नई दिल्ली : चमोली आपदा आने के बाद एक संसदीय समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को हिमालयी क्षेत्र के प्रत्येक जिलों में पर्याप्त प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली लगाने का सुझाव दिया है, जिससे भविष्य में आपदा आने से पहले उसकी जानकारी मिल जाए.
कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, संबंधित राज्यों को किसी भी आपदा की स्थिति में सतर्क करने के लिए पर्याप्त प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली लगाई जानी चाहिए.
अनुदानों की मांगों पर समिति की 231 पेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्र की विकासात्मक परियोजनाओं को पर्यावरणीय और पारिस्थितिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए.
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा केंद्रीय गृह मंत्रालय हिमालयी क्षेत्र में होने वाले विकासात्मक परियोजनाओं के लिए डायनामाइट्स के उपयोग पर तुरंत रोक लगाने और नुकसान को कम करने के लिए संबंधित एजेंसियों जिसमें एनडीएमए, सड़क, परिवहन और राजमार्ग आदि शामिल हैं, के साथ समन्वय कर सकता है.
समिति का मनना है कि सड़कों, सुरंगों, बांधों और अन्य विकास के लिए हिमालय क्षेत्रों में पेड़ों की अत्यधिक कटाई और डायनामाइट्स के उपयोग से आस-पास की पहाड़ियां काफी कमजोर हो रही हैं, जिससे हिमस्खलन, भूस्खलन, फ्लैश फ्लड और अन्य तबाही होती है.
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करने और अन्य देशों द्वारा अपनाई जा रही पहाड़ियों की कटाई के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं का पता लगाने की आवश्यकता है.
समिति ने सिफारिश की कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, मौसम विज्ञान, हाइड्रोलॉजिकल स्टेशनों, निगरानी स्टेशनों और मौसम स्टेशनों का एक नेटवर्क जल्द से जल्द स्थापित किया जाए.
देहरादून में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग जैसे संगठनों को महत्वपूर्ण मूल्यांकन करने की आवश्यकता है. साथ ही इन संगठनों को भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) का उपयोग करके हिमालयी क्षेत्र के लिए ग्लेशियर लेक इन्वेंट्री तैयार करने का काम सौंपा जा सकता है.
यह देखते हुए कि लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में नाजुक और संवेदनशील पहाड़ हैं, समिति ने इस बात पर जोर दिया कि आधुनिक उपकरणों के साथ-साथ अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे को स्थापित करने की आवश्यकता है, जो ग्लेशियरों की गतिविधियों की निगरानी कर सकते हैं.
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, गृह मंत्रालय को अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं को वित्त मंत्रालय के सामने रखना चाहिए और संशोधित अनुमान (आरई) चरण में उचित बजटीय आवंटन की मांग करनी चाहिए.
ईटीवी भारत से बात करते हुए सेवानिवृत ब्रिगेडियर बीके खन्ना ने इस तरह की प्राकृतिक आपदा के मद्देनजर पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) और आपदा प्रभाव मूल्यांकन (DIA) पर प्रकाश डाला.
ब्रिगेडियर खन्ना, जो राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के एक वरिष्ठ सलाहकार भी हैं, ने कहा कि विकास आवश्यक है, लेकिन विकास पर्यावरणीय दुर्दशा की कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि ईआईए और डीआईए दोनों प्राधिकरण को भविष्य की प्लानिंग के बारे में जानकारी दे सकते हैं कि किस आपदा से किस तरह की क्षति हो सकती है.
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उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं के बीच चमोली हादसे को लेकर मतभेद है. कुछ का मानना है कि बाढ़ का कारण ग्लेशियल का टूटना है, जबकि अन्य का मानना है कि तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन से यह घटना हुई. कुछ का कहना है कि यह चीन का एक नापाक खेल था, जबकि कुछ का दावा है कि तबाही का सीआईए से संबंध था, जहां एक गुप्त अभियान के दौरान रेडियोधर्मी उपकरण इस क्षेत्र में खो गया था.
ब्रिगेडियर खन्ना ने कहा कि हमारे वैज्ञानिक यह पता लगाने के लिए वहां गए हैं कि वास्तव में क्या हुआ था. अब, सवाल यह है कि आगे क्या? हमें विकास की जरूरत है और इसके साथ ही हमें यह देखना होगा कि इस तरह के विकास से तबाही न हो.
इस बीच, गृह मंत्रालय ने संसदीय समिति को सूचित किया कि भारत सरकार के पास हिमस्खलन की निगरानी की अच्छी व्यवस्था है.
गृह मंत्रालय ने सूचित किया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत विभिन्न एजेंसियां हैं. यहां तक कि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में एक एजेंसी है जिसे हिम और हिमस्खलन अध्ययन प्रतिष्ठान (एसएएसई) कहा जाता है, जो हिमस्खलन वाले पर्वतीय क्षेत्रों में हिमस्खलन पूर्वानुमान, कृत्रिम ट्रिगरिंग और संरचनात्मक नियंत्रण का काम करती है.