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गहलोत समर्थकों ने नहीं दिया नोटिस का जवाब, विकल्प तलाश रही कांग्रेस - सोनिया गहलोत

राजस्थान कांग्रेस का संकट भले ही थम गया हो, लेकिन पार्टी अपने नेताओं में विद्रोह को नज़रअंदाज़ नहीं करेगी. पार्टी ने राजस्थान में जिन तीन प्रमुख नेताओं को कारण बताओ नोटिस भेजा था, समयसीमा खत्म होने के बाद भी उसका जवाब नहीं आया है. 'ईटीवी भारत' के वरिष्ठ संवाददाता अमित अग्निहोत्री की रिपोर्ट.

Congress weighing options
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Published : Oct 6, 2022, 10:13 PM IST

नई दिल्ली : राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Rajasthan chief minister Ashok Gehlot) के तीन करीबी सहयोगी गुरुवार तक कारण बताओ नोटिस का जवाब देने में विफल रहे. एआईसीसी की अनुशासन समिति (AICC disciplinary committee) अब इस मामले में उचित कार्रवाई करेगी.

बीते दिनों राज्य में नेतृत्व बदलाव मुद्दे पर 90 से ज्यादा विधायकों ने विद्रोह कर दिया था. जिसके बाद संसदीय मामलों के मंत्री शांति कुमार धारीवाल, विधानसभा में मुख्य सचेतक महेश जोशी और राज्य पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौर सहित तीन नेताओं को 'गंभीर अनुशासनहीनता' पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था.

एके एंटनी की अध्यक्षता वाली एआईसीसी अनुशासन समिति ने 27 सितंबर को नोटिस भेजा था और उनसे 10 दिन की अवधि के भीतर जवाब देने को कहा था, ये समयसीमा गुरुवार को समाप्त हो गई. एआईसीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, '10 दिन की अवधि समाप्त हो गई है. समिति ने मामले को सीज कर लिया है और इस मामले में उचित निर्णय लेगी.'

गहलोत के प्रति वफादार विधायकों ने 25 सितंबर को जयपुर में विद्रोह कर दिया था. उन्होंने एआईसीसी पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे और राजस्थान के एआईसीसी प्रभारी अजय माकन द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के मुख्यमंत्री अधिकृत करने के लिए एक-लाइन प्रस्ताव पारित करने के सुझाव पर अपना गुस्सा व्यक्त किया था.

गहलोत खेमे को डर था कि जिस मुख्यमंत्री को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अगला पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए कहा था, उनकी जगह उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट ले लेंगे.

विद्रोही विधायकों ने खड़गे द्वारा बुलाई गई सीएलपी की एक अनौपचारिक बैठक में भी भाग लेने से इनकार कर दिया था. इसके बजाय एक समानांतर सम्मेलन आयोजित किया जहां उन्होंने तर्क दिया कि अगर गहलोत को हटाना है तो उनमें से एक को अगला मुख्यमंत्री बनना चाहिए. विधायकों ने आरोप लगाया था कि पायलट ने 2020 में भाजपा के इशारे पर गहलोत सरकार को अस्थिर करने के लिए तख्तापलट का नेतृत्व किया था इसलिए, सचिन को 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले शीर्ष कार्यकारी पद नहीं दिया जाना चाहिए.

अपने तीन सहयोगियों को कारण बताओ नोटिस दिए जाने के बाद, गहलोत ने सोनिया से वांछित प्रस्ताव पारित करने में विफल रहने के लिए खेद व्यक्त किया था और अध्यक्ष पद की दौड़ से हट गए थे. कुछ दिनों पहले गहलोत ने विधायकों का बचाव करते हुए कहा था कि वे अतीत में उनके साथ खड़े थे, इसलिए उनके लिए उनका समर्थन करना महत्वपूर्ण था. पार्टी अध्यक्ष की रेस से गहलोत के बाहर होने से खड़गे की एंट्री हुई, जो अब अगले कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में शशि थरूर के खिलाफ खड़े हैं. मतदान 17 अक्टूबर को होगा. नतीजे 19 अक्टूबर को आएंगे.

एआईसीसी महासचिव केसी वेणुगोपाल (AICC general secretary KC Venugopal) ने 27 सितंबर को घोषणा की थी कि सोनिया तय करेंगी कि गहलोत को दो दिनों में बदला जाएगा या नहीं, लेकिन बाद में पार्टी ने अनावश्यक विवाद पैदा करने से बचने के लिए अध्यक्ष चुनाव खत्म होने तक फैसला टाल दिया.

सूत्रों ने कहा कि इसी कारण से गहलोत के तीनों सहयोगियों को अपना जवाब देने के लिए कुछ और दिन दिए जा सकते हैं, क्योंकि नवरात्रि और दशहरा त्योहारों के बीच यह संभव नहीं हो सकता था. सूत्रों ने कहा कि जल्दबाजी में लिया गया कोई भी फैसला अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है.

पढ़ें- अध्यक्ष चुनाव के बाद राजस्थान CM पर फैसला लेगी कांग्रेस, गहलोत फिलहाल सुरक्षित

नई दिल्ली : राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Rajasthan chief minister Ashok Gehlot) के तीन करीबी सहयोगी गुरुवार तक कारण बताओ नोटिस का जवाब देने में विफल रहे. एआईसीसी की अनुशासन समिति (AICC disciplinary committee) अब इस मामले में उचित कार्रवाई करेगी.

बीते दिनों राज्य में नेतृत्व बदलाव मुद्दे पर 90 से ज्यादा विधायकों ने विद्रोह कर दिया था. जिसके बाद संसदीय मामलों के मंत्री शांति कुमार धारीवाल, विधानसभा में मुख्य सचेतक महेश जोशी और राज्य पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौर सहित तीन नेताओं को 'गंभीर अनुशासनहीनता' पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था.

एके एंटनी की अध्यक्षता वाली एआईसीसी अनुशासन समिति ने 27 सितंबर को नोटिस भेजा था और उनसे 10 दिन की अवधि के भीतर जवाब देने को कहा था, ये समयसीमा गुरुवार को समाप्त हो गई. एआईसीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, '10 दिन की अवधि समाप्त हो गई है. समिति ने मामले को सीज कर लिया है और इस मामले में उचित निर्णय लेगी.'

गहलोत के प्रति वफादार विधायकों ने 25 सितंबर को जयपुर में विद्रोह कर दिया था. उन्होंने एआईसीसी पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे और राजस्थान के एआईसीसी प्रभारी अजय माकन द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के मुख्यमंत्री अधिकृत करने के लिए एक-लाइन प्रस्ताव पारित करने के सुझाव पर अपना गुस्सा व्यक्त किया था.

गहलोत खेमे को डर था कि जिस मुख्यमंत्री को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अगला पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए कहा था, उनकी जगह उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट ले लेंगे.

विद्रोही विधायकों ने खड़गे द्वारा बुलाई गई सीएलपी की एक अनौपचारिक बैठक में भी भाग लेने से इनकार कर दिया था. इसके बजाय एक समानांतर सम्मेलन आयोजित किया जहां उन्होंने तर्क दिया कि अगर गहलोत को हटाना है तो उनमें से एक को अगला मुख्यमंत्री बनना चाहिए. विधायकों ने आरोप लगाया था कि पायलट ने 2020 में भाजपा के इशारे पर गहलोत सरकार को अस्थिर करने के लिए तख्तापलट का नेतृत्व किया था इसलिए, सचिन को 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले शीर्ष कार्यकारी पद नहीं दिया जाना चाहिए.

अपने तीन सहयोगियों को कारण बताओ नोटिस दिए जाने के बाद, गहलोत ने सोनिया से वांछित प्रस्ताव पारित करने में विफल रहने के लिए खेद व्यक्त किया था और अध्यक्ष पद की दौड़ से हट गए थे. कुछ दिनों पहले गहलोत ने विधायकों का बचाव करते हुए कहा था कि वे अतीत में उनके साथ खड़े थे, इसलिए उनके लिए उनका समर्थन करना महत्वपूर्ण था. पार्टी अध्यक्ष की रेस से गहलोत के बाहर होने से खड़गे की एंट्री हुई, जो अब अगले कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में शशि थरूर के खिलाफ खड़े हैं. मतदान 17 अक्टूबर को होगा. नतीजे 19 अक्टूबर को आएंगे.

एआईसीसी महासचिव केसी वेणुगोपाल (AICC general secretary KC Venugopal) ने 27 सितंबर को घोषणा की थी कि सोनिया तय करेंगी कि गहलोत को दो दिनों में बदला जाएगा या नहीं, लेकिन बाद में पार्टी ने अनावश्यक विवाद पैदा करने से बचने के लिए अध्यक्ष चुनाव खत्म होने तक फैसला टाल दिया.

सूत्रों ने कहा कि इसी कारण से गहलोत के तीनों सहयोगियों को अपना जवाब देने के लिए कुछ और दिन दिए जा सकते हैं, क्योंकि नवरात्रि और दशहरा त्योहारों के बीच यह संभव नहीं हो सकता था. सूत्रों ने कहा कि जल्दबाजी में लिया गया कोई भी फैसला अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है.

पढ़ें- अध्यक्ष चुनाव के बाद राजस्थान CM पर फैसला लेगी कांग्रेस, गहलोत फिलहाल सुरक्षित

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