नई दिल्ली : केंद्र ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि चीन ने तिब्बत क्षेत्र में बड़ा निर्माण किया है और सेना को 1962 जैसी युद्ध स्थिति से बचने के लिए भारत-चीन सीमा तक भारी वाहनों को ले जाने के लिए चौड़ी सड़कों की जरूरत है.
इसने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि ऋषिकेश से गंगोत्री, ऋषिकेश से माणा और टनकपुर से पिथौरागढ़ तक फीडर सड़कें जो चीन से लगती उत्तरी सीमा तक जाती हैं, देहरादून और मेरठ में सेना के शिविरों को जोड़ती हैं जहां मिसाइल लांचर और भारी तोपखाना प्रतिष्ठान हैं.
केंद्र ने कहा कि सेना को किसी भी आपात स्थिति के लिए तैयार रहने की जरूरत है और यह 1962 जैसी स्थिति नहीं होने दे सकती.
शीर्ष अदालत ने कहा कि राष्ट्र की रक्षा और पर्यावरण की सुरक्षा के साथ सभी विकास टिकाऊ और संतुलित होने चाहिए तथा अदालत देश की रक्षा जरूरतों का दूसरा अनुमान नहीं लगा सकती है.
केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रमनाथ की पीठ को बताया कि भारत-चीन सीमा पर हालिया घटनाक्रम के कारण सेना को बेहतर सड़कों की जरूरत है.
उन्होंने कहा, सीमा के दूसरी तरफ व्यापक निर्माण हुआ है. उन्होंने (चीन) बुनियादी ढांचा तैयार किया है और हवाई पट्टियों, हेलीपैड, सड़कों, रेलवे लाइन नेटवर्क का निर्माण किया है जो इस धारणा पर आगे बढ़े हैं कि वे स्थायी रूप से वहां रहेंगे.
उन्होंने आठ सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन का आग्रह किया जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को चीन सीमा तक जाने वाली महत्वाकांक्षी चारधाम राजमार्ग परियोजना पर 2018 के परिपत्र में निर्धारित कैरिजवे की चौड़ाई 5.5 मीटर का पालन करने को कहा गया था.
रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 900 किलोमीटर की परियोजना का उद्देश्य उत्तराखंड में चार पवित्र शहरों - यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करना है.
वेणुगोपाल ने कहा, "सेना की समस्या यह है कि उसे सैनिकों, टैंकों, भारी तोपखाने और मशीनरी को स्थानांतरित करने की आवश्यकता होती है. ऐसा नहीं होना चाहिए कि जैसा कि 1962 में चीन सीमा तक राशन की आपूर्ति पैदल ही की जाती थी. अगर सड़क टू-लेन नहीं है तो सड़क बनाने का उद्देश्य विफल हो जाएगा. इसलिए सात मीटर (या 7.5 मीटर अगर मार्ग उठा हुआ हो) की चौड़ाई के साथ डबल लेन की अनुमति दी जानी चाहिए.
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकती है कि एक विरोधी है जिसने सीमा तक बुनियादी ढांचे का विकास किया है और सेना को सीमा तक बेहतर सड़कों की जरूरत है, जिसमें 1962 के युद्ध के बाद से कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं देखा गया है.
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जब एनजीओ ग्रीन दून फॉर सिटीजन्स की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि तत्कालीन सेना प्रमुख ने कहा था कि चौड़ी सड़कों की कोई जरूरत नहीं है और सैनिकों को हवाई मार्ग से ले जाया जा सकता है, तो पीठ ने कहा कि बयान पूरी तरह से सही नहीं हो सकता.