा सतर्क और ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है.

भारत में डेल्टा प्लस के 6 मामले

डॉ. शीतल वर्मा भारत में अभी डेल्टा प्लस के करीब छह मामले सामने आए हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि पहले इस संक्रमण को रोकने पर ध्यान देना होगा. अगर लोगों ने लापरवाही बरती तो तीसरी लहर का कारण बन सकता है. दूसरी लहर में प्लाज्मा थेरेपी, रेमडेसिविर, स्टेरॉयड थेरेपी का भी खूब उपयोग हुआ. ऐसे में इन मरीजों को भी सतर्कता बरतनी होगी. स्थितियों की पड़ताल के लिए राज्यवार जीनोम सीक्वेंसिंग को बढ़ाने की जरूरत है.

महाराष्ट्र में 47 बार स्वरूप बदल चुका वायरस

महाराष्ट्र में किए अध्ययन में तीन महीने के दौरान वहां अलग-अलग जिलों के लोगों में नए-नए 47 वेरिएंट मिले है. वैज्ञानिकों को अंदेशा यह भी है कि प्लाज्मा, रेमडेसिविर और स्टेरॉयड युक्त दवाओं के जमकर हुए इस्तेमाल की वजह से म्यूटेशन को बढ़ावा मिला है. इसीलिए दूसरे राज्यों में भी सीक्वेंसिंग को बढ़ाने की जरूरत है. यह अध्ययन पुणे स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) और नई दिल्ली स्थित नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) द्वारा संयुक्त तौर पर किया गया.

इन राज्यों में सीक्वेंसिंग बढ़ाने का सुझाव

डॉ. शीतल वर्मा के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना सहित उन राज्यों में जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing) सीक्वेंसिंग बढ़ाने की अपील की है, जहां पिछले दिनों सबसे ज्यादा संक्रमण का असर देखने को मिला था. इन राज्यों में कई जिले ऐसे भी थे, जहां संक्रमण दर 40 फीसदी तक पहुंच गई थी. ऐसे में यहां सीक्वेंसिंग को बढ़ाने की आवश्यकता है.

क्या होता है जीनोम सीक्वेंसिंग ?

जीनोम सीक्वेंसिंग किसी वायरस के बारे में जानकारी इकट्ठा करने की प्रक्रिया है. इसके जरिये वैज्ञानिक ये पता लगाते हैं कि वायरस किस तरह का है, किस तरह दिखता है और उसमें बदलाव है या नहीं. आसान शब्दों में कहें तो जीनोम सीक्वेंसिंग किसी वायरस का बायोडाटा होता है. जिससे वायरस के रंग रूप और उसमें होने वाले बदलाव की जानकारी मिलती है. इसलिये जिन राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर ने सबसे ज्यादा कहर बरपाया है वहां पर वायरस के जीनोम सीक्वेंसिंग की सलाह विशेषज्ञों द्वारा दी जा रही है क्योंकि हो सकता है कि इन राज्यों में वायरस में बदलाव की वजह से ज्यादा मामले सामने आए हों. कुल मिलाकर जीनोम सीक्वेंसिंग की मदद से वायरस के नए स्ट्रेन या म्यूटेंट के बारे में पता चलता है.

पहले से घातक वेरिएंट पर दवाएं होंगी बेअसर !

वैज्ञानिकों का मानना है कि डेल्टा प्लस वेरिएंट कोरोना के मौजूदा वेरिएंट से ज्यादा घातक साबित हो सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कोरोना संक्रमित मरीजों को दी जा रही मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल को भी ये वेरिएंट मात दे सकता है. वैज्ञानिक पहले भी कह चुके हैं कि वायरस अपना रूप लगातार बदल रहा है जो कि हर बदलाव के साथ पहले से घातक हो जाता है.

क्या है मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ?

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवा पिछले साल तब चर्चा में आई थी जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ये दवा दी गई थी. इस दवा के बारे में कहा गया कि 70 फीसदी मामलों में इस दवा से घर पर ही इलाज संभव है, अस्पताल जाने की जरूरत नहीं है. दरअसल, मोनोक्नोल एंटीबॉडी दवा दो दवाओं का मिश्रण है. इसलिए इसे एंटीबॉडी कॉकटेल दवा भी कहा जाता है. इसे दो दवाओं कासिरिविमैब और इम्देवीमाब के डोज मिलाकर तैयार किया जाता है. ये दवा काफी महंगी होती है.

ब्रिटेन में डेल्टा वेरिएंट मचा रहा कोहराम

बीते कुछ दिनों से ब्रिटेन में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. जिसे देखते हुए सरकार ने 21 जून को खत्म होने वाले लॉकडाउन को चार हफ्तों के लिए और बढ़ा दिया है. ब्रिटेन में कोरोना के नए मामलों की वजह डेल्टा वेरिएंट ही बताई जा रही है. पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएमई) ने भी इस बात की पुष्टि की है. बी.1.617 वैरिएंट अब तक 54 देशों में मिल चुका है. इसी के एक अन्य म्यूटेशन को डेल्टा वेरिएंट नाम विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दिया है. महाराष्ट्र में वैज्ञानिकों ने 47 बार वायरस के म्यूटेशन देखे.

वैक्सीनेशन और सावधानी है जरूरी

दुनियाभर में इस वक्त कोरोना वैक्सीनेशन का दौर चल रहा है. विशेषज्ञ भी टीकाकरण को वायरस के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार बता चुके हैं. इसके अलावा कोरोना का कोई भी वेरिएंट हो, विशेषज्ञ कोविड-19 से जुड़ी सावधानियां बरतने पर जोर देते हैं. जैसे मास्क पहनने से लेकर बार-बार हाथ धोने और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना.

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