नई दिल्ली : भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमणा ने बुधवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय (Supreme court) के न्यायधीश अशोक भूषण हमेशा अनमोल सहकर्मी रहे और उनके फैसले उनके कल्याणकारी और मानवतावादी रुख का सबूत हैं.
आपकाे बता दें कि न्यायमूर्ति भूषण को 13 मई 2016 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया था और वह कई अहम फैसलों के हिस्सा थे जिनमें नवंबर 2019 को पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर दिया गया फैसला शामिल है जिसके जरिये विवादित भूमि पर भव्य राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हुआ.
दो दशक संवैधानिक अदालतों में दी सेवाएं
विदाई समारोह में प्रधान न्यायाधीश रमण ने कहा कि न्यायमूर्ति भूषण की वास्तव में उल्लेखनीय यात्रा रही और उन्होंने करीब दो दशक संवैधानिक अदालतों में अपनी सेवाएं दी. न्यायमूर्ति भूषण ने इस मौके पर कहा कि उच्चतम न्यायालय का हिस्सा होना गर्व की बात है.
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता एवं सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने भी न्यायमूर्ति भूषण को विदाई दी. न्यायमूर्ति भूषण ने बुधवार को उस पीठ की अध्यक्षता की जिसने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को कोविड-19 से मरने वालों के परिजनों को न्यूनतम मानक वित्तीय मदद देने के लिए नए सिरे से दिशा निर्देश जारी करने का निर्देश दिया.
न्यायमूर्ति भूषण ने 1979 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधि में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और उसी साल छह अप्रैल को उत्तर प्रदेश बार काउंसिल में वकील के तौर पर पंजीकरण कराया. 24 अप्रैल 2001 को वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश बने.
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10 जुलाई 2014 को केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने. उन्होंने मार्च 2015 में केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली थी.
(पीटीआई-भाषा)