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Bihar Politics : नीतीश कुमार को सता रहा है टूट का डर, जदयू में फूट से कौन होगा गेनर..? समझें सियासी गणित - तेजस्वी कैसे बनेंगे मुख्यमंत्री

महागठबंधन में खींचतान की स्थिति है, दोनों ओर से बयानों के तीर चलाए जा रहे हैं. महागठबंधन की बैठक के दौरान भी नेताओं के बीच तू-तू मैं-मैं की स्थिति बनी हुई है. इन सब के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को टूट का भय सता रहा है. सवाल यह उठता है कि कौन जेडीयू को तोड़ना चाहता है?

नीतीश कुमार को सता रहा है टूट का डर
नीतीश कुमार को सता रहा है टूट का डर
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Published : Jul 11, 2023, 8:48 PM IST

बिहार में नीतीश को टूट का डर? अगर टूटफूट हुई तो फायदा किसे?

पटना : जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे बिहार के राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं की बेचैनी बढ़ रही है. नेताओं के सामने पार्टी को एकजुट रखना बड़ी चुनौती है. नीतीश कुमार को खासतौर पर जेडीयू में टूट का भय सता रहा है. पार्टी को एकजुट करने के लिए नीतीश अपने विधायकों और सांसदों से लगातार मिल भी रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Tejashwi Yadav: 'वाशिंग मशीन है भाजपा लेकिन अब पाउडर खत्म हो रहा है.. मैन्युफैक्चरिंग बंद हो जाएगा'

टूट का डर किसे ? : आपको याद होगा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब से यह घोषणा की है कि ''2025 में महागठबंधन को अगर बहुमत आए तो मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव होंगे'' इस ऐलान के बाद से जदयू खेमे में धकधकी बढ़ी हुई है. जदयू के 45 में से दो दर्जन विधायक ऐसे हैं, जो राजद के साथ जाने या तेजस्वी यादव के नेतृत्व में काम करने में असहज हैं. जबकि कुछ का झुकाव आरजेडी की तरफ है. ऐसी श्रेणी में जेडीयू के यादव बहुल विधायक है.

किसे मिलेगा टूट का फायदा ? : महागठबंधन में सेंध लगाने का आरोप जेडीयू और आरजेडी दोनों बीजेपी पर लगाते रहे हैं. लेकिन असल में टूट का डर महागठबंधन के भीतर ही घर करके बैठा हुआ है. हाल के राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर डालें तो स्थिति आइने की तरह साफ नजर आएगी. टूट का डर अगर किसी में है तो नीतीश कुमार में सबसे ज्यादा है. क्योंकि उनके विधायकों पर बीजेपी और लालू की नजर गड़ी हुई है. इसलिए इसका फायदा अगर महागठबंधन में किसी को मिलेगा तो वो तेजस्वी यादव हैं.

फैक्टर जो असर डालने वाला है : लेकिन अब सवाल उठता है कि तेजस्वी यादव महागठबंधन में सेंध लगाकर किस तरह से अपनी सरकार बना लेंगे? इसके लिए पहला और सबसे बड़ा फैक्टर 'लालू यादव' खुद हैं. लंबी बीमारी के बाद लालू प्रसाद अब राजनीति में सक्रिय हो चुके हैं. पार्टी की बैठकों में शामिल हो रहे हैं. हर छोटी बड़ी घटना पर नजर बनाए हुए हैं. जेडीयू और आरजेडी नेताओं की बीच हुई खींचतान में लालू यादव ने अपने विधायकों को ताकीद भी की है. कुल मिलाकर देखें तो लालू यादव एक्टिव हैं.

तेजस्वी कैसे बनेंगे मुख्यमंत्री ? : अगर लालू यादव का फार्मूला काम किया तो इसका सीधा फायदा आरजेडी को मिलेगा, क्योंकि जादुई आंकड़े को छूने के लिए 122 विधायकों की जरूरत पड़ेगी. अभी जेडीयू के साथ महागठबंधन में विधायकों की संख्या 160 है. मांझी अपने 4 विधायकों के साथ बीजेपी के खेमे को सपोर्ट कर रहे हैं. अगर जेडीयू के 45 विधायकों को 160 की कुल विधायकों की संख्या से निकाल दें तो महागठबंधन में 115 विधायक बचेंगे. ऐसे में बहुमत पाने के लिए अकेले आरजेडी को 9 विधायकों की दरकार होगी. 9 विधायक अगर किसी तरह से इधर से उधर हो जाएं तो बिहार में एक बार फिर बाजी पलट जाएगी. 124 विधायकों के साथ आरजेडी सरकार में आ जाएगी. एआईएमआईएम के एक विधायक भी तब तेजस्वी को ही सपोर्ट करेंगे.

ईटीवी भारत GFX.
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RJD का वोट प्रतिशत बढ़ा, लेकिन 5 सीटों का घाटा: लालू यादव की पार्टी आरजेडी की बात करें तो साल 2015 में आरजेडी ने 18.35 फीसदी वोट लेकर 80 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2020 विधानसभा चुनाव में पार्टी को 4.3 फीसदी वोट ज्यादा मिले. 2020 में आरजेडी को 23.11 फीसदी वोट मिले. लेकिन सीटों की संख्या 80 से घटकर 75 पर रह गई. यानी 4 फीसदी वोट बढ़े लेकिन 5 सीट का घाटा लालू की पार्टी को हुआ.

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नीतीश को 1 फीसदी वोट का घाटा, 28 सीटें भी कम : बता करें 2015 विधानसभा चुनाव की तो नीतीश की पार्टी जेडीयू को 16.83 फीसदी वोट मिले थे. जेडीयू ने 71 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन नीतीश की पार्टी जेडीयू का वोट फीसद घटकर 16.83 से घटकर 15.6 फीसद पर पहुंच गया. यानी 1.2 फीसदी वोटों का नुकसान. इतना ही नहीं, सीटों की संख्या भी 71 से घटकर 43 पर पहुंच गई. यानी यहां भी 28 सीटों का घाटा.

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तो टूट का डर चेतावनी का संकेत है ? : हो सकता है कि यही डर नीतीश को सता रहा है, यही कारण है कि जदयू बीजेपी पर हमलावर होकर ये जता रही है कि विधायकों पर डाले जा रहे डोरे पर उसकी पैनी नजर है. यह एक तरह से नीतीश स्टाइल में आरजेडी को चेतावनी भी है. महागठबंधन में तल्खी दोनों ओर से बढ़ गई है. केके पाठक मुद्दा भी सिर्फ एक बहाना भर समझ आ रहा है, इसे लेकर दोनों दलों के बीच घमासान है. लालू यादव के समझाने के बाद भी सुनील सिंह केके पाठक के मुद्दे पर पटाक्षेप नहीं कर रहे हैं. इस मुद्दे पर दोनों के बीच विवादों की लकीर भी साफ देखी जा सकती है.

बीजेपी देख रही महागठबंधन का तमाशा? : भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि हम किसी भी परिस्थिति में जदयू को तोड़ने नहीं जा रहे हैं. जदयू खुद ब खुद टूट जाएगी. जदयू के नेता आशियाने की तलाश कर रहे हैं. राजद प्रवक्ता और विधायक रामानुज यादव ने कहा है कि ''भाजपा के लोग तोड़फोड़ की कोशिश करते हैं. बिहार में कोई टूट नहीं होने वाली है. हम पर कोई संदेह करता है तो वह भी बेबुनियाद है.''

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जेडीयू के नेताओं को बीजेपी पर संदेह : बिहार सरकार के मंत्री और जदयू नेता श्रवण कुमार ने कहा है कि फोन टेप करने का काम भाजपा के लोग कराते हैं. आरोप दूसरे पर लगाते हैं, हम लोगों को भाजपा पर ही संदेह है कि वह पार्टी को तोड़ सकते हैं, हालांकि उन्हें कामयाबी मिलने वाली नहीं है.

''महागठबंधन में कुर्सी को लेकर जद्दोजहद है. नीतीश कुमार के ऐलान के बाद जदयू खेमे में बेचैनी है. भाजपा को फिलहाल जदयू को तोड़ने से कोई फायदा नहीं है. लेकिन, राजद को फायदा हो सकता है. 9 विधायक अगर इधर से उधर हो गए तो सत्ता बदल सकती है.'' - शिवपूजन झा, वरिष्ठ पत्रकार

बिहार में नीतीश को टूट का डर? अगर टूटफूट हुई तो फायदा किसे?

पटना : जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे बिहार के राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं की बेचैनी बढ़ रही है. नेताओं के सामने पार्टी को एकजुट रखना बड़ी चुनौती है. नीतीश कुमार को खासतौर पर जेडीयू में टूट का भय सता रहा है. पार्टी को एकजुट करने के लिए नीतीश अपने विधायकों और सांसदों से लगातार मिल भी रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Tejashwi Yadav: 'वाशिंग मशीन है भाजपा लेकिन अब पाउडर खत्म हो रहा है.. मैन्युफैक्चरिंग बंद हो जाएगा'

टूट का डर किसे ? : आपको याद होगा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब से यह घोषणा की है कि ''2025 में महागठबंधन को अगर बहुमत आए तो मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव होंगे'' इस ऐलान के बाद से जदयू खेमे में धकधकी बढ़ी हुई है. जदयू के 45 में से दो दर्जन विधायक ऐसे हैं, जो राजद के साथ जाने या तेजस्वी यादव के नेतृत्व में काम करने में असहज हैं. जबकि कुछ का झुकाव आरजेडी की तरफ है. ऐसी श्रेणी में जेडीयू के यादव बहुल विधायक है.

किसे मिलेगा टूट का फायदा ? : महागठबंधन में सेंध लगाने का आरोप जेडीयू और आरजेडी दोनों बीजेपी पर लगाते रहे हैं. लेकिन असल में टूट का डर महागठबंधन के भीतर ही घर करके बैठा हुआ है. हाल के राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर डालें तो स्थिति आइने की तरह साफ नजर आएगी. टूट का डर अगर किसी में है तो नीतीश कुमार में सबसे ज्यादा है. क्योंकि उनके विधायकों पर बीजेपी और लालू की नजर गड़ी हुई है. इसलिए इसका फायदा अगर महागठबंधन में किसी को मिलेगा तो वो तेजस्वी यादव हैं.

फैक्टर जो असर डालने वाला है : लेकिन अब सवाल उठता है कि तेजस्वी यादव महागठबंधन में सेंध लगाकर किस तरह से अपनी सरकार बना लेंगे? इसके लिए पहला और सबसे बड़ा फैक्टर 'लालू यादव' खुद हैं. लंबी बीमारी के बाद लालू प्रसाद अब राजनीति में सक्रिय हो चुके हैं. पार्टी की बैठकों में शामिल हो रहे हैं. हर छोटी बड़ी घटना पर नजर बनाए हुए हैं. जेडीयू और आरजेडी नेताओं की बीच हुई खींचतान में लालू यादव ने अपने विधायकों को ताकीद भी की है. कुल मिलाकर देखें तो लालू यादव एक्टिव हैं.

तेजस्वी कैसे बनेंगे मुख्यमंत्री ? : अगर लालू यादव का फार्मूला काम किया तो इसका सीधा फायदा आरजेडी को मिलेगा, क्योंकि जादुई आंकड़े को छूने के लिए 122 विधायकों की जरूरत पड़ेगी. अभी जेडीयू के साथ महागठबंधन में विधायकों की संख्या 160 है. मांझी अपने 4 विधायकों के साथ बीजेपी के खेमे को सपोर्ट कर रहे हैं. अगर जेडीयू के 45 विधायकों को 160 की कुल विधायकों की संख्या से निकाल दें तो महागठबंधन में 115 विधायक बचेंगे. ऐसे में बहुमत पाने के लिए अकेले आरजेडी को 9 विधायकों की दरकार होगी. 9 विधायक अगर किसी तरह से इधर से उधर हो जाएं तो बिहार में एक बार फिर बाजी पलट जाएगी. 124 विधायकों के साथ आरजेडी सरकार में आ जाएगी. एआईएमआईएम के एक विधायक भी तब तेजस्वी को ही सपोर्ट करेंगे.

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RJD का वोट प्रतिशत बढ़ा, लेकिन 5 सीटों का घाटा: लालू यादव की पार्टी आरजेडी की बात करें तो साल 2015 में आरजेडी ने 18.35 फीसदी वोट लेकर 80 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2020 विधानसभा चुनाव में पार्टी को 4.3 फीसदी वोट ज्यादा मिले. 2020 में आरजेडी को 23.11 फीसदी वोट मिले. लेकिन सीटों की संख्या 80 से घटकर 75 पर रह गई. यानी 4 फीसदी वोट बढ़े लेकिन 5 सीट का घाटा लालू की पार्टी को हुआ.

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नीतीश को 1 फीसदी वोट का घाटा, 28 सीटें भी कम : बता करें 2015 विधानसभा चुनाव की तो नीतीश की पार्टी जेडीयू को 16.83 फीसदी वोट मिले थे. जेडीयू ने 71 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन नीतीश की पार्टी जेडीयू का वोट फीसद घटकर 16.83 से घटकर 15.6 फीसद पर पहुंच गया. यानी 1.2 फीसदी वोटों का नुकसान. इतना ही नहीं, सीटों की संख्या भी 71 से घटकर 43 पर पहुंच गई. यानी यहां भी 28 सीटों का घाटा.

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तो टूट का डर चेतावनी का संकेत है ? : हो सकता है कि यही डर नीतीश को सता रहा है, यही कारण है कि जदयू बीजेपी पर हमलावर होकर ये जता रही है कि विधायकों पर डाले जा रहे डोरे पर उसकी पैनी नजर है. यह एक तरह से नीतीश स्टाइल में आरजेडी को चेतावनी भी है. महागठबंधन में तल्खी दोनों ओर से बढ़ गई है. केके पाठक मुद्दा भी सिर्फ एक बहाना भर समझ आ रहा है, इसे लेकर दोनों दलों के बीच घमासान है. लालू यादव के समझाने के बाद भी सुनील सिंह केके पाठक के मुद्दे पर पटाक्षेप नहीं कर रहे हैं. इस मुद्दे पर दोनों के बीच विवादों की लकीर भी साफ देखी जा सकती है.

बीजेपी देख रही महागठबंधन का तमाशा? : भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि हम किसी भी परिस्थिति में जदयू को तोड़ने नहीं जा रहे हैं. जदयू खुद ब खुद टूट जाएगी. जदयू के नेता आशियाने की तलाश कर रहे हैं. राजद प्रवक्ता और विधायक रामानुज यादव ने कहा है कि ''भाजपा के लोग तोड़फोड़ की कोशिश करते हैं. बिहार में कोई टूट नहीं होने वाली है. हम पर कोई संदेह करता है तो वह भी बेबुनियाद है.''

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जेडीयू के नेताओं को बीजेपी पर संदेह : बिहार सरकार के मंत्री और जदयू नेता श्रवण कुमार ने कहा है कि फोन टेप करने का काम भाजपा के लोग कराते हैं. आरोप दूसरे पर लगाते हैं, हम लोगों को भाजपा पर ही संदेह है कि वह पार्टी को तोड़ सकते हैं, हालांकि उन्हें कामयाबी मिलने वाली नहीं है.

''महागठबंधन में कुर्सी को लेकर जद्दोजहद है. नीतीश कुमार के ऐलान के बाद जदयू खेमे में बेचैनी है. भाजपा को फिलहाल जदयू को तोड़ने से कोई फायदा नहीं है. लेकिन, राजद को फायदा हो सकता है. 9 विधायक अगर इधर से उधर हो गए तो सत्ता बदल सकती है.'' - शिवपूजन झा, वरिष्ठ पत्रकार

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