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कांग्रेस ने तीन आपराधिक कानून सुधार विधेयकों में खामियां निकालीं, सार्वजनिक चर्चा की उठाई मांग

केंद्र सरकार आपराधिक कानून सुधार विधेयक लेकर आई है. कांग्रेस का कहना है कि गृह मंत्री ने केवल गुमराह किया है. कांग्रेस ने इन पर सार्वजनिक राय लेने की मांग उठाई है. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता अमित अग्निहोत्री की रिपोर्ट.

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Published : Aug 13, 2023, 5:51 PM IST

नई दिल्ली : कांग्रेस ने रविवार को नए आपराधिक कानून सुधार विधेयकों में खामियां गिनाईं और आरोप लगाया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद को गुमराह किया है (Congress picks holes in three criminal law reform bills). कांग्रेस ने मांग की है कि व्यापक सहमति बनाने के लिए इन कानूनों पर सार्वजनिक रूप से चर्चा की जाए.

कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला (Randeep Surjewala) ने कहा, 'गृह मंत्री की परिचयात्मक टिप्पणियों से यह तथ्य उजागर हो गया कि वह पूरी प्रक्रिया से अनभिज्ञ, अज्ञानी हैं. श्रेय लेने की कोशिश में कुछ बिंदु स्कोर करने के अलावा, सार्वजनिक चकाचौंध या हितधारकों के ज्ञान से दूर एक छिपा हुआ अभ्यास, देश में आपराधिक कानून संरचना में सुधार के उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकता है.'

उन्होंने कहा कि 'जबकि विधेयकों को संसद की एक चयन समिति को भेजा गया है, इसके प्रावधानों को न्यायविदों, वकीलों, सुधारकों और अन्य हितधारकों द्वारा बड़ी सार्वजनिक बहस के लिए खुला रखा जाना चाहिए ताकि बिना बहस किए पूरे आपराधिक कानून ढांचे को ढहाने के जाल से दूर रहें, जो कि भाजपा सरकार के डीएनए में बसा हुआ है. हमें आशा है कि बेहतर समझ कायम होगी.'

कांग्रेस नेता आपराधिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम से संबंधित औपनिवेशिक युग के कानूनों में सुधार के लिए 11 अगस्त को गृह मंत्री द्वारा पेश किए गए तीन विधेयकों का जवाब दे रहे थे (three criminal law reform bills). नए विधेयक हैं भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता.

सुरजेवाला ने कहा कि 'मोदी सरकार ने आपराधिक कानून संरचना में सुधार के लिए हितधारकों के साथ कोई पूर्व परामर्श किए बिना गुप्त और अपारदर्शी तरीके से अपने काले जादू की टोपी से तीन बिल पेश किए.'

कांग्रेस पार्टी द्वारा किए गए तीन नए बिलों के विश्लेषण के अनुसार, गृह मंत्री ने झूठ बोला और गुमराह किया कि 'जीरो एफआईआर' (क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के बावजूद एफआईआर) और ई-एफआईआर की अवधारणा पहली बार पेश की जा रही है.

सुरजेवाला ने कहा कि 'जीरो एफआईआर पिछली कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के दिमाग की उपज थी, जिसने 10 मई 2013 को पारित एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से इसे प्रभावी बनाया. गृह मंत्री ने ई-एफआईआर पर फिर से झूठ बोला. वह तीसरी बार इस सुविधा को प्रभावी ढंग से लॉन्च कर रहे हैं. यह यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे द्वारा किया गया था.

दुष्कर्म पीड़िता के बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग से संबंधित नए प्रावधान के गृह मंत्री के दावे पर कांग्रेस नेता ने कहा कि 'शाह ने यह कहकर झूठ बोला कि इसे अनिवार्य बना दिया गया है जबकि नया विधेयक इसे केवल वैकल्पिक बनाता है.'

सुरजेवाला ने कहा कि 'गृह मंत्री ने एक और बिंदु पर झूठ बोला कि सामूहिक दुष्कर्म के लिए अब 20 साल की जेल या आजीवन कारावास की सजा हो गई है. यह सीआरपीसी में मौजूद है.'

घोषित अपराधियों की संपत्ति की नीलामी से संबंधित नए प्रावधान पर कांग्रेस ने कहा कि यह सीआरपीसी की धारा 83 के तहत मौजूद है. बच्चों पर आपराधिक हमले के लिए मौत की सजा के नए प्रावधान पर, कांग्रेस नेता ने कहा, 'यह रीपैकेजिंग है और विशेष अधिनियम POCSO के तहत भी यही प्रावधान मौजूद है.'

गृह मंत्री के इस दावे पर कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए राजद्रोह के प्रावधान को निरस्त कर दिया गया है, कांग्रेस नेता ने कहा कि नए प्रावधानों के तहत, राजद्रोह की परिभाषा को अधिक खुला और व्यापक बना दिया गया है जिससे इसका दुरुपयोग हो सकता है.

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कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला (Randeep Surjewala) ने कहा, 'गृह मंत्री की परिचयात्मक टिप्पणियों से यह तथ्य उजागर हो गया कि वह पूरी प्रक्रिया से अनभिज्ञ, अज्ञानी हैं. श्रेय लेने की कोशिश में कुछ बिंदु स्कोर करने के अलावा, सार्वजनिक चकाचौंध या हितधारकों के ज्ञान से दूर एक छिपा हुआ अभ्यास, देश में आपराधिक कानून संरचना में सुधार के उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकता है.'

उन्होंने कहा कि 'जबकि विधेयकों को संसद की एक चयन समिति को भेजा गया है, इसके प्रावधानों को न्यायविदों, वकीलों, सुधारकों और अन्य हितधारकों द्वारा बड़ी सार्वजनिक बहस के लिए खुला रखा जाना चाहिए ताकि बिना बहस किए पूरे आपराधिक कानून ढांचे को ढहाने के जाल से दूर रहें, जो कि भाजपा सरकार के डीएनए में बसा हुआ है. हमें आशा है कि बेहतर समझ कायम होगी.'

कांग्रेस नेता आपराधिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम से संबंधित औपनिवेशिक युग के कानूनों में सुधार के लिए 11 अगस्त को गृह मंत्री द्वारा पेश किए गए तीन विधेयकों का जवाब दे रहे थे (three criminal law reform bills). नए विधेयक हैं भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता.

सुरजेवाला ने कहा कि 'मोदी सरकार ने आपराधिक कानून संरचना में सुधार के लिए हितधारकों के साथ कोई पूर्व परामर्श किए बिना गुप्त और अपारदर्शी तरीके से अपने काले जादू की टोपी से तीन बिल पेश किए.'

कांग्रेस पार्टी द्वारा किए गए तीन नए बिलों के विश्लेषण के अनुसार, गृह मंत्री ने झूठ बोला और गुमराह किया कि 'जीरो एफआईआर' (क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के बावजूद एफआईआर) और ई-एफआईआर की अवधारणा पहली बार पेश की जा रही है.

सुरजेवाला ने कहा कि 'जीरो एफआईआर पिछली कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के दिमाग की उपज थी, जिसने 10 मई 2013 को पारित एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से इसे प्रभावी बनाया. गृह मंत्री ने ई-एफआईआर पर फिर से झूठ बोला. वह तीसरी बार इस सुविधा को प्रभावी ढंग से लॉन्च कर रहे हैं. यह यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे द्वारा किया गया था.

दुष्कर्म पीड़िता के बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग से संबंधित नए प्रावधान के गृह मंत्री के दावे पर कांग्रेस नेता ने कहा कि 'शाह ने यह कहकर झूठ बोला कि इसे अनिवार्य बना दिया गया है जबकि नया विधेयक इसे केवल वैकल्पिक बनाता है.'

सुरजेवाला ने कहा कि 'गृह मंत्री ने एक और बिंदु पर झूठ बोला कि सामूहिक दुष्कर्म के लिए अब 20 साल की जेल या आजीवन कारावास की सजा हो गई है. यह सीआरपीसी में मौजूद है.'

घोषित अपराधियों की संपत्ति की नीलामी से संबंधित नए प्रावधान पर कांग्रेस ने कहा कि यह सीआरपीसी की धारा 83 के तहत मौजूद है. बच्चों पर आपराधिक हमले के लिए मौत की सजा के नए प्रावधान पर, कांग्रेस नेता ने कहा, 'यह रीपैकेजिंग है और विशेष अधिनियम POCSO के तहत भी यही प्रावधान मौजूद है.'

गृह मंत्री के इस दावे पर कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए राजद्रोह के प्रावधान को निरस्त कर दिया गया है, कांग्रेस नेता ने कहा कि नए प्रावधानों के तहत, राजद्रोह की परिभाषा को अधिक खुला और व्यापक बना दिया गया है जिससे इसका दुरुपयोग हो सकता है.

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