ETV Bharat / bharat

नए साल में पेश होगी देश की पहली हाइड्रोजन ट्रेन, जानें पारंपरिक डीजल ट्रेन से कितनी होगी अलग

दुनिया में जलवायु परिवर्तन को लेकर देशों में जागरूकता फैलाई जा रही है, जिसके चलते भारतीय रेलवे भी इस ओर कदम उठाने जा रहा है. भारतीय रेलवे स्वदेशी तकनीक और ज्ञान से बनी पहली हाइड्रोजन ट्रेन को नए साल में शुरू करेगा.

country's first hydrogen train
देश की पहली हाइड्रोजन ट्रेन
author img

By

Published : Dec 29, 2022, 9:53 PM IST

हैदराबाद: भारतीय रेलवे जलवायु परिवर्तन की जांच और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए नए कदम उठा रहा है. स्वदेशी ज्ञान से बनी देश की पहली हाइड्रोजन ट्रेन का नए साल में अनावरण होने जा रहा है. प्रदूषण फैलाने वाले डीजल इंजनों की जगह इन्हें पेश किया जा रहा है. रेल मंत्री ने संकेत दिया कि यह केवल 6-8 कोच वाली पारंपरिक ट्रेन की तुलना में छोटी होगी. इससे पेरिस समझौते के तहत जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी.

लगातार बढ़ते जलवायु संकट का समाधान खोजने के लिए पूरी दुनिया हाथ-पांव मार रही है. इसके हिस्से के रूप में, देश परिवहन क्षेत्र में हाइड्रोजन जैसे हरित ईंधन को पेश करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. वर्तमान में यह क्षेत्र जीवाश्म ईंधन पर बहुत अधिक निर्भर है. हवाई यात्रा की तुलना में रेल यात्रा अधिक पर्यावरण अनुकूल है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय ग्रीनहाउस उत्सर्जन में रेलवे की हिस्सेदारी 1 फीसदी है. इसका मुख्य कारण डीजल इंजन है.

कई रेलवे कंपनियां संयुक्त राष्ट्र की 'रेस टू जीरो' की भावना में 2050 तक कार्बन मुक्त प्रणाली बनने का लक्ष्य बना रही हैं. मुख्य रूप से हाइड्रोजन पर केंद्रित है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि ईंधन से चलने वाली ये ट्रेनें उन मार्गों के लिए सर्वोत्तम हैं, जो विद्युतीकरण के लिए आर्थिक रूप से उत्तरदायी नहीं हैं. जर्मनी ने इस दिशा में एक कदम उठाया है. दुनिया की पहली हाइड्रोजन ट्रेन इसी साल अगस्त में पेश की गई थी. इसे 'कोराडिया द्वीप' नाम दिया गया था. इन्हें एल्स्टॉम द्वारा डिजाइन किया गया है. जर्मनी के लोअर सेक्सोनी क्षेत्र में 62 मील के रूट पर 14 हाइड्रोजन ट्रेनें चलती हैं.

हाइड्रोजन ट्रेनों के लाभ

हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन पर्यावरण के लिहाज से काफी बेहतर हैं. इनमें शून्य कार्बन उत्सर्जन होता है. इन्हीं से जल और भाप निकलती है. पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है. एक किलो हाइड्रोजन 4.5 किलो डीजल के बराबर ऊर्जा प्रदान कर सकती है. ग्रामीण सड़कों के लिए वरदान जहां विद्युतीकरण संभव नहीं है और सेवाएं ज्यादा नहीं चल रही हैं. ये ट्रेनें तेज आवाज नहीं करती हैं. पृथ्वी पर हाइड्रोजन की कोई कमी नहीं है. इसे समुद्र के पानी से एकत्र किया जा सकता है. 20 मिनट के अंदर फ्यूल भरा जा सकता है.

पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आगरा में मंदिर और मस्जिद फिर किए गए ध्वस्त

हाइड्रोजन ट्रेनों की विशेषता

कोराडिया द्वीप की ट्रेनें हाइड्रोजन ईंधन-सेल तकनीक पर चलती हैं. इनसे कोई हानिकारक उत्सर्जन नहीं होता है. इससे सालाना करीब 16 लाख लीटर डीजल की बचत होगी. इसके परिणामस्वरूप प्रति वर्ष 4 हजार टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन पर अंकुश लगेगा. एक बार ईंधन भरने के बाद ये ट्रेनें एक हजार किलोमीटर का सफर तय करती हैं. इस लिहाज से डीजल इंजन बेहतर हैं. हाइड्रोजन ट्रेनें 140 किमी प्रति घंटे की अधिकतम गति तक पहुंच सकती हैं. फिलहाल उस रूट पर चलने वाली ट्रेनें 80-120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार ही हासिल कर रही हैं.

हैदराबाद: भारतीय रेलवे जलवायु परिवर्तन की जांच और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए नए कदम उठा रहा है. स्वदेशी ज्ञान से बनी देश की पहली हाइड्रोजन ट्रेन का नए साल में अनावरण होने जा रहा है. प्रदूषण फैलाने वाले डीजल इंजनों की जगह इन्हें पेश किया जा रहा है. रेल मंत्री ने संकेत दिया कि यह केवल 6-8 कोच वाली पारंपरिक ट्रेन की तुलना में छोटी होगी. इससे पेरिस समझौते के तहत जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी.

लगातार बढ़ते जलवायु संकट का समाधान खोजने के लिए पूरी दुनिया हाथ-पांव मार रही है. इसके हिस्से के रूप में, देश परिवहन क्षेत्र में हाइड्रोजन जैसे हरित ईंधन को पेश करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. वर्तमान में यह क्षेत्र जीवाश्म ईंधन पर बहुत अधिक निर्भर है. हवाई यात्रा की तुलना में रेल यात्रा अधिक पर्यावरण अनुकूल है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय ग्रीनहाउस उत्सर्जन में रेलवे की हिस्सेदारी 1 फीसदी है. इसका मुख्य कारण डीजल इंजन है.

कई रेलवे कंपनियां संयुक्त राष्ट्र की 'रेस टू जीरो' की भावना में 2050 तक कार्बन मुक्त प्रणाली बनने का लक्ष्य बना रही हैं. मुख्य रूप से हाइड्रोजन पर केंद्रित है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि ईंधन से चलने वाली ये ट्रेनें उन मार्गों के लिए सर्वोत्तम हैं, जो विद्युतीकरण के लिए आर्थिक रूप से उत्तरदायी नहीं हैं. जर्मनी ने इस दिशा में एक कदम उठाया है. दुनिया की पहली हाइड्रोजन ट्रेन इसी साल अगस्त में पेश की गई थी. इसे 'कोराडिया द्वीप' नाम दिया गया था. इन्हें एल्स्टॉम द्वारा डिजाइन किया गया है. जर्मनी के लोअर सेक्सोनी क्षेत्र में 62 मील के रूट पर 14 हाइड्रोजन ट्रेनें चलती हैं.

हाइड्रोजन ट्रेनों के लाभ

हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन पर्यावरण के लिहाज से काफी बेहतर हैं. इनमें शून्य कार्बन उत्सर्जन होता है. इन्हीं से जल और भाप निकलती है. पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है. एक किलो हाइड्रोजन 4.5 किलो डीजल के बराबर ऊर्जा प्रदान कर सकती है. ग्रामीण सड़कों के लिए वरदान जहां विद्युतीकरण संभव नहीं है और सेवाएं ज्यादा नहीं चल रही हैं. ये ट्रेनें तेज आवाज नहीं करती हैं. पृथ्वी पर हाइड्रोजन की कोई कमी नहीं है. इसे समुद्र के पानी से एकत्र किया जा सकता है. 20 मिनट के अंदर फ्यूल भरा जा सकता है.

पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आगरा में मंदिर और मस्जिद फिर किए गए ध्वस्त

हाइड्रोजन ट्रेनों की विशेषता

कोराडिया द्वीप की ट्रेनें हाइड्रोजन ईंधन-सेल तकनीक पर चलती हैं. इनसे कोई हानिकारक उत्सर्जन नहीं होता है. इससे सालाना करीब 16 लाख लीटर डीजल की बचत होगी. इसके परिणामस्वरूप प्रति वर्ष 4 हजार टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन पर अंकुश लगेगा. एक बार ईंधन भरने के बाद ये ट्रेनें एक हजार किलोमीटर का सफर तय करती हैं. इस लिहाज से डीजल इंजन बेहतर हैं. हाइड्रोजन ट्रेनें 140 किमी प्रति घंटे की अधिकतम गति तक पहुंच सकती हैं. फिलहाल उस रूट पर चलने वाली ट्रेनें 80-120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार ही हासिल कर रही हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.