प्रयागराज : उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के दौरान चुनाव अधिकारियों व मतदानकर्मियों की मौत के मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि मुआवजे की रकम बहुत कम है और मुआवजा कम से कम एक करोड़ रुपये होना चाहिए. न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजित कुमार की पीठ ने राज्य में कोविड-19 के प्रसार को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.
अदालत ने कहा, परिवार की आजीविका चलाने वाले व्यक्ति की जिंदगी का मुआवजा और वह भी राज्य और निर्वाचन आयोग की ओर से जानबूझकर उस व्यक्ति को आरटीपीसीआर सहायता के बगैर ड्यूटी करने के लिए बाध्य करने के चलते कम से कम एक करोड़ रुपये होना चाहिए. हमें आशा है कि राज्य निर्वाचन आयोग और सरकार मुआवजे की राशि पर पुनर्विचार करेंगे.
मेरठ में एक अस्पताल में 20 मरीजों की मृत्यु पर अदालत ने कहा, भले ही यह एंटीजन टेस्टिंग के लिए संदिग्ध रूप से कोरोना से मौत हो, हमारा विचार है कि मृत्यु के इस तरह के सभी मामलों को कोरोना से मृत्यु के मामले के तौर पर लिया जाना चाहिए.
अदालत ने मेरठ के मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य को उन 20 मृत्यु की सटीक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया.
प्रधानाचार्य ने अदालत को बताया कि मृत्यु की तिथि से पूर्व, 20 व्यक्तियों को अस्पताल में भर्ती किया गया था जिसमें से तीन व्यक्ति कोरोना से संक्रमित पाए गए थे, जबकि अन्य का एंटीजन टेस्ट कराया गया और रिपोर्ट निगेटिव आई थी.
सरकारी और निजी अस्पताल के कर्मचारियों एवं जिला प्रशासन के कर्मचारियों द्वारा असहयोग के मामले में अदालत ने निर्देश दिया कि हर जिले में तीन सदस्यीय महामारी लोक शिकायत समिति का गठन किया जाएगा. यह समिति इस आदेश के 48 घंटे के भीतर अस्तित्व में आ जाएगी. इस संबंध में मुख्य सचिव (गृह) सभी जिलाधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी करें.
लेवल 1, 2 और लेवल 3 अस्पतालों में उपलब्ध कराए जाने वाले भोजन का विवरण उपलब्ध नहीं कराए जाने और लेवल 1 वर्ग के अस्पताल में प्रति मरीज 100 रुपये आवंटित किए जाने की जानकारी दिए जाने पर अदालत ने कहा, यह सभी जानते हैं कि कोविड-19 मरीजों को अत्यधिक पोषक भोजन की जरूरत होती है जिसमें फल और दूध शामिल हैं. यह समझ से परे है कि सरकार कैसे प्रति व्यक्ति 100 रुपये से तीन समय के भोजन का प्रबंधन कर रही है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिवंगत न्यायमूर्ति वीके श्रीवास्तव के इलाज के मुद्दे पर अदालत ने कहा, दस्तावेजों से पता चलता है कि उन्हें जीवन रक्षक दवा रेमडेसिविर लेने की सलाह दी गई थी. हालांकि कागजों से यह पता नहीं चलता कि वास्तव में उन्हें पहले दिन या बाद के दो दिनों में यह दवा दी गई कि नहीं.
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अदालत ने कहा, दस्तावेजों से पता चलता है कि 24 अप्रैल को शाम 7 बजकर 20 मिनट तक उनके शरीर में कोई गड़बड़ी पैदा नहीं हुई थी और इसके बाद स्थिति खराब होनी शुरू हुई. प्रथम दृष्टया हमारा विचार है कि इस मामले में चूंकि रिकॉर्ड पूर्ण नहीं हैं, इस मामले की जांच के लिए सरकार एक समिति का गठन करे.
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 17 मई निर्धारित की है.