नई दिल्ली: अफ्रीका महाद्वीप के लगभग सभी देशों में सैन्य अधिकारियों को प्रशिक्षण देकर चीन रक्षा क्षेत्र में तेजी से अपना प्रभाव बढ़ा रहा है. यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस (USIP) के एक अध्ययन के अनुसार, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अफ्रीका में अपने मानदंडों, मूल्यों और संस्थागत प्रथाओं को बढ़ाने का एक तरीका अफ्रीकी सैन्य अधिकारियों को व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण के अवसर को प्रदान करना चाहती है.अध्ययन के इंट्रोडक्शन में लिखा है कि चीन के शासन मॉडल को बढ़ावा देने के अलावा इन कार्यक्रमों में पूरे महाद्वीप में शीर्ष नेतृत्व पदों में राष्ट्रपति पद और कई शीर्ष रक्षा भूमिकाएं शामिल हैं.
अध्ययन में कहा गया है कि बीजिंग के राजनीतिक और वैचारिक लक्ष्यों को पूरा करने में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की भूमिका को सैन्य राजनीतिक कार्य कहा जाता है. इस तरह के काम का एक उपसमूह चीन का पेशेवर सैन्य शिक्षा (PME) संस्करण है. बता दें कि हर साल कई अलग-अलग देशों के हजारों अफ्रीकी अधिकारी चीन में प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेते हैं और अपने चीनी समकक्षों के साथ संवाद और आदान-प्रदान में भाग लेते हैं. इन कार्यक्रमों के कई पूर्व छात्र अपने देशों की सेनाओं और सरकारों में अग्रणी भूमिका निभाते हैं. इनमें इरिट्रिया के राष्ट्रपति इसाईस अफवर्की और जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति एमर्सन मनांगाग्वा शामिल हैं. जबकि इसाईस ने इथियोपिया से स्वतंत्रता के लिए इरिट्रिया की 30 साल की लड़ाई का नेतृत्व किया था जिसे उसने 1993 में जीता था. वहीं मनांगाग्वा में नवंबर 2017 में हुए एक सैन्य तख्तापलट के माध्यम से लंबे समय से सत्ता में काबिज रॉबर्ट मुगाबे को हटाकर सत्ता हासिल की थी.
यूएसआईपी अध्ययन के अनुसार, नानजिंग में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) कमांड कॉलेज के अफ्रीकी पूर्व छात्रों में 10 रक्षा प्रमुख, आठ रक्षा मंत्री और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के पूर्व राष्ट्रपति लॉरेंट कबीला, गिनी-बिसाऊ के जोआओ बर्नार्डो विएरा शामिल हैं. यूएसआईपी का अध्ययन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके (PME) के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. इस संबंध में मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (एमपी-आईडीएसए) की सलाहकार रुचिता बेरी ने ईटीवी भारत को बताया कि यह रिपोर्ट इसके बारे में बहुत विस्तार से बताती है. बेरी, जो उप-सहारा अफ्रीका की राजनीतिक अर्थव्यवस्था और सुरक्षा, भारत-अफ्रीका संबंधों और अफ्रीका और हिंद महासागर क्षेत्र में उभरती शक्तियों में विशेषज्ञ हैं, ने बताया कि अफ्रीका के साथ बीजिंग का जुड़ाव 2000 में शुरू हुआ जब चीन-अफ्रीका सहयोग पर फोरम ( FOCAC) की स्थापना की गई.
उन्होंने कहा कि पिछले दो दशकों में अफ्रीका के साथ चीन के संबंधों में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है. शुरुआत में इसे आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए शुरू किया गया था.लेकिन अब, चीन की उपस्थिति अफ्रीका के सभी देशों में महसूस की जाती है. इसमें अफ्रीका के प्राकृतिक संसाधन चीन के लिए महत्वपूर्ण हैं. बेरी ने बताया कि चीन ने अफ्रीका के विभिन्न देशों के मुक्ति संघर्षों का समर्थन किया है. वहीं 2017 से चीन हॉर्न ऑफ अफ्रीका में जिबूती में एक नौसैनिक अड्डे का संचालन भी कर रहा है.
उन्होंने कहा कि भारत का भी अफ्रीका में बहुत बड़ा हित है. तो, नई दिल्ली-बीजिंग के पीएमई कार्यक्रम का मुकाबला कैसे कर सकती है जो इतने सारे अफ्रीकी सैन्य अधिकारियों को आकर्षित कर रहा है? बेरी ने कहा कि भारत 1960 के दशक से आईटीईसी (भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग) कार्यक्रम के तहत अफ्रीकी सैन्य अधिकारियों को प्रशिक्षण दे रहा है. उन्होंने कहा कि 1964 में स्थापित, आईटीईसी अंतरराष्ट्रीय क्षमता निर्माण के लिए सबसे पुरानी संस्थागत व्यवस्थाओं में से एक है, जिसमें नागरिक और रक्षा दोनों क्षेत्रों में 160 से अधिक देशों के 200,000 से अधिक अधिकारियों को प्रशिक्षित किया गया है. बेरी ने कहा कि नाइजीरिया के पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी, एक सेवानिवृत्त सेना प्रमुख जनरल हैं जिन्हें रत में प्रशिक्षित किया गया था.
हालांकि भारत ने हिंद महासागर रिम (IOR) पर सभी अफ्रीकी देशों के साथ समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किए हैं. 2020 में लखनऊ में और 2022 में गांधीनगर में डिफेंस एक्सपो के मौके पर रक्षा मंत्रियों के स्तर पर दो भारत-अफ्रीका रक्षा संवाद (आईएडीडी) की मेजबानी भी भारत-अफ्रीका जुड़ाव में रक्षा क्षेत्र के बढ़ते महत्व को रेखांकित करती है . वहीं भारत ने क्षेत्र में समुद्री सहयोग बढ़ाने के लिए तंजानिया और मोज़ाम्बिक के साथ 2022 में त्रिपक्षीय समुद्री अभ्यास का पहला संस्करण शुरू किया. बेरी ने बताया कि चीन की तरह भारत ने भी अंगोला और मोजाम्बिक जैसे अफ्रीकी देशों में मुक्ति संघर्षों का समर्थन किया था. उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद विरोधी आंदोलन के लिए भारत का समर्थन सर्वविदित है.
अफ्रीका के साथ हमारे सभ्यतागत संबंध हैं. बेरी ने याद दिलाया कि भारत ने 1980 में शुरू किए गए अफ्रीका (आक्रमण, उपनिवेशवाद और रंगभेद का विरोध करने की कार्रवाई) फंड में उदारतापूर्वक योगदान दिया था. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2018 में युगांडा संसद को संबोधित किया, तो उन्होंने भारत-अफ्रीका जुड़ाव के लिए 10 दिशानिर्देश सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार की थी. ये दिशानिर्देश अफ्रीका के साथ भारत के जुड़ाव की शर्तों में बदलाव को दर्शाते हैं. बेरी ने कहा, 'जब रक्षा भागीदारी की बात आती है तो आपको अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भारत की भागीदारी को भी नहीं भूलना चाहिए.' पिछले नौ वर्षों में अफ्रीका के साथ द्विपक्षीय जुड़ाव में जबरदस्त इजाफा हुआ है. भारत प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित अफ्रीकी देशों को मानवीय सहायता भी प्रदान कर रहा है.
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