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ग्लोबल हुई बुंदेली: MP के बुंदेलखंड इनसाइक्लोपीडिया की बेवसाइट का लोकार्पण, बुंदेली शब्दकोश पहले ही हो चुका है प्रकाशित

मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड इनसाइक्लोपीडिया की बेवसाइट का लोकार्पण हुआ. इसका उद्देश्य बुंदेलखंड के कोने-कोने और चप्पे-चप्पे की जानकारी दुनिया भर में पहुंचे है.

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Published : Jul 10, 2023, 8:59 PM IST

बुंदेलखंड इनसाइक्लोपीडिया वेबसाइट का लोकार्पण

सागर। भले ही बुंदेलखंड को प्रशासनिक या राजनीतिक तौर पर सीमाओं में बांध दिया गया हो, लेकिन बुंदेली बोली और उसकी संस्कृति की मिठास आपको दूसरे अंचल में सुनने को मिल जाएगी. ऐसी ही बुंदेली संस्कृति, कला और बोली की समृद्धि से दुनिया को परिचित कराने के लिए सागर के शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय की हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ सरोज गुप्ता लगातार प्रयासरत हैं. करीब 50 हजार से ज्यादा शब्दों के सफल प्रकाशन के बाद डॉ सरोज गुप्ता बुंदेलखंड का विश्वकोश तैयार करने में जुट गयी और 9 जुलाई को उन्होंने बुंदेलखंड इनसाइक्लोपीडिया एक बेवसाइट के रूप में लोकार्पित कर दिया. उनका उद्देश्य है कि बुंदेलखंड के कोने-कोने और चप्पे-चप्पे की जानकारी दुनिया भर में पहुंचे. डॉ सरोज गुप्ता ने बुंदेली भाषा की सेवा के लिए पिछले करीब 30 सालों से सक्रिय है.

डॉ सरोज गुप्ता और बुंदेली का प्रेम: डॉ. सरोज गुप्ता सागर के पं. दीनदयाल उपाध्याय शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष हैं. डॉ सरोज गुप्ता के पिता प्रिंसिपल थे और बुंदेली के प्रति उनका अगाध प्रेम था. उनके घर बुंदेली पत्रिकाएं मामोलिया,ईसुरी और चौमासा आती थी. बचपन से ही उनको बुंदेली को समझने और जानने का मौका मिला और उन्हें लगा कि बुंदेली सिर्फ बोली नहीं,बल्कि समृद्ध भाषा है. असि. प्रोफेसर बनने के बाद सागर में पदस्थापना हुई और बुंदेली कविता और संस्कृति पर काम करते समय बुंदेली शब्दकोश बनाने की प्रेरणा मिली. उन्होंने 1996 से बुंदेली शब्दों का संकलन शुरू कर दिया.

इसके बाद उन्होंने विधिवत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में बुंदेली शब्दकोश पर काम करने आवेदन किया. यूजीसी द्वारा साहित्यकार नामवर सिंह ने इंटरव्यू लिया और उन्होंने बुंदेली शब्दकोश तैयार करने की सहर्ष स्वीकृति दी. इसके बाद 3 साल तक बुंदेलखंड के गांव-गांव घूमकर साहित्यकारों, ग्रामीणों और कलाकारों के साथ चबूतरे पर बैठकर बातचीत की. ग्रामीण,बढ़ई, लोहार और सुनार के व्यवसाय में होने वाले शब्दों के प्रयोग के बारे में जााना. बुंदेली शब्दकोश में 50 हजार से ज्यादा शब्द हैं और परिशिष्ट में सवा सौ से ज्यादा पेज है. इसमें बुंदेली गालियों के साथ पर्व,त्योहार,लोक देवी-देवता सब कुछ जानकारी है. 2016 में बुंदेली शब्दकोश का प्रकाशन हुआ. शब्दकोश के प्रकाशन के बाद डॉ. सरोज गुप्ता बुंदेली का विश्वकोश (इनसाइक्लोपीडिया) तैयार करने के काम में जुट गयी और आखिरकार उन्होनें बुंदेलखंड इनसाइक्लोपीडिया को बेवसाइट के रूप में लोकार्पित कर दिया है.

बुंदेलखंड और बुंदेली की सेवा के लिए समर्पित डॉ सरोज गुप्ता: डॉ सरोज गुप्ता की बात करें तो मानो बुंदेली और बुंदेलखंड की कला संस्कृति साहित्य उनके मन में रचा बसा हुआ है. उनके अथक परिश्रम और प्रयासों को देखकर लगता है कि उन्होंने बुंदेली की सेवा के लिए जन्म लिया हो. उनके प्रयास इस मामले में काफी सार्थक है कि उन्होंने बुंदेली को भाषा का दर्जा दिलाने के लिए जरूरी बुंदेली शब्दकोश तैयार किया और अब बुंदेलखंड का इनसाइक्लोपीडिया तैयार किया है. खास बात ये है कि इन प्रयासों को डिजिटलाइजेशन के जरिए ग्लोबल बनाने के साथ नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है. अब बुंदेली को जानने समझने के लिए बहुत कुछ सामग्री बुंदेलखंड इनसाइक्लोपीडिया की बेबसाइट पर मिल जाएगी. भाषा की समृद्धता के साथ उसको उचित स्थान दिलाने का डा सरोज गुप्ता का प्रयास काफी सराहनीय है.

क्या कहना है डा सरोज गुप्ता का: ये बुंदेलखंड का विश्वकोश है. इसमें हमारी 33 समितियां है. संस्कृत, हिंदी, पर्यटन, पर्यावरण, पत्रकारिता, रंगमंच, संगीत, कला, साहित्य हर तरह की समितिया है. ऐसी हमारी 33 समितियां है. इसमें हमारा उद्देश्य ये है कि बुंदेलखंड के कोने-कोने और चप्पे-चप्पे की जानकारी लोगों तक पहुंचाएं, क्योकिं हमारा बुंदेलखंड काफी समृद्ध है. इसकी समृद्धता के लिए हमारे बुजुर्गों ने काफी कुछ लिखा है. कम से कम एक लाख पुस्तकें हमारे पितृ पुरूषों ने 100 सालों से इकट्ठी कर रखी है. जिन्हें हम एक जगह एक सस्थान पर बेबसाइट के माध्यम से लाना चाहते हैं. ताकि हमारी युवा पीढ़ी जो विपुल साहित्य और समृद्ध साहित्य है, उससे परिचित हो सके. बुंदेली को भाषा का दर्जा दिलाने के लिए जरूरी बुंदेली विश्वकोश में तैयार कर चुकी हूं. जिसे 2016 में उत्तरप्रदेश भाषा संस्थान ने प्रकाशित किया है. बुंदेली का वृहद शब्दकोश है, इसमें करीब 50 हजार शब्द है. परिशिष्ट अगर आप देखेंगे तो विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द और तमाम व्यजंन सभी सामग्री उसमें मिलेगी. आज हमने जिस बेबसाइट का लोकार्पण किया है, ये बुंदेलखंड इनसाइक्लोपीडिया है. अब हम इनसाइक्लोपीडिया को 40 वाल्यूम में लाना चाहेंगे, बेबसाइट भी समृद्ध करेंगे. आज से नयी शुरूआत हुई है.

यहां पढ़ें...

बुंदेली बोली पर बयान

बुंदेली में तमाम खूबियां है कि भाषा का दर्जा मिले: सागर विश्वविद्यालय के एजुकेशनल मल्टीमीडिया रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर पंकज तिवारी कहते हैं कि बुंदेलखंड अपने आप में बहुत समृद्ध है. यहां की संस्कृति और हमारे पास बुंदेली जिसे बोली कहा जाता है, लेकिन उसमें भाषा बनने की पूरी क्षमता है कि वो एक परिपक्व भाषा बन सकती है. बुंदेली का जो इतिहास है, कई बार ये चीजें सामने आती है. आज एक बुंदेली शब्दकोश की चर्चा हुई, जिसमें 50 हजार से ज्यादा शब्द है. अगर 50 हजार से ज्यादा शब्दों का शब्दकोश है, तो हमारी बुंदेली भाषा क्यों नहीं बन सकती है. मुझे लगता है कि इसके लिए प्रयास किया जाना चाहिए. किसी बोली को भाषा का दर्जा दिए जाने की एक संवैधानिक प्रक्रिया है. मुझे लगता है कि सकारात्मक तरीके से इसका प्रयास करना चाहिए. हमारे जो जनप्रतिनिधि है, उनसे भी हम निवेदन करेंगे कि बुंदेली को भाषा का दर्जा मिलें, इसके लिए प्रयास करें.

बुंदेलखंड इनसाइक्लोपीडिया वेबसाइट का लोकार्पण

सागर। भले ही बुंदेलखंड को प्रशासनिक या राजनीतिक तौर पर सीमाओं में बांध दिया गया हो, लेकिन बुंदेली बोली और उसकी संस्कृति की मिठास आपको दूसरे अंचल में सुनने को मिल जाएगी. ऐसी ही बुंदेली संस्कृति, कला और बोली की समृद्धि से दुनिया को परिचित कराने के लिए सागर के शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय की हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ सरोज गुप्ता लगातार प्रयासरत हैं. करीब 50 हजार से ज्यादा शब्दों के सफल प्रकाशन के बाद डॉ सरोज गुप्ता बुंदेलखंड का विश्वकोश तैयार करने में जुट गयी और 9 जुलाई को उन्होंने बुंदेलखंड इनसाइक्लोपीडिया एक बेवसाइट के रूप में लोकार्पित कर दिया. उनका उद्देश्य है कि बुंदेलखंड के कोने-कोने और चप्पे-चप्पे की जानकारी दुनिया भर में पहुंचे. डॉ सरोज गुप्ता ने बुंदेली भाषा की सेवा के लिए पिछले करीब 30 सालों से सक्रिय है.

डॉ सरोज गुप्ता और बुंदेली का प्रेम: डॉ. सरोज गुप्ता सागर के पं. दीनदयाल उपाध्याय शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष हैं. डॉ सरोज गुप्ता के पिता प्रिंसिपल थे और बुंदेली के प्रति उनका अगाध प्रेम था. उनके घर बुंदेली पत्रिकाएं मामोलिया,ईसुरी और चौमासा आती थी. बचपन से ही उनको बुंदेली को समझने और जानने का मौका मिला और उन्हें लगा कि बुंदेली सिर्फ बोली नहीं,बल्कि समृद्ध भाषा है. असि. प्रोफेसर बनने के बाद सागर में पदस्थापना हुई और बुंदेली कविता और संस्कृति पर काम करते समय बुंदेली शब्दकोश बनाने की प्रेरणा मिली. उन्होंने 1996 से बुंदेली शब्दों का संकलन शुरू कर दिया.

इसके बाद उन्होंने विधिवत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में बुंदेली शब्दकोश पर काम करने आवेदन किया. यूजीसी द्वारा साहित्यकार नामवर सिंह ने इंटरव्यू लिया और उन्होंने बुंदेली शब्दकोश तैयार करने की सहर्ष स्वीकृति दी. इसके बाद 3 साल तक बुंदेलखंड के गांव-गांव घूमकर साहित्यकारों, ग्रामीणों और कलाकारों के साथ चबूतरे पर बैठकर बातचीत की. ग्रामीण,बढ़ई, लोहार और सुनार के व्यवसाय में होने वाले शब्दों के प्रयोग के बारे में जााना. बुंदेली शब्दकोश में 50 हजार से ज्यादा शब्द हैं और परिशिष्ट में सवा सौ से ज्यादा पेज है. इसमें बुंदेली गालियों के साथ पर्व,त्योहार,लोक देवी-देवता सब कुछ जानकारी है. 2016 में बुंदेली शब्दकोश का प्रकाशन हुआ. शब्दकोश के प्रकाशन के बाद डॉ. सरोज गुप्ता बुंदेली का विश्वकोश (इनसाइक्लोपीडिया) तैयार करने के काम में जुट गयी और आखिरकार उन्होनें बुंदेलखंड इनसाइक्लोपीडिया को बेवसाइट के रूप में लोकार्पित कर दिया है.

बुंदेलखंड और बुंदेली की सेवा के लिए समर्पित डॉ सरोज गुप्ता: डॉ सरोज गुप्ता की बात करें तो मानो बुंदेली और बुंदेलखंड की कला संस्कृति साहित्य उनके मन में रचा बसा हुआ है. उनके अथक परिश्रम और प्रयासों को देखकर लगता है कि उन्होंने बुंदेली की सेवा के लिए जन्म लिया हो. उनके प्रयास इस मामले में काफी सार्थक है कि उन्होंने बुंदेली को भाषा का दर्जा दिलाने के लिए जरूरी बुंदेली शब्दकोश तैयार किया और अब बुंदेलखंड का इनसाइक्लोपीडिया तैयार किया है. खास बात ये है कि इन प्रयासों को डिजिटलाइजेशन के जरिए ग्लोबल बनाने के साथ नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है. अब बुंदेली को जानने समझने के लिए बहुत कुछ सामग्री बुंदेलखंड इनसाइक्लोपीडिया की बेबसाइट पर मिल जाएगी. भाषा की समृद्धता के साथ उसको उचित स्थान दिलाने का डा सरोज गुप्ता का प्रयास काफी सराहनीय है.

क्या कहना है डा सरोज गुप्ता का: ये बुंदेलखंड का विश्वकोश है. इसमें हमारी 33 समितियां है. संस्कृत, हिंदी, पर्यटन, पर्यावरण, पत्रकारिता, रंगमंच, संगीत, कला, साहित्य हर तरह की समितिया है. ऐसी हमारी 33 समितियां है. इसमें हमारा उद्देश्य ये है कि बुंदेलखंड के कोने-कोने और चप्पे-चप्पे की जानकारी लोगों तक पहुंचाएं, क्योकिं हमारा बुंदेलखंड काफी समृद्ध है. इसकी समृद्धता के लिए हमारे बुजुर्गों ने काफी कुछ लिखा है. कम से कम एक लाख पुस्तकें हमारे पितृ पुरूषों ने 100 सालों से इकट्ठी कर रखी है. जिन्हें हम एक जगह एक सस्थान पर बेबसाइट के माध्यम से लाना चाहते हैं. ताकि हमारी युवा पीढ़ी जो विपुल साहित्य और समृद्ध साहित्य है, उससे परिचित हो सके. बुंदेली को भाषा का दर्जा दिलाने के लिए जरूरी बुंदेली विश्वकोश में तैयार कर चुकी हूं. जिसे 2016 में उत्तरप्रदेश भाषा संस्थान ने प्रकाशित किया है. बुंदेली का वृहद शब्दकोश है, इसमें करीब 50 हजार शब्द है. परिशिष्ट अगर आप देखेंगे तो विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द और तमाम व्यजंन सभी सामग्री उसमें मिलेगी. आज हमने जिस बेबसाइट का लोकार्पण किया है, ये बुंदेलखंड इनसाइक्लोपीडिया है. अब हम इनसाइक्लोपीडिया को 40 वाल्यूम में लाना चाहेंगे, बेबसाइट भी समृद्ध करेंगे. आज से नयी शुरूआत हुई है.

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बुंदेली बोली पर बयान

बुंदेली में तमाम खूबियां है कि भाषा का दर्जा मिले: सागर विश्वविद्यालय के एजुकेशनल मल्टीमीडिया रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर पंकज तिवारी कहते हैं कि बुंदेलखंड अपने आप में बहुत समृद्ध है. यहां की संस्कृति और हमारे पास बुंदेली जिसे बोली कहा जाता है, लेकिन उसमें भाषा बनने की पूरी क्षमता है कि वो एक परिपक्व भाषा बन सकती है. बुंदेली का जो इतिहास है, कई बार ये चीजें सामने आती है. आज एक बुंदेली शब्दकोश की चर्चा हुई, जिसमें 50 हजार से ज्यादा शब्द है. अगर 50 हजार से ज्यादा शब्दों का शब्दकोश है, तो हमारी बुंदेली भाषा क्यों नहीं बन सकती है. मुझे लगता है कि इसके लिए प्रयास किया जाना चाहिए. किसी बोली को भाषा का दर्जा दिए जाने की एक संवैधानिक प्रक्रिया है. मुझे लगता है कि सकारात्मक तरीके से इसका प्रयास करना चाहिए. हमारे जो जनप्रतिनिधि है, उनसे भी हम निवेदन करेंगे कि बुंदेली को भाषा का दर्जा मिलें, इसके लिए प्रयास करें.

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