नई दिल्ली: पिछले साल के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी कुछ राज्यों में दोबारा सत्ता में चुनकर आई, जहां सरकार दोहराया नहीं करती थीं. लेकिन भाजपा ने एक मिथ को तोड़ा, जिसके अनुसार 5 साल के बाद किसी भी राजनीतिक पार्टी की राज्य में सत्ता बदल जाती थी और यही वजह है कि भाजपा हिमाचल प्रदेश में भी दोबारा सत्ता में आने का दावा कर रही है. मगर हिमाचल में चार से पांच सीटों में सत्ता स्विंग हो जाती है और वही चुनाव में जीत दिलाती हैं.
आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जगह लेने की पूरी तैयारी कर रही है. आम आदमी पार्टी वहां राज्य सरकार की एंटी इनकंबेंसी का फायदा उठाने की पूरी पूरी कोशिश कर रही है. इसी तरह गुजरात में आम आदमी पार्टी के इंटरनल सर्वे में उसे 58 सीटों पर बढ़त मिलती दिख रही है. कुछ दिनों पहले हुए सूरत के स्थानीय निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी के 27 सीटें जीतने से भाजपा के अंदर भी खलबली मची हुई है. 27 साल से भारतीय जनता पार्टी गुजरात में सत्ता में है और देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री दोनों का ही गृह राज्य भी है, मगर वहां 'आप' धीरे-धीरे पांव पसार रही है.
आम आदमी पार्टी, एक तरह से वहां पर मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर अपनी जड़ें जमा रही है. हालांकि फिलहाल सत्ता तक पहुंचना, उसके लिए बहुत हद तक संभव नहीं लग रहा है, लेकिन आम आदमी पार्टी वोट कटवा के तौर पर वहां जरूर काम कर सकती है.
बरहाल हिमाचल और गुजरात, दोनों राज्यों में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं और दोनों ही जगह भारतीय जनता पार्टी ने काफी पहले से चुनावी तैयारी शुरू कर ही दी थी. आम आदमी पार्टी ने भी जोर-शोर से प्रचार प्रसार करना शुरू कर दिया है और गाहे-बगाहे इन दोनों ही राज्यों में भाजपा और 'आप' के बीच आरोप-प्रत्यारोप और आम झड़प जैसी घटनाएं भी होती रहती हैं.
आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश, गुजरात, पंजाब या फिर गोवा हर जगह अपने चुनाव प्रचार में यही कहती रही है कि वह दिल्ली मॉडल को लागू करेगी- शिक्षा हो या स्वास्थ हो, या फिर मुफ्त बिजली-पानी, या अन्य नीतियों में. मगर कहीं ना कहीं इस दिल्ली मॉडल पर ही कटाक्ष करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर इसे मुफ्त रेवड़ियों वाली राजनीति बताया था. तो क्या इस दिल्ली मॉडल के चर्चित होने से पहले या इन राज्यों के चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले ही इसकी हवा निकलना तय हो चुका है. क्या इन चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश की तर्ज पर ही अब ईडी और सीबीआई की छापेमारी और भ्रष्टाचार के मामले प्रमुखता (CBI Raids On Manish Sisodia) से सतह पर आने वाले हैं?
पार्टी सूत्रों की मानें तो यह मात्र शुरुआत है, भ्रष्टाचार के कई मामले और भी हैं जिन्हें अभी तक सरकार ने नजरअंदाज किया था, या सही समय का इंतजार कर रही थी. यह कहना तो मुश्किल होगा. मगर इन मामलों पर जल्द ही कार्रवाई होने की संभावना जताई जा रही है.
हाल में गोवा और उत्तराखंड के चुनाव परिणाम को यदि गौर से देखें तो कहीं ना कहीं ये बीजेपी को मंथन करने पर मजबूर जरूर करते हैं. आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में भले ही एक भी सीट जीत नहीं पाई लेकिन पूरे प्रदेश में पार्टी ने 3.31 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि बसपा को 4.82 प्रतिशत वोट मिले थे, जिसने कांग्रेस को काफी नुकसान पहुंचाया था. इसी तरह गोवा में भी आम आदमी पार्टी ने 6.77 प्रतिशत वोट हासिल किए और उसके दो प्रत्याशी भी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे.
वहीं, पंजाब में तो 'आप' ने सत्ता हासिल करने में कामयाबी ही हासिल कर ली, और शायद यही वजह है कि अब 'आप' के नेता पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल के लिए प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी का भी दावा कर रहे हैं, लेकिन इन चुनावों से पहले सीबीआई और ईडी की करवाई पूरी तरह से आम आदमी पार्टी की इमेज बदल कर रख सकती है, क्योंकि इस कथित आबकारी नीति घोटाले की आंच मात्र दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया तक ही नहीं, बल्कि केजरीवाल सहित पार्टी के अन्य नेताओं तक पहुंचने की आशंका है.
पार्टी के सांसद संजय सिंह का कहना है कि बीजेपी केजरीवाल से डर गई है, इसलिए विपक्षी पार्टियों को ईडी और सीबीआई का डर दिखा रही. मगर जनता दूध का दूध और पानी का पानी चुनाव में कर देगी. उन्होंने भी सिसोदिया की बात को दोहराते हुए कहा कि अरविंद केजरीवाल 2024 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री उम्मीदवार की पात्रता रखते हैं, इसीलिए हमारी सरकर को निशाना बनाया जा रहा है.
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जबकि बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आरपी सिंह का कहना है कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन जैसे आंदोलन से निकल कर आए लोग आंदोलन के नाम पर सत्ता में आ गए, मगर उनके भ्रष्टाचार ने उनकी जनता के सामने पोल खोल दी है. आरपी सिंह ने दावा किया कि कहां वो प्रधानमंत्री पद के सपने देख रहें, वास्तविकता में दिल्ली में भी जनता उन्हें अब नहीं आने देगी. उन्होंने कहा कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली को मयखाने में तब्दील कर दिया है, जिससे लोग काफी नाराज हैं. जहां तक बात ईडी और सीबीआई की करवाई की है, जहां भ्रष्टाचार होगा वहां जांच एजेंसियां अपनी करवाई तो करेंगी ही, उससे बौखलाहट क्यों.
बहरहाल दावे अपनी अपनी जगह हैं, लेकिन वास्तविकता यही है कि आने वाले तीन चार महीने राजनीति पार्टियों के समीकरण बदलने और बिगाड़ने में बहुत महत्वपूर्ण साबित होने वाले हैं और देखना ये होगा कि चुनाव आते आते किन पार्टियों के राजनीतिक मुद्दे क्या होते हैं.