रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा में आरक्षण संशोधन विधेयक पेश करने के लिए विशेष सत्र बुलाया गया है. आज दूसरे दिन की कार्यवाही जारी है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक 2022 को पेश करेंगे. इसके साथ ही शैक्षणिक संस्था (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक को भी पेश किया जाना है. सत्ता पक्ष और विपक्ष की चर्चा के बाद इन विधेयकों को पारित कराने की तैयारी है. राज्य कैबिनेट ने इन विधेयकों के प्रारूप को 24 नवम्बर को हुई बैठक में मंजूरी दी थी. CG vidhansabha special session
राज्य सरकार के अधिकारियों के मुताबिक विधेयकों में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 32 फीसदी, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 फीसदी, अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 13 फीसदी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए चार फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया है. विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद राज्य में कुल आरक्षण 76 प्रतिशत हो जाएगा.
छत्तीसगढ़ विधानसभा विशेष सत्र : आज नया आरक्षण विधेयक लाएगी सरकार
आरक्षण पर ऐसे हुआ विवाद शुरू: राज्य में आरक्षण का मुद्दा तब उठा जब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितंबर 2022 को साल 2012 में जारी राज्य सरकार के सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण को 58 प्रतिशत तक बढ़ाने के आदेश को खारिज कर दिया और कहा कि 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण असंवैधानिक है.
इस फैसले के बाद राज्य में जनजातियों के लिए आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है. राज्य में लगभग 32 प्रतिशत जनसंख्या जनजातियों की है. ओबीसी 14 फीसदी और एससी का आरक्षण 13 से बढ़कर 16 फीसदी हो गया है.
19 सितम्बर तक प्रदेश में 58% आरक्षण था. 19 सितम्बर को आए बिलासपुर उच्च न्यायालय के फैसले से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण खत्म हो गया. उसके बाद सरकार ने नया विधेयक लाकर आरक्षण बहाल करने का फैसला किया है.
विधेयक पारित हुआ तो संकल्प आएगा: दोनों विधेयकों के पारित होने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विधानसभा में एक शासकीय संकल्प भी पेश करने वाले हैं. इसमें केंद्र सरकार से आग्रह किया जाना है कि वह छत्तीसगढ़ के दोनों आरक्षण कानूनों को संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए आवश्यक कदम उठाए. संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल विषयों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती. यानी सामान्य तौर पर इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती.