हैदराबाद : मोदी कैबिनेट के मंत्रिमंडल से कई पुराने चेहरों की छुट्टी कर दी गई तो नए चेहरों को अपनी योग्यता दिखाने का मौका दिया गया. वहीं कुछ मंत्रियों के काम से खुश होकर पीएम मोदी ने प्रमोशन भी किया. पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल का पहला कैबिनेट विस्तार सात जुलाई 2021 को किया गया.
मोदी कैबिनेट में शामिल केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन समेत कुल 12 मंत्रियों को हटाया गया है. इनमें सबसे बड़ा नाम कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडे़कर, संतोष गंगवार के अलावा डीवी सदानंदा गोड़ा, थावरचंद गहलोत, बाबुल सुप्रियो, महाराष्ट्र कोटे से मंत्री धोत्रे संजय शामराव, रतन लाल कटारिया, प्रताप चंद सारंगी और देबाश्री चौधरी है.
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिन मंत्रियों को कैबिनेट से हटाया गया है, उन्हें किस तरह की सुविधा मिलेगी, वेतन कितना मिलेगा. लेकिन इससे पहले आपको बता दें कि भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल में तीन प्रकार के मंत्री होते हैं. इनमें कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार तीन तरह के मंत्री हो होते हैं. इसमें बढ़ते से घटते पावर क्रम के हिसाब से कैबिनेट मंत्री पहले नंबर पर आते हैं. ये कैबिनेट के सदस्य मंत्रिमंडल का वो हिस्सा होते हैं, जिन पर मंत्रालय का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी होती है.
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राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) को कनिष्ठ मंत्री भी कहते हैं, हालांकि ये कैबिनेट मंत्री को रिपोर्ट नहीं करते हैं. राज्य मंत्री कैबिनेट मंत्री को रिपोर्ट करते हैं, उन्हें आमतौर पर उसी मंत्रालय में एक विशेष जिम्मेदारी सौंपी जाती है.
कैबिनेट मंत्री के बारे में जानें
मंत्रिमंडल का खास हिस्सा कैबिनेट मंत्रियों के पास होता है. उन्हें एक या इससे अधिक मंत्रालय भी आवंटित किए जाते हैं. सरकार के सभी फैसलों में कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं. आमतौर पर हर हफ्ते कैबिनेट की बैठक होती है. सरकार कोई भी फैसला, कोई अध्यादेश, नया कानून, कानून संसोधन वगैरह कैबिनेट की बैठक में ही तय करती है.
राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के बारे में जानें
मंत्रीपरिषद का हिस्सा स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्रियों के पास आवंटित मंत्रालय और विभाग की पूरी जवाबदेही होती है, लेकिन वो आम तौर पर कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं हो सकते. कैबिनेट इनको उनके मंत्रालय या विभाग से संबंधित मसलों पर चर्चा और फैसलों के लिए खास मौकों पर बुला सकता है.
राज्य मंत्री का क्या है कार्य
मंत्रिपरिषद का हिस्सा राज्य मंत्री कैबिनेट मिनिस्टर के अधीन काम करने वाले मंत्री हैं. बता दें कि एक कैबिनेट मंत्री के अधीन एक या उससे ज्यादा राज्य मंत्री भी होते हैं. इसके अलावा एक मंत्रालय के अंदर कई विभाग होते हैं जो राज्य मंत्रियों के बीच बांटे जाते हैं, ताकि वो कैबिनेट मंत्री को मंत्रालय चलाने में मदद कर सकें.
कैबिनेट मंत्री की सैलरी व सुविधाएं
कैबिनेट मंत्री को हर महीने 1,00,000 रुपये मूल वेतन मिलता है. इसके साथ ही निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 70,000 रुपये, कार्यालय भत्ता 60,000 रुपये और आतिथ्य सत्कार भत्ता 2,000 रुपये शामिल है. राज्य मंत्रियों को 1,000 रुपये प्रतिदिन और राज्य मंत्री को 600 रुपये प्रतिदिन सत्कार भत्ता मिलता है. इसके अलावा उन्हें संसद सदस्य की तरह ही यात्रा भत्ता/यात्रा सुविधाएं, रेल यात्रा सुविधाएं, स्टीमर पास, आवास, टेलीफोन सुविधाएं और वाहन क्रय हेतु अग्रिम राशि मिलती है.
पूर्व केंद्रीय मंत्रियों को पेंशन, निशुल्क रेल यात्रा सुविधा, चिकित्सा सुविधाएं, दिवंगत सदस्य की मृत्यु के समय आश्रित को उसे मिलने वाली पेंशन का 50 प्रतिशत और निशुल्क स्टीमर सुविधा मिलेगी. वहीं, राज्यमंत्री को भी सुविधाएं कैबिनेट मंत्री के बराबर ही मिलती हैं.
प्रधानमंत्री को रिटायर होने के बाद की सुविधाएं
प्रधानमंत्री को रिटायर होने के बाद भी 20,000 रुपये प्रतिमाह की पेंशन मिलती है. रिटायर होने के बाद प्रधानमंत्री को दिल्ली में एक बंगला मिलता है. इसके साथ एक पीए और एक चपरासी की सुविधा दी जाती है. रिटायर होने के बाद भी प्रधानमंत्री मुफ्त में कितनी भी रेल यात्राएं कर सकता है. इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री को हर साल 6 घरेलू एक्जीक्यूटिव क्लास की हवाई यात्राओं के टिकट मुफ्त में मिलते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री को अगले 5 साल तक ऑफिस के सारे खर्च का रिफंड दिया जाता है, उसके बाद 6,000 रुपये प्रति वर्ष ऑफिस के खर्च के तौर पर दिए जाते हैं. पूर्व प्रधानमंत्रियों को एक साल के लिए एसपीजी कवर भी दिया जाता है.
सांसदों को वेतन के अलावा मिलने वाली अन्य सुविधाएं
सांसद को एक लाख रुपये वेतन के तौर पर मिलेते हैं. सरकारी खर्चे पर एक सांसद पत्नी या सहायक के साथ सालभर में 34 हवाई यात्राएं कर सकता है. ट्रेन के लिए यह सीमा असीमित है, वो भी फर्स्ट क्लास कोच में. दिल्ली के पॉश इलाके में हर सांसद को बंगले या फ्लैट की सुविधा दी जाती है. सांसद और उनके आश्रितों के लिए किसी भी सरकारी अस्पताल में पूरी तरह मुफ्त इलाज है. प्राइवेट अस्पतालों में भी इलाज के दौरान कुछ चीजों को छोड़कर बाकी का भुगतान सरकारी खर्चे से होता है. वाहन खरीदने के लिए 4 लाख तक बिना ब्याज का लोन मिलता है. घर में इस्तेमाल करने के लिए तीन टेलीफोन लाइनें, जिन पर हर साल 50000 कॉल मुफ्त होती हैं. सालाना 50 हजार यूनिट बिजली मुफ्त, साल में एक बार घर में फर्नीचर के लिए 75 हजार रुपये मिलते हैं. वेतन पर किसी तरह का टैक्स न देने की छूट भी मिलती है.
2018 तक सांसद समय-समय पर अपने वेतन में संशोधन के लिए कानून पारित करते थे. इससे कई बार विवाद की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती थी. साल 2018 में फाइनांस एक्ट, 2018 के जरिए कानून में संशोधन किया गया. इस एक्ट के मुताबिक सांसदों के वेतन, दैनिक भत्ते और पेंशन में हर पांच साल में बढ़ोतरी की जाएगी. इसका आधार इनकम टैक्स एक्ट, 1961 में दिया गया लागत मुद्रास्फीति सूचकांक होगा.
पूर्व सांसद को मिलने वाली सुविधाएं
- मासिक पेंशन के रूप में हर माह 20000 रुपये.
- पांच साल पूरे होने पर 1500 रुपये अतिरिक्त मिलेंगे.
- सांसदों को डबल पेंशन लेने का भी हक, मसलन पहले विधायक रहें हैं तो उसकी भी पेंशन और सांसद रहने की भी पेंशन.
- पत्नी या आश्रित को फेमिली पेंशन, पूर्व सांसद की मृत्यु होने पर पति या पत्नी को आजीवन आधी पेंशन.
- पूर्व सांसद को फ्री में ऐसी फर्स्ट क्लास में असीमित यात्राओं की छूट, सहायक या पत्नी साथ होने पर सेंकेंड क्लास में यात्रा की छूट.
- देश में लोकसभा का चुनाव एक बार भी जीत जाने और एक दिन के लिए भी संसद का सदस्य बन जाने के लिए भारत सरकार की ओर से पेंशन दिए जाने की व्यवस्था है.
संसद सदस्यों का वेतन, भत्ते और पेंशन (संशोधन) अध्यादेश, 2020
यह अध्यादेश संसद सदस्यों का वेतन, भत्ते और पेंशन एक्ट, 1954 में संशोधन करता है. एक्ट सांसदों को संसद में अपने कार्यकाल के दौरान मिलने वाले वेतन और विभिन्न भत्तों को निर्धारित करता है और पूर्व सांसदों की पेंशन से संबंधित प्रावधान भी करता है.
अध्यादेश सांसदों के मूल वेतन में 30% की कटौती करता है. इसके अतिरिक्त सरकार ने सांसदों के कुछ भत्तों में कटौती के लिए 1954 के एक्ट के कुछ नियमों में भी संशोधन किए हैं. इनमें निर्वाचन क्षेत्र भत्ता और कार्यालयी व्यय भत्ता शामिल है. एक वर्ष की अवधि के लिए संशोधन किए गए हैं जोकि 1 अप्रैल, 2020 से प्रभावी हैं.
मंत्रियों का वेतन और भत्ते (संशोधन) अध्यादेश, 2020
अध्यादेश मंत्रियों का वेतन और भत्ते एक्ट, 1952 में संशोधन करता है. 1952 का एक्ट मंत्रियों (प्रधानमंत्री सहित) के वेतन और अन्य भत्तों को रेगुलेट करता है. एक्ट में प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्रियों, राज्य मंत्रियों और डेप्युटी मंत्रियों को विभिन्न दरों पर मासिक सत्कार भत्ते (आगंतुकों के मनोरंजन/सत्कार पर होने वाला खर्च) के भुगतान का प्रावधान है. अध्यादेश एक वर्ष के लिए मंत्रियों के सत्कार भत्ते को 30% कम करता है जोकि 1 अप्रैल, 2020 से प्रभावी है.
अप्रैल 2020 में, सरकार ने सांसदों और मंत्रियों के कुछ उपलब्धियों को कम कर दिया. यह COVID-19 महामारी से निपटने के लिए केंद्र के वित्तीय संसाधनों के पूरक के लिए, कोरोनावायरस के प्रकोप के संदर्भ में किया गया था.
वेतन तय करने के तरीके
संविधान का अनुच्छेद 106 सांसदों को यह अधिकार देता है कि वे कानून बनाकर अपने वेतन का निर्धारण करें. 2018 तक सांसद समय-समय पर अपने वेतन में संशोधन के लिए कानून पारित करते थे. चूंकि सांसद अपने वेतन खुद तय करते हैं, इसलिए हितों के टकराव का सवाल खड़ा होता है. 2010 में लोकसभा में इस विषय पर चर्चा के दौरान कई सांसदों ने सुझाव दिया था कि सांसदों के वेतन को तय करने के लिए एक व्यवस्था तैयार की जानी चाहिए जिसमें सांसद या पार्लियामेंटरी कमेटी शामिल न हो.
2018 में संसद ने फाइनांस एक्ट, 2018 के जरिए सांसदों के वेतन को निर्धारित करने वाले कानून में संशोधन किया, ताकि हितों के टकराव को कम किया जा सके और नियमित संशोधनों को सुनिश्चित किया जाए. फाइनांस एक्ट, 2018 में प्रावधान है कि सांसदों के वेतन, दैनिक भत्ते और पेंशन में हर पांच वर्षों में बढ़ोतरी की जाएगी. इसका आधार इनकम टैक्स एक्ट, 1961 में दिया गया लागत मुद्रास्फीति सूचकांक होगा.
दूसरे कई लोकतांत्रिक देशों ने इस मुद्दे को सुलझाने की कोशिश की है. कुछ देशों में एक स्वतंत्र अथॉरिटी का गठन किया गया है (जैसे ऑस्ट्रेलिया और यूके), कुछ में सीनियर सिविल सर्वेन्ट्स के वेतन को मानदंड बनाया गया है (जैसे फ्रांस), और कुछ में मुद्रास्फीति के अनुसार वेतन को क्रमबद्ध किया जाता है (जैसे कनाडा). युनाइडेट स्टेट्स में कानून के जरिए लेजिसलेटर्स के वेतन को तय किया जाता है, लेकिन उसके संविधान में यह निर्दिष्ट है कि संशोधन तभी लागू होंगे जब हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के अगले चुनाव होंगे.
सांसदों और मंत्रियों के वेतन और भत्तों में परिवर्तनों के बीच तुलना
विशेषता | पूर्व पात्रता (रुपये प्रति माह में) | अध्यादेशों के अनुसार नई पात्रता (रुपये प्रति माह में) |
वेतन | 1,00,000 | 70,000 |
निर्वाचन क्षेत्र भत्ता | 70,000 | 49,000 |
कार्यालयी भत्ता | 60,000 | 54,000 |
इसमें से | ||
कार्यालयी भत्ता | 20,000 | 14,000 |
सचिवीय सहायता | 40,000 | 40,000 |
प्रधानमंत्री का सत्कार भत्ता | 3,000 | 2,100 |
कैबिनेट मंत्रियों का सत्कार भत्ता | 2,000 | 1,400 |
राज्य मंत्रियों का सत्कार भत्ता | 1,000 | 700 |
डेप्युटी मंत्रियों का सत्कार भत्ता | 600 | 420 |
नोट: परिवर्तन एक वर्ष की अवधि के लिए किए गए हैं जो 1 अप्रैल, 2020 से प्रभावी हैं.
स्रोत: संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेंशन (संशोधन) अध्यादेश, 2020; मंत्रियों के वेतन और भत्ते (संशोधन) अध्यादेश, 2020; संसद सदस्य (निर्वाचन क्षेत्र भत्ता) संशोधन नियम, 2020; संसद सदस्य (कार्यालय व्यय भत्ता) संशोधन नियम, 2020; पीआरएस
कुछ सरकारी अधिकारियों का वेतन
पद | कोविड-19 से पहले का वेतन (रुपये प्रति माह) |
संसद सदस्य | 1,00,000 |
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश | 2,50,000 |
केंद्र सरकार के सचिव | 2,25,000 |
सेबी चेयरमैन | 2,25,000 |
आरबीआई गवर्नर | 2,50,000 |
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