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पार्टी नेताओं की गुटबाजी और आतंरिक कलह पर सख्त है कांग्रेस की भूमिका

पार्टी के आंतरिक कलह को संभालने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब और राजस्थान दोनों में हाल की घटनाओं के दौरान अपनी अहम उपस्थिति दर्ज कराई है. पंजाब और राजस्थान के आतंरिक कलह पर पार्टी आलाकमान की भूमिका काे लेकर पेश है संवाददाता नियमिका सिंह की खास रिपाेर्ट...

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Published : Sep 25, 2021, 10:10 PM IST

पार्टी
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नई दिल्ली : कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जब स्थानीय नेताओं के बीच खींचतान नियंत्रण से बाहर हो गई तो वह इसमें प्रमुख भूमिका निभा सकती है. यह स्थिति पहले पंजाब में बन रही थी और अब लगता है कि अगला राजस्थान हाेगा.

पिछले दो सालों में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह शायद ही कभी दिल्ली आए हों. वह कांग्रेस पार्टी द्वारा किए गए लंबे चुनावी वादों को पूरा न करने से संबंधित असंतुष्ट विधायकों की शिकायतों पर आवश्यक कदम उठाने में भी नाकाम रहे थे.

गांधी परिवार के प्रति कैप्टन की लंबे समय से चली आ रही वफादारी को देखते हुए पार्टी आलाकमान ने उन्हें सीएम पद से हटने के लिए कहा तो यह थोड़ा हैरान करने वाला था. इसके अलावा, चरणजीत सिंह चन्नी की पहली दलित सीएम के रूप में नियुक्ति से गांधी परिवार ने न केवल गुटबाजी की लड़ाई को रोका, बल्कि राज्य की जनसांख्यिकी को देखते हुए एक चुनावी मास्टरस्ट्रोक भी खेला है.

यहां तक ​​कि कैबिनेट विस्तार पर फैसला लेने के लिए भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया, जिसके चलते पंजाब के मुख्यमंत्री को भी 24 घंटे के अंदर दो बार दिल्ली तलब किया गया था.

ऐसी ही स्थिति अब राजस्थान में देखने को मिल रही है. सचिन पायलट की पिछले 1 सप्ताह में राहुल गांधी के साथ दो बैठकें हुई हैं. पायलट गुट के नेता और कार्यकर्ता लंबे समय से कैबिनेट और संगठन दोनों में बदलाव के इंतजार में हैं.

अटकलें लगाई जा रही हैं कि राजस्थान के लंबित मामले जैसे कैबिनेट विस्तार, राजनीतिक नियुक्तियां और संगठनात्मक परिवर्तन नवरात्रि के दौरान हल हो जाएंगे.

इस बैठक ने कथित तौर पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे में बेचैनी पैदा कर दी है क्योंकि गांधी मंत्रिमंडल में फेरबदल के लिए उनकी देरी की रणनीति से नाराज हैं,

राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर राजस्थान के स्पीकर सीपी जोशी से भी चर्चा की है, जिनसे वह पिछले हफ्ते शिमला रवाना होने से पहले मिले थे.

हालांकि सूत्रों के मुताबिक पार्टी आलाकमान ने पायलट को साफ कर दिया है कि प्रदेश नेतृत्व में कोई बदलाव नहीं होगा लेकिन हो सकता है कि गहलोत अपनी सरकार के आखिरी साल में अपना पद छोड़ दें.

इसे भी पढ़ें : कांग्रेस में खटपट ! गहलोत सरकार से पायलट गुट समेत कई विधायक असंतुष्ट

नई दिल्ली : कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जब स्थानीय नेताओं के बीच खींचतान नियंत्रण से बाहर हो गई तो वह इसमें प्रमुख भूमिका निभा सकती है. यह स्थिति पहले पंजाब में बन रही थी और अब लगता है कि अगला राजस्थान हाेगा.

पिछले दो सालों में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह शायद ही कभी दिल्ली आए हों. वह कांग्रेस पार्टी द्वारा किए गए लंबे चुनावी वादों को पूरा न करने से संबंधित असंतुष्ट विधायकों की शिकायतों पर आवश्यक कदम उठाने में भी नाकाम रहे थे.

गांधी परिवार के प्रति कैप्टन की लंबे समय से चली आ रही वफादारी को देखते हुए पार्टी आलाकमान ने उन्हें सीएम पद से हटने के लिए कहा तो यह थोड़ा हैरान करने वाला था. इसके अलावा, चरणजीत सिंह चन्नी की पहली दलित सीएम के रूप में नियुक्ति से गांधी परिवार ने न केवल गुटबाजी की लड़ाई को रोका, बल्कि राज्य की जनसांख्यिकी को देखते हुए एक चुनावी मास्टरस्ट्रोक भी खेला है.

यहां तक ​​कि कैबिनेट विस्तार पर फैसला लेने के लिए भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया, जिसके चलते पंजाब के मुख्यमंत्री को भी 24 घंटे के अंदर दो बार दिल्ली तलब किया गया था.

ऐसी ही स्थिति अब राजस्थान में देखने को मिल रही है. सचिन पायलट की पिछले 1 सप्ताह में राहुल गांधी के साथ दो बैठकें हुई हैं. पायलट गुट के नेता और कार्यकर्ता लंबे समय से कैबिनेट और संगठन दोनों में बदलाव के इंतजार में हैं.

अटकलें लगाई जा रही हैं कि राजस्थान के लंबित मामले जैसे कैबिनेट विस्तार, राजनीतिक नियुक्तियां और संगठनात्मक परिवर्तन नवरात्रि के दौरान हल हो जाएंगे.

इस बैठक ने कथित तौर पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे में बेचैनी पैदा कर दी है क्योंकि गांधी मंत्रिमंडल में फेरबदल के लिए उनकी देरी की रणनीति से नाराज हैं,

राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर राजस्थान के स्पीकर सीपी जोशी से भी चर्चा की है, जिनसे वह पिछले हफ्ते शिमला रवाना होने से पहले मिले थे.

हालांकि सूत्रों के मुताबिक पार्टी आलाकमान ने पायलट को साफ कर दिया है कि प्रदेश नेतृत्व में कोई बदलाव नहीं होगा लेकिन हो सकता है कि गहलोत अपनी सरकार के आखिरी साल में अपना पद छोड़ दें.

इसे भी पढ़ें : कांग्रेस में खटपट ! गहलोत सरकार से पायलट गुट समेत कई विधायक असंतुष्ट

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