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जानें आईओआर भारत के लिए क्यों है महत्वपूर्ण और क्या है चुनौतियां

हिंद महासागर क्षेत्र व्यापारिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है. भारत और अमेरिका इस क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाने वाले देश हैं. हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) व्यापक इंडो-पैसिफिक का एक महत्वपूर्ण जंक्शन है. आईओआर में लगभग 2.7 बिलियन लोग रहते हैं. दुनिया के कंटेनर जहाजों का आधा हिस्सा यहां से होकर गुजरता है. लेकिन चीन की विस्तारवादी नीति की वजह से आईओआर में नई भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ने लगी है.भारत आईओआर में चीन की बढ़ती भूमिका को रणनीतिक रूप से नजरअंदाज नहीं कर सकता है. आइए जानते हैं विस्तार पूर्वक...

-importance of india in indian ocean-
हिंद महासागर क्षेत्र
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Published : Nov 27, 2020, 4:10 PM IST

हैदराबाद : हिंद महासागर क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक गलियारों में से एक है. यह मध्य-पूर्व, यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व और पूर्वोत्तर एशिया को जोड़ता है. भारत और अमेरिका इस क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाने वाले देश हैं. हालांकि, चीन की बढ़ती चुनौती से निपटने के लिए आईओआर में दोनों देशों ने कई रणनीतिक साझेदारों को इसमें शामिल किया है. कितनी अहम है ये साझेदारी और भारत के लिए क्या हैं चुनौतियां, एक नजर.

आईओआर में भारत की भूमिका और चुनौतियां
हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) व्यापक इंडो-पैसिफिक का एक महत्वपूर्ण जंक्शन है. यह सबसे महत्वपूर्ण व्यापार गलियारों में से एक है, जो मध्य-पूर्व, यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व और पूर्वोत्तर एशिया को जोड़ता है.

इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (आईओआरए) द्वारा उल्लिखित, आईओआर में लगभग 2.7 बिलियन लोग रहते हैं. दुनिया के कंटेनर जहाजों का आधा हिस्सा यहां से होकर गुजरता है. दुनिया के थोक कार्गो ट्रैफिक का एक तिहाई और दुनिया के तेल शिपमेंट के दो तिहाई हिस्से यहीं से होकर गुजरते हैं.

इस इलाके में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका प्रमुख भूमिका निभाने वाले देश हैं. दोनों इसे अच्छी तरह से समझते भी हैं. लेकिन चीन की विस्तारवादी नीति की वजह से आईओआर में नई भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ने लगी है. निश्चित तौर पर भारत आईओआर में चीन की बढ़ती भूमिका को रणनीतिक रूप से नजरअंदाज नहीं कर सकता है, वहीं दूसरी ओर चीन यहां पर अपने आप को प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने पर अड़ा हुआ है.

मैरिटाइम के क्षेत्र में चीन सबसे बड़ी शक्ति बनना चाहता है. आईओआर की रणनीति उसी का एक हिस्सा है.

भारत के हित
हिंद महासागर के क्षेत्र में भारत का बहुत बड़ा हित है. यहां पर शांति और सुरक्षा बनाए रखने में भारतीय नौसेना बहुत अहम भूमिका निभाती है. अब जबकि चीन धीरे-धीरे कर अपनी उपस्थिति और आवाजाही बढ़ा रहा है, भारत ने मैरिटाइम एनगेजमेंट और नीति का पुनर्मूल्यांकन करना शुरू कर दिया है. क्षमता के मामले में भले ही कई कमियां हों, लेकिन भारत का भूगोल और परिचालन संबंधी अनुभव उसकी मजबूती है.

क्या चीन को इस क्षेत्र में अपने आप को बनाए रखने और अनुभव प्राप्त करने के साधनों और तरीकों को खोजने का प्रबंधन करना चाहिए. लेकिन ऐसा हुआ, तो यह भारत के एडवांटेज को खत्म कर देगा.

यह देखते हुए कि न तो भारत और न ही चीन अपना प्रभुत्व, रणनीतिक संकेतन, शक्ति का प्रदर्शन करना चाहता है. इस क्षेत्र में परिवर्धित परिचालन क्षमताओं के मामले में जब तक भारत को एडवांटेज है, तब तक चुनौती नहीं दिया जा सकता है.

भारत की वर्तमान नीति
भारतीय नौसेना हिंद महासागर के कई समुद्री चॉकप्वाइंट्स पर बहुत महत्व रखती है. ये दुनिया के सबसे रणनीतिक रूप से मूल्यवान चॉकप्वाइंट्स में से हैं. क्योंकि वे महत्वपूर्ण बाजारों, भागीदारों और क्षेत्रों तक पहुंच और पारगमन के लिए महत्वपूर्ण हैं.

भारतीय नौसेना अपने हित के प्राथमिक क्षेत्रों के रूप में निम्नलिखित चॉकप्वाइंट्स को सूचीबद्ध करती है, जो संघर्ष के समय में प्रतिकूल परिस्थितियों को नियंत्रित करने और इन अभिगम बिंदुओं को अस्वीकार करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है.

  • मलक्का और सिंगापुर जलडमरूमध्य : आईओआर को दक्षिण और पूर्वी चीन सागर और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र से जोड़ता है. प्रशांत महासागर से हिंद महासागर तक जाने के लिए वैकल्पिक मार्ग में इंडोनेशिया के सुंडा, लोंबोक और ओंबाई वेटार प्रमुख हैं. पनडुब्बियों के लिए खासकर. क्योंकि ये जलमग्न होकर बिना किसी के पकड़ में आए ही क्रॉस कर सकती है.
  • होर्मुज जलडमरूमध्य : यह मध्य पूर्व में फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ती है, जो हिंद महासागर में खुलती है.
  • बाब-अल-मंडब : लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोड़ता है, जो आईओआर में खुलता है.
  • स्वेज नहर : यह यूरोप को आईओआर के माध्यम से एशिया से जोड़ती है.
  • मोजांबिक चैनल: स्वेज नहर के विकल्प के साथ-साथ यह एशिया, ऑस्ट्रेलिया और उससे आगे के लिए केप ऑफ गुड होप को पार करने वाले जहाजों के लिए रूट प्रदान करता है. यह अफ्रीका के पूर्वी तट से पानी में पहुंच और उपस्थिति के लिए रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है.

समुद्री सुरक्षा रणनीति
जब भी संघर्ष या किसी उच्च तैयारी की स्थिति हो, तो समुद्री सुरक्षा रणनीति की भूमिका बहुत अहम होती है. समुद्री अभियानों के संचालन के लिए बढ़ाई गई तत्परता या संघर्ष के समय में, संचार और एसएलओसी की समुद्री रेखाएं भारत और विपक्षी दोनों के लिए क्रमशः सुरक्षा और अंतर्विरोधी उपायों की आवश्यकता को बढ़ाएगी.

परिचालन परिनियोजन के अनुसार, भारतीय नौसैनिक जहाज हमेशा बंगाल की उत्तरी खाड़ी में और उत्तरी अंडमान और दक्षिण निकोबार के बीच मौजूद रहता है. यह होर्मुज के जलडमरूमध्य के पास और उत्तरी अरब सागर के पास रहता है. अंडमान श्रृंखला में मलक्का जलडमरूमध्य के बगल में. मालदीव और श्रीलंका के बीच दक्षिण हिंद महासागर में, और मॉरीशस और सेशेल्स से दक्षिण पश्चिम हिंद महासागर में बाब-अल-मंडब को जोड़ने वाली खाड़ी के बीच.

इस तरह की तैनाती दिल्ली को अपनी सजगता बढ़ाने, डोमेन जागरूकता पैदा करने और खतरों और चुनौतियों का तुरंत जवाब देने की क्षमता देता है. एमबीडी भी सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका को मजबूत करता है. एमबीडी ने भारतीय नौसेना को अपनी उपस्थिति बढ़ाने की अनुमति दी है, प्रभावी स्थायित्व और सिग्नलिंग के लिए स्थिरता भी महत्वपूर्ण है.

भारत की आधिकारिक विदेश नीति विदेशी ठिकानों की अनुमति नहीं देती है, हालांकि इसकी नौसेना को प्रभावी ढंग से मिशनों को पूरा करने के लिए अपने संचालन के क्षेत्र के करीब रसद सुविधाओं तक पहुंच की आवश्यकता होती है.

लॉजिस्टिक्स सुविधाएं नौसेना के अपने उद्देश्यों को देने और अपने रणनीतिक लक्ष्यों की रक्षा करने की क्षमता को मजबूत करती हैं.

साझेदारी बढ़ाने से बढ़ेती भारत की ताकत
आईओआर में लगातार उपस्थिति और परिचालन क्षमता बरकरार रखने के लिए भारत को रणनीतिक साझेदार की जरूरत होगी, जो उसे साजो-सामान और पहुंच में मदद कर सके.

इसके बदले में, भारत नियमों पर आधारित व्यवस्था को बनाने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है. यह फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साझा हितों और समान चुनौतियों का ख्याल रखेगा.

फ्रांस और अमेरिका के साथ भारत ने लॉजिस्टिक समझौते किए हैं. यूके और ऑस्ट्रेलिया के साथ ऐसे ही समझौतों पर विचार करने की जरूरत है.

आईओआर के पूरे इलाका काफी बड़ा है. लिहाजा, चीन के साथ प्रतिस्पर्धा में नौसेना को मजबूत (लॉजिस्टिक सपोर्ट) रखने के लिए भारत को सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी.

जिबूती, आबूधाबी और ला रीयूनियन जैसे प्रमुख चॉकप्वाइंट्स में फ्रांस ने पहुंच दी है. जाहिर है, जिबूती और आबुधाबी स्थित फ्रांस बेस में होस्ट नेशन की सहमति आवश्यक होगी. लेकिन ला रीयूनियन के लिए किसी तीसरे देश की इजाजत की जरूरत नहीं होगी. इससे प्रशांत महासागर के द.पश्चिम और मोजांबिक चैनल तक पहुंच निर्बाध होगी.

भारत के समुद्री टोही विमान और P-8I को फ्रांस के बेस से ला रीयूनियन में तैनात करने से भारतीय नौसेना को पश्चिमी हिंद महासागर और अफ्रीका के पूर्वी तट में अपनी उपस्थिति बढ़ाने में मदद मिलेगी. वर्तमान में भारत की उपस्थिति और संचालन के लिहाज से यह एक कमजोर बिंदु है.

इसी तरह से बहरीन और डियागो गार्सिया में अमेरिका की उपस्थिति है. ये दोनों ही क्षेत्र आईओआर के रणनीतिक प्वांइट माने जाते हैं. अगर समझौता हो जाता है, तो भारत यहां से संवेदनशील गतिविधि पर नजर रख सकता है. उसके टोही विमान का अच्छा उपयोग हो सकता है.

अंडमान-निकोबार और डियागो गार्सिया भारत और अमेरिका दोनों के नौसैनिकों के लिए एडवांटेज प्रदान करता है. दोनों ही देश पी-8 का साझा उपयोग कर सकते हैं. इससे आपसी समझ और अधिक मजबूत होगी.

हालांकि, जिस तरह के इनके रणनीतिक महत्व हैं, दोनों ही देश एक दूसरे को बहुत ज्यादा पहुंच नहीं दे सकते हैं. भारत और अमेरिका मैरिटाइम डोमेन अवेरनेस क्षमता को मजबूत करने पर जोर अवश्य ही दे सकते हैं.

भारत-अमेरिका-जापान के बीच सालाना मलाबार अभ्यास के जरिए भी बहुत हद तक एक दूसरे को समझ रहे हैं. अंडमान-निकोबार, डियागो गार्सिया और संभवतः ओकिनावा के रणनीतिक क्षेत्रों का उपयोग किया जा सकता है.

भारत को जापान के साथ लॉजिस्टिक समझौते करने पर आगे बढ़ना चाहिए. हालांकि, आईओआर में जापान की बहुत अधिक उपस्थिति नहीं है. फिर भी दोनों देश समुद्री क्षेत्रों में आपसी सहयोग और अधिक गहरा कर सकते है.

यदि यह समझौता हो जाता है, तो जापान को मानवीय सहायता, आपात काल सेवा, डिजास्टर रिलीफ में मदद मिल सकेगी.

इसी तरह से टोक्यो की मदद से भारत को पूर्वी और द. चीन सागर में अधिक मदद मिलने की संभावना बढ़ जाएगी.

ओकिनावा के माध्यम से ताइवान जलडमरुमध्य तक भारतीय मिशन की पहुंच हो सकती है. इससे बीजिंग पर और अधिक दबाव बन सकेगा.

द. हिंद महासागर में ऑस्ट्रेलिया की मौजूदगी की वजह से इस तरह का समझौता भारत के हित में होगा. कोकोज कीलिंग आईलैंड ऑस्ट्रेलिया के अधिकार क्षेत्र में है. इसलिए भारत इसके जरिए इंडोनेशियन जलडमरुमध्य तक पहुंच बना सकता है. यह प्रशांत महासागर को हिंद महासागर से जोड़ता है.

द. हिंद महासागर की सीमा से फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया दोनों अपनी समुद्री सीमा साझा करते हैं. इसलिए पेरिस, कैनबेरा और दिल्ली के बीच रणनीतिक साझेदारी भारत को एडवांटेज देगा.

इन बड़ी शक्तियों के साथ मिलकर काम करने के साथ-साथ भारत मॉरिशस, सेशेल्स, मेडागास्कर और कॉमरोस जैसे आईलैंड देशों के साथ काम कर सकता है. श्रीलंका और मालदीव के साथ भारत के संबंध पहले से अच्छे हैं.

इंडोनेशिया, सिंगापुर और म्यामां के साथ मैरिटाइम समझौता भारत को नई शक्ति प्रदान कर सकता है.

भारत के लिए आगे क्या है रास्ता
शुरुआती शिथिलता के बाद भारत अब आईओआर इलाके में तेजी से काम कर रहा है. अपनी नीतियों में न सिर्फ सुधार कर रहा है, बल्कि अन्य देशों के साथ एनगेजमेंट को बढ़ाया भी है. सबसे बड़ी बात है रणनीतिक साझेदारी को समझना. और भारत इस दिशा में तेजी से पहल कर रहा है. यह बहुत बड़ा बदलाव आया है.

पड़ोस में चीन ने जिस तरीके से अपनी गतिविधि बढ़ाई है, भारत उसका मुकाबला तभी कर सकता है जब वह मैरिटाइम एनवायरमेंट को नया आयाम दे. एमडीए, इंटेलिजेंस शेयरिंग, समुद्री डोमेन में प्रौद्योगिकी का उपयोग, और लगातार गैर पारंपरिक खतरों को संबोधित करने वाले प्रमुख क्षेत्र हैं, जो इंडो-पैसिफिक में भारत की व्यापक भूमिका और बदलते सुरक्षा वास्तुकला को प्रभावित करने की क्षमता को आकार देंगे.

कितनी जागरूकता है मैरिटाइम को लेकर
एमडीए डिटेरेंस और कॉनफ्लिटक्ट स्ट्रैटेजी दोनों के लिए महत्वपूर्ण तत्व बन गया है. इसमें चर्चा की गई है कि कैसे भारतीय नौसेना खुफिया सूचनाएं साझा करने, इसे विकसित करने और इसकी लाभा उठाने की क्षमता पर टिका है.

भारतीय नौसेना ने एमडीए को 'समुद्र में स्थितिजन्य जागरूकता की आवश्यकता' के रूप में परिभाषित किया है, और आधुनिक अर्थों में इसका उपयोग एक सर्वव्यापी अवधारणा के रूप में किया जाता है.

इसमें सभी अभिनेताओं की स्थिति और इरादों का संज्ञान होना चाहिए, चाहे वे स्वयं हों, शत्रुतापूर्ण या तटस्थ हों, और सभी आयामों में. आईओआर के प्रवेश और निकास बिंदुओं की निगरानी करने की क्षमता भारतीय नौसेना और उसके भागीदारों को सभी हरकतों के बारे में जागरूक होने का लाभ देगी. विशेष रूप से सब-सरफेस वेसल्स, उनसे संबंधित तैनाती और आनेवाले खतरों का जवाब देने की अनुमति देती है.

रणनीतिक साझेदारों की मदद से भारत पी-81 की तैनाती कर सकता है. यह एंटी सबमरीन वॉरफेयर और एंटी सरफेस वॉरफेयर प्लेटफॉर्म है. ला-रीयूनियन (फ्रांस), डिएगो गार्सिया (अमेरिका/यूके), अंडमान और निकोबार (भारत), कोकोस कीलिंग (ऑस्ट्रेलिया) और ओकिनावा (जापान) के बीच. जिबूती से ड्यूक्म (ओमान) और अबू धाबी (यूएई) तक समुद्री गश्त की जा सकती है, बशर्ते भारत में साझेदार सुविधाओं तक पहुंच हो. इस तरह की व्यस्तताओं से दिल्ली को इरादे को दिखाने, बल और उपस्थिति दिखाने, और प्रमुख उप-क्षेत्रों और महत्वपूर्ण चॉकप्वाइंट्स को कवर करने वाले बड़े क्षेत्र में एमडीए उत्पन्न करने की अनुमति मिलेगी.

तकनीकी नवाचार
नई-नई प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और नवाचार में अग्रणी भूमिका निभाने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, फ्रांस, कनाडा और सिंगापुर जैसे देश मैरिटाइम के क्षेत्र में भारत के साथ साझेदारी कर सकते हैं.

भारत पहले से ही इन देशों में से अधिकांश के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आपसी सहयोग करता है. इसे अब समुद्री क्षेत्र के लिए भी विस्तार देना चाहिए.

भारत ने कई व्हाइट शिपिंग समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं. इसका मतलब होता है दो देशों की नौसेनाओं के बीच सूचना नेटवर्क प्रोटोकॉल की स्थापना. इसके साथ ही ये कमर्शियल मैरिटाइम ट्रैफिक पर भी नजर रखते हैं. दो देश इसके जरिए खुफिया जानकारियों को एक दूसरे से साझा करते हैं.

वर्तमान में, भारत ने ऐसे बहुत कम समझौते कर रखे हैं. यद्यपि भारत इस तरह की सूचनाओं का तदर्थ आधार पर आदान-प्रदान कर सकता है, लेकिन औपचारिक व्यवस्था की आवश्यकता शीघ्रता से महसूस की जा रही है. भारत को 'फाइव आईज' इंटेलिजेंस शेयरिंग पैक्ट, फ्रांस और जापान के साथ इस तरह की सूचनाओं के आदान-प्रदान के तरीके खोजने का काम करना चाहिए. भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हवाई में अमेरिकी इंडो-पैसिफिक कमांड में एक संपर्क अधिकारी रखने के लिए भी काम करना चाहिए. इस तरह की व्यवस्था गहन रणनीतिक सहयोग के अवसरों की बेहतर समझ का समर्थन करेगी.

ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और जापान में पहले से ही इसके विभिन्न स्तरों पर सैन्य प्रतिनिधि हैं.

एक भारतीय नौसेना अधिकारी आईओआर और व्यापक इंडो-पैसिफिक में अपने सहयोगियों के मिशनों और संचालन की करीबी बातचीत और समझ की अनुमति देगा.

भारत अंतरिक्ष-आधारित एमडीए साझेदारी के साथ समुद्री एमडीए की जोड़ी भी बना सकता है जिसमें जापान और फ्रांस जैसे देश प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं.

हाल के दिनों में एमडीए के अतिरिक्त स्रोत के रूप में उपग्रहों का महत्व बढ़ गया है.

एमडीए द्वारा कवर किए जाने वाले विशाल क्षेत्रों को देखते हुए, सैटेलाइट्स सूचना अंतराल को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. भारत अपने सहयोगियों के साथ ऐसे सहयोग पर चर्चा करना जारी रखता है जो विशेषज्ञता रखते हैं. 2018 में, भारत और फ्रांस ने आईओआर में एमडीए के लिए संयुक्त रूप से उपग्रह लॉन्च करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.

सूचनाओं का फ्यूजन
अधिक व्यापक खुफिया साझाकरण साझेदारी के अलावा, प्रभावी एमडीए को एक विश्वसनीय, वास्तविक समय की तस्वीर पेश करने के लिए एकत्र किए गए डेटा को जोड़ने की आवश्यकता होती है.

भारत ने 2018 में शुरू किए गए सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र का निर्माण जारी रखा है, उसे भागीदार देशों के साथ जानकारी साझा करने और उपलब्ध डेटा का उपयोग करने के तौर तरीकों पर काम करना चाहिए.

भारत के कई साझेदार समूह फाइव आइज़ का हिस्सा हैं और भारतीय नौसेना के साथ संचालन, डेटा प्रसार और तकनीकी जानकारी पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त, दिल्ली को मेडागास्कर में आयोजित क्षेत्रीय समुद्री सूचना संलयन केंद्र और सिंगापुर में सूचना संलयन केंद्र के साथ काम करना चाहिए.

गैर-पारंपरिक चुनौती
गैर पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए भारत मैरिटाइम के क्षेत्र में तकनीकी साझेदारी का फायदा उठा सकता है. आईओआर में जो भी चॉकप्वॉइंट्स और रणनीतिक एडवांटेज वाली जगह हैं, वहां पर इस तरह की चुनौतियां अधिक हैं.

मॉरीशस से लेकर मेडागास्कर तक के देश अपने तटीय जल की रक्षा और निगरानी में असमर्थता से जूझ रहे हैं. इसकी वजह से वहां पर अवैध तरीके से मछली पकड़ने और अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. अतिरिक्त चुनौतियों में ड्रग तस्करी, मानव तस्करी और प्राकृतिक आपदाएं भी शामिल हैं.

हिंद महासागर क्षेत्र में भारत और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा और भी बढ़ेगी. ऐसे में भारत को समुद्री क्षेत्रों में रणनीतिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए इस क्षेत्र में भौगोलिक एडवांटेज को बनाए रखना होगा. आईओआर में नई सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए मैरिटाइम डोमेन अवेरनेस के साथ-साथ लगातार अपनी गतिविधि जारी रखनी होगी. खासकर इसे देखने के बाद कि चीन लगातार अपनी समुद्री क्षमता में वृद्धि कर रहा है, भारत को दूसरे देशों के साथ साझेदारी का पूरा-पूरा फायदा उठाना चाहिए.

हैदराबाद : हिंद महासागर क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक गलियारों में से एक है. यह मध्य-पूर्व, यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व और पूर्वोत्तर एशिया को जोड़ता है. भारत और अमेरिका इस क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाने वाले देश हैं. हालांकि, चीन की बढ़ती चुनौती से निपटने के लिए आईओआर में दोनों देशों ने कई रणनीतिक साझेदारों को इसमें शामिल किया है. कितनी अहम है ये साझेदारी और भारत के लिए क्या हैं चुनौतियां, एक नजर.

आईओआर में भारत की भूमिका और चुनौतियां
हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) व्यापक इंडो-पैसिफिक का एक महत्वपूर्ण जंक्शन है. यह सबसे महत्वपूर्ण व्यापार गलियारों में से एक है, जो मध्य-पूर्व, यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व और पूर्वोत्तर एशिया को जोड़ता है.

इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (आईओआरए) द्वारा उल्लिखित, आईओआर में लगभग 2.7 बिलियन लोग रहते हैं. दुनिया के कंटेनर जहाजों का आधा हिस्सा यहां से होकर गुजरता है. दुनिया के थोक कार्गो ट्रैफिक का एक तिहाई और दुनिया के तेल शिपमेंट के दो तिहाई हिस्से यहीं से होकर गुजरते हैं.

इस इलाके में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका प्रमुख भूमिका निभाने वाले देश हैं. दोनों इसे अच्छी तरह से समझते भी हैं. लेकिन चीन की विस्तारवादी नीति की वजह से आईओआर में नई भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ने लगी है. निश्चित तौर पर भारत आईओआर में चीन की बढ़ती भूमिका को रणनीतिक रूप से नजरअंदाज नहीं कर सकता है, वहीं दूसरी ओर चीन यहां पर अपने आप को प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने पर अड़ा हुआ है.

मैरिटाइम के क्षेत्र में चीन सबसे बड़ी शक्ति बनना चाहता है. आईओआर की रणनीति उसी का एक हिस्सा है.

भारत के हित
हिंद महासागर के क्षेत्र में भारत का बहुत बड़ा हित है. यहां पर शांति और सुरक्षा बनाए रखने में भारतीय नौसेना बहुत अहम भूमिका निभाती है. अब जबकि चीन धीरे-धीरे कर अपनी उपस्थिति और आवाजाही बढ़ा रहा है, भारत ने मैरिटाइम एनगेजमेंट और नीति का पुनर्मूल्यांकन करना शुरू कर दिया है. क्षमता के मामले में भले ही कई कमियां हों, लेकिन भारत का भूगोल और परिचालन संबंधी अनुभव उसकी मजबूती है.

क्या चीन को इस क्षेत्र में अपने आप को बनाए रखने और अनुभव प्राप्त करने के साधनों और तरीकों को खोजने का प्रबंधन करना चाहिए. लेकिन ऐसा हुआ, तो यह भारत के एडवांटेज को खत्म कर देगा.

यह देखते हुए कि न तो भारत और न ही चीन अपना प्रभुत्व, रणनीतिक संकेतन, शक्ति का प्रदर्शन करना चाहता है. इस क्षेत्र में परिवर्धित परिचालन क्षमताओं के मामले में जब तक भारत को एडवांटेज है, तब तक चुनौती नहीं दिया जा सकता है.

भारत की वर्तमान नीति
भारतीय नौसेना हिंद महासागर के कई समुद्री चॉकप्वाइंट्स पर बहुत महत्व रखती है. ये दुनिया के सबसे रणनीतिक रूप से मूल्यवान चॉकप्वाइंट्स में से हैं. क्योंकि वे महत्वपूर्ण बाजारों, भागीदारों और क्षेत्रों तक पहुंच और पारगमन के लिए महत्वपूर्ण हैं.

भारतीय नौसेना अपने हित के प्राथमिक क्षेत्रों के रूप में निम्नलिखित चॉकप्वाइंट्स को सूचीबद्ध करती है, जो संघर्ष के समय में प्रतिकूल परिस्थितियों को नियंत्रित करने और इन अभिगम बिंदुओं को अस्वीकार करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है.

  • मलक्का और सिंगापुर जलडमरूमध्य : आईओआर को दक्षिण और पूर्वी चीन सागर और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र से जोड़ता है. प्रशांत महासागर से हिंद महासागर तक जाने के लिए वैकल्पिक मार्ग में इंडोनेशिया के सुंडा, लोंबोक और ओंबाई वेटार प्रमुख हैं. पनडुब्बियों के लिए खासकर. क्योंकि ये जलमग्न होकर बिना किसी के पकड़ में आए ही क्रॉस कर सकती है.
  • होर्मुज जलडमरूमध्य : यह मध्य पूर्व में फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ती है, जो हिंद महासागर में खुलती है.
  • बाब-अल-मंडब : लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोड़ता है, जो आईओआर में खुलता है.
  • स्वेज नहर : यह यूरोप को आईओआर के माध्यम से एशिया से जोड़ती है.
  • मोजांबिक चैनल: स्वेज नहर के विकल्प के साथ-साथ यह एशिया, ऑस्ट्रेलिया और उससे आगे के लिए केप ऑफ गुड होप को पार करने वाले जहाजों के लिए रूट प्रदान करता है. यह अफ्रीका के पूर्वी तट से पानी में पहुंच और उपस्थिति के लिए रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है.

समुद्री सुरक्षा रणनीति
जब भी संघर्ष या किसी उच्च तैयारी की स्थिति हो, तो समुद्री सुरक्षा रणनीति की भूमिका बहुत अहम होती है. समुद्री अभियानों के संचालन के लिए बढ़ाई गई तत्परता या संघर्ष के समय में, संचार और एसएलओसी की समुद्री रेखाएं भारत और विपक्षी दोनों के लिए क्रमशः सुरक्षा और अंतर्विरोधी उपायों की आवश्यकता को बढ़ाएगी.

परिचालन परिनियोजन के अनुसार, भारतीय नौसैनिक जहाज हमेशा बंगाल की उत्तरी खाड़ी में और उत्तरी अंडमान और दक्षिण निकोबार के बीच मौजूद रहता है. यह होर्मुज के जलडमरूमध्य के पास और उत्तरी अरब सागर के पास रहता है. अंडमान श्रृंखला में मलक्का जलडमरूमध्य के बगल में. मालदीव और श्रीलंका के बीच दक्षिण हिंद महासागर में, और मॉरीशस और सेशेल्स से दक्षिण पश्चिम हिंद महासागर में बाब-अल-मंडब को जोड़ने वाली खाड़ी के बीच.

इस तरह की तैनाती दिल्ली को अपनी सजगता बढ़ाने, डोमेन जागरूकता पैदा करने और खतरों और चुनौतियों का तुरंत जवाब देने की क्षमता देता है. एमबीडी भी सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका को मजबूत करता है. एमबीडी ने भारतीय नौसेना को अपनी उपस्थिति बढ़ाने की अनुमति दी है, प्रभावी स्थायित्व और सिग्नलिंग के लिए स्थिरता भी महत्वपूर्ण है.

भारत की आधिकारिक विदेश नीति विदेशी ठिकानों की अनुमति नहीं देती है, हालांकि इसकी नौसेना को प्रभावी ढंग से मिशनों को पूरा करने के लिए अपने संचालन के क्षेत्र के करीब रसद सुविधाओं तक पहुंच की आवश्यकता होती है.

लॉजिस्टिक्स सुविधाएं नौसेना के अपने उद्देश्यों को देने और अपने रणनीतिक लक्ष्यों की रक्षा करने की क्षमता को मजबूत करती हैं.

साझेदारी बढ़ाने से बढ़ेती भारत की ताकत
आईओआर में लगातार उपस्थिति और परिचालन क्षमता बरकरार रखने के लिए भारत को रणनीतिक साझेदार की जरूरत होगी, जो उसे साजो-सामान और पहुंच में मदद कर सके.

इसके बदले में, भारत नियमों पर आधारित व्यवस्था को बनाने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है. यह फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साझा हितों और समान चुनौतियों का ख्याल रखेगा.

फ्रांस और अमेरिका के साथ भारत ने लॉजिस्टिक समझौते किए हैं. यूके और ऑस्ट्रेलिया के साथ ऐसे ही समझौतों पर विचार करने की जरूरत है.

आईओआर के पूरे इलाका काफी बड़ा है. लिहाजा, चीन के साथ प्रतिस्पर्धा में नौसेना को मजबूत (लॉजिस्टिक सपोर्ट) रखने के लिए भारत को सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी.

जिबूती, आबूधाबी और ला रीयूनियन जैसे प्रमुख चॉकप्वाइंट्स में फ्रांस ने पहुंच दी है. जाहिर है, जिबूती और आबुधाबी स्थित फ्रांस बेस में होस्ट नेशन की सहमति आवश्यक होगी. लेकिन ला रीयूनियन के लिए किसी तीसरे देश की इजाजत की जरूरत नहीं होगी. इससे प्रशांत महासागर के द.पश्चिम और मोजांबिक चैनल तक पहुंच निर्बाध होगी.

भारत के समुद्री टोही विमान और P-8I को फ्रांस के बेस से ला रीयूनियन में तैनात करने से भारतीय नौसेना को पश्चिमी हिंद महासागर और अफ्रीका के पूर्वी तट में अपनी उपस्थिति बढ़ाने में मदद मिलेगी. वर्तमान में भारत की उपस्थिति और संचालन के लिहाज से यह एक कमजोर बिंदु है.

इसी तरह से बहरीन और डियागो गार्सिया में अमेरिका की उपस्थिति है. ये दोनों ही क्षेत्र आईओआर के रणनीतिक प्वांइट माने जाते हैं. अगर समझौता हो जाता है, तो भारत यहां से संवेदनशील गतिविधि पर नजर रख सकता है. उसके टोही विमान का अच्छा उपयोग हो सकता है.

अंडमान-निकोबार और डियागो गार्सिया भारत और अमेरिका दोनों के नौसैनिकों के लिए एडवांटेज प्रदान करता है. दोनों ही देश पी-8 का साझा उपयोग कर सकते हैं. इससे आपसी समझ और अधिक मजबूत होगी.

हालांकि, जिस तरह के इनके रणनीतिक महत्व हैं, दोनों ही देश एक दूसरे को बहुत ज्यादा पहुंच नहीं दे सकते हैं. भारत और अमेरिका मैरिटाइम डोमेन अवेरनेस क्षमता को मजबूत करने पर जोर अवश्य ही दे सकते हैं.

भारत-अमेरिका-जापान के बीच सालाना मलाबार अभ्यास के जरिए भी बहुत हद तक एक दूसरे को समझ रहे हैं. अंडमान-निकोबार, डियागो गार्सिया और संभवतः ओकिनावा के रणनीतिक क्षेत्रों का उपयोग किया जा सकता है.

भारत को जापान के साथ लॉजिस्टिक समझौते करने पर आगे बढ़ना चाहिए. हालांकि, आईओआर में जापान की बहुत अधिक उपस्थिति नहीं है. फिर भी दोनों देश समुद्री क्षेत्रों में आपसी सहयोग और अधिक गहरा कर सकते है.

यदि यह समझौता हो जाता है, तो जापान को मानवीय सहायता, आपात काल सेवा, डिजास्टर रिलीफ में मदद मिल सकेगी.

इसी तरह से टोक्यो की मदद से भारत को पूर्वी और द. चीन सागर में अधिक मदद मिलने की संभावना बढ़ जाएगी.

ओकिनावा के माध्यम से ताइवान जलडमरुमध्य तक भारतीय मिशन की पहुंच हो सकती है. इससे बीजिंग पर और अधिक दबाव बन सकेगा.

द. हिंद महासागर में ऑस्ट्रेलिया की मौजूदगी की वजह से इस तरह का समझौता भारत के हित में होगा. कोकोज कीलिंग आईलैंड ऑस्ट्रेलिया के अधिकार क्षेत्र में है. इसलिए भारत इसके जरिए इंडोनेशियन जलडमरुमध्य तक पहुंच बना सकता है. यह प्रशांत महासागर को हिंद महासागर से जोड़ता है.

द. हिंद महासागर की सीमा से फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया दोनों अपनी समुद्री सीमा साझा करते हैं. इसलिए पेरिस, कैनबेरा और दिल्ली के बीच रणनीतिक साझेदारी भारत को एडवांटेज देगा.

इन बड़ी शक्तियों के साथ मिलकर काम करने के साथ-साथ भारत मॉरिशस, सेशेल्स, मेडागास्कर और कॉमरोस जैसे आईलैंड देशों के साथ काम कर सकता है. श्रीलंका और मालदीव के साथ भारत के संबंध पहले से अच्छे हैं.

इंडोनेशिया, सिंगापुर और म्यामां के साथ मैरिटाइम समझौता भारत को नई शक्ति प्रदान कर सकता है.

भारत के लिए आगे क्या है रास्ता
शुरुआती शिथिलता के बाद भारत अब आईओआर इलाके में तेजी से काम कर रहा है. अपनी नीतियों में न सिर्फ सुधार कर रहा है, बल्कि अन्य देशों के साथ एनगेजमेंट को बढ़ाया भी है. सबसे बड़ी बात है रणनीतिक साझेदारी को समझना. और भारत इस दिशा में तेजी से पहल कर रहा है. यह बहुत बड़ा बदलाव आया है.

पड़ोस में चीन ने जिस तरीके से अपनी गतिविधि बढ़ाई है, भारत उसका मुकाबला तभी कर सकता है जब वह मैरिटाइम एनवायरमेंट को नया आयाम दे. एमडीए, इंटेलिजेंस शेयरिंग, समुद्री डोमेन में प्रौद्योगिकी का उपयोग, और लगातार गैर पारंपरिक खतरों को संबोधित करने वाले प्रमुख क्षेत्र हैं, जो इंडो-पैसिफिक में भारत की व्यापक भूमिका और बदलते सुरक्षा वास्तुकला को प्रभावित करने की क्षमता को आकार देंगे.

कितनी जागरूकता है मैरिटाइम को लेकर
एमडीए डिटेरेंस और कॉनफ्लिटक्ट स्ट्रैटेजी दोनों के लिए महत्वपूर्ण तत्व बन गया है. इसमें चर्चा की गई है कि कैसे भारतीय नौसेना खुफिया सूचनाएं साझा करने, इसे विकसित करने और इसकी लाभा उठाने की क्षमता पर टिका है.

भारतीय नौसेना ने एमडीए को 'समुद्र में स्थितिजन्य जागरूकता की आवश्यकता' के रूप में परिभाषित किया है, और आधुनिक अर्थों में इसका उपयोग एक सर्वव्यापी अवधारणा के रूप में किया जाता है.

इसमें सभी अभिनेताओं की स्थिति और इरादों का संज्ञान होना चाहिए, चाहे वे स्वयं हों, शत्रुतापूर्ण या तटस्थ हों, और सभी आयामों में. आईओआर के प्रवेश और निकास बिंदुओं की निगरानी करने की क्षमता भारतीय नौसेना और उसके भागीदारों को सभी हरकतों के बारे में जागरूक होने का लाभ देगी. विशेष रूप से सब-सरफेस वेसल्स, उनसे संबंधित तैनाती और आनेवाले खतरों का जवाब देने की अनुमति देती है.

रणनीतिक साझेदारों की मदद से भारत पी-81 की तैनाती कर सकता है. यह एंटी सबमरीन वॉरफेयर और एंटी सरफेस वॉरफेयर प्लेटफॉर्म है. ला-रीयूनियन (फ्रांस), डिएगो गार्सिया (अमेरिका/यूके), अंडमान और निकोबार (भारत), कोकोस कीलिंग (ऑस्ट्रेलिया) और ओकिनावा (जापान) के बीच. जिबूती से ड्यूक्म (ओमान) और अबू धाबी (यूएई) तक समुद्री गश्त की जा सकती है, बशर्ते भारत में साझेदार सुविधाओं तक पहुंच हो. इस तरह की व्यस्तताओं से दिल्ली को इरादे को दिखाने, बल और उपस्थिति दिखाने, और प्रमुख उप-क्षेत्रों और महत्वपूर्ण चॉकप्वाइंट्स को कवर करने वाले बड़े क्षेत्र में एमडीए उत्पन्न करने की अनुमति मिलेगी.

तकनीकी नवाचार
नई-नई प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और नवाचार में अग्रणी भूमिका निभाने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, फ्रांस, कनाडा और सिंगापुर जैसे देश मैरिटाइम के क्षेत्र में भारत के साथ साझेदारी कर सकते हैं.

भारत पहले से ही इन देशों में से अधिकांश के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आपसी सहयोग करता है. इसे अब समुद्री क्षेत्र के लिए भी विस्तार देना चाहिए.

भारत ने कई व्हाइट शिपिंग समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं. इसका मतलब होता है दो देशों की नौसेनाओं के बीच सूचना नेटवर्क प्रोटोकॉल की स्थापना. इसके साथ ही ये कमर्शियल मैरिटाइम ट्रैफिक पर भी नजर रखते हैं. दो देश इसके जरिए खुफिया जानकारियों को एक दूसरे से साझा करते हैं.

वर्तमान में, भारत ने ऐसे बहुत कम समझौते कर रखे हैं. यद्यपि भारत इस तरह की सूचनाओं का तदर्थ आधार पर आदान-प्रदान कर सकता है, लेकिन औपचारिक व्यवस्था की आवश्यकता शीघ्रता से महसूस की जा रही है. भारत को 'फाइव आईज' इंटेलिजेंस शेयरिंग पैक्ट, फ्रांस और जापान के साथ इस तरह की सूचनाओं के आदान-प्रदान के तरीके खोजने का काम करना चाहिए. भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हवाई में अमेरिकी इंडो-पैसिफिक कमांड में एक संपर्क अधिकारी रखने के लिए भी काम करना चाहिए. इस तरह की व्यवस्था गहन रणनीतिक सहयोग के अवसरों की बेहतर समझ का समर्थन करेगी.

ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और जापान में पहले से ही इसके विभिन्न स्तरों पर सैन्य प्रतिनिधि हैं.

एक भारतीय नौसेना अधिकारी आईओआर और व्यापक इंडो-पैसिफिक में अपने सहयोगियों के मिशनों और संचालन की करीबी बातचीत और समझ की अनुमति देगा.

भारत अंतरिक्ष-आधारित एमडीए साझेदारी के साथ समुद्री एमडीए की जोड़ी भी बना सकता है जिसमें जापान और फ्रांस जैसे देश प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं.

हाल के दिनों में एमडीए के अतिरिक्त स्रोत के रूप में उपग्रहों का महत्व बढ़ गया है.

एमडीए द्वारा कवर किए जाने वाले विशाल क्षेत्रों को देखते हुए, सैटेलाइट्स सूचना अंतराल को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. भारत अपने सहयोगियों के साथ ऐसे सहयोग पर चर्चा करना जारी रखता है जो विशेषज्ञता रखते हैं. 2018 में, भारत और फ्रांस ने आईओआर में एमडीए के लिए संयुक्त रूप से उपग्रह लॉन्च करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.

सूचनाओं का फ्यूजन
अधिक व्यापक खुफिया साझाकरण साझेदारी के अलावा, प्रभावी एमडीए को एक विश्वसनीय, वास्तविक समय की तस्वीर पेश करने के लिए एकत्र किए गए डेटा को जोड़ने की आवश्यकता होती है.

भारत ने 2018 में शुरू किए गए सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र का निर्माण जारी रखा है, उसे भागीदार देशों के साथ जानकारी साझा करने और उपलब्ध डेटा का उपयोग करने के तौर तरीकों पर काम करना चाहिए.

भारत के कई साझेदार समूह फाइव आइज़ का हिस्सा हैं और भारतीय नौसेना के साथ संचालन, डेटा प्रसार और तकनीकी जानकारी पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त, दिल्ली को मेडागास्कर में आयोजित क्षेत्रीय समुद्री सूचना संलयन केंद्र और सिंगापुर में सूचना संलयन केंद्र के साथ काम करना चाहिए.

गैर-पारंपरिक चुनौती
गैर पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए भारत मैरिटाइम के क्षेत्र में तकनीकी साझेदारी का फायदा उठा सकता है. आईओआर में जो भी चॉकप्वॉइंट्स और रणनीतिक एडवांटेज वाली जगह हैं, वहां पर इस तरह की चुनौतियां अधिक हैं.

मॉरीशस से लेकर मेडागास्कर तक के देश अपने तटीय जल की रक्षा और निगरानी में असमर्थता से जूझ रहे हैं. इसकी वजह से वहां पर अवैध तरीके से मछली पकड़ने और अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. अतिरिक्त चुनौतियों में ड्रग तस्करी, मानव तस्करी और प्राकृतिक आपदाएं भी शामिल हैं.

हिंद महासागर क्षेत्र में भारत और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा और भी बढ़ेगी. ऐसे में भारत को समुद्री क्षेत्रों में रणनीतिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए इस क्षेत्र में भौगोलिक एडवांटेज को बनाए रखना होगा. आईओआर में नई सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए मैरिटाइम डोमेन अवेरनेस के साथ-साथ लगातार अपनी गतिविधि जारी रखनी होगी. खासकर इसे देखने के बाद कि चीन लगातार अपनी समुद्री क्षमता में वृद्धि कर रहा है, भारत को दूसरे देशों के साथ साझेदारी का पूरा-पूरा फायदा उठाना चाहिए.

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