ETV Bharat / bharat

ईको टास्क फोर्स पर मंडराया खतरा!, राज्य सरकार पर देनदारी बढ़कर हुई 135 करोड़

उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर ईको टास्क फोर्स की चार कंपनियों पर संकट मंडराने लगा है. ऐसा बजट के कारण हुआ है, जो राज्य सरकार द्वारा ईको टास्क फोर्स को नहीं दिया जा रहा है. बजट की देनदारी अब 135 करोड़ पहुंच गई है, जो राज्य सरकार के लिए थोड़ा मुश्किल भरा हो गया है. ऐसे में राज्य सरकार एक बार फिर केंद्र की ओर टकटकी लगाए है.

eco task force
ईको टास्क फोर्स
author img

By

Published : Dec 27, 2022, 3:09 PM IST

उत्तराखंड के ईको टास्क फोर्स पर मंडराया खतरा!

देहरादून: भारतीय सेना के अधीन संचालित ईको टास्क फोर्स दुनिया की पहली ऐसी फोर्स है, जो पर्यावरण के लिए काम कर रही है. इकोलॉजिकल टास्क फोर्स देश के करीब 8 राज्यों में काम कर रही है. लेकिन उत्तराखंड में अब इस फोर्स के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है. इसके पीछे की वजह हर साल फोर्स पर लगने वाला वह बजट है, जिसको चुकता करने में अब तक उत्तराखंड की सरकारें, कामयाब नहीं हो पाई हैं. स्थिति यह है कि अब यह रकम इतनी बड़ी हो चुकी है कि इसका वहन करना सरकार के लिए भारी दिखने लगा है.

सरहद पर अत्याधुनिक बंदूकों और टैंकों के साथ देश की सुरक्षा को फुलफ़्रूप करने वाले जांबाज पर्यावरण के मोर्चे पर भी अपनी एक खास जगह बना चुके हैं. यूं तो पर्यावरण संरक्षण से सेना का पुराना नाता है. लेकिन इन दिनों एक बार फिर भारतीय सेना के अधीन काम करने वाले इकोलॉजिकल टास्क फोर्स की अहम भूमिका को उत्तराखंड में याद किया जा रहा है. दरअसल, इसकी बड़ी वजह ईको टास्क फोर्स पर प्रदेश में मंडराता खतरा है, जिसे राज्य सरकारों ने अपनी दूरदर्शिता के कारण खड़ा किया है.

इससे पहले कि ईको टास्क फोर्स की इन कंपनियों पर मंडराते खतरे पर हम बात करें, लेकिन सबसे पहले जानिए कि इन टास्क फोर्स का गठन क्यों किया गया. इसके किस तरह के फायदे 1980 दशक में महसूस किए गए. इन सवालों का जवाब 127 ईको टास्क फोर्स के पूर्व कमांडिंग ऑफिसर रिटायर्ड कर्नल हरिराम सिंह राणा देते हैं.

कर्नल हरि राम सिंह राणा बताते हैं कि जिस समय मसूरी उजड़ रहा था, तब भारतीय सेना के अधीन इस फोर्स को मसूरी में पर्यावरण संरक्षण के तहत वृक्षारोपण की जिम्मेदारी दी गई थी. यही नहीं भू-कटाव की समस्या काफी निदान इसी फोर्स के प्रयासों से मसूरी में हुआ. कर्नल राणा कहते हैं कि उस दौरान दो कंपनियां उत्तराखंड में लगाई गई थी. इस तरह दो कंपनियों के करीब 200 लोगों ने इस काम को पूरी शिद्दत के साथ किया और आज मसूरी जिस हालत में दिखाई देती है. उसके पीछे ईको ट्रांसपोर्ट की वही मेहनत छिपी हुई है.

न केवल उत्तराखंड बल्कि देश के कई राज्यों में इसी तरह से पर्यावरण संरक्षण के साथ दूसरे को समस्याओं के निदान के लिए भी इनको ट्रांसपोर्ट को काफी अहम माना गया. उस दौरान देश की प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की रजामंदी के बाद इस फोर्स का गठन किया गया था.

ईको टास्क फोर्स को जानें

eco task force
क्या है ईको टास्क फोर्स ?

वैसे तो तमाम राज्यों में टास्क फोर्स काम कर ही रही है, लेकिन उत्तराखंड में स्थितियां अब इस फोर्स के लिए विपरीत नजर आती हैं. दरअसल, उत्तराखंड में चार कंपनियां पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही हैं. इसमें से दो कंपनियों का पैसा केंद्र देता है, जबकि दो का खर्चा राज्य सरकार ने खुद उठाने का फैसला लिया था.

पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के समय दो कंपनियों को गढ़वाल और दो कंपनियों को कुमाऊं में काम करने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन तमाम राज्य सरकारों ने इन दो कंपनियों पर आने वाले खर्चे को समय से नहीं भुगतान किया. ऐसे में अभी रकम धीरे-धीरे 135 करोड़ देनदारी पर आ चुकी है. स्थिति यह है कि यदि राज्य सरकार की तरफ से इसका भुगतान नहीं किया गया तो इन कंपनियों को राज्य से हटाया जा सकता है. अब जानिए ईको टास्क फोर्स के प्रयासों की सफलता.

ईको टास्क फोर्स की सफलता

eco task force
ईको टास्क फोर्स की सफलता

उत्तराखंड में ईको टास्क फोर्स की चार कंपनियां काम कर रही हैं. जिनका काम प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में पर्यावरणीय विकास को लेकर दिए गए लक्ष्य को पूरा करना है. हालांकि, इस टास्क फोर्स पर खर्च होने वाले बजट का आधा हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाता है, लेकिन इसके बावजूद राज्य सरकार 50 फीसदी बजट को भी पर्यावरण संरक्षण के नाम पर नहीं जुटा पा रही है. स्थिति यह है कि अब यह बजट 100 करोड़ से भी अधिक का हो चुका है. राज्य ने एक बार फिर बॉल केंद्र के पाले में डाल दी है.

उत्तराखंड के ईको टास्क फोर्स पर मंडराया खतरा!

देहरादून: भारतीय सेना के अधीन संचालित ईको टास्क फोर्स दुनिया की पहली ऐसी फोर्स है, जो पर्यावरण के लिए काम कर रही है. इकोलॉजिकल टास्क फोर्स देश के करीब 8 राज्यों में काम कर रही है. लेकिन उत्तराखंड में अब इस फोर्स के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है. इसके पीछे की वजह हर साल फोर्स पर लगने वाला वह बजट है, जिसको चुकता करने में अब तक उत्तराखंड की सरकारें, कामयाब नहीं हो पाई हैं. स्थिति यह है कि अब यह रकम इतनी बड़ी हो चुकी है कि इसका वहन करना सरकार के लिए भारी दिखने लगा है.

सरहद पर अत्याधुनिक बंदूकों और टैंकों के साथ देश की सुरक्षा को फुलफ़्रूप करने वाले जांबाज पर्यावरण के मोर्चे पर भी अपनी एक खास जगह बना चुके हैं. यूं तो पर्यावरण संरक्षण से सेना का पुराना नाता है. लेकिन इन दिनों एक बार फिर भारतीय सेना के अधीन काम करने वाले इकोलॉजिकल टास्क फोर्स की अहम भूमिका को उत्तराखंड में याद किया जा रहा है. दरअसल, इसकी बड़ी वजह ईको टास्क फोर्स पर प्रदेश में मंडराता खतरा है, जिसे राज्य सरकारों ने अपनी दूरदर्शिता के कारण खड़ा किया है.

इससे पहले कि ईको टास्क फोर्स की इन कंपनियों पर मंडराते खतरे पर हम बात करें, लेकिन सबसे पहले जानिए कि इन टास्क फोर्स का गठन क्यों किया गया. इसके किस तरह के फायदे 1980 दशक में महसूस किए गए. इन सवालों का जवाब 127 ईको टास्क फोर्स के पूर्व कमांडिंग ऑफिसर रिटायर्ड कर्नल हरिराम सिंह राणा देते हैं.

कर्नल हरि राम सिंह राणा बताते हैं कि जिस समय मसूरी उजड़ रहा था, तब भारतीय सेना के अधीन इस फोर्स को मसूरी में पर्यावरण संरक्षण के तहत वृक्षारोपण की जिम्मेदारी दी गई थी. यही नहीं भू-कटाव की समस्या काफी निदान इसी फोर्स के प्रयासों से मसूरी में हुआ. कर्नल राणा कहते हैं कि उस दौरान दो कंपनियां उत्तराखंड में लगाई गई थी. इस तरह दो कंपनियों के करीब 200 लोगों ने इस काम को पूरी शिद्दत के साथ किया और आज मसूरी जिस हालत में दिखाई देती है. उसके पीछे ईको ट्रांसपोर्ट की वही मेहनत छिपी हुई है.

न केवल उत्तराखंड बल्कि देश के कई राज्यों में इसी तरह से पर्यावरण संरक्षण के साथ दूसरे को समस्याओं के निदान के लिए भी इनको ट्रांसपोर्ट को काफी अहम माना गया. उस दौरान देश की प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की रजामंदी के बाद इस फोर्स का गठन किया गया था.

ईको टास्क फोर्स को जानें

eco task force
क्या है ईको टास्क फोर्स ?

वैसे तो तमाम राज्यों में टास्क फोर्स काम कर ही रही है, लेकिन उत्तराखंड में स्थितियां अब इस फोर्स के लिए विपरीत नजर आती हैं. दरअसल, उत्तराखंड में चार कंपनियां पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही हैं. इसमें से दो कंपनियों का पैसा केंद्र देता है, जबकि दो का खर्चा राज्य सरकार ने खुद उठाने का फैसला लिया था.

पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के समय दो कंपनियों को गढ़वाल और दो कंपनियों को कुमाऊं में काम करने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन तमाम राज्य सरकारों ने इन दो कंपनियों पर आने वाले खर्चे को समय से नहीं भुगतान किया. ऐसे में अभी रकम धीरे-धीरे 135 करोड़ देनदारी पर आ चुकी है. स्थिति यह है कि यदि राज्य सरकार की तरफ से इसका भुगतान नहीं किया गया तो इन कंपनियों को राज्य से हटाया जा सकता है. अब जानिए ईको टास्क फोर्स के प्रयासों की सफलता.

ईको टास्क फोर्स की सफलता

eco task force
ईको टास्क फोर्स की सफलता

उत्तराखंड में ईको टास्क फोर्स की चार कंपनियां काम कर रही हैं. जिनका काम प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में पर्यावरणीय विकास को लेकर दिए गए लक्ष्य को पूरा करना है. हालांकि, इस टास्क फोर्स पर खर्च होने वाले बजट का आधा हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाता है, लेकिन इसके बावजूद राज्य सरकार 50 फीसदी बजट को भी पर्यावरण संरक्षण के नाम पर नहीं जुटा पा रही है. स्थिति यह है कि अब यह बजट 100 करोड़ से भी अधिक का हो चुका है. राज्य ने एक बार फिर बॉल केंद्र के पाले में डाल दी है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.