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बच्चे-युवा आने वाले कई वर्षों तक मानसिक स्वास्थ्य पर कोविड-19 के प्रभाव को महसूस करेंगे : यूनिसेफ - इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री

यूनिसेफ ने एक रिपोर्ट में कहा कि आने वाले कई वर्षों तक बच्चे और युवा अपने मानसिक स्वास्थ्य (mental health) पर कोविड -19 के प्रभाव को महसूस करेंगे. रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड -19 महामारी ने बच्चों, किशोरों और युवाओं और माता-पिता और देखभाल करने वालों की एक पूरी पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बड़ी चिंता पैदा कर दी है.

यूनिसेफ
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Published : Oct 5, 2021, 8:57 PM IST

नई दिल्ली : यूनिसेफ ने मंगलवार को चेतावनी दी कि बच्चे और युवा आने वाले कई वर्षों तक अपने मानसिक स्वास्थ्य (mental health) पर कोविड -19 के प्रभाव को महसूस करेंगे. यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन रिपोर्ट 2021': ऑन माई माइंड: (State of the World's Children Report 2021: On My Mind) बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, सुरक्षा और केयर्स' जारी करते हुए कहा कि कोविड -19 से पहले भी बच्चों और युवाओं ने बिना महत्वपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का बोझ उठाया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड -19 महामारी ने बच्चों, किशोरों और युवाओं और माता-पिता और उनकी देखभाल करने वालों की एक पूरी पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बड़ी चिंता पैदा कर दी है.

दुनिया भर में और भारत में मेंटल डिसऑर्डर (mental disorders ) का एक महत्वपूर्ण और अक्सर अनदेखा कारण है, जो बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा और उनकी पूरी क्षमता तक पहुंचने की उनकी क्षमता में हस्तक्षेप करता है.

भारत में मेंटल डिसऑर्डर वाले बच्चे ज्यादातर इलाज नहीं करवाते हैं और मदद या उपचार लेने में झिझकते हैं.

महामारी से पहले भी भारत में कम से कम 50 मिलियन बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित थे. इनमें से 80-90 फीसदी ने मदद नहीं मांगी.

2021 की पहली छमाही में 21 देशों में यूनिसेफ और गैलप द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 15 से 24 वर्ष की आयु के लगभग 14 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अक्सर उदास महसूस किया या चीजों को करने में बहुत कम रुचि दिखाई.

इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री (Indian Journal of Psychiatry ) 2019 का हवाला देते हुए यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए प्रतिक्रियाओं की व्यापक मांग के बावजूद इसमें किया गया निवेश कम है. भारत ने मानसिक स्वास्थ्य पर सालाना अपने कुल स्वास्थ्य बजट का केवल 0.05 प्रतिशत खर्च किया है.

यह कहते हुए कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य को व्यापक रूप से कलंकित और गलत समझा जाता है, यूनिसेफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि युवा लोगों का मानना ​​है कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर दूसरों से मदद लेना बेहतर है, उनसे खुद से निपटने की कोशिश करना.

पढ़ें - विश्व स्तर पर 7 बच्चों में से एक को मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं : डॉ यासमीन अली हक़

भारत में लगभग 47 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना ​​है कि मानसिक स्वास्थ्य एक व्यक्तिगत मामला है जिसे लोग बिना मदद मांगे अपने दम पर सबसे अच्छा तरीके से निपट सकते हैं.

यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि स्कूल बंद, वायरस की दर्दनाक दूसरी लहर, नुकसान और दुख ने बच्चों को पहले से कहीं ज्यादा अलग कर दिया है. महामारी के दौरान बच्चों और किशोरों का अनुभव लचीलापन के महत्व को रेखांकित करता है. उनके लिए जीवन कौशल सिखाना, और माता-पिता/देखभाल करने वालों, शिक्षकों, साथियों और पड़ोसियों के साथ सकारात्मक बातचीत मायने रखती है.

नई दिल्ली : यूनिसेफ ने मंगलवार को चेतावनी दी कि बच्चे और युवा आने वाले कई वर्षों तक अपने मानसिक स्वास्थ्य (mental health) पर कोविड -19 के प्रभाव को महसूस करेंगे. यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन रिपोर्ट 2021': ऑन माई माइंड: (State of the World's Children Report 2021: On My Mind) बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, सुरक्षा और केयर्स' जारी करते हुए कहा कि कोविड -19 से पहले भी बच्चों और युवाओं ने बिना महत्वपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का बोझ उठाया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड -19 महामारी ने बच्चों, किशोरों और युवाओं और माता-पिता और उनकी देखभाल करने वालों की एक पूरी पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बड़ी चिंता पैदा कर दी है.

दुनिया भर में और भारत में मेंटल डिसऑर्डर (mental disorders ) का एक महत्वपूर्ण और अक्सर अनदेखा कारण है, जो बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा और उनकी पूरी क्षमता तक पहुंचने की उनकी क्षमता में हस्तक्षेप करता है.

भारत में मेंटल डिसऑर्डर वाले बच्चे ज्यादातर इलाज नहीं करवाते हैं और मदद या उपचार लेने में झिझकते हैं.

महामारी से पहले भी भारत में कम से कम 50 मिलियन बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित थे. इनमें से 80-90 फीसदी ने मदद नहीं मांगी.

2021 की पहली छमाही में 21 देशों में यूनिसेफ और गैलप द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 15 से 24 वर्ष की आयु के लगभग 14 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अक्सर उदास महसूस किया या चीजों को करने में बहुत कम रुचि दिखाई.

इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री (Indian Journal of Psychiatry ) 2019 का हवाला देते हुए यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए प्रतिक्रियाओं की व्यापक मांग के बावजूद इसमें किया गया निवेश कम है. भारत ने मानसिक स्वास्थ्य पर सालाना अपने कुल स्वास्थ्य बजट का केवल 0.05 प्रतिशत खर्च किया है.

यह कहते हुए कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य को व्यापक रूप से कलंकित और गलत समझा जाता है, यूनिसेफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि युवा लोगों का मानना ​​है कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर दूसरों से मदद लेना बेहतर है, उनसे खुद से निपटने की कोशिश करना.

पढ़ें - विश्व स्तर पर 7 बच्चों में से एक को मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं : डॉ यासमीन अली हक़

भारत में लगभग 47 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना ​​है कि मानसिक स्वास्थ्य एक व्यक्तिगत मामला है जिसे लोग बिना मदद मांगे अपने दम पर सबसे अच्छा तरीके से निपट सकते हैं.

यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि स्कूल बंद, वायरस की दर्दनाक दूसरी लहर, नुकसान और दुख ने बच्चों को पहले से कहीं ज्यादा अलग कर दिया है. महामारी के दौरान बच्चों और किशोरों का अनुभव लचीलापन के महत्व को रेखांकित करता है. उनके लिए जीवन कौशल सिखाना, और माता-पिता/देखभाल करने वालों, शिक्षकों, साथियों और पड़ोसियों के साथ सकारात्मक बातचीत मायने रखती है.

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