रामनगरः कॉर्बेट पार्क में अवैध कटान और निर्माण का मामला एक बार फिर चर्चाओं में आ गया है. मामले में उत्तराखंड शासन से कॉर्बेट के निदेशक राहुल कुमार को कारण बताओ नोटिस जारी हुआ है. सूत्रों की मानें तो इस मामले में एनटीसीए और रीजनल कमेटी की रिपोर्ट में राहुल कुमार की जांच करते हुए उन्हें क्लीन चिट दी गई है. उधर, हाईकोर्ट की हाई पावर कमेटी की रिपोर्ट में भी उनके लिए कुछ नहीं कहा गया है. हालांकि, अभी सीईसी और विजिलेंस की जांच रिपोर्ट आनी बाकी है. वहीं, ईटीवी भारत से कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल कुमार ने अपना पक्ष रखा है.
बता दें कि जुलाई 2021 में कालागढ़ टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण का कार्य हुआ था. उस वक्त निदेशक सीटीआर राहुल की ओर से तत्कालीन डीएफओ किशन चंद को लगातार कार्य नहीं करने के निर्देश दिए गए. कई अवैध कार्य जैसे कालागढ़, पाखरो रोड पर सीसी करना, टाइगर सफारी में तीसरा बाड़ा बनाने के काम आदि भी निदेशक स्तर से रोके गए. समस्त अवैध कार्यों के संबंध में उस वक्त कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक ने उच्च अधिकारियों को निरंतर सूचित एवं आवश्यक निर्देश हेतु पत्र भी लिखा.
सूत्रों की मानें तो तो पूरे मामले की शुरुआत किशन चंद के कालागढ़ डीएफओ बनने के बाद शुरू हुआ. जो मई 2021 में कॉर्बेट के कालागढ़ डिवीजन में डीएफओ बनकर आए. क्योंकि, मई और जून के महीने में कोरोना का प्रकोप था, लेकिन डीएफओ किशन चंद ने जुलाई से यहां टाइगर सफारी का काम शुरू किया. कहा जाता है कि टाइगर सफारी की आड़ में यहां पेड़ों के अवैध पातन के साथ ही अवैध तरीके से निर्माण कार्य शुरू किए गए. जिनमें सीसी रोड के साथ ही भवन निर्माण भी शामिल है. यहां एनटीसीए ने दो टाइगर बाड़े बनाने की अनुमति दी थी, लेकिन तत्कालीन डीएफओ किशन चंद तीसरा बाड़ा भी बना रहे थे.
सूत्र बताते हैं कि इस निर्माण कार्य को रोकने के लिए कॉर्बेट के डायरेक्टर राहुल ने तत्कालीन डीएफओ किशन चंद को भी कहा, लेकिन डीएफओ ने एक भी नहीं सुनी. अवैध निर्माण कार्य को रोकने के लिए डायरेक्टर ने डीएफओ को कई बार लिखित रूप से भी निर्देश दिए. जिसका कोई भी असर किशन चंद पर नहीं पड़ा. इस संबंध में सीटीआर निदेशक राहुल ने हेड ऑफ द फॉरेस्ट राजीव भरतरी और चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन केएस सुहाग को भी कई बार पत्र लिखा, लेकिन इस पर भी कोई एक्शन होता हुआ नहीं दिखाई दिया. न ही इन कामों को रोकने की कोई कोशिश की गई.
उठे कई गंभीर सवालः बता दें कि यह मामला तब सुर्खियों में आया, जब मीडिया को इन अवैध कामों की भनक लगी. जिसके बाद मामला देश की सुप्रीम अदालत तक जा पहुंचा. उसके बाद एनटीसीए ने भी मामले का संज्ञान लिया. वहीं, आज भी इस प्रकरण पर कई सवाल उठना लाजिमी है. पहला यह कि किशन चंद जैसे विवादित डीएफओ को कॉर्बेट जैसे संवेदनशील टाइगर रिजर्व में किस अधिकारी ने तैनात किया? जबकि वर्तमान सरकार ने भी इस डीएफओ को वीआरएस के लायक ही समझा.
दूसरा सवाल यह कि प्रदेश के वन विभाग के आला अधिकारियों के पास शिकायत होने के बावजूद मामले की जांच नहीं की. डीएफओ को वहां से क्यों नहीं हटाया? जबकि, बिना शिकायत के ही ढिकाला में मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक हट की जांच तक बैठा दी गई थी. वहीं, निदेशक के उच्चस्तर को लिखित पत्र के बाद भी उच्चस्तर से कोई कार्रवाई नहीं हुई, यह भी संदेह के घेरे में आता है.
क्या बोले सीटीआर निदेशक राहुल कुमार? वहीं, मामले में अब उत्तराखंड शासन ने कॉर्बेट पार्क के निदेशक राहुल कुमार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. इसी कड़ी में सीटीआर निदेशक राहुल ने ईटीवी भारत को बताया कि उन्हें शासन से कॉर्बेट के कालागढ़ टाइगर रिजर्व में जो अवैध कटान व निर्माण कार्य कार्य हुआ था, उस संबंध में कारण बताओ नोटिस मिला है. उन्होंने कहा कि जो भी कार्य वहां पर हुआ है, इस संबंध में उनकी ओर से नियमानुसार कार्रवाई की गई है. वहीं, उन्होंने कहा कि इस संबंध में अघोसाक्षी (खुद) की ओर से शासन को पूरी जानकारी पेश की जा रही है.
बता दें कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व जैव विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यह बाघों के घनत्व के लिए दुनिया में सबसे अव्वल दर्जे पर शुमार है. ऐसे में यहां एक ऐसे गलत अधिकारी की नियुक्ति ने टाइगर रिजर्व के साख में भट्टा लगाने का काम किया है. उसके ऊपर से गलत काम में चुप्पी साध कर प्रदेश के आला अधिकारियों ने डीएफओ किशन चंद के कामों को मुक्त स्वीकृति भी दी थी. जिसके चलते वन्यजीवों के संरक्षण में नंबर वन रहे टाइगर रिजर्व को बदनामी का कलंक झेलना पड़ रहा है. जिससे कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के कर्तव्यनिष्ठ स्टाफ का मनोबल गिरा है. जिसकी भरपाई करने में समय लगेगा.
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