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कोविड महामारी से उत्पन्न शैक्षिक संकट से निबटने में विफल केंद्रीय बजट : RTE Forum

आरटीई फोरम (Right to Education Forum) के मुताबिक आम बजट 2022-23 में स्कूलों को फिर से खोलने, सरकारी स्कूल व्यवस्था की मजबूती और शिक्षा अधिकार कानून के क्रियान्वयन पर जोर देने के बजाय सिर्फ डिजिटल लर्निंग पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है, जो कि निराशाजनक है.

RTE Forum
आरटीई फोरम
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Published : Feb 7, 2022, 9:03 PM IST

नई दिल्ली : आरटीई फोरम (Right to Education Forum) के मुताबिक आम बजट 2022-23 कोरोना महामारी से उपजी स्थितियों को सुधारने में विफल है. वित्त मंत्री ने महामारी के दर्दनाक प्रभाव को तो स्वीकार किया लेकिन वह स्कूलों को फिर से खोलने और उन्हें कोविड के असर के संदर्भ में तैयारी करने की तत्काल आवश्यकता को स्वीकार करने में विफल रहीं.

शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत संगठन राइट टू एजुकेशन फोरम के समन्वयक मित्ररंजन ने कहा कि असर 2021 के एक सर्वेक्षण के मुताबिक सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ा है और निजी स्कूलों के नामांकन में 8.1% की गिरावट हुई है. आर्थिक सर्वेक्षण ने भी इस जनसांख्यिकीय बदलाव को संभालने के लिए सरकारी स्कूलों को बुनयादी सुविधाओं से लैस करने की सिफारिश की है.

शोध से पता चलता है कि महामारी के दौरान ग्रामीण इलाकों में केवल 8 फीसदी बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन अध्ययन कर रहे थे. इन परिस्थितियों में सीखने के नुकसान को दूर करने के लिए मंत्रालय के पूरक शिक्षण के लिए डिजिटल समाधान की राह पकड़ने ऐसे क्रियाकलापों में भारी इजाफा के फैसले को समझना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि 6-13 वर्ष आयु वर्ग के 42% बच्चों ने स्कूल बंद होने के दौरान किसी भी प्रकार के दूरस्थ शिक्षा का उपयोग नहीं किया.

रिपोर्ट के अनुसार 14-18 वर्ष की आयु के 80 फीसदी बच्चों के ऑनलाइन सीखने का स्तर स्कूल में शारीरिक रूप से उपस्थिति के दौरान सीखने की तुलना में काफी नीचे रहा. इसके बावजूद वित्त मंत्री ने अपने भाषण में सीखने के नुकसान को स्वीकार करते हुए ई-विद्या कार्यक्रम को 12 से बढ़ाकर 200 चैनलों तक विस्तारित करने की घोषणा करके अपना दायित्व पूरा कर लिया.

फोरम ने कहा कि डिजिटल माध्यम से सीखने-पढ़ने पर अधिक ध्यान के बावजूद डिजिटल बुनियादी ढांचे के विस्तार पर कोई वास्तविक आवंटन नहीं है. जिसका मतलब है कि सरकार डिजिटल शिक्षा को भी आगे बढ़ाने के लिए निजी निवेश और पीपीपी के बारे में सोच रही है. जबकि यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि ऑनलाइन शिक्षा के कारण बढ़ती असमानता ने 80 प्रतिशत गांवों में रहने वाले तथा शहरों के गरीब बच्चे, जिनमें लड़कियों की संख्या बहुतायत है, के सामने कम्प्यूटर, लैपटॉप, स्मार्ट फोन तथा उचित संसाधनों के अभाव के कारण शिक्षा के दायरे से हमेशा के लिए बाहर हो जाने का खतरा पैदा कर दिया है.

मित्ररंजन ने कहा कि सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था और औपचारिक स्कूली शिक्षा को मजबूत करने के लिए वित्त पोषण में कमी और शिक्षा अधिकार कानून के क्रियान्वयन और विस्तार के लिए ठोस रोडमैप के अभाव का सीधा असर समाज के वंचित वर्गों की शिक्षा पर पड़ेगा जो शिक्षा के क्षेत्र में असमानता को और बढ़ाएगा और एसडीजी के तहत अंगीकार किए गए शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को भी बुरी तरह से बाधित करेगा.

समग्र शिक्षा अभियान पर आवंटन में 6333 करोड़ की थोड़ी वृद्धि तो हुई है. हालांकि यह महामारी के पहले वाले स्तर से भी कम ही है. जबकि शिक्षा के लिए बजट का आवंटन पहले से ही चिंताजनक कमी का शिकार है. महामारी के दौरान स्कूलों में नाश्ता उपलब्ध कराने और बच्चों के स्वास्थ्य के मुद्दों के लिए नीतिगत प्रतिबद्धता के बावजूद, इस साल मिड डे मील योजना (एमडीएम) का आवंटन भी कम हो गया है.

यह भी पढ़ें- पीएम मोदी आक्रामक, कहा- विपक्ष ने सदन जैसी पवित्र जगह का प्रयोग देश की बजाय दल के लिए किया

अब प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना के नए नामकरण के साथ आयी इस योजना में विगत वर्ष के आवंटन 11500 करोड़ रुपये (2020-21 बीई) को भी घटाकर 10233.75 करोड़ कर दिया गया है. जबकि बच्चों के स्वास्थ्य एवं गुणवत्तापूर्ण पोषण के लिहाज से यह योजना निरंतर पैसों की कमी से जूझती रही है. ऐसी स्थिति तब है जब देश बाल कुपोषण की समस्या से ग्रस्त है.

नई दिल्ली : आरटीई फोरम (Right to Education Forum) के मुताबिक आम बजट 2022-23 कोरोना महामारी से उपजी स्थितियों को सुधारने में विफल है. वित्त मंत्री ने महामारी के दर्दनाक प्रभाव को तो स्वीकार किया लेकिन वह स्कूलों को फिर से खोलने और उन्हें कोविड के असर के संदर्भ में तैयारी करने की तत्काल आवश्यकता को स्वीकार करने में विफल रहीं.

शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत संगठन राइट टू एजुकेशन फोरम के समन्वयक मित्ररंजन ने कहा कि असर 2021 के एक सर्वेक्षण के मुताबिक सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ा है और निजी स्कूलों के नामांकन में 8.1% की गिरावट हुई है. आर्थिक सर्वेक्षण ने भी इस जनसांख्यिकीय बदलाव को संभालने के लिए सरकारी स्कूलों को बुनयादी सुविधाओं से लैस करने की सिफारिश की है.

शोध से पता चलता है कि महामारी के दौरान ग्रामीण इलाकों में केवल 8 फीसदी बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन अध्ययन कर रहे थे. इन परिस्थितियों में सीखने के नुकसान को दूर करने के लिए मंत्रालय के पूरक शिक्षण के लिए डिजिटल समाधान की राह पकड़ने ऐसे क्रियाकलापों में भारी इजाफा के फैसले को समझना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि 6-13 वर्ष आयु वर्ग के 42% बच्चों ने स्कूल बंद होने के दौरान किसी भी प्रकार के दूरस्थ शिक्षा का उपयोग नहीं किया.

रिपोर्ट के अनुसार 14-18 वर्ष की आयु के 80 फीसदी बच्चों के ऑनलाइन सीखने का स्तर स्कूल में शारीरिक रूप से उपस्थिति के दौरान सीखने की तुलना में काफी नीचे रहा. इसके बावजूद वित्त मंत्री ने अपने भाषण में सीखने के नुकसान को स्वीकार करते हुए ई-विद्या कार्यक्रम को 12 से बढ़ाकर 200 चैनलों तक विस्तारित करने की घोषणा करके अपना दायित्व पूरा कर लिया.

फोरम ने कहा कि डिजिटल माध्यम से सीखने-पढ़ने पर अधिक ध्यान के बावजूद डिजिटल बुनियादी ढांचे के विस्तार पर कोई वास्तविक आवंटन नहीं है. जिसका मतलब है कि सरकार डिजिटल शिक्षा को भी आगे बढ़ाने के लिए निजी निवेश और पीपीपी के बारे में सोच रही है. जबकि यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि ऑनलाइन शिक्षा के कारण बढ़ती असमानता ने 80 प्रतिशत गांवों में रहने वाले तथा शहरों के गरीब बच्चे, जिनमें लड़कियों की संख्या बहुतायत है, के सामने कम्प्यूटर, लैपटॉप, स्मार्ट फोन तथा उचित संसाधनों के अभाव के कारण शिक्षा के दायरे से हमेशा के लिए बाहर हो जाने का खतरा पैदा कर दिया है.

मित्ररंजन ने कहा कि सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था और औपचारिक स्कूली शिक्षा को मजबूत करने के लिए वित्त पोषण में कमी और शिक्षा अधिकार कानून के क्रियान्वयन और विस्तार के लिए ठोस रोडमैप के अभाव का सीधा असर समाज के वंचित वर्गों की शिक्षा पर पड़ेगा जो शिक्षा के क्षेत्र में असमानता को और बढ़ाएगा और एसडीजी के तहत अंगीकार किए गए शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को भी बुरी तरह से बाधित करेगा.

समग्र शिक्षा अभियान पर आवंटन में 6333 करोड़ की थोड़ी वृद्धि तो हुई है. हालांकि यह महामारी के पहले वाले स्तर से भी कम ही है. जबकि शिक्षा के लिए बजट का आवंटन पहले से ही चिंताजनक कमी का शिकार है. महामारी के दौरान स्कूलों में नाश्ता उपलब्ध कराने और बच्चों के स्वास्थ्य के मुद्दों के लिए नीतिगत प्रतिबद्धता के बावजूद, इस साल मिड डे मील योजना (एमडीएम) का आवंटन भी कम हो गया है.

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अब प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना के नए नामकरण के साथ आयी इस योजना में विगत वर्ष के आवंटन 11500 करोड़ रुपये (2020-21 बीई) को भी घटाकर 10233.75 करोड़ कर दिया गया है. जबकि बच्चों के स्वास्थ्य एवं गुणवत्तापूर्ण पोषण के लिहाज से यह योजना निरंतर पैसों की कमी से जूझती रही है. ऐसी स्थिति तब है जब देश बाल कुपोषण की समस्या से ग्रस्त है.

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