मुंबई : चीन को लगा साम्राज्यवाद का राक्षसी चस्का वर्तमान समय में दुनियाभर के लिए चिंता का विषय बन गया है. चीन के सभी गोपनीय कामकाज, छुपाकर बनाई गई नीति और साजिशों पर आधारित धोखेबाज विदेशी नीति के कारण दुनियाभर के तमाम देश चीन को हमेशा संदेह की ही नजर से देखते हैं. दूसरे देशों को छोड़िए, चीन की युद्धखोर नीति हिंदुस्तान के लिए हमेशा चिंताजनक रही है. ये बातें शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में संपादकीय में कहा गया है.
गौरतलब है कि हाल ही में, अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा है कि चीन के हाइपरसोनिक हथियारों के परीक्षण से क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है. ऑस्टिन ने कहा कि अमेरिका चीन की सैन्य क्षमता को लेकर चिंतित है और चीन को बड़ी चुनौती मानता है.
उन्होंने लिखा है कि शी जिनपिंग के चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद तो चीन की युद्धखोर कार्रवाइयों में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है. हमेशा गुर्राते रहना और भुजाओं का रौब दिखाते हुए शक्ति प्रदर्शन करना, यह चीन की पुरानी चाल है. इस बार भी चीन ने वही किया है. चीन ने अपने पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में बड़े पैमाने पर जवानों की भर्ती करने की घोषणा की है.
हाल ही में बीजिंग में चीनी सेना का एक सम्मेलन संपन्न हुआ. इस सम्मेलन में चीनी सेना की सभी टुकड़ियों को संबोधित करते हुए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सेना में तकरीबन तीन लाख नए युवा सैनिकों की भर्ती करने की योजना घोषित की. अपने देश में जो कुछ हो रहा है, उससे दुनिया को गुप्त रखनेवाला और लुकाछिपी के खेल में माहिर चीन ने सैन्य भर्ती की घोषणा को गुप्त नहीं रखा है. अपनी सेना में उत्साह भरना और चीन से विवाद रखनेवाले हिंदुस्तान जैसे देशों पर दबाव बनाना, ऐसे दांव-पेंच के चलते जिनपिंग ने इस तरह का बयान दिया होगा. इसे नजरअंदाज करना भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि सेना के सम्मेलन को संबोधित करते हुए जिनपिंग ने जो कुछ आगे कहा वह अधिक गंभीर है.
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चीनी सेना की उच्च गुणवत्ता, अन्य देशों के साथ सैन्य प्रतियोगिता जीतना और भविष्य के युद्धों में नेतृत्व करना यह चीनी सशस्त्र बलों की प्रगति की कुंजी है. चीनी राष्ट्रपति के इस बयान को न केवल हिंदुस्तान, बल्कि दुनियाभर के देशों को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए. चीन ने पूरी दुनिया को उद्देशित करते हुए युद्ध की भाषा बोली है. चीन पर युद्ध थोपा गया तो प्रत्युत्तर देंगे, ऐसी जब-तब की भाषा का उपयोग न करके सीधे 'भविष्य में चीन युद्ध के लिए पहल करेगा', ऐसी घोषणा राष्ट्रपति जिनपिंग ने की है. आश्चर्य की बात तो ये है कि विश्व के किसी भी देश के राष्ट्र प्रमुख या विदेश मंत्री ने चीन के राष्ट्रपति की इस युद्धखोर भाषा का अभी तक निषेध भी व्यक्त नहीं किया है.
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चीनी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी का वर्ष 2027 में शताब्दी वर्ष है. इससे पहले चीन के सशस्त्र बल का पूरी तरह से आधुनिकीकरण करने के साथ ही युवकों की बड़े पैमाने पर सेना में भर्ती करने का लक्ष्य चीन ने निर्धारित किया है. हर साल तकरीबन 209 अरब डॉलर, इतनी भारी धनराशि चीन अपनी सेना पर खर्च करता है. सेना के खर्च के लिए हर साल इतनी भारी राशि का बजट रखनेवाला चीन विश्व का एकमात्र देश है. युद्ध जीतने की क्षमता को मजबूत बनाना यह हमारा अंतिम उद्देश्य होना चाहिए, वैज्ञानिक तकनीकि ज्ञान और क्षमता बढ़ाकर आधुनिक युद्ध जीतने के लिए तैयार रहो, ऐसा आह्वान चीन के राष्ट्रपति ने अपनी सेना से किया है.
चीन द्वारा पूरी दुनिया पर लादे गए कोरोना संकट से पूरा विश्व युद्ध कर रहा है. इसी बीच कोरोना के जैविक युद्ध के जन्मदाता चीन ने अब वास्तविक युद्ध के लिए पहल करने की घोषणा की है तो 'यूनो' जैसे वैश्विक संगठनों को इसे गंभीरता से संज्ञान में लेना चाहिए. चीन मूलरूप से ही उल्टे कलेजे का देश है. महासत्ता बनने की हवस से ग्रसित चीन की बढ़ी आक्रामकता और अन्य देशों की सीमा में घुसपैठ करने का उसका विस्तारवादी कदम, इस परिप्रेक्ष्य में चीन के राष्ट्रपति ने अब जो खुलेतौर पर युद्ध की ताल ठोंकी है. उसे नजरअंदाज करना ठीक नहीं है.
युद्ध के लिए पहल करने और उसके लिए तीन लाख युवा सैनिकों की भर्ती करने की चीन की घोषणा यानी इसे हवाई फायर समझने की गलती न करें, उसके खतरे को विश्व और विशेषकर हमारे शासकों को भांप लेनी चाहिए. सिक्किम, लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में चीन द्वारा बार-बार की गई घुसपैठ और चीन के राष्ट्रपति द्वारा इस्तेमाल की गई युद्ध की भाषा का संबंध इसकी पड़ताल करनी ही पड़ेगी. चीन की युद्ध की खुजली हमेशा बनी रहती है. उस पर वैसे अंकुश लगाया जाए, इसकी रणनीति हिंदुस्तान को अब बनानी ही होगी.