नई दिल्ली : केन्द्र ने उच्चतम न्यायालय को बुधवार को बताया कि माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 में प्रस्तावित सुधार के लिए परामर्श प्रक्रिया जारी है. इस पर न्यायालय ने मध्यस्थों की नियुक्ति से जुड़े मुद्दे पर सुनवाई स्थगित कर दी. केन्द्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि देश में माध्यस्थम् कानून के संबंध में केंद्र द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति का कार्यकाल बढ़ा दिया गया है और समिति की रिपोर्ट अब नवंबर की शुरुआत में आने की उम्मीद है. तब तक के लिए मामले की सुनवाई को स्थगित कर दी गई.
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की इस बात पर गौर करते हुए प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस संबंध में सुनवाई नवंबर के मध्य तक के लिए स्थगित कर दी कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति जो मध्यस्थ बनने के अयोग्य है किसी अन्य व्यक्ति को मध्यस्थ नामित कर सकता है. इस संविधानपीठ में न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा, न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं. पीठ ने कहा, "अटॉर्नी जनरल का कहना है कि माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 में प्रस्तावित सुधार के लिए परामर्श प्रक्रिया जारी है. इसके मद्देनजर इस मामले को नवंबर के मध्य में लिया जाए, जब तक कानून के संबंध में स्पष्टता हो जाएगी."
इस मुद्दे पर विचार के लिए एक बड़ी पीठ के गठन के लिए 2021 में तीन-न्यायाधीशों की शीर्ष अदालत की पीठों ने दो संदर्भ दिए थे. उच्चतम न्यायालय ने 2017 और 2020 में कहा था कि एक व्यक्ति जो मध्यस्थ बनने योग्य नहीं हैं वह किसी अन्य व्यक्ति को मध्यस्थ नामित नहीं कर सकता. हालांकि, एक अन्य मामले में उच्चतम न्यायालय ने 2020 में मध्यस्थ बनने के अयोग्य व्यक्ति की ओर से की गई नियुक्ति को मंजूरी दी थी.
भारत को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र बनाने के प्रयास के बीच, सरकार ने अदालतों पर बोझ कम करने के लिए माध्यस्थम् एवं सुलह अधिनियम में सुधारों पर सुझाव देने के लिए पूर्व विधि सचिव टीके विश्वनाथन के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था. केंद्रीय कानून मंत्रालय के तहत आने वाले कानूनी मामलों के विभाग की ओर से गठित विशेषज्ञ समिति में वेंकटरमणी भी शामिल हैं.